29-12-2024, 06:33 PM
कल्लू ने जब दरवाजा खोला तो घनश्याम मुझे खींचता हुआ अंदर ले जाने लगा तभी मैंने तिरछी नजरों से कल्लू की ओर देखा तो पाया कि वह बड़ी हसरत भरी नज़रों से मुझे देख रहा था और अनायास ही उसका हाथ अपने पैंट के अगले हिस्से पर गया और पैंट के ऊपर से ही अपना लंड सहलाने लगा था। मैं तो पानी पानी हो गई। घनश्याम का ध्यान इस ओर नहीं था, उसका ध्यान तो बस भलोटिया के पास पहुंचने पर था कि मुझ जैसी नायाब तोहफा को कितनी जल्दी उसकी झोली पर डाल कर उसे खुश कर सके। मैं घनश्याम को यह अहसास नहीं दिलाना चाहती थी कि मैं मन ही मन भलोटिया की गोद में गिरने को तैयार हो चुकी थी। घनश्याम मुझे जबरदस्ती खींच कर लिए जा रहा था और मैं खिंची चली जा रही थी।
"मेरे साथ इस तरह की जबर्दस्ती अच्छी बात नहीं है। तुम मुझे इस तरह किसी अजनबी मर्द की गोद में नहीं डाल सकते।" मैं विरोध करती हुई बोली।
"तुम्हारे विरोध की मुझे कोई परवाह नहीं है। मेरी बात माने बिना तुम यहां से छूट कर नहीं जा सकती, इसलिए अच्छा यही होगा कि चुपचाप मेरी इच्छा का सम्मान करो और भलोटिया को खुश कर दो।" वह मुझे खींचता हुआ उसी तिलस्मी मार्ग पर लिए जा रहा था। उस तहखाने के दरवाजे पर पहुंचते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। पता नहीं भालू या भलोटिया, जो भी हो, कैसा आदमी होगा। सभ्य या असभ्य आदमी होगा। जैसा मैंने घनश्याम और गंजू को जाना था, निश्चित तौर पर भालू भी उन्हीं की तरह का आदमी होना चाहिए, उन्हीं की तरह औरतों को भोगने वाला औरतों का रसिया। पता नहीं वह स्त्रियों के साथ कैसे पेश आता होगा। भलोटिया को ये लोग भालू भालू कह रहे हैं, क्या भालू की तरह काला, मोटा आदमी होगा? मन में एक तरह की घबराहट सी हो रही थी। घनश्याम नें उस ऐशगाह के तिलस्मी दरवाजे के बाहर का कॉलबेल दबाया और पल भर में ही दरवाजा बिना आवाज खुल गया। निश्चय ही अंदर भलोटिया इंतजार में दरवाजे का रिमोट लेकर बैठा हुआ था। शायद हमारे यहां पहुंच जाने की खबर कल्लू ने मोबाईल से दे दिया था होगा। घनश्याम ने अबतक इस तरह मेरा हाथ पकड़ रखा था जैसे मैं भाग न जाऊं। वह मेरा हाथ पकड़े हुए उस ऐशगाह में प्रवेश किया और मैं उसके पीछे पीछे खिंची अंदर दाखिल हुई।
अंदर का दृश्य पहले से थोड़ा बदला हुआ था। दरवाजे के अंदर घुसते ही सामने एक बड़ा सा शानदार सजा हुआ शोकेस दिखाई दे रहा था। उसके दाईं ओर एक शानदार किंगसाईज बेड था। मैं ने बाईं ओर देखा तो एक सुंदर टीवी पैनल था जिसके बीचोंबीच एक बड़ा सा 86" का टीवी था, जिसपर कोई अंग्रेजी फिल्म चल रही थी। उसके ठीक सामने, अर्थात उस हॉलनुमा बड़े से कमरे के दूसरे छोर पर अच्छी तरह से सजाया हुआ लेदर से मढ़ा हुआ गद्देदार सोफा सेट था। दो सिंगल सोफे के बीच में जो बड़ा सा सोफा था उस पर जब मेरी दृष्टि पड़ी तो, हे भगवान, उस पर जो शख्स बैठा हुआ था वह एक करीब पैंसठ सत्तर साल का गंजा, मोटा तगड़ा, तोंदू आदमी बैठा हुआ टीवी देख रहा था। उस आदमी को घनश्याम और गंजू सच ही भालू बोल रहे थे। वह सचमुच किसी भालू से कम नहीं था। वह सिर्फ लुंगी और बनियान में था और सोफे पर पसर कर बैठा हुआ था। उसके नंगे हाथों और बदन पर सीने से ऊपर झांकते हिस्से पर गर्दन से नीचे तक काले सफेद बाल भरे हुए थे। उसका रंग गेहुंआ था। फूले हुए चेहरे पर कंजी आंखों के कारण शक्ल बड़ी अजीब दिखाई दे रही थी।
