18-01-2025, 11:32 AM
उसकी सोच थी कि शायद मुझ जैसी कमसिन उम्र की लड़की के चेहरे पर उसके दानवाकार मोटे तगड़े शरीर पर उसी के अनुपात में विकराल लंड को देखकर डर का भाव आना चाहिए था लेकिन भयभीत चेहरे की जगह मुस्कुराता चेहरा देखना उसके लिए ताज्जुब की बात थी। उसका ऐसा सोचना शायद स्वाभाविक भी था क्योंकि उसका लंड था भी इतना बड़ा कि सामान्य स्त्रियों की घिग्घी बंध जाएं।
"तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान बता रही है कि तुम्हें मुझसे डर नहीं लग रहा है। यह मुझ बूढ़े के लिए बड़े सौभाग्य की बात है।" वह बोला और मेरी चूचियों को दबाते हुए अपना मुंह एक चूची पर रख दिया और ओह ओह मेरी मां आह आह, मैं तो पगला ही गई। वह सीधे मेरी चूची को मुंह में भर कर चूसने लगा। इस्स्स्स रेएएएए अब क्या बताऊं कि कैसा महसूस करने लगी थी मैं। एक चूची को दबा रहा था और दूसरी चूची को चाट रहा था। उसकी जीभ भी मोटी और लंबी थी, साथ ही मुझे कुछ खुरदुरी सी महसूस हो रही थी। वह बड़े भुक्खड़ अंदाज में बारी बारी से मेरी दोनों चूचियों को चाटने लगा था। मेरी उत्तेजना का तो कहना ही क्या था। मैं अपने स्थान पर कसमसा रही थी और उसे अपने ऊपर से ढकेल कर हटाने का झूठ-मूठ नाटक कर रही थी। मेरे ढकेलने की कोशिश का कोई असर उसके पहाड़ सरीखे शरीर पर नहीं पड़ रहा था। चाटते चाटते अब वह चूसने पर आ गया था। पहले वह मेरे निप्पलों को चुभलाया और फिर मुंह में भर भर कर चूसने लगा। उसका मुंह काफी बड़ा था इस कारण मेरी इतनी बड़ी चूची भी करीब करीब आधी उसके मुंह में समा गयी थी। चूसते चूसते वह एक प्रकार से मेरी चूचियों को भंभोड़ना आरंभ कर दिया था। ताज्जुब मुझे इस बात का हो रहा था कि उसकी कनाईन दांत सामान्य से बड़े होने के बावजूद दांतों की चुभन मुझे महसूस नहीं होने दे रहा था। शायद उसे असामान्य दांतों के साथ भी चूचियों को चूसने का अच्छा अभ्यास था। इस तरह वह अपने औरतखोर होने का परिचय भी दे रहा था।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह, नहींईंईंईंईंईंईं आह जंगली कहीं के। यह क्या कर रहे हैं आप? आपको लग रहा है मुझे अच्छा लग रहा है? गंदे आदमी गंदी सोच। आपकी इस जबरदस्ती में मुझे जरा भी अच्छा नहीं लग रहा है। मैं तो रश्मि की सोच कर मुस्कुरा रही थी आप उसकी भी ऐसी ही दुर्गति करने वाले हैं और आपने उसका कुछ और अर्थ निकाल लिया। आह आह मेरे साथ इतनी घिनौनी हरकत आप जैसे गंदे लोग ही कर सकते हैं।" मैं अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए बोली जबकि मैं तो दूसरी ही दुनिया की सैर कर रही थी। आनंदलोक में। मेरी चूचियों को बारी बारी से चूस चूस कर मेरे अंदर की ज्वाला को और भड़का दिया था और अब पता नहीं क्या क्या करने वाला था।
"ऐसे समय में गंदा बनना ही पड़ता है बिटिया। जितना गंदा बनो उतना आनंद मिलता है।" कहकर वह मेरी चूचियों को चूसना छोड़ कर मेरी चूत का रुख किया। दोनों पंजों से मेरी चूचियों को मसलना जारी रखा और अपना सिर मेरी चूत की ओर ले जाने लगा।
