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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
औलाद की चाह-226



CHAPTER 8-छठा दिन

मामा जी

अपडेट-8

मामा जी के दोस्त पधारे




हमने थोड़ी देर बात की थी और मामा-जी ने जरूर इस तथ्य पर ध्यान दिया होगा कि मेरे बड़े स्तन मेरे ब्लाउज के अंदर ऊपर-नीचे हिल रहे थे और वे मेरे गर्म होते स्तनों पर झाँक रहे थे।





[Image: mama0.jpg]



हम 10 x 10 के एक कमरे में दाखिल हुए, जिसे मामा जी अपने पुस्तकालय के रूप में इस्तेमाल करते थे। कमरे के चारों तरफ कई तरह की किताबें (ज्यादातर पुरानी) कई रैक में रखी हुई थीं। यह देखकर अच्छा लगा कि रैक को शीर्षकों से चिह्नित किया गया था, जो प्रत्येक श्रेणी को वर्गीकृत करता था। अधिकांश पुस्तकें गणित और विज्ञान से सम्बंधित थीं और पुरानी पत्रिकाओं और पत्रिकाओं से भरे कुछ रैक थे।

मैं: कोई कहानीयो की किताब नहीं?

मामा-जी: हा-हा हा... हाँ, कुछ स्टोरीबुक स्टैक हैं, लेकिन कोई स्थानीय भाषा में नहीं है।

मैं: ओ जी मामा जी। लेकिन मामा-जी आपने यह बहुत अच्छी तरह से मेन्टेन की हुई है, साफ-सुथरी है और सुंदर व्यवस्थित दिखती है और अधिकांश किताबें बहुत अच्छी तरह से पेपरबैक की गई हैं।

मामा जी: थैंक्स...

कमरे के भीतर स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए ज्यादा जगह नहीं थी क्योंकि किताबों की रैक काफी जगह लिए हुई थी और इसलिए मामा-जी की भुजाओं ने मेरी उभरी हुई साड़ी से ढकी गांड को कई बार ब्रश किया (जब हमने साथ-साथ चलने की कोशिश की) जब उन्होंनेउनके पुस्तकालय की सामग्री और व्यवस्था को मुझे समझाया। पहले मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन अब मैं उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती थी क्योंकि मामा-जी का "अंदर का गंदापन" मेरे लिए अब उजागर हो गया था और उनका छुपा हुआ शौंक मुझे पता लग चूका था! ठीक उसी क्षण दरवाजे की घंटी बजी।

मामा जी: ओह! यह राधेश्याम होना चाहिए! क्या आपको वह याद है? वह तुम्हारी शादी में भी आया था ...

मामा जी: बस एक मिनट! मुझे उसके लिए दरवाजा खोलने दो।

मैं भी उनके पीछे-पीछे गयी। मामा-जी एक बुजुर्ग व्यक्ति (जो की मामा-जी से अधिक उम्र के लग रहे थे) के साथ वापस आए और वह बजुर्ग एक छड़ी के साथ बहुत धीरे-धीरे चल रहे थे।








[Image: mama1.jpg]

मामा-जी: अब तुम्हें बहुरानी याद है?

एक नए व्यक्ति को देखकर मैंने जल्दी से अपनी साड़ी के पल्लू को समायोजित किया और अपने स्तनों को उचित रूप से ढक लिया (हालांकि मेरा पल्लू ठीक से ही रखा हुआ था) । मैं उन्हें पहचान नहीं पायी और मामा जी की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखते हुए घबराकर मुस्कुरा दी।

मामा जी: यह अप्राकृतिक नहीं है। आपने इन्हे केवल एक बार अपनी शादी में देखा है। ये आपके राधेश्याम अंकल हैं। वह मेरे पुराने मित्र हैं और काफी करीब रहते हैं।

राधेश्याम अंकल चलने-फिरने में काफी धीमे थे और जैसे ही वे आगे बढ़े मैंने झट से उन्हें प्रणाम किया।

मैं: ओह। प्रणाम अंकल!

राधेश्याम अंकल: जीती रहो बेटी! असल में शादी के दिन मिले लोगों को याद रखना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि आप उस दिन इतने सारे मेहमानों से मिलते हैं...

