31-12-2018, 12:15 PM
भाग - 13
कुसुम- राजू सुन ज़रा मेरे पैर तो दबा दे, बहुत दर्द हो रहे हैं।
यह कह कर कुसुम उठ कर एक कुर्सी पर बैठ गई और अपनी साड़ी को घुटनों से ऊपर करके, एक टाँग उठा कर सामने पलंग पर रख दी, ताकि उसकी चूत राजू को दिखाई दे सके।
चमेली ये सब सामने बैठी देख रही थी।
‘साली छिनाल अब अपना भोसड़ा खोल कर बैठ गई है.. छोरे के सामने..’ चमेली ने मन ही मन कुसुम को कोसा, इसके अलावा और वो कर भी क्या सकती थी।
राजू नीचे बैठ कर उसका एक पैर दबाने लगा।
उसका ध्यान भी कुसुम के पेटीकोट के अन्दर ही था।
चमेली अपने मन में राजू को भी गाली देती है- यह भी उसी की चूत देख रहा है.. साले मादरचोद इन सब मर्दों की एक ही जात होती है.. कुत्ते जहाँ चूत देखी, वहीं चाटना शुरू कर देते हैं।
खैर.. चमेली अब कुसुम के सामने तो कुछ बोल नहीं सकती थी, इसलिए वो खाना खाकर अपनी बेटी रज्जो के साथ चली गई और राजू भी अपने कमरे में जा कर सो गया।
आज रात फिर कुसुम की चूत को लण्ड के लिए और तड़पना था।
अगली सुबह जब नाश्ते के बाद जब चमेली अपने घर जा चुकी थी तो राजू को कुसुम ने बाजार से कुछ सामान लाने के लिए कहा।
जब वो सामान लाने के लिए घर से निकला, तो उसे चमेली नदी की तरफ जाते हुए नज़र आई।
दोनों ने एक-दूसरे के तरफ देखा, पर चमेली ने नखरा करते हुए अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया।
जिस पर राजू को थोड़ी हैरानी तो ज़रूर हुई, पर वो बिना कुछ बोले चमेली के पीछे चल पड़ा।
वो चमेली से कुछ फासला बना कर चल रहा था।
चमेली जानती थी कि राजू उसके पीछे आ रहा है, पर उसने जानबूझ कर उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
कुछ ही देर में चमेली नदी के घाट पर पहुँच गई, यहाँ पर वो नहाती थी..
पर आज चमेली वहाँ नहीं रुकी और नदी के साथ आगे बढ़ने लगी।
राजू को कुछ समझ में नहीं आया, वो भाग कर चमेली के पास गया- काकी ओ काकी.. सुनो तो.. कहाँ जा रही हो?
चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए कहा- क्यों तुम्हें क्या.. कहीं भी जाऊँ?
चमेली फिर से आगे चल पढ़ी और राजू भी चमेली के पीछे चल पड़ा।
जैसे-जैसे दोनों आगे बढ़ रहे थे, रास्ता और सुनसान होता जा रहा था।
चारों तरफ ऊँची-ऊँची झाड़ियाँ बढ़ने लगीं, गाँव बहुत पीछे रह गया था।
आगे जंगल शुरू हो गया था।
काफ़ी दूर चलने के बाद चमेली एक घाट पर रुकी और अपने साथ लाए हुए कपड़े की गठरी को नीचे रख कर अपनी चोली खोलने लगी।
राजू यह सब पीछे खड़ा देख रहा था।
‘क्यों रे क्या देख रहा है, मेरे पीछे क्यों आ गया.. जा तेरी मालकिन तुझे ढूँढती होंगी।’
राजू- वो उन्होंने सामान लाने के लिए भेजा था।
चमेली- तो जा फिर.. सामान खरीद, यहाँ कौन सी दुकान खुली है।
राजू- आप नाराज़ हो मुझसे?
चमेली- मैं भला कौन होती हूँ तुमसे नाराज़ होने वाली।
राजू- तो फिर काकी आप ऐसे क्यों बात कर रही हो?