"यह यह अब क्या कर रहे हैं? छि छि उधर नहीं उधर नहीं" मैं तड़प कर बोली।
"अब जरा तेरी चिकनी चूत का स्वाद भी तो चख लूं।" वह बोला। उफ उफ, उसकी लपलपाती जीभ से जब वह मेरी चूत को चाटेगा तो मेरा क्या हाल होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी। मैं दोनों हाथों से उसके सिर को हटाने की कोशिश का दिखावा करने लगी लेकिन वास्तव में तो खुद ही अपनी चूत चटवाने के लिए मरी जा रही थी।
"नहीं नहीं बिल्कुल नहीं छि छि।" मैं उसकी पकड़ में छटपटाती रही लेकिन उस दानव ने मुझे कब्जे में लेकर अपना मुंह मेरी चूत पर सटा दिया। आआआआआहहहह ओओओओहहहहह।
"नहींईंईंईंईंईंईंईंईं.. " जैसे ही उसका थूथन मेरी चूत पर पड़ा, मेरी घुटी घुटी चीख निकल पड़ी। लेकिन अब उसे तो मेरी चूत का स्वाद मिल चुका था। वह बेतहाशा मेरी चूत को चपड़ चपड़ चाटने लगा और मैं उत्तेजित होकर अपनी जांघों को सटाने का प्रयास करने लगी लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था क्योंकि मेरी जांघों के बीच उसका सिर था। मेरे विरोध, चिल्ल पों और चीख चिल्लाहट जैसे नक्कारखाने में तूती की तरह थी। वह मूक बधिर पशु की तरह मेरी हलकान भरी चीखों और कराहटों को नजरंदाज करता हुआ मेरी चूचियों को बेहताशा दबाने और मेरी चूत को चटखारे ले-लेकर चाटने में मशगूल था। भलोटिया की हरकतों से मुझे हलकान होती हुई देख कर उधर घनश्याम बड़ा प्रसन्न हुआ जा रहा था लेकिन काश कि उस बेवकूफ को पता होता कि मैं उस वक्त आनंद के किस दौर से गुजर रही थी, तो खुद को कितना कोसता, कि मुझे दंडित करने के चक्कर में उसने मुझे जन्नत की सैर कराने की व्यवस्था कर दी है।
"तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान बता रही है कि तुम्हें मुझसे डर नहीं लग रहा है। यह मुझ बूढ़े के लिए बड़े सौभाग्य की बात है।" वह बोला और मेरी चूचियों को दबाते हुए अपना मुंह एक चूची पर रख दिया और ओह ओह मेरी मां आह आह, मैं तो पगला ही गई। वह सीधे मेरी चूची को मुंह में भर कर चूसने लगा। इस्स्स्स रेएएएए अब क्या बताऊं कि कैसा महसूस करने लगी थी मैं। एक चूची को दबा रहा था और दूसरी चूची को चाट रहा था। उसकी जीभ भी मोटी और लंबी थी, साथ ही मुझे कुछ खुरदुरी सी महसूस हो रही थी। वह बड़े भुक्खड़ अंदाज में बारी बारी से मेरी दोनों चूचियों को चाटने लगा था। मेरी उत्तेजना का तो कहना ही क्या था। मैं अपने स्थान पर कसमसा रही थी और उसे अपने ऊपर से ढकेल कर हटाने का झूठ-मूठ नाटक कर रही थी। मेरे ढकेलने की कोशिश का कोई असर उसके पहाड़ सरीखे शरीर पर नहीं पड़ रहा था। चाटते चाटते अब वह चूसने पर आ गया था। पहले वह मेरे निप्पलों को चुभलाया और फिर मुंह में भर भर कर चूसने लगा। उसका मुंह काफी बड़ा था इस कारण मेरी इतनी बड़ी चूची भी करीब करीब आधी उसके मुंह में समा गयी थी। चूसते चूसते वह एक प्रकार से मेरी चूचियों को भंभोड़ना आरंभ कर दिया था। ताज्जुब मुझे इस बात का हो रहा था कि उसकी कनाईन दांत सामान्य से बड़े होने के बावजूद दांतों की चुभन मुझे महसूस नहीं होने दे रहा था। शायद उसे असामान्य दांतों के साथ भी चूचियों को चूसने का अच्छा अभ्यास था। इस तरह वह अपने औरतखोर होने का परिचय भी दे रहा था।