मैं: (मूर्खता से मुस्कुराते हुए) हाँ... असल में...!

राधेश्याम अंकल (दाहिना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए, बाएँ हाथ में डंडा पकड़े हुए थे) : वाह! अर्जुन! हमारे राजेश की पत्नी जिसे मैंने शादी के दिन जो देखा था उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही है! क्या कहते हो अर्जुन ?(अर्जुन मामा जी का नाम था।)

मामा जी: हमारा परिवार खुशनसीब है कि रश्मि जैसी अच्छी लड़की हमारे परिवार की पुत्रवधु है। दो बुजुर्ग पुरुषों की इस भारी प्रशंसा पर मैं शरमा गयी।








[Image: mama2.jpg]

राधेश्याम अंकल: अरे! देखो बहुरानी कैसे शर्मा रही है अर्जुन! हा-हा हा काश राजेश होता और फिर यह शरमाना उसके गर्व में बदल जाता-बेटी है न? हा-हा हा!...

मैं मुस्कुरायी और मामा-जी और राधेश्याम अंकल दोनों जोर-जोर से हंसने लगे। मामा जी: आप बैठते क्यों नहीं राधेश्याम!

राधेश्याम अंकल: हाँ, हाँ हम अच्छी और लम्बी बातचीत कर करेंगे। बैठो बिटिया।

राधेश्याम अंकल उस छोटी-सी बातचीत से खुले दिल के और जिंदादिल इंसान लगते थे और मुझे वह पसंद आये थे। क्षण भर के लिए मामा-जी का "व्यक्तिगत जीवन" , जो मेरे सामने प्रकट हुआ, मेरे दिमाग के पीछे चला गया था।

राधेश्याम अंकल: अरे नहीं! यहाँ नहीं!

मामा जी (मुस्कुराते हुए) : ओहो! ठीक है।

राधेश्याम अंकल: बेटी, क्या तुमने इन सोफों पर बैठ कर देखा है? (दो सोफे की ओर इशारा करते हुए।)

मैं: हाँ अंकल।

राधेश्याम अंकल: हाँ-ए-स! क्या आपको लगता है कि कोई सामान्य व्यक्ति उन पर आराम से बैठ सकता है?

मामा जी: ओह! राधेश्याम! फिर नहीं !...

राधेश्याम अंकल: पता नहीं तुम्हारे मामा जी इन्हे कहाँ से लाए हैं! बकवास! मेरी गांड इसमें डूब गई और मैं अजीबोगरीब अंदाज में लटक गया और यह बदमाश कहता है कि ऐसे ही तुम्हें आराम करना चाहिए ... साला! (मुस्कराते हुए।)

जिस तरह से उन्होंने टिप्पणी की (उसके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अपशब्दों को नज़रअंदाज़ करते हुए) मैं हँसी नहीं रोक सकी और बरामदे की ओर बढ़ते हुए हम सभी जोर-जोर से हँस रहे थे। हम वहाँ जो स्टूल उपलब्ध थे, उन पर बैठ गए। हालाँकि मुझे आराम से बैठने में थोड़ी कठिनाई हो रही थी, क्योंकि मेरे बड़ा गोल नितम्ब स्टूल के छोटे से आधार में पूरी तरह से समायोजित नहीं हो रहे थे। राधेश्याम अंकल के सम्मान में हमने एक बार फिर चाय पी।

मामा जी: आपको तो कम से कम आधा घंटा पहले आना था ?...

राधेश्याम अंकल: अरे! क्या कहूँ! मैंने सोचा था कि मैं नैना के साथ यहाँ आऊंगा, लेकिन उसने मना कर दिया और फिर मुझे अकेले आना पड़ा और इस चक्कर में मैं लेट हो गया!






[Image: mama3.jpg]



मामा जी: मना कर दिया! क्यों? उसे तो मेरे बगीचे में खेलना अच्छा लगता है !...

राधेश्याम अंकल: अरे! बकवास! मेरी हर बात में हद से ज्यादा लम्बी जा रही है।

मामा जी: क्यों? क्या हुआ?

राधेश्याम अंकल: इससे पहले कि मैं मामले को विस्तृत करूँ, मुझे पहले नैना के बारे में बहुरानी के बताना चाहिए। दरअसल नैना मेरी पोती है।

मैं: जी अंकल वह कितनी बड़ी है?

राधेश्याम अंकल: ये दूसरी क्लास में पढ़ती है। आप सोच भी नहीं सकते कि उसने मेरे साथ आने से मना क्यों किया!

मैं: क्यों अंकल?

राधेश्याम अंकल: जैसे ही मैंने उसे तैयार होने के लिए कहा, उसने मुझसे शिकायत की कि उसके सारे अंडरपैंट गीले थे, क्योंकि उसकी माँ ने उन्हें धो दिया था और वह उसे पहने बिना बाहर नहीं जा सकती थी। जरा सोचो!

मामा जी: हा-हा हा... वाक़ई? लेकिन नैना तो अभी बच्ची है!

राधेश्याम अंकल: हाँ, वह सिर्फ दूसरी क्लास में पढ़ती है और जरा उसके व्यवहार के बारे में सोचो! उसने मेरे साथ आने से मना कर दिया! यह केवल मेरी बहू के हर चीज के बारे में मेरी पोती को दिए गए अत्यधिक प्रशिक्षण के कारण है!

मैं (थोड़ा मुस्कुराते हुए) : लेकिन !...

राधेश्याम अंकल: बहुरानी, मुझे पता है तुम कहोगी कि उसने जो कहा वह तार्किक था, लेकिन वह अभी बच्ची है और अगर मैं उसे अपने साथ चलने के लिए कह रहा हूँ, तो उसे आना चाहिए था... लेकिन नहीं! वह बस अडिग थी!

मैं: (हँसते हुए) आजकल के बच्चे! बहुत सचेत हैं!





जारी रहेगी


NOTE-    

इस कहानी में आपने पढ़ा कैसे एक महिला बच्चे की आस लिए एक गुरूजी के आश्रम पहुंची और वहां पहले दो -तीन दिन उसे क्या अनुभव हुए पर कहानी मुझे अधूरी लगी ..मुझे ये कहानी इस फोरम पर नजर नहीं आयी ..इसलिए जिन्होने ना पढ़ी हो उनके लिए इस फोरम पर डाल रहा हूँ


मेरा प्रयास है इसी कहानी को थोड़ा आगे बढ़ाने का जिसमे परिकरमा, योनि पूजा , लिंग पूजा और मह यज्ञ में उस महिला के साथ क्या क्या हुआ लिखने का प्रयास करूँगा .. अभी कुछ थोड़ा सा प्लाट दिमाग में है और आपके सुझाव आमनत्रित है और मैं तो चाहता हूँ के बाकी लेखक भी यदि कुछ लिख सके तो उनका भी स्वागत है

अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है .


वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होता. मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


 इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास नहीं किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .

 इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .

Note : dated 1-1-2021

जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी।

बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था।

अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है या मैंने कुछ हिस्से जोड़े हैं  ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।

Note dated 8-1-2024

इससे पहले कहानी में , कुछ रिश्तेदारों, दूकानदार और एक फिल्म निर्देशक द्वारा एक महिला के साथ हुए अजीब अनुभवो के बारे में बताया गया है , कहानी के 270 भाग से आप एक डॉक्टर के साथ हुए एक महिला के अजीब अनुभवो के बारे में पढ़ेंगे . जीवन में हर कार्य क्षेत्र में हर तरह के लोग मिलते हैं हर व्यक्ति एक जैसा नही होता. डॉक्टर भी इसमें कोई अपवाद नहीं है. इसके बाद मामा जी के कारनामे हैं,  अधिकतर रिश्तेदार , डॉक्टर या वैध या हकिम इत्यादि अच्छे होते हैं, जिनपर हम पूरा भरोसा करते हैं, अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं ... वास्तव में ऐसा नहीं है की सब लोग ऐसे ही बदमाश होते हैं । अगर कुछ लोग ऐसे बदमाश ना होते तो कहानिया शायद कभी नहीं बनेगी ।

सभी को धन्यवाद,
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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 10-02-2025, 04:55 PM



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