चमेली- अच्छा जा.. अब अपना काम कर, मुझे परेशान मत कर।
राजू का चेहरा चमेली के बात सुन कर उतर गया और वहीं घास पर नीचे बैठ गया।
चमेली ने अपनी चोली उतार कर अपने लहँगे को अपनी चूचियों पर बाँध लिया और नदी में उतर गई।
वो कनखियों से राजू की तरफ देख कर मन ही मन मुस्करा रही थी।
राजू नदी के किनारे बैठा चमेली को देख रहा था, चमेली का लहंगा गीला होकर चमेली के बदन से चिपक गया था।
राजू का लण्ड अकड़ने लगा, पर आज लगता है कि राजू को भी चूत के लिए तरसना पड़ सकता है।
नहाने के बाद चमेली नदी से बाहर निकली और राजू के पीछे जाकर अपने साथ लाया हुआ दूसरे लहँगे को उठा कर गीले लहँगे को उतार दिया।
राजू ने पीछे की तरफ नहीं देखा, वो तो बस मुँह लटकाए बैठा हुआ था।
उसके बाद उसने दूसरे लहँगे को भी ऊपर करके अपनी चूचियों पर बाँध लिया और फिर गीले लहँगे को लेकर नदी के सीढ़ियों पर बैठ कर अपने उतारे हुए कपड़े धोने लगी।
सुनहरी धूप चारों तरफ फैली हुई थी, राजू पीछे बैठा चमेली को देख रहा था।
जब चमेली कपड़ों को रगड़ने के लिए आगे की ओर झुकती, तो चमेली का लहंगा जो कि उसकी चूचियों पर बँधा हुआ था, उसके चूतड़ों से ऊपर उठ जाता और चमेली के भारी चूतड़ों का दीदार राजू को हो जाता।
बेचारे को क्या पता था कि वो दो चूत की आग के बीच में झुलस रहा है, जो कल से एक-दूसरे के हर पैंतरे को नाकामयाब करने के कोशिश कर रही थी।
अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हो जा रहा था, चमेली जानबूझ कर अपने पैरों के बल बैठी हुई, बार-बार अपनी गाण्ड को ऊपर उठा लेती और पीछे बैठे राजू को चमेली के गाण्ड और झाँटों से भरी चूत की झलक पागल कर देती।
राजू का लण्ड अब उसके पजामे में पूरी तरह तना हुआ था।
चमेली ने अपने कपड़े धोए और उठ कर अपने कपड़े उठाने के लिए झुकी- आह्ह.. क्या क्या कर रहा है छोरे, यहाँ कोई देख लेगा.. हट जा अपनी मालकिन के पाँव दबा..
चमेली ने राजू को दूर धकेल दिया और अपने कपड़ों को घास पर डाल कर झाड़ियों के अन्दर जाने लगी।
यह देख राजू भी उसके पीछे चला गया।
‘क्या है.. अब आराम से मूतने भी नहीं देगा क्या.. पीछे क्यों आ रहा है?’
चमेली ने जानबूझ कर गुस्सा दिखाते हुए कहा।
राजू- पर काकी हुआ क्या है, मुझसे कोई ग़लती हो गई क्या?
चमेली ने राजू की बात का कोई जवाब नहीं दिया और थोड़ा आगे जाकर अपने लहँगे को अपनी कमर तक उठा कर पेशाब करने के लिए बैठ गई।
चमेली राजू से कुछ दूरी पर बैठी मूत रही थी और अब राजू के लिए रुक पाना नामुमकिन था, वो आगे बढ़ा और चमेली के पास जाकर नीचे बैठ गया।
चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई- देखा, कैसे कुत्ते की तरह चूत को सूँघता हुआ पीछे बैठ गया है..
