15-01-2025, 10:43 PM
"नहींईंईंईंईंईं नहींईंईंईंईंईं हे भगवान नहींईंईंईंईंई...." भय के मारे मेरे मुंह से निकल पड़ा। मैं बिस्तर से उठने ही वाली थी कि वह बुड्ढा बिना एक पल गंवाए मुझ पर झपट पड़ा। अब मैं बेबस थी। उसके चंगुल में फंस चुकी थी और वह अपनी मनमानी करना आरंभ कर दिया। वह बड़े आराम से मेरे ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरी चूचियों को पकड़ पकड़ कर देखने लगा।
"अरे राम राम, तूने तो ब्रा भी नहीं पहनी है। जरा देखूं तो इस ब्लाऊज के अंदर के कबूतरों को।" इतना कहकर वह जबरदस्ती मेरे ब्लाऊज को खोलने लगा।
"नहीं नहीं प्लीज़ नहीं।" मैं उस दानवी शरीर के नीचे बेबसी में छटपटाने लगी लेकिन सब व्यर्थ। उसने मुझे नंगी करके ही दम लिया और मंत्रमुग्ध होकर मेरी फड़फड़ाती उन्नत चूचियों को निहारने लगा।
"ओह गजब। ऐसी ही चूचियां होंगी मेरी पोती रश्मि की। गोल गोल, सख्त सख्त।" वह मेरी नंगी चूचियां सहलाते हुए बोला। उसकी बात सुनकर मैं चौंक उठी। रश्मि, मतलब रश्मि भलोटिया। क्या यह मेरी सहेली रश्मि की बात कह रहा है?
"रश्मि?" अनायास मेरे मुंह से निकला।
"हां हां, रश्मि। एल बी एस एम कॉलेज में पढ़ने वाली रश्मि भलोटिया। मस्त लड़की है लेकिन क्या करूं, देख देख कर तरस कर रह जाता हूं। तू जानती है क्या उसे?" वह बोला।
"हां, मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ती हूं। मुझे पता नहीं था कि उसका दादाजी इतने गंदे हैं। आज पता चला।" मैं उसके प्रति घृणा प्रदर्शित करते हुए बोली।
"हां हां, सच बोली, गंदा तो मैं हूं। तुम्हारी समझ से गंदा हूं, लेकिन सच तो यह है कि मेरी तरह हर घर में ऐसे गंदे लोग हैं जो इस तरह की तमन्ना रखते हैं। मेरी भी तमन्ना थी, मगर अपनी पोती के साथ घर में ऐसा कुछ करने का कहां मौका मिला। समझ लूंगा तू ही मेरी पोती रश्मि है। आज मेरी तमन्ना पूरी होने वाली है।" कहकर उसके हाथ का दबाव मेरी चूचियों पर बढ़ने लगा और मैं सोचने लगी कि इसे अगर पता चले कि मैं रश्मि को पहले ही चोद चुकी हूं तो इसे कैसा महसूस होगा। निश्चित ही वह मुझसे ईर्ष्या करता और खुद को कोसता कि साली उसकी पोती रश्मि पर मैं लड़की होकर भी हाथ साफ करने में सफल हो गयी और वह उसे चोदने की तमन्ना मन में लिए मर्द होते हुए भी रिश्ते नाते के पचड़े में पड़ा हुआ था। मैं मन ही मन हंस पड़ी। लेकिन फिलहाल तो इस दानव को झेलना मुझे भारी पड़ रहा था। उसकी जोर जबरदस्ती बढ़ती जा रही थी और अब उसने मेरे स्कर्ट को भी एक झटके से नीचे खींच लिया और लो, अब मैं मादरजात नंगी थी। उस मोटे, विशाल, तोंदू बुड्ढे भालू के नीचे, उसके कब्जे में नंगी बेबस पड़ी हुई थी। एक अजीब सा अहसास हो रहा था मुझे। उत्तेजक अहसास। उस भालू से चुदने की सोच किसी भी और के लिए भयावह हो सकती थी, मैं भी कोई अपवाद नहीं थी लेकिन उस वक्त चुदने की अदम्य चाहत उस भय पर हावी हो चुकी थी। एक भालू से चुदने की कल्पना से ही मैं तो रोमांच से भर गई थी। मुझे क्या पता था कि यह बूढ़ा भालू अपने मन की खुन्नस मुझ पर निकालने वाला है। उधर घनश्याम बड़े आराम से सोफे पर बैठ कर हमारे बीच के वार्तालाप को सुन रहा था और हर हरकत का मजा ले रहा था। रश्मि का नाम सुन कर वह भी थोड़ा चौंक उठा था क्योंकि उसे भी पता था कि रश्मि मेरी सहेली है।