"मेरे साथ इस तरह की जबर्दस्ती अच्छी बात नहीं है। तुम मुझे इस तरह किसी अजनबी मर्द की गोद में नहीं डाल सकते।" मैं विरोध करती हुई बोली।
"तुम्हारे विरोध की मुझे कोई परवाह नहीं है। मेरी बात माने बिना तुम यहां से छूट कर नहीं जा सकती, इसलिए अच्छा यही होगा कि चुपचाप मेरी इच्छा का सम्मान करो और भलोटिया को खुश कर दो।" वह मुझे खींचता हुआ उसी तिलस्मी मार्ग पर लिए जा रहा था। उस तहखाने के दरवाजे पर पहुंचते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। पता नहीं भालू या भलोटिया, जो भी हो, कैसा आदमी होगा। सभ्य या असभ्य आदमी होगा। जैसा मैंने घनश्याम और गंजू को जाना था, निश्चित तौर पर भालू भी उन्हीं की तरह का आदमी होना चाहिए, उन्हीं की तरह औरतों को भोगने वाला औरतों का रसिया। पता नहीं वह स्त्रियों के साथ कैसे पेश आता होगा। भलोटिया को ये लोग भालू भालू कह रहे हैं, क्या भालू की तरह काला, मोटा आदमी होगा? मन में एक तरह की घबराहट सी हो रही थी। घनश्याम नें उस ऐशगाह के तिलस्मी दरवाजे के बाहर का कॉलबेल दबाया और पल भर में ही दरवाजा बिना आवाज खुल गया। निश्चय ही अंदर भलोटिया इंतजार में दरवाजे का रिमोट लेकर बैठा हुआ था। शायद हमारे यहां पहुंच जाने की खबर कल्लू ने मोबाईल से दे दिया था होगा। घनश्याम ने अबतक इस तरह मेरा हाथ पकड़ रखा था जैसे मैं भाग न जाऊं। वह मेरा हाथ पकड़े हुए उस ऐशगाह में प्रवेश किया और मैं उसके पीछे पीछे खिंची अंदर दाखिल हुई।
अंदर का दृश्य पहले से थोड़ा बदला हुआ था। दरवाजे के अंदर घुसते ही सामने एक बड़ा सा शानदार सजा हुआ शोकेस दिखाई दे रहा था। उसके दाईं ओर एक शानदार किंगसाईज बेड था। मैं ने बाईं ओर देखा तो एक सुंदर टीवी पैनल था जिसके बीचोंबीच एक बड़ा सा 86" का टीवी था, जिसपर कोई अंग्रेजी फिल्म चल रही थी। उसके ठीक सामने, अर्थात उस हॉलनुमा बड़े से कमरे के दूसरे छोर पर अच्छी तरह से सजाया हुआ लेदर से मढ़ा हुआ गद्देदार सोफा सेट था। दो सिंगल सोफे के बीच में जो बड़ा सा सोफा था उस पर जब मेरी दृष्टि पड़ी तो, हे भगवान, उस पर जो शख्स बैठा हुआ था वह एक करीब पैंसठ सत्तर साल का गंजा, मोटा तगड़ा, तोंदू आदमी बैठा हुआ टीवी देख रहा था। उस आदमी को घनश्याम और गंजू सच ही भालू बोल रहे थे। वह सचमुच किसी भालू से कम नहीं था। वह सिर्फ लुंगी और बनियान में था और सोफे पर पसर कर बैठा हुआ था। उसके नंगे हाथों और बदन पर सीने से ऊपर झांकते हिस्से पर गर्दन से नीचे तक काले सफेद बाल भरे हुए थे। उसका रंग गेहुंआ था। फूले हुए चेहरे पर कंजी आंखों के कारण शक्ल बड़ी अजीब दिखाई दे रही थी।