चमेली ने अपने मन में सोचा, उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फैली हुई थी जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो।
तभी अचानक राजू ने चमेली के चूतड़ों के नीचे से ले जाकर चमेली की चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया।
कुसुम- राजू सुन ज़रा मेरे पैर तो दबा दे, बहुत दर्द हो रहे हैं।
यह कह कर कुसुम उठ कर एक कुर्सी पर बैठ गई और अपनी साड़ी को घुटनों से ऊपर करके, एक टाँग उठा कर सामने पलंग पर रख दी, ताकि उसकी चूत राजू को दिखाई दे सके।
चमेली ये सब सामने बैठी देख रही थी।
‘साली छिनाल अब अपना भोसड़ा खोल कर बैठ गई है.. छोरे के सामने..’ चमेली ने मन ही मन कुसुम को कोसा, इसके अलावा और वो कर भी क्या सकती थी।
राजू नीचे बैठ कर उसका एक पैर दबाने लगा।
उसका ध्यान भी कुसुम के पेटीकोट के अन्दर ही था।
चमेली अपने मन में राजू को भी गाली देती है- यह भी उसी की चूत देख रहा है.. साले मादरचोद इन सब मर्दों की एक ही जात होती है.. कुत्ते जहाँ चूत देखी, वहीं चाटना शुरू कर देते हैं।
खैर.. चमेली अब कुसुम के सामने तो कुछ बोल नहीं सकती थी, इसलिए वो खाना खाकर अपनी बेटी रज्जो के साथ चली गई और राजू भी अपने कमरे में जा कर सो गया।
आज रात फिर कुसुम की चूत को लण्ड के लिए और तड़पना था।
अगली सुबह जब नाश्ते के बाद जब चमेली अपने घर जा चुकी थी तो राजू को कुसुम ने बाजार से कुछ सामान लाने के लिए कहा।
जब वो सामान लाने के लिए घर से निकला, तो उसे चमेली नदी की तरफ जाते हुए नज़र आई।
दोनों ने एक-दूसरे के तरफ देखा, पर चमेली ने नखरा करते हुए अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया।
जिस पर राजू को थोड़ी हैरानी तो ज़रूर हुई, पर वो बिना कुछ बोले चमेली के पीछे चल पड़ा।
वो चमेली से कुछ फासला बना कर चल रहा था।
चमेली जानती थी कि राजू उसके पीछे आ रहा है, पर उसने जानबूझ कर उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
कुछ ही देर में चमेली नदी के घाट पर पहुँच गई, यहाँ पर वो नहाती थी..
पर आज चमेली वहाँ नहीं रुकी और नदी के साथ आगे बढ़ने लगी।
राजू को कुछ समझ में नहीं आया, वो भाग कर चमेली के पास गया- काकी ओ काकी.. सुनो तो.. कहाँ जा रही हो?
चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए कहा- क्यों तुम्हें क्या.. कहीं भी जाऊँ?
चमेली फिर से आगे चल पढ़ी और राजू भी चमेली के पीछे चल पड़ा।
जैसे-जैसे दोनों आगे बढ़ रहे थे, रास्ता और सुनसान होता जा रहा था।
चारों तरफ ऊँची-ऊँची झाड़ियाँ बढ़ने लगीं, गाँव बहुत पीछे रह गया था।
आगे जंगल शुरू हो गया था।
काफ़ी दूर चलने के बाद चमेली एक घाट पर रुकी और अपने साथ लाए हुए कपड़े की गठरी को नीचे रख कर अपनी चोली खोलने लगी।
राजू यह सब पीछे खड़ा देख रहा था।
‘क्यों रे क्या देख रहा है, मेरे पीछे क्यों आ गया.. जा तेरी मालकिन तुझे ढूँढती होंगी।’
राजू- वो उन्होंने सामान लाने के लिए भेजा था।
चमेली- तो जा फिर.. सामान खरीद, यहाँ कौन सी दुकान खुली है।
राजू- आप नाराज़ हो मुझसे?
चमेली- मैं भला कौन होती हूँ तुमसे नाराज़ होने वाली।
राजू- तो फिर काकी आप ऐसे क्यों बात कर रही हो?
