28-01-2025, 05:04 PM
"आह आह ओह ओह, बहूऊऊऊऊत बढ़िया आआआआआहहहह, तू बड़ी मस्त बिटिया हो ओह ओह हां हां ऐसे ही.... चूस मां की लौड़ी...." भलोटिया मस्ती में भर कर बोल उठा। मैं जानती थी कि घनश्याम के सीने में जरूर सांप लोट रहा था होगा। उसे अब जरूर अहसास हो रहा था होगा कि मुझे प्रताड़ित करने का उसका दांव उल्टा पड़ गया था। मैं घनश्याम की ओर चेहरा घुमा कर देख नहीं सकती थी लेकिन अंदाजा बखूबी लगा सकती थी। इधर भलोटिया अब मेरे सर को पकड़ कर मेरे मुंह को चोदने का आनंद लेने लगा था। उसका करीब तीन चौथाई लंड मेरे मुंह में अंदर बाहर हो रहा था और मैं चकित थी कि इतने विशाल लंड से जहां भलोटिया को मेरे साथ मुखमैथुन का मजा मिल रहा था वहीं मैं भी मस्ती में डूब कर उसके लंड को गपागप चूसने का आनंद लेने लगी थी, तभी अचानक भलोटिया ने अपना लंड बाहर खींच लिया और,
"बस बस, आआआआआहहहह ओओओओहहहहह मान गया तुमको बिटिया। मुंह से भी अद्भुत आनंद देती हो, लेकिन मुंह में नहीं झाड़ूंगा। तेरी चिकनी चूत के लिए बचा कर रखता हूं। मुखचोदन संपन्न हुआ अब अपनी चूत से चूत चोदन का मजा लेने दे बिटिया।" कहते हुए वह बिस्तर से नीचे उतरा और मेरे तन को घसीट कर बिस्तर के किनारे वहां तक ले आया, जहां तक मेरा धड़ चूतड़ तक बिस्तर पर तो था लेकिन मेरे पैर बिस्तर से बाहर थे।
"यह यह यह आप ककककक क्या कर रहे हैं?" बड़ी मुश्किल से बोल पाई। मेरा जबड़ा दर्द कर रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे पूरी क्षमता से मुंह फाड़कर मुखमैथुन का मजा लेना मुझे महंगा पड़ गया था और मेरा जबड़ा जाम हो गया हो। इतनी देर तक पूरी तरह मुंह खोल कर उतने मोटे लंड को चूसती जो रही थी। मेरी नज़र उसके लंड पर थी, जो मेरे थूक से लिथड़ कर चमचमा रहा था। बाप रे बाप, उसका लंड अविश्वसनीय रूप से पहले से भी बड़ा दिखाई दे रहा था जिसे मैं ने अपने मुंह के रास्ते गले तक उतार लिया था।
"बोला तो, अब तेरी चूत चोदूंगा।" वह बोला और मेरी टांगों को फैला कर जांघों के बीच घुसा चला आया।
"नहीं नहीं, यह मुझसे नहीं होगा। मर जाऊंगी मैं। प्लीज़ मुझ पर दया कीजिए।" मैं घिघिया रही थी लेकिन वह तो चोदने की धुन में जैसे बहरा हो गया था। खड़े खड़े ही उसने अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रखा और दबाव देने लगा और उसके लंड का मोटा सुपाड़ा मेरी चूत का मुंह फाड़ कर घुसने लगा। दर्द से मैं चीख पड़ी। मेरी दर्दनाक चीख सुनकर वह रुक गया और मेरे चेहरे को देखने लगा।
"क्या हुआ, बहुत दर्द हो रहा है?" वह बोला।
"हां।" मैं पीड़ा से कराहती हुई बोली।
