10-01-2025, 01:04 PM
"नहीं नहीं, छोड़ो मुझे। मुझे इस तरह की हरकत बिल्कुल पसंद नहीं है। यह बुड्ढा मुझसे ऐसी हरकत नहीं कर सकता है।" मैं छटपटाते हुए बोली। मेरा छटपटाना हालांकि दिखावा था लेकिन मुझे इस तरह छटपटाते हुए देख कर भलोटिया ने इस तरह कस कर जकड़ लिया जैसे हाथ में आई चिड़िया कहीं हाथ से निकल न जाए। उसकी पकड़ सचमुच बहुत सख्त थी।
"घंशू, तू ने बताया नहीं कि यह मेरे टेस्ट के लायक है कि नहीं?" वह मुझे दबोचे हुए घनश्याम से बोला। मैं उसकी गद्देदार तोंद से चिपकी हुई छूटने का झूठ-मूठ प्रयास कर रही थी।
"ऑलराउंडर है भाई। खुद ही देख लो। अब तो चिड़िया आपके हाथ में है। तो मैं चलूं?" कहकर घनश्याम मुड़ा।
"बहुत बढ़िया, लेकिन तुम कहां चले भाई? हमारे बीच कभी कोई पर्दा था क्या? यहां रहकर देखो या शामिल हो जाओ। पहले भी तो ऐसा होता रहा है, आज कुछ अलग थोड़ी ना है।" भलोटिया एक हाथ से मुझे दबोच कर दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ को मसलते हुए बोला और तभी चौंक उठा वह। "अरे, बिटिया की पैंटी तो नदारद है। ओह समझा, पहले से तैयार है। वाह भाई वाह, तुम्हारा जवाब नहीं।" कहकर उसने मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरी चिकनी नंगी गांड़ पर हाथ फिराने लगा। उफ उफ, मैं तो अपनी चूतड़ पर उसके दानवी हथेली के स्पर्श से मानो पगला ही गई। जहां मुझे शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था वहीं मेरी उत्तेजना मेरे सर पर चढ़ कर बोल रही थी।
"छि छि, छोड़ो मुझे। ओह ओह, मेरे साथ ऐसा मत कीजिए ना प्लीज। अपनी उम्र का तो लिहाज कीजिए।" मैं प्रकटत: विरोध करती हुई बोली लेकिन सच पूछो तो मैं ऐसा ही कुछ चाह रही थी इसलिए उस मोटे तोंदू बुड्ढे से चिपकी जा रही थी। वह बूढ़ा जरूर था लेकिन उसकी पकड़ बड़ी सख्त थी। उसके शरीर में बहुत गर्मी थी, जिसकी तपिश से मेरे शरीर की गर्मी भी दुगुनी हो रही थी।
"भलोटिया, सच पूछो तो मैं भी यही चाह रहा था कि इस चुदाई का दीदार करूं। आपने मेरे मुंह की बात छीन ली। चलिए मैं यहीं बैठकर इस गरमागरम नजारे पर अपनी आंख सेंक लूं।" मेरी बात को जरा भी तवज्जो न देते हुए घनश्याम ने भलोटिया का उत्तर दिया और सामने सोफे पर बैठ गया।
"और मन हो तो शामिल भी हो जाओ। हमने पहले भी तो ऐसा किया है।" भलोटिया मेरी चूतड़ों को मसलने लगा। "हमारी बिटिया की गांड़ तो बड़ी जबरदस्त है भाई। आज तो मजा ही आ जाएगा।" भलोटिया आगे बोला। इधर मैं चुदने के लिए मरी जा रही थी और इस आवेश में मैं छटपटाते हुए अपनी चूत को उसके लंड वाले हिस्से पर रगड़ने को आगे बढ़ाई ही थी कि सन्न रह गई। जैसे ही मेरी चूत का स्पर्श उसके सामने के कठोर अंग से हुआ, हे मेरे ईश्वर! उसके लंड के स्थान पर एक मूसलाकार खंभा मेरी चूत का तिया पांचा करने को पहले से तनतना कर खड़ा था। इसकी दस्तक ज्यों ही मेरी चूत पर हुई, मैं तो आवाक रह गई। लुंगी के अंदर ढंके हुए इस बूढ़े के इतने बड़े हथियार की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। अभी तो मैंने उसके लंड का दीदार भी नहीं किया था लेकिन अंदाजा तो लगा ही सकती थी कि यह सामान्य से काफी बड़ा था। मुझे भयभीत होना चाहिए था लेकिन भय पर मेरे अंदर वासना का जो सैलाब आया हुआ था वह भारी पड़ रहा था।
"आपलोग मेरे साथ अच्छा नहीं कर रहे हैं। यह गलत है।" मैं उसके बंधन में छटपटाते हुए बोली।
"हमें पता है यह गलत है लेकिन हम भी क्या करें बिटिया। अपनी मर्दानी भूख के आगे लाचार हैं। किसी भूखे का भोजन करना किसी भी शास्त्र के हिसाब से गलत नहीं है। तुम्हें भी आज मौका मिला है मुझ बूढ़े की भूख मिटाने का, तो इस पुण्य कार्य में अपना सहयोग करोगी तो निश्चय ही भगवान तुम्हें पुण्य प्रदान करेगा। आह आह आह" वह धीरे-धीरे बेसब्र हुआ जा रहा था और मेरी गान्ड को बेदर्दी से मसलने लगा था। वह अब झुका और अपनी थूथन को मेरे चेहरे के पास लाया ताकि मुझे चूम सके। उस समय उसके मुंह से मुझे शराब की दुर्गंध का अहसास हुआ लेकिन ताज्जुब, मुझे उस समय वह दुर्गंध भी विचलित नहीं कर पा रहा था बल्कि उसके उलट, मुझे भी एक अलग तरह का नशा सा चढ़ रहा था। अंततः उसने अपना थूथन मेरे होंठों से चिपका ही दिया और मेरे रसीले होंठों को चूसने लगा। ओह ओह ओह मेरे भगवान, कितना सुकून मुझे मिल रहा था मैं बता नहीं सकती हूं।
"घंशू, तू ने बताया नहीं कि यह मेरे टेस्ट के लायक है कि नहीं?" वह मुझे दबोचे हुए घनश्याम से बोला। मैं उसकी गद्देदार तोंद से चिपकी हुई छूटने का झूठ-मूठ प्रयास कर रही थी।
"ऑलराउंडर है भाई। खुद ही देख लो। अब तो चिड़िया आपके हाथ में है। तो मैं चलूं?" कहकर घनश्याम मुड़ा।
"बहुत बढ़िया, लेकिन तुम कहां चले भाई? हमारे बीच कभी कोई पर्दा था क्या? यहां रहकर देखो या शामिल हो जाओ। पहले भी तो ऐसा होता रहा है, आज कुछ अलग थोड़ी ना है।" भलोटिया एक हाथ से मुझे दबोच कर दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ को मसलते हुए बोला और तभी चौंक उठा वह। "अरे, बिटिया की पैंटी तो नदारद है। ओह समझा, पहले से तैयार है। वाह भाई वाह, तुम्हारा जवाब नहीं।" कहकर उसने मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरी चिकनी नंगी गांड़ पर हाथ फिराने लगा। उफ उफ, मैं तो अपनी चूतड़ पर उसके दानवी हथेली के स्पर्श से मानो पगला ही गई। जहां मुझे शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था वहीं मेरी उत्तेजना मेरे सर पर चढ़ कर बोल रही थी।
"छि छि, छोड़ो मुझे। ओह ओह, मेरे साथ ऐसा मत कीजिए ना प्लीज। अपनी उम्र का तो लिहाज कीजिए।" मैं प्रकटत: विरोध करती हुई बोली लेकिन सच पूछो तो मैं ऐसा ही कुछ चाह रही थी इसलिए उस मोटे तोंदू बुड्ढे से चिपकी जा रही थी। वह बूढ़ा जरूर था लेकिन उसकी पकड़ बड़ी सख्त थी। उसके शरीर में बहुत गर्मी थी, जिसकी तपिश से मेरे शरीर की गर्मी भी दुगुनी हो रही थी।
"भलोटिया, सच पूछो तो मैं भी यही चाह रहा था कि इस चुदाई का दीदार करूं। आपने मेरे मुंह की बात छीन ली। चलिए मैं यहीं बैठकर इस गरमागरम नजारे पर अपनी आंख सेंक लूं।" मेरी बात को जरा भी तवज्जो न देते हुए घनश्याम ने भलोटिया का उत्तर दिया और सामने सोफे पर बैठ गया।
"और मन हो तो शामिल भी हो जाओ। हमने पहले भी तो ऐसा किया है।" भलोटिया मेरी चूतड़ों को मसलने लगा। "हमारी बिटिया की गांड़ तो बड़ी जबरदस्त है भाई। आज तो मजा ही आ जाएगा।" भलोटिया आगे बोला। इधर मैं चुदने के लिए मरी जा रही थी और इस आवेश में मैं छटपटाते हुए अपनी चूत को उसके लंड वाले हिस्से पर रगड़ने को आगे बढ़ाई ही थी कि सन्न रह गई। जैसे ही मेरी चूत का स्पर्श उसके सामने के कठोर अंग से हुआ, हे मेरे ईश्वर! उसके लंड के स्थान पर एक मूसलाकार खंभा मेरी चूत का तिया पांचा करने को पहले से तनतना कर खड़ा था। इसकी दस्तक ज्यों ही मेरी चूत पर हुई, मैं तो आवाक रह गई। लुंगी के अंदर ढंके हुए इस बूढ़े के इतने बड़े हथियार की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। अभी तो मैंने उसके लंड का दीदार भी नहीं किया था लेकिन अंदाजा तो लगा ही सकती थी कि यह सामान्य से काफी बड़ा था। मुझे भयभीत होना चाहिए था लेकिन भय पर मेरे अंदर वासना का जो सैलाब आया हुआ था वह भारी पड़ रहा था।
"आपलोग मेरे साथ अच्छा नहीं कर रहे हैं। यह गलत है।" मैं उसके बंधन में छटपटाते हुए बोली।
"हमें पता है यह गलत है लेकिन हम भी क्या करें बिटिया। अपनी मर्दानी भूख के आगे लाचार हैं। किसी भूखे का भोजन करना किसी भी शास्त्र के हिसाब से गलत नहीं है। तुम्हें भी आज मौका मिला है मुझ बूढ़े की भूख मिटाने का, तो इस पुण्य कार्य में अपना सहयोग करोगी तो निश्चय ही भगवान तुम्हें पुण्य प्रदान करेगा। आह आह आह" वह धीरे-धीरे बेसब्र हुआ जा रहा था और मेरी गान्ड को बेदर्दी से मसलने लगा था। वह अब झुका और अपनी थूथन को मेरे चेहरे के पास लाया ताकि मुझे चूम सके। उस समय उसके मुंह से मुझे शराब की दुर्गंध का अहसास हुआ लेकिन ताज्जुब, मुझे उस समय वह दुर्गंध भी विचलित नहीं कर पा रहा था बल्कि उसके उलट, मुझे भी एक अलग तरह का नशा सा चढ़ रहा था। अंततः उसने अपना थूथन मेरे होंठों से चिपका ही दिया और मेरे रसीले होंठों को चूसने लगा। ओह ओह ओह मेरे भगवान, कितना सुकून मुझे मिल रहा था मैं बता नहीं सकती हूं।