"अगर रश्मि को पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा, उसके बारे में सोचा है आपने?' मैं उसके नीचे दबी हुई छटपटाते हुए बोली।
"नहीं सोचा था मगर अब सोचूंगा। मुझे तो अब अपने ऊपर गुस्सा आ रहा है कि अगर घनश्याम सच बोल रहा है तो तू अच्छी खासी लंडखोर है, और अगर तू लंडखोर है तो लंडखोर की सहेली भी तो लंडखोर ही होगी और मैं मादरचोद रश्मि को हाथ लगाने में ख्वामखाह डर रहा था। चलो अब सब कुछ साफ हो गया। पहले अभी तेरा हिसाब करता हूं फिर रश्मि को भी देख लूंगा।" इतना कहकर उसने एक हाथ से मेरी चूत सहलाने लगा। उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन उसके हाथ का स्पर्श अपनी चूत पर महसूस करके चुदास के मारे बेहाल हुई जा रही थी। जी चाह रहा था कि उसे पलट कर उस पर चढ़ जाऊं और उसके लंड की विकरालता की परवाह किए बिना उछल-कूद मचाना आरंभ कर दूं। लेकिन उस वजनदार भालू के साथ न तो ऐसा करना संभव था और न ही अपनी उतावली दिखा कर अपना रंडीपन दिखाना चाहती थी। भलोटिया रश्मि के बारे में सच ही अनुमान लगा रहा था। जब मैंने उसे कृत्रिम लंड से चोदा था तभी मुझे भी अहसास हो गया था कि वह लंड लेने की आदी है, लेकिन भलोटिया की बात कुछ और है। जहां तक मैं अंदाजा लगा पा रही थी, इतने बड़े लंड वाले भलोटिया जैसे आदमी को झेलना किसी सामान्य स्त्री के वश की बात नहीं है। मैं जानती थी कि मुझ पर भी कयामत आने वाली है लेकिन पता नहीं क्यों इस वक्त मेरे अंदर वासना की जो प्रचंड ज्वाला धधक रही थी, उसे बुझाना ही मेरी पहली प्राथमिकता थी, बाकी सब उस चरम उत्तेजना के आगे गौण था, भले ही चुदते हुए मेरा कचूमर निकल जाए। बस मैं ने मन को कड़ा कर लिया और उस कयामत का सामना करने को तत्पर हो गयी। मुझे तो रश्मि की फ़िक्र होने लगी कि यह दानव जब रश्मि का शिकार करेगा तो उसकी क्या गति होगी। भाड़ में जाए रश्मि, मैं उसके लिए बेवजह क्यों परेशान हो रही हूं। फिलहाल तो जैसे तैसे झेल कर मैं अपनी बेकाबू होती उत्तेजना को शांत लूं। फिर भी रश्मि पर आने वाली मुसीबत को सोच कर मैं बेख्याली में मुस्कुरा उठी और भलोटिया मेरी मुस्कान को देखकर चकित रह गया।
"अरे राम राम, तूने तो ब्रा भी नहीं पहनी है। जरा देखूं तो इस ब्लाऊज के अंदर के कबूतरों को।" इतना कहकर वह जबरदस्ती मेरे ब्लाऊज को खोलने लगा।
"नहीं नहीं प्लीज़ नहीं।" मैं उस दानवी शरीर के नीचे बेबसी में छटपटाने लगी लेकिन सब व्यर्थ। उसने मुझे नंगी करके ही दम लिया और मंत्रमुग्ध होकर मेरी फड़फड़ाती उन्नत चूचियों को निहारने लगा।
"ओह गजब। ऐसी ही चूचियां होंगी मेरी पोती रश्मि की। गोल गोल, सख्त सख्त।" वह मेरी नंगी चूचियां सहलाते हुए बोला। उसकी बात सुनकर मैं चौंक उठी। रश्मि, मतलब रश्मि भलोटिया। क्या यह मेरी सहेली रश्मि की बात कह रहा है?
"रश्मि?" अनायास मेरे मुंह से निकला।
"हां हां, रश्मि। एल बी एस एम कॉलेज में पढ़ने वाली रश्मि भलोटिया। मस्त लड़की है लेकिन क्या करूं, देख देख कर तरस कर रह जाता हूं। तू जानती है क्या उसे?" वह बोला।
"हां, मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ती हूं। मुझे पता नहीं था कि उसका दादाजी इतने गंदे हैं। आज पता चला।" मैं उसके प्रति घृणा प्रदर्शित करते हुए बोली।
"हां हां, सच बोली, गंदा तो मैं हूं। तुम्हारी समझ से गंदा हूं, लेकिन सच तो यह है कि मेरी तरह हर घर में ऐसे गंदे लोग हैं जो इस तरह की तमन्ना रखते हैं। मेरी भी तमन्ना थी, मगर अपनी पोती के साथ घर में ऐसा कुछ करने का कहां मौका मिला। समझ लूंगा तू ही मेरी पोती रश्मि है। आज मेरी तमन्ना पूरी होने वाली है।" कहकर उसके हाथ का दबाव मेरी चूचियों पर बढ़ने लगा और मैं सोचने लगी कि इसे अगर पता चले कि मैं रश्मि को पहले ही चोद चुकी हूं तो इसे कैसा महसूस होगा। निश्चित ही वह मुझसे ईर्ष्या करता और खुद को कोसता कि साली उसकी पोती रश्मि पर मैं लड़की होकर भी हाथ साफ करने में सफल हो गयी और वह उसे चोदने की तमन्ना मन में लिए मर्द होते हुए भी रिश्ते नाते के पचड़े में पड़ा हुआ था। मैं मन ही मन हंस पड़ी। लेकिन फिलहाल तो इस दानव को झेलना मुझे भारी पड़ रहा था। उसकी जोर जबरदस्ती बढ़ती जा रही थी और अब उसने मेरे स्कर्ट को भी एक झटके से नीचे खींच लिया और लो, अब मैं मादरजात नंगी थी। उस मोटे, विशाल, तोंदू बुड्ढे भालू के नीचे, उसके कब्जे में नंगी बेबस पड़ी हुई थी। एक अजीब सा अहसास हो रहा था मुझे। उत्तेजक अहसास। उस भालू से चुदने की सोच किसी भी और के लिए भयावह हो सकती थी, मैं भी कोई अपवाद नहीं थी लेकिन उस वक्त चुदने की अदम्य चाहत उस भय पर हावी हो चुकी थी। एक भालू से चुदने की कल्पना से ही मैं तो रोमांच से भर गई थी। मुझे क्या पता था कि यह बूढ़ा भालू अपने मन की खुन्नस मुझ पर निकालने वाला है। उधर घनश्याम बड़े आराम से सोफे पर बैठ कर हमारे बीच के वार्तालाप को सुन रहा था और हर हरकत का मजा ले रहा था। रश्मि का नाम सुन कर वह भी थोड़ा चौंक उठा था क्योंकि उसे भी पता था कि रश्मि मेरी सहेली है।
"अगर रश्मि को पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा, उसके बारे में सोचा है आपने?' मैं उसके नीचे दबी हुई छटपटाते हुए बोली।
"नहीं सोचा था मगर अब सोचूंगा। मुझे तो अब अपने ऊपर गुस्सा आ रहा है कि अगर घनश्याम सच बोल रहा है तो तू अच्छी खासी लंडखोर है, और अगर तू लंडखोर है तो लंडखोर की सहेली भी तो लंडखोर ही होगी और मैं मादरचोद रश्मि को हाथ लगाने में ख्वामखाह डर रहा था। चलो अब सब कुछ साफ हो गया। पहले अभी तेरा हिसाब करता हूं फिर रश्मि को भी देख लूंगा।" इतना कहकर उसने एक हाथ से मेरी चूत सहलाने लगा। उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन उसके हाथ का स्पर्श अपनी चूत पर महसूस करके चुदास के मारे बेहाल हुई जा रही थी। जी चाह रहा था कि उसे पलट कर उस पर चढ़ जाऊं और उसके लंड की विकरालता की परवाह किए बिना उछल-कूद मचाना आरंभ कर दूं। लेकिन उस वजनदार भालू के साथ न तो ऐसा करना संभव था और न ही अपनी उतावली दिखा कर अपना रंडीपन दिखाना चाहती थी। भलोटिया रश्मि के बारे में सच ही अनुमान लगा रहा था। जब मैंने उसे कृत्रिम लंड से चोदा था तभी मुझे भी अहसास हो गया था कि वह लंड लेने की आदी है, लेकिन भलोटिया की बात कुछ और है। जहां तक मैं अंदाजा लगा पा रही थी, इतने बड़े लंड वाले भलोटिया जैसे आदमी को झेलना किसी सामान्य स्त्री के वश की बात नहीं है। मैं जानती थी कि मुझ पर भी कयामत आने वाली है लेकिन पता नहीं क्यों इस वक्त मेरे अंदर वासना की जो प्रचंड ज्वाला धधक रही थी, उसे बुझाना ही मेरी पहली प्राथमिकता थी, बाकी सब उस चरम उत्तेजना के आगे गौण था, भले ही चुदते हुए मेरा कचूमर निकल जाए। बस मैं ने मन को कड़ा कर लिया और उस कयामत का सामना करने को तत्पर हो गयी। मुझे तो रश्मि की फ़िक्र होने लगी कि यह दानव जब रश्मि का शिकार करेगा तो उसकी क्या गति होगी। भाड़ में जाए रश्मि, मैं उसके लिए बेवजह क्यों परेशान हो रही हूं। फिलहाल तो जैसे तैसे झेल कर मैं अपनी बेकाबू होती उत्तेजना को शांत लूं। फिर भी रश्मि पर आने वाली मुसीबत को सोच कर मैं बेख्याली में मुस्कुरा उठी और भलोटिया मेरी मुस्कान को देखकर चकित रह गया।