"तो मैं क्या करूं? न चोदूं?" उसके चेहरे पर मायूसी का भाव था। मुझे उस पर दया आ गई। मैं झूठ नहीं बोलूंगी, दया तो आई लेकिन मैं खुद भी चुदने के लिए पागल हुई जा रही थी। उसका लंड मोटा था तो क्या हुआ, आखिर उसने न जाने कितने लोगों को इसी लंड से चोदा होगा। मैं कोई अपवाद तो हूं नहीं। ले लूंगी उसका लंड। थोड़ा दर्द ही तो होगा, मर तो नहीं न जाऊंगी। पहले पहल घुसा भी तो मुझे इसी तरह पीड़ा दे कर चोदा था। उसके बाद अब तक तो काफी बार मजे ले ले कर लंड खाती आ रही हूं। भलोटिया का लंड मेरी अबतक की चुदाई यात्रा में सबसे बड़ा था, लेकिन मैं यह भी जानती थी कि जैसे जैसे मेरी चुदाई यात्रा आगे बढ़ती आ रही थी वैसे वैसे धीरे-धीरे मेरी क्षमता भी तो बढ़ती जा रही थी। पहली पहली बार तो हर बार थोड़ी तकलीफ़ हुई ही थी फिर इस बार मैं पीछे क्यों हटूं, जबकि इस समय मुझमें चुदने की बड़ी तलब हो रही थी। जी को कड़ा करके इस बार भी भलोटिया का मूसल ले लूंगी यह निर्णय ले चुकी थी।
"मुझे पता है कि आप लोगों की मनमानी पूरी हुए बिना मेरी यहां से मुक्ति नहीं मिलने वाली है। मजबूरी में मुझे आप लोगों की इच्छा पूरी करनी पड़ रही है। मैं मना करने की स्थिति में नहीं हूं लेकिन जब मुझे यह सब झेलना ही है तो कम से कम मुझे अपने ढंग से झेलने दीजिए ना।" मैं ने अनुनय विनय के लहजे में कहा।
"चलो यह अच्छा है कि मजबूरी में ही सही, तुमने स्वीकार तो किया कि हमारी इच्छा पूरी करने में ही तुम्हारी भलाई है। अब तुम्हारी इच्छा का भी सम्मान करना हमारा फ़र्ज़ है। बोलो, तुम किस तरह से करवाना चाहती हो?" भलोटिया अपना लौड़ा पेलते पेलते रुक गया और बोला, हालांकि उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुस चुका था और मैं पीड़ा को पीने की यथासंभव कोशिश कर रही थी। उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ा आश्वासन मिला।
"ठीक है, तो ऐसा कीजिए कि आप बिस्तर पर लेट जाईए और मुझे अपने ऊपर चढ़ने दीजिए। मैं खुद बर्दाश्त करते हुए जितना सकूंगी, लेने की कोशिश करूंगी।" मेरी बात सुनकर वह मुस्करा उठा और घनश्याम की ओर देखने लगा। घनश्याम भी चकित होकर मुझे देखने लगा। फिर उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी। मेरी हिम्मत की दाद दे रहा था या उस मुस्कान के पीछे कुछ और बात थी, मैं समझ नहीं पाई।
"यह हुई बहादुरों वाली बात। इससे बढ़िया और क्या चाहिए मुझे। चलो ऐसा ही करते हैं।" कहकर उसने अपना लौड़ा मेरी चूत से बाहर खींच लिया और बिस्तर पर लेट गया। उसका लंड छत की ओर खतरनाक अंदाज में तन कर खड़ा था। उसके भीमकाय लंड का ऐसा नजारा देखकर एक बार तो मेरा हौसला भी ठंढा पड़ने लगा था लेकिन मैंने अपने मन को कड़ा किया और अपने दोनों पैरों को फैला कर उसके अगल बगल रखी और नीचे बैठने लगी। मेरा दिल तूफानी रफ्तार से धाड़ धाड़ धड़क रहा था। मैंने अपने आपको किसी प्रकार संयमित किया और उसके मूसल को अपने हाथों में थाम लिया और अपनी चूत को उसके संपर्क में लाने के लिए और नीचे बैठने लगी। जैसे ही उसके लंड के सुपाड़े से मेरी चूत का संपर्क हुआ, मैं सर से लेकर पैर तक कांप उठी। ओओओओहहहहह भगवान रक्षा करना, यही