03-02-2025, 01:07 PM
"आआआआआहहहह मेरी बिटिया रानी, इसी तरह, इसी तरह, हिम्मत से बैठती जा। उफ उफ मेरी जान, तू मेरा दिल जीतती जा रही है।" वह मेरा उत्साह बढ़ाता हुआ मेरी चूतड़ सहला रहा था। मुझे उसका इस तरह सहलाना बड़ा आनन्ददायक लग रहा था, साथ ही साथ मेरी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी। मैं और नीचे बैठने लगी, उफ उफ, उसका लंड मेरे भीतर कहां तक जाएगा इसकी परवाह किए बगैर मैं करीब नौ इंच तक खा चुकी थी। अब मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी, क्योंकि ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत के अंदर और जगह बाकी नहीं बची है। सहसा मेरा हाथ नीचे गया, यह जानने के लिए कि अभी उसका लंड और कितना बाकी है और यह जानकर कि अभी भी अंदर जाने के लिए करीब दो इंच और बाकी था।
"बस आआआआआहहहह हो गया। बस इतना ही। अब और नहीं।" मेरे मुंह से निकला। मेरे मुंह से यह बात सुनते ही मेरी गान्ड सहलाने वाले भलोटिया के हाथों ने मेरी कमर को सख्ती से थाम लिया और एक ही झटके में मेरे शरीर को नीचे खींच लिया।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह मर गयी हरामीईईईईईई..... कुत्ता कहीं का आआआआआहहहह मांआंआंआंआंर डाला मुझे। इस्स्स्स्स्, फट गई मेरी मांआंआंआंआं.....।" दर्द से चीख उठी और आवेश में आकर अपना आपा खो बैठी। उससे छूटने की कोशिश में छटपटाने लगी लेकिन अब यह असंभव था। एक तो उसका पूरा लंड मेरी चूत के अंदर जड़ तक ठुंका हुआ था और वह कमीना बूढ़ा भालू पूरी सख्ती से मुझे दबा रखा था। छटपटाने का नतीजा यह हुआ कि मुझे और भी असहनीय पीड़ा होने लगी। मजबूरन मुझे स्थिर हो जाना ही उपयुक्त जान पड़ा। मन तो हो रहा था कि अबतक ओढ़ा हुआ शराफत का चोला उतार कर फेंक दूं और अबतक सीखी हुई सारी गंदी गालियों की बौछार कर दूं लेकिन मैं ऐसा करके अबतक की मेहनत पर पानी नहीं फेरना चाहती थी। अपनी पीड़िता बने रहने के नाटक का पटाक्षेप नहीं करना चाहती थी। हाय हाय, चुदने की चाह नें मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया था। भलोटिया नामक उस बूढ़े खूसट, मोटे, दानवाकार भालू का करीब ग्यारह इंच लंबा भयावह लंड पूरी तरह मेरी चूत में जड़ तक घुस कर मानो मेरी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा था और मैं उस असहनीय पीड़ा को पीती हुई स्थिर हो गई थी। पहले कुछ पल मानों पहाड़ जैसे कटे लेकिन फिर धीरे-धीरे सबकुछ अपने आप ठीक होता चला गया। जो लंड पहले मेरी चूत को फ़ाड़ डालने को आतुर लग रहा था और इस वक्त भी अपने जलाल पर था लेकिन मेरे स्थिर होने के कारण उधम मचाने की तमन्ना लिए मेरी चूत की सख्त गिरफ्त में फंसा, शायद मेरी अगली हरकत के इंतजार में व्याकुल हुआ जा रहा था। साथ ही साथ शायद कह रहा था, ले ली तेरी परीक्षा और मान गया तुम को, अब तो शुरू हो जा। इधर मैं अकथनीय पीड़ा के स्थान पर एक अजीब तरह का अद्भुत रोमांचक अहसास से दो चार होने लगी। उफ वह अहसास, उफ उस परिपूर्णता का अहसास मुझे कितना सुकून दे रहा था वह मैं बता नहीं सकती। मुझे अब अच्छा महसूस हो रहा था। कोई पीड़ा नहीं। ओह, जैसे ही मुझे इस क्षणिक पीड़ा से राहत मिली, मैं बता नहीं सकती कि जो भयानक लंड मुझे कुछ पलों पहले हलकान कर रहा था, वही अब मुझे कितना प्यारा लग रहा था। मेरी चूत की दीवारें उसके लंड को कस कर दबोचे हुए मुझे कितना आनंद प्रदान कर रही थीं। साली चूत, जब ऐसा ही आनंद देना था तो कुछ पलों पहले मुझे रुला क्यों रही थी, हरामजादी ऐसी पीड़ा दे रही थी मानो मेरी जान ही लेकर मानेगी।
बस बस, अब वही पहले वाली लंडखोर चुड़ैल वाली चुदास की आग सुलग उठी थी। गजब, इस अमानवीय लंड से चुदने की चुदास। सोच कर ही मन मुदित है उठा। मेरी आंखें बंद हो गई थीं।
"क्या हुआ? कहां खो गयी? अब तुम्हारा चीखना चिल्लाना अचानक से बंद क्यों हो गया?" भलोटिया की आवाज से जैसे मैं नींद से जागी।
"ककककक कुछ नहीं, बस दर्द से बेहाल थी। थोड़ा सांस ले रही थी।" मैंने आधा सच और आधा झूठ बोला। दर्द से बेहाल थी यह सच था लेकिन सांस ले रही थी, यह बात झूठ थी। सच तो यह था कि उतने बड़े लंड को पूरे जड़ तक अपने अंदर समा कर अपनी चूत से जकड़ने के उस अद्भुत अनुभव से दो चार हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे जो काम मेरे मुंह ने अधूरा छोड़ा था उसे मेरी चूत पूरी कर रही थी। उसके लंड को दबोच कर मानो चूस रही हो। शायद ऐसा ही अनुभव भलोटिया को भी हो रहा था तभी तो,
"आआआआआहहहह मेरी प्यारी बिटिया, हां हां थोड़ी देर सांस ले ले और इसी तरह अपनी चूत से मेरे लौड़े को चूसती रह। ओह बहूऊऊऊऊऊत मस्त चीज़ है रेएएएएए तू। धन्य भाग्य मेरा। उफ उफ.... " भलोटिया भी किला फतह करने की अपनी खुशी का इजहार करते हुए बोला। वह अधमुंदी आंखों से मेरे लाल, रक्तिम चेहरे को देखता हुआ बोला। सचमुच मेरा चेहरा उत्तेजना के मारे लाल भभूका हो रहा था।
"बस आआआआआहहहह हो गया। बस इतना ही। अब और नहीं।" मेरे मुंह से निकला। मेरे मुंह से यह बात सुनते ही मेरी गान्ड सहलाने वाले भलोटिया के हाथों ने मेरी कमर को सख्ती से थाम लिया और एक ही झटके में मेरे शरीर को नीचे खींच लिया।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह मर गयी हरामीईईईईईई..... कुत्ता कहीं का आआआआआहहहह मांआंआंआंआंर डाला मुझे। इस्स्स्स्स्, फट गई मेरी मांआंआंआंआं.....।" दर्द से चीख उठी और आवेश में आकर अपना आपा खो बैठी। उससे छूटने की कोशिश में छटपटाने लगी लेकिन अब यह असंभव था। एक तो उसका पूरा लंड मेरी चूत के अंदर जड़ तक ठुंका हुआ था और वह कमीना बूढ़ा भालू पूरी सख्ती से मुझे दबा रखा था। छटपटाने का नतीजा यह हुआ कि मुझे और भी असहनीय पीड़ा होने लगी। मजबूरन मुझे स्थिर हो जाना ही उपयुक्त जान पड़ा। मन तो हो रहा था कि अबतक ओढ़ा हुआ शराफत का चोला उतार कर फेंक दूं और अबतक सीखी हुई सारी गंदी गालियों की बौछार कर दूं लेकिन मैं ऐसा करके अबतक की मेहनत पर पानी नहीं फेरना चाहती थी। अपनी पीड़िता बने रहने के नाटक का पटाक्षेप नहीं करना चाहती थी। हाय हाय, चुदने की चाह नें मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया था। भलोटिया नामक उस बूढ़े खूसट, मोटे, दानवाकार भालू का करीब ग्यारह इंच लंबा भयावह लंड पूरी तरह मेरी चूत में जड़ तक घुस कर मानो मेरी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा था और मैं उस असहनीय पीड़ा को पीती हुई स्थिर हो गई थी। पहले कुछ पल मानों पहाड़ जैसे कटे लेकिन फिर धीरे-धीरे सबकुछ अपने आप ठीक होता चला गया। जो लंड पहले मेरी चूत को फ़ाड़ डालने को आतुर लग रहा था और इस वक्त भी अपने जलाल पर था लेकिन मेरे स्थिर होने के कारण उधम मचाने की तमन्ना लिए मेरी चूत की सख्त गिरफ्त में फंसा, शायद मेरी अगली हरकत के इंतजार में व्याकुल हुआ जा रहा था। साथ ही साथ शायद कह रहा था, ले ली तेरी परीक्षा और मान गया तुम को, अब तो शुरू हो जा। इधर मैं अकथनीय पीड़ा के स्थान पर एक अजीब तरह का अद्भुत रोमांचक अहसास से दो चार होने लगी। उफ वह अहसास, उफ उस परिपूर्णता का अहसास मुझे कितना सुकून दे रहा था वह मैं बता नहीं सकती। मुझे अब अच्छा महसूस हो रहा था। कोई पीड़ा नहीं। ओह, जैसे ही मुझे इस क्षणिक पीड़ा से राहत मिली, मैं बता नहीं सकती कि जो भयानक लंड मुझे कुछ पलों पहले हलकान कर रहा था, वही अब मुझे कितना प्यारा लग रहा था। मेरी चूत की दीवारें उसके लंड को कस कर दबोचे हुए मुझे कितना आनंद प्रदान कर रही थीं। साली चूत, जब ऐसा ही आनंद देना था तो कुछ पलों पहले मुझे रुला क्यों रही थी, हरामजादी ऐसी पीड़ा दे रही थी मानो मेरी जान ही लेकर मानेगी।
बस बस, अब वही पहले वाली लंडखोर चुड़ैल वाली चुदास की आग सुलग उठी थी। गजब, इस अमानवीय लंड से चुदने की चुदास। सोच कर ही मन मुदित है उठा। मेरी आंखें बंद हो गई थीं।
"क्या हुआ? कहां खो गयी? अब तुम्हारा चीखना चिल्लाना अचानक से बंद क्यों हो गया?" भलोटिया की आवाज से जैसे मैं नींद से जागी।
"ककककक कुछ नहीं, बस दर्द से बेहाल थी। थोड़ा सांस ले रही थी।" मैंने आधा सच और आधा झूठ बोला। दर्द से बेहाल थी यह सच था लेकिन सांस ले रही थी, यह बात झूठ थी। सच तो यह था कि उतने बड़े लंड को पूरे जड़ तक अपने अंदर समा कर अपनी चूत से जकड़ने के उस अद्भुत अनुभव से दो चार हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे जो काम मेरे मुंह ने अधूरा छोड़ा था उसे मेरी चूत पूरी कर रही थी। उसके लंड को दबोच कर मानो चूस रही हो। शायद ऐसा ही अनुभव भलोटिया को भी हो रहा था तभी तो,
"आआआआआहहहह मेरी प्यारी बिटिया, हां हां थोड़ी देर सांस ले ले और इसी तरह अपनी चूत से मेरे लौड़े को चूसती रह। ओह बहूऊऊऊऊऊत मस्त चीज़ है रेएएएएए तू। धन्य भाग्य मेरा। उफ उफ.... " भलोटिया भी किला फतह करने की अपनी खुशी का इजहार करते हुए बोला। वह अधमुंदी आंखों से मेरे लाल, रक्तिम चेहरे को देखता हुआ बोला। सचमुच मेरा चेहरा उत्तेजना के मारे लाल भभूका हो रहा था।