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह, नहींईंईंईंईंईंईं आह जंगली कहीं के। यह क्या कर रहे हैं आप? आपको लग रहा है मुझे अच्छा लग रहा है? गंदे आदमी गंदी सोच। आपकी इस जबरदस्ती में मुझे जरा भी अच्छा नहीं लग रहा है। मैं तो रश्मि की सोच कर मुस्कुरा रही थी आप उसकी भी ऐसी ही दुर्गति करने वाले हैं और आपने उसका कुछ और अर्थ निकाल लिया। आह आह मेरे साथ इतनी घिनौनी हरकत आप जैसे गंदे लोग ही कर सकते हैं।" मैं अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए बोली जबकि मैं तो दूसरी ही दुनिया की सैर कर रही थी। आनंदलोक में। मेरी चूचियों को बारी बारी से चूस चूस कर मेरे अंदर की ज्वाला को और भड़का दिया था और अब पता नहीं क्या क्या करने वाला था।
"ऐसे समय में गंदा बनना ही पड़ता है बिटिया। जितना गंदा बनो उतना आनंद मिलता है।" कहकर वह मेरी चूचियों को चूसना छोड़ कर मेरी चूत का रुख किया। दोनों पंजों से मेरी चूचियों को मसलना जारी रखा और अपना सिर मेरी चूत की ओर ले जाने लगा।
"यह यह अब क्या कर रहे हैं? छि छि उधर नहीं उधर नहीं" मैं तड़प कर बोली।
"अब जरा तेरी चिकनी चूत का स्वाद भी तो चख लूं।" वह बोला। उफ उफ, उसकी लपलपाती जीभ से जब वह मेरी चूत को चाटेगा तो मेरा क्या हाल होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी। मैं दोनों हाथों से उसके सिर को हटाने की कोशिश का दिखावा करने लगी लेकिन वास्तव में तो खुद ही अपनी चूत चटवाने के लिए मरी जा रही थी।
"नहीं नहीं बिल्कुल नहीं छि छि।" मैं उसकी पकड़ में छटपटाती रही लेकिन उस दानव ने मुझे कब्जे में लेकर अपना मुंह मेरी चूत पर सटा दिया। आआआआआहहहह ओओओओहहहहह।
"नहींईंईंईंईंईंईंईंईं.. " जैसे ही उसका थूथन मेरी चूत पर पड़ा, मेरी घुटी घुटी चीख निकल पड़ी। लेकिन अब उसे तो मेरी चूत का स्वाद मिल चुका था। वह बेतहाशा मेरी चूत को चपड़ चपड़ चाटने लगा और मैं उत्तेजित होकर अपनी जांघों को सटाने का प्रयास करने लगी लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था क्योंकि मेरी जांघों के बीच उसका सिर था। मेरे विरोध, चिल्ल पों और चीख चिल्लाहट जैसे नक्कारखाने में तूती की तरह थी। वह मूक बधिर पशु की तरह मेरी हलकान भरी चीखों और कराहटों को नजरंदाज करता हुआ मेरी चूचियों को बेहताशा दबाने और मेरी चूत को चटखारे ले-लेकर चाटने में मशगूल था। भलोटिया की हरकतों से मुझे हलकान होती हुई देख कर उधर घनश्याम बड़ा प्रसन्न हुआ जा रहा था लेकिन काश कि उस बेवकूफ को पता होता कि मैं उस वक्त आनंद के किस दौर से गुजर रही थी, तो खुद को कितना कोसता, कि मुझे दंडित करने के चक्कर में उसने मुझे जन्नत की सैर कराने की व्यवस्था कर दी है।