चमेली- अच्छा जा.. अब अपना काम कर, मुझे परेशान मत कर।
राजू का चेहरा चमेली के बात सुन कर उतर गया और वहीं घास पर नीचे बैठ गया।
चमेली ने अपनी चोली उतार कर अपने लहँगे को अपनी चूचियों पर बाँध लिया और नदी में उतर गई।
वो कनखियों से राजू की तरफ देख कर मन ही मन मुस्करा रही थी।
राजू नदी के किनारे बैठा चमेली को देख रहा था, चमेली का लहंगा गीला होकर चमेली के बदन से चिपक गया था।
राजू का लण्ड अकड़ने लगा, पर आज लगता है कि राजू को भी चूत के लिए तरसना पड़ सकता है।
नहाने के बाद चमेली नदी से बाहर निकली और राजू के पीछे जाकर अपने साथ लाया हुआ दूसरे लहँगे को उठा कर गीले लहँगे को उतार दिया।
राजू ने पीछे की तरफ नहीं देखा, वो तो बस मुँह लटकाए बैठा हुआ था।
उसके बाद उसने दूसरे लहँगे को भी ऊपर करके अपनी चूचियों पर बाँध लिया और फिर गीले लहँगे को लेकर नदी के सीढ़ियों पर बैठ कर अपने उतारे हुए कपड़े धोने लगी।
सुनहरी धूप चारों तरफ फैली हुई थी, राजू पीछे बैठा चमेली को देख रहा था।
जब चमेली कपड़ों को रगड़ने के लिए आगे की ओर झुकती, तो चमेली का लहंगा जो कि उसकी चूचियों पर बँधा हुआ था, उसके चूतड़ों से ऊपर उठ जाता और चमेली के भारी चूतड़ों का दीदार राजू को हो जाता।
बेचारे को क्या पता था कि वो दो चूत की आग के बीच में झुलस रहा है, जो कल से एक-दूसरे के हर पैंतरे को नाकामयाब करने के कोशिश कर रही थी।
अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हो जा रहा था, चमेली जानबूझ कर अपने पैरों के बल बैठी हुई, बार-बार अपनी गाण्ड को ऊपर उठा लेती और पीछे बैठे राजू को चमेली के गाण्ड और झाँटों से भरी चूत की झलक पागल कर देती।
राजू का लण्ड अब उसके पजामे में पूरी तरह तना हुआ था।
चमेली ने अपने कपड़े धोए और उठ कर अपने कपड़े उठाने के लिए झुकी- आह्ह.. क्या क्या कर रहा है छोरे, यहाँ कोई देख लेगा.. हट जा अपनी मालकिन के पाँव दबा..
चमेली ने राजू को दूर धकेल दिया और अपने कपड़ों को घास पर डाल कर झाड़ियों के अन्दर जाने लगी।
यह देख राजू भी उसके पीछे चला गया।
‘क्या है.. अब आराम से मूतने भी नहीं देगा क्या.. पीछे क्यों आ रहा है?’
चमेली ने जानबूझ कर गुस्सा दिखाते हुए कहा।
राजू- पर काकी हुआ क्या है, मुझसे कोई ग़लती हो गई क्या?
चमेली ने राजू की बात का कोई जवाब नहीं दिया और थोड़ा आगे जाकर अपने लहँगे को अपनी कमर तक उठा कर पेशाब करने के लिए बैठ गई।
चमेली राजू से कुछ दूरी पर बैठी मूत रही थी और अब राजू के लिए रुक पाना नामुमकिन था, वो आगे बढ़ा और चमेली के पास जाकर नीचे बैठ गया।
चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई- देखा, कैसे कुत्ते की तरह चूत को सूँघता हुआ पीछे बैठ गया है..
चमेली ने अपने मन में सोचा, उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फैली हुई थी जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो।
तभी अचानक राजू ने चमेली के चूतड़ों के नीचे से ले जाकर चमेली की चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया।