31-12-2024, 08:42 PM
"आओ घंशू भाई। लेकिन साथ में जुगाड़ कहां है?" उसकी खरखराती आवाज मुझे बड़ी अजीब सी लगी।
"लाया तो हूं। यह सामने कौन है?" घनश्याम मुझे खींच कर सामने लाकर बोला।
"क्या बकवास कर रहे हो। अगर यह मजाक है तो बहुत बुरा मजाक है। तुझे पता है मेरा टेस्ट फिर भी इस मासूम बच्ची को दिखा रहे हो?" वह तनिक रोष में बोला और उसके बोलने के साथ ही उसका पहाड़ जैसा शरीर अपनी जगह से थोड़ा सा हिला। उसका बनियान थोड़ा सा उठ गया और उसकी तोंद नजर आने लगी। तोंद का जितना हिस्सा दिखाई दे रहा था वह पूरा बालों से भरा हुआ था। बैठे होने के बावजूद मुझे उसके भीमकाय शरीर के कद का अंदाजा हो गया था। निश्चय ही वह छः फुट से ऊंचे कद का था।
"इसकी मासूम सूरत पर मत जाओ भाई, अच्छे अच्छों को पानी पिलाने का माद्दा है इसमें।" घनश्याम बोला। साला घनश्याम किसी दलाल की तरह उसके सामने पेश करते हुए मेरी प्रशंसा कर रहा था।
"यह यह तुम क्या बोल रहे हो? मेरे लिए तुम इस तरह किसी अजनबी के सामने कैसे बात कर सकते हो? मैं क्या कोई बाजारू लड़की हूं?" मैं गुस्से से उसका हाथ झटक कर उसकी पकड़ से मुक्त हो गई। मुक्त क्या, यों कहिए कि उसने ही मुझे मुक्त कर दिया क्योंकि वैसे भी मैं उनकी मनमानी पूरी किए बिना वहां से निकल तो सकती नहीं थी।
"तू तो बाजारू औरतों से भी गयी बीती है। अपने मजे के लिए फोकट में बिछने वाली यहां शराफत का ढोंग कर रही है। जो यहां होने वाला है, चुपचाप होने दो। नौटंकी नहीं, समझी।" घनश्याम बोला। उसकी बात सुन कर भी मैं अपना विरोध जाहिर करने का ड्रामा करने लगी।
"मैं तुम्हारी बात मानने से इन्कार करती हूं।"
"तेरे इनकार की यहां परवाह कौन करने वाला है?" घनश्याम हंसते हुए बोला।
"घंशू भाई तुम्हारी बात से मैं सहमत हूं। लेकिन क्या यह मेरे टेस्ट के लिए फिट है? यह तो मेरी पोती जैसी है।" वह दानव हल्के से मुस्कुरा कर बोला।
"अपनी पोती ही समझ लो भाई। पोती जवान हो तो...." कहकर घनश्याम चुप हो गया और अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ मुझे देखने लगा।
"साला घंशू तू तो एक नंबर का हरामी निकला। ऐसी बात भी तुम बोल सकते हो यह मैं नहीं सोचा था, लेकिन जो बोला सच बोला। चलो मैं भी स्वीकार करता हूं कि मैं भी तुम्हारी तरह हरामी आदमी हूं। भला ऐसी खूबसूरत नयी नवेली, गदराई जवान लौंडिया पोती के रूप में भी सामने आ जाए तो उसको देख देख कर हम मर्दों का खड़ा होने से कैसे रुक सकता है। बाकी लोगों का तो मैं नहीं बोल सकता हूं लेकिन मेरा तो खड़ा हो जाता है। सच बोल रहे हो, मेरी जवान पोती को देख कर सचमुच मेरा फनफना जाता है लेकिन क्या करूं, साला नाता रिश्ता का लिहाज नहीं होता तो...." इतना कहकर वह रुक गया और हें हें हें हें करके हंसने लगा। जब वह हंस रहा था तो उसकी हांडी सी तोंद भी हिलने लगी थी।
"सचमुच आपलोग एकदम जंगली हैं। लाज शरम तो है ही नहीं आप लोगों में।" मैं बनावटी रोष से बोली। बनावटी इसलिए बोल रही हूं क्योंकि अबतक मैं अंदर से काफी गरम हो गई थी। घनश्याम मेरी रजामंदी के बगैर जबरदस्ती यहां ले कर आया था और जिस नीयत से मुझे ले कर आया था, मैं उसके विरोध में थी, लेकिन शुरू से लेकर अबतक के घटनाक्रम, कल्लू , भलोटिया और घनश्याम के बीच की बातचीत और मेरे साथ जो कुछ होने वाला था उसकी कल्पना कर करके पल दर पल मेरे भीतर फिर से उत्तेजना का संचार होने लगा था। एक चिंगारी सी सुलगी थी जो कि अबतक आग की तरह भड़क उठी थी। कल्लू अगर भयानक था तो उससे भी ज्यादा वीभत्स शरीर वाला था यह भलोटिया, लेकिन मेरे अंदर उत्तेजना का आलम यह था कि मुझे भोगने के लिए उपलब्ध मर्द के व्यक्तित्व का इस समय मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। यह दानव भी इस समय आकर्षक लग रहा था। मैं बड़ी मुश्किल से खुद को संयम में रख पा रही थी। मुझे खुद को बेचारी अबला, शिकार दिखाना जरूरी भी था ताकि घनश्याम को भी तसल्ली हो जाय कि वह मुझे उचित दंड देने में सफल हो रहा है। भले ही घनश्याम मेरी असलीयत जानता था और भलोटिया को बता रहा था लेकिन अपने अंदर की उत्तेजना को जाहिर करके भलोटिया के सामने सस्ती नहीं बनना चाह रही थी। लेकिन यह भी सच था कि इस वक्त मैं चुदने के लिए मरी जा रही थी। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि उत्तेजना के मारे मेरी चूचियां तन गई थीं और निप्पल्स मेरे ब्लाऊज को छेद कर बाहर निकल पड़ने को तत्पर हो गये थे। मेरी चूत चिपचिपी हो गई थी।
"लाया तो हूं। यह सामने कौन है?" घनश्याम मुझे खींच कर सामने लाकर बोला।
"क्या बकवास कर रहे हो। अगर यह मजाक है तो बहुत बुरा मजाक है। तुझे पता है मेरा टेस्ट फिर भी इस मासूम बच्ची को दिखा रहे हो?" वह तनिक रोष में बोला और उसके बोलने के साथ ही उसका पहाड़ जैसा शरीर अपनी जगह से थोड़ा सा हिला। उसका बनियान थोड़ा सा उठ गया और उसकी तोंद नजर आने लगी। तोंद का जितना हिस्सा दिखाई दे रहा था वह पूरा बालों से भरा हुआ था। बैठे होने के बावजूद मुझे उसके भीमकाय शरीर के कद का अंदाजा हो गया था। निश्चय ही वह छः फुट से ऊंचे कद का था।
"इसकी मासूम सूरत पर मत जाओ भाई, अच्छे अच्छों को पानी पिलाने का माद्दा है इसमें।" घनश्याम बोला। साला घनश्याम किसी दलाल की तरह उसके सामने पेश करते हुए मेरी प्रशंसा कर रहा था।
"यह यह तुम क्या बोल रहे हो? मेरे लिए तुम इस तरह किसी अजनबी के सामने कैसे बात कर सकते हो? मैं क्या कोई बाजारू लड़की हूं?" मैं गुस्से से उसका हाथ झटक कर उसकी पकड़ से मुक्त हो गई। मुक्त क्या, यों कहिए कि उसने ही मुझे मुक्त कर दिया क्योंकि वैसे भी मैं उनकी मनमानी पूरी किए बिना वहां से निकल तो सकती नहीं थी।
"तू तो बाजारू औरतों से भी गयी बीती है। अपने मजे के लिए फोकट में बिछने वाली यहां शराफत का ढोंग कर रही है। जो यहां होने वाला है, चुपचाप होने दो। नौटंकी नहीं, समझी।" घनश्याम बोला। उसकी बात सुन कर भी मैं अपना विरोध जाहिर करने का ड्रामा करने लगी।
"मैं तुम्हारी बात मानने से इन्कार करती हूं।"
"तेरे इनकार की यहां परवाह कौन करने वाला है?" घनश्याम हंसते हुए बोला।
"घंशू भाई तुम्हारी बात से मैं सहमत हूं। लेकिन क्या यह मेरे टेस्ट के लिए फिट है? यह तो मेरी पोती जैसी है।" वह दानव हल्के से मुस्कुरा कर बोला।
"अपनी पोती ही समझ लो भाई। पोती जवान हो तो...." कहकर घनश्याम चुप हो गया और अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ मुझे देखने लगा।
"साला घंशू तू तो एक नंबर का हरामी निकला। ऐसी बात भी तुम बोल सकते हो यह मैं नहीं सोचा था, लेकिन जो बोला सच बोला। चलो मैं भी स्वीकार करता हूं कि मैं भी तुम्हारी तरह हरामी आदमी हूं। भला ऐसी खूबसूरत नयी नवेली, गदराई जवान लौंडिया पोती के रूप में भी सामने आ जाए तो उसको देख देख कर हम मर्दों का खड़ा होने से कैसे रुक सकता है। बाकी लोगों का तो मैं नहीं बोल सकता हूं लेकिन मेरा तो खड़ा हो जाता है। सच बोल रहे हो, मेरी जवान पोती को देख कर सचमुच मेरा फनफना जाता है लेकिन क्या करूं, साला नाता रिश्ता का लिहाज नहीं होता तो...." इतना कहकर वह रुक गया और हें हें हें हें करके हंसने लगा। जब वह हंस रहा था तो उसकी हांडी सी तोंद भी हिलने लगी थी।
"सचमुच आपलोग एकदम जंगली हैं। लाज शरम तो है ही नहीं आप लोगों में।" मैं बनावटी रोष से बोली। बनावटी इसलिए बोल रही हूं क्योंकि अबतक मैं अंदर से काफी गरम हो गई थी। घनश्याम मेरी रजामंदी के बगैर जबरदस्ती यहां ले कर आया था और जिस नीयत से मुझे ले कर आया था, मैं उसके विरोध में थी, लेकिन शुरू से लेकर अबतक के घटनाक्रम, कल्लू , भलोटिया और घनश्याम के बीच की बातचीत और मेरे साथ जो कुछ होने वाला था उसकी कल्पना कर करके पल दर पल मेरे भीतर फिर से उत्तेजना का संचार होने लगा था। एक चिंगारी सी सुलगी थी जो कि अबतक आग की तरह भड़क उठी थी। कल्लू अगर भयानक था तो उससे भी ज्यादा वीभत्स शरीर वाला था यह भलोटिया, लेकिन मेरे अंदर उत्तेजना का आलम यह था कि मुझे भोगने के लिए उपलब्ध मर्द के व्यक्तित्व का इस समय मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। यह दानव भी इस समय आकर्षक लग रहा था। मैं बड़ी मुश्किल से खुद को संयम में रख पा रही थी। मुझे खुद को बेचारी अबला, शिकार दिखाना जरूरी भी था ताकि घनश्याम को भी तसल्ली हो जाय कि वह मुझे उचित दंड देने में सफल हो रहा है। भले ही घनश्याम मेरी असलीयत जानता था और भलोटिया को बता रहा था लेकिन अपने अंदर की उत्तेजना को जाहिर करके भलोटिया के सामने सस्ती नहीं बनना चाह रही थी। लेकिन यह भी सच था कि इस वक्त मैं चुदने के लिए मरी जा रही थी। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि उत्तेजना के मारे मेरी चूचियां तन गई थीं और निप्पल्स मेरे ब्लाऊज को छेद कर बाहर निकल पड़ने को तत्पर हो गये थे। मेरी चूत चिपचिपी हो गई थी।