प्रार्थना करती हुई और नीचे बैठने लगी। उफ उफ, पहले की तरह उसका चिकना सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह को फैलाता हुआ अंदर दाखिल होने लगा। आह ओह, मेरी चूत फैलते हुए आखिरकार उसके उतने बड़े सुपाड़े को अपने अंदर ग्रहण करने में सफल हो गयी लेकिन पीड़ा तो हो ही रही थी। हां, पहले की अपेक्षा इस बार थोड़ी कम पीड़ा थी। मैं रोमांच से भर गई और थोड़ा और नीचे बैठने लगी। आह आह, उसका लंड मेरी चूत में रास्ता बनाता हुआ घुसता ही चला जा रहा था। करीब तीन इंच अन्दर चला गया लेकिन पीड़ा वैसे की वैसे ही थी। मैं तनिक रुकी लेकिन भलोटिया को यह नागवार गुजरने लगा।
"आआआआआहहहह, घुसाती जा बिटिया, रुकी काहे। पूरी की पूरी ले ले। तू बहुत अच्छी बच्ची है। इस बुड्ढे की ख्वाहिश पूरी कर दे।" भलोटिया आहें भरते हुए बोला। वह मेरी कमर पकड़ चुका था। मुझे डर था कि कहीं वह मेरी कमर पकड़ कर नीचे न खींच ले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
"डर लग रहा है। दर्द हो रहा है। बस बस अब और नहीं।" मैं रुआंसी हो कर बोली।
"मेरी बहादुर बच्ची, डर काहे का। इतना तो घुस गया, बाकी भी घुस जाएगा। थोड़ा हिम्मत तो कर।" मेरी कमर पर थपकी देकर बोला। दर्द तो हो रहा था लेकिन चुदास भी कम नहीं थी। मैंने हिम्मत करके अपने शरीर को थोड़ा और नीचे किया। ओह ओह उसका लन्ड घुस रहा था, आह आह। दर्द उतना ही था, लेकिन अब मैं बर्दाश्त कर सकती थी। अब करीब पांच इंच घुस चुका था। मैंने शरीर को थोड़ा और नीचे किया, इस्स्स्स इस्स्स्स, उसका लन्ड और थोड़ा अंदर गया। ओह, यह तो कमाल हो रहा था, उसका लंड घुसता ही चला जा रहा था लेकिन दर्द अब थोड़ा कम हुआ था। अब तक मैं डर डर कर धीरे धीरे नीचे बैठ रही थी, इसलिए इन बीस पच्चीस सेकेंड में करीब सात इंच लन्ड मेरी चूत में समाया था। उधर भलोटिया के आनंद का पारावार न था।
"बस बस, आआआआआहहहह ओओओओहहहहह मान गया तुमको बिटिया। मुंह से भी अद्भुत आनंद देती हो, लेकिन मुंह में नहीं झाड़ूंगा। तेरी चिकनी चूत के लिए बचा कर रखता हूं। मुखचोदन संपन्न हुआ अब अपनी चूत से चूत चोदन का मजा लेने दे बिटिया।" कहते हुए वह बिस्तर से नीचे उतरा और मेरे तन को घसीट कर बिस्तर के किनारे वहां तक ले आया, जहां तक मेरा धड़ चूतड़ तक बिस्तर पर तो था लेकिन मेरे पैर बिस्तर से बाहर थे।
"यह यह यह आप ककककक क्या कर रहे हैं?" बड़ी मुश्किल से बोल पाई। मेरा जबड़ा दर्द कर रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे पूरी क्षमता से मुंह फाड़कर मुखमैथुन का मजा लेना मुझे महंगा पड़ गया था और मेरा जबड़ा जाम हो गया हो। इतनी देर तक पूरी तरह मुंह खोल कर उतने मोटे लंड को चूसती जो रही थी। मेरी नज़र उसके लंड पर थी, जो मेरे थूक से लिथड़ कर चमचमा रहा था। बाप रे बाप, उसका लंड अविश्वसनीय रूप से पहले से भी बड़ा दिखाई दे रहा था जिसे मैं ने अपने मुंह के रास्ते गले तक उतार लिया था।
"बोला तो, अब तेरी चूत चोदूंगा।" वह बोला और मेरी टांगों को फैला कर जांघों के बीच घुसा चला आया।
"नहीं नहीं, यह मुझसे नहीं होगा। मर जाऊंगी मैं। प्लीज़ मुझ पर दया कीजिए।" मैं घिघिया रही थी लेकिन वह तो चोदने की धुन में जैसे बहरा हो गया था। खड़े खड़े ही उसने अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रखा और दबाव देने लगा और उसके लंड का मोटा सुपाड़ा मेरी चूत का मुंह फाड़ कर घुसने लगा। दर्द से मैं चीख पड़ी। मेरी दर्दनाक चीख सुनकर वह रुक गया और मेरे चेहरे को देखने लगा।
"क्या हुआ, बहुत दर्द हो रहा है?" वह बोला।
"हां।" मैं पीड़ा से कराहती हुई बोली।
"तो मैं क्या करूं? न चोदूं?" उसके चेहरे पर मायूसी का भाव था। मुझे उस पर दया आ गई। मैं झूठ नहीं बोलूंगी, दया तो आई लेकिन मैं खुद भी चुदने के लिए पागल हुई जा रही थी। उसका लंड मोटा था तो क्या हुआ, आखिर उसने न जाने कितने लोगों को इसी लंड से चोदा होगा। मैं कोई अपवाद तो हूं नहीं। ले लूंगी उसका लंड। थोड़ा दर्द ही तो होगा, मर तो नहीं न जाऊंगी। पहले पहल घुसा भी तो मुझे इसी तरह पीड़ा दे कर चोदा था। उसके बाद अब तक तो काफी बार मजे ले ले कर लंड खाती आ रही हूं। भलोटिया का लंड मेरी अबतक की चुदाई यात्रा में सबसे बड़ा था, लेकिन मैं यह भी जानती थी कि जैसे जैसे मेरी चुदाई यात्रा आगे बढ़ती आ रही थी वैसे वैसे धीरे-धीरे मेरी क्षमता भी तो बढ़ती जा रही थी। पहली पहली बार तो हर बार थोड़ी तकलीफ़ हुई ही थी फिर इस बार मैं पीछे क्यों हटूं, जबकि इस समय मुझमें चुदने की बड़ी तलब हो रही थी। जी को कड़ा करके इस बार भी भलोटिया का मूसल ले लूंगी यह निर्णय ले चुकी थी।
"मुझे पता है कि आप लोगों की मनमानी पूरी हुए बिना मेरी यहां से मुक्ति नहीं मिलने वाली है। मजबूरी में मुझे आप लोगों की इच्छा पूरी करनी पड़ रही है। मैं मना करने की स्थिति में नहीं हूं लेकिन जब मुझे यह सब झेलना ही है तो कम से कम मुझे अपने ढंग से झेलने दीजिए ना।" मैं ने अनुनय विनय के लहजे में कहा।
"चलो यह अच्छा है कि मजबूरी में ही सही, तुमने स्वीकार तो किया कि हमारी इच्छा पूरी करने में ही तुम्हारी भलाई है। अब तुम्हारी इच्छा का भी सम्मान करना हमारा फ़र्ज़ है। बोलो, तुम किस तरह से करवाना चाहती हो?" भलोटिया अपना लौड़ा पेलते पेलते रुक गया और बोला, हालांकि उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुस चुका था और मैं पीड़ा को पीने की यथासंभव कोशिश कर रही थी। उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ा आश्वासन मिला।
"ठीक है, तो ऐसा कीजिए कि आप बिस्तर पर लेट जाईए और मुझे अपने ऊपर चढ़ने दीजिए। मैं खुद बर्दाश्त करते हुए जितना सकूंगी, लेने की कोशिश करूंगी।" मेरी बात सुनकर वह मुस्करा उठा और घनश्याम की ओर देखने लगा। घनश्याम भी चकित होकर मुझे देखने लगा। फिर उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी। मेरी हिम्मत की दाद दे रहा था या उस मुस्कान के पीछे कुछ और बात थी, मैं समझ नहीं पाई।
"यह हुई बहादुरों वाली बात। इससे बढ़िया और क्या चाहिए मुझे। चलो ऐसा ही करते हैं।" कहकर उसने अपना लौड़ा मेरी चूत से बाहर खींच लिया और बिस्तर पर लेट गया। उसका लंड छत की ओर खतरनाक अंदाज में तन कर खड़ा था। उसके भीमकाय लंड का ऐसा नजारा देखकर एक बार तो मेरा हौसला भी ठंढा पड़ने लगा था लेकिन मैंने अपने मन को कड़ा किया और अपने दोनों पैरों को फैला कर उसके अगल बगल रखी और नीचे बैठने लगी। मेरा दिल तूफानी रफ्तार से धाड़ धाड़ धड़क रहा था। मैंने अपने आपको किसी प्रकार संयमित किया और उसके मूसल को अपने हाथों में थाम लिया और अपनी चूत को उसके संपर्क में लाने के लिए और नीचे बैठने लगी। जैसे ही उसके लंड के सुपाड़े से मेरी चूत का संपर्क हुआ, मैं सर से लेकर पैर तक कांप उठी। ओओओओहहहहह भगवान रक्षा करना, यही प्रार्थना करती हुई और नीचे बैठने लगी। उफ उफ, पहले की तरह उसका चिकना सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह को फैलाता हुआ अंदर दाखिल होने लगा। आह ओह, मेरी चूत फैलते हुए आखिरकार उसके उतने बड़े सुपाड़े को अपने अंदर ग्रहण करने में सफल हो गयी लेकिन पीड़ा तो हो ही रही थी। हां, पहले की अपेक्षा इस बार थोड़ी कम पीड़ा थी। मैं रोमांच से भर गई और थोड़ा और नीचे बैठने लगी। आह आह, उसका लंड मेरी चूत में रास्ता बनाता हुआ घुसता ही चला जा रहा था। करीब तीन इंच अन्दर चला गया लेकिन पीड़ा वैसे की वैसे ही थी। मैं तनिक रुकी लेकिन भलोटिया को यह नागवार गुजरने लगा।
"आआआआआहहहह, घुसाती जा बिटिया, रुकी काहे। पूरी की पूरी ले ले। तू बहुत अच्छी बच्ची है। इस बुड्ढे की ख्वाहिश पूरी कर दे।" भलोटिया आहें भरते हुए बोला। वह मेरी कमर पकड़ चुका था। मुझे डर था कि कहीं वह मेरी कमर पकड़ कर नीचे न खींच ले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
"डर लग रहा है। दर्द हो रहा है। बस बस अब और नहीं।" मैं रुआंसी हो कर बोली।
"मेरी बहादुर बच्ची, डर काहे का। इतना तो घुस गया, बाकी भी घुस जाएगा। थोड़ा हिम्मत तो कर।" मेरी कमर पर थपकी देकर बोला। दर्द तो हो रहा था लेकिन चुदास भी कम नहीं थी। मैंने हिम्मत करके अपने शरीर को थोड़ा और नीचे किया। ओह ओह उसका लन्ड घुस रहा था, आह आह। दर्द उतना ही था, लेकिन अब मैं बर्दाश्त कर सकती थी। अब करीब पांच इंच घुस चुका था। मैंने शरीर को थोड़ा और नीचे किया, इस्स्स्स इस्स्स्स, उसका लन्ड और थोड़ा अंदर गया। ओह, यह तो कमाल हो रहा था, उसका लंड घुसता ही चला जा रहा था लेकिन दर्द अब थोड़ा कम हुआ था। अब तक मैं डर डर कर धीरे धीरे नीचे बैठ रही थी, इसलिए इन बीस पच्चीस सेकेंड में करीब सात इंच लन्ड मेरी चूत में समाया था। उधर भलोटिया के आनंद का पारावार न था।