13-12-2024, 02:12 PM
"तुम उम्मीद करते रहो और हमें अंदर जाने दो।" घनश्याम बोला और कल्लू ने लंबी सांस ली और दरवाजा खोल दिया। उनकी बातें मैं अच्छी तरह समझ रही थी और मुझे भीतर ही भीतर घनश्याम पर गुस्सा भी आ रहा था कि मुझे कहां फंसा दिया है। यहां आकर मैं किसी भी तरह का विरोध नहीं कर सकती थी। चुपचाप घनश्याम की बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था। कल्लू और घनश्याम के बीच जो बातें चल रही थीं उसे सुनने में कोई दिलचस्पी भी नहीं थी। मैं तो बस यह चाह रही थी कि किसी प्रकार यहां से निकलूं लेकिन घनश्याम की बात मानने से ही मुझे यहां से मुक्ति मिल सकती थी। लेकिन एक बात तो थी कि जितनी देर घनश्याम और कल्लू के बीच बातें हो रही थीं, कल्लू की नजरें मुझी पर जमी हुई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी नजरें मेरे कपड़ों के अंदर भी देख पाने में सक्षम हों, क्योंकि उसके चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी नग्न देह को देख रहा हो और मेरे अंग प्रत्यंग की थाह ले रहा हो। मेरे अंदर भी अजीब तरह की सुरसुरी हो रही थी। मेरी ब्रा रहित चूचियों के निप्पल्स तन गये थे जिन्हें मेरी ब्लाऊज के बाहर से ही स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता था। छि छि, इन्हें मैं छिपा भी तो नहीं सकती थी। न जाने क्या सोच रहा था होगा मेरे बारे में। मेरी चूत में भी अजीब तरह की हलचल मच रही थी और नतीजतन चूत से पानी का रिसाव आरंभ हो गया था। हे भगवान, इतने ही दिनों में मैं कितनी कामुक हो गई थी। घनश्याम सच ही बोल रहा था कि मुझमें चुदाई का चस्का सर चढ़कर बोल रहा था और मैं मर्दों की भूखी कुतिया की तरह हो गई थी।
इस वक्त भी, जब घनश्याम अपने हिसाब से मुझे मेरी करतूत की सजा देने की नीयत से यहां लेकर आया था, मेरे मन में कुछ और बातें चल रही थीं। मुझे तो अब साफ साफ महसूस हो रहा था कि मुझे दंडित करने की बात जो घनश्याम कह रहा था, वह सब झूठ था। दरअसल मुझे लगने लगा था कि रघु से चुद जाना और धोखे से जधु की भी शिकार बन जाना घनश्याम को खल रहा था या यों कहें कि वह मन ही मन कुढ़ रहा था। जो कुछ रघु और जधु ने मेरे साथ किया था उसे जानकर उसका भी मन मुझे चोदने को मचल उठा था और इस कारण मुझे दंड देने का बहाना बना कर इसी वक्त अपनी इच्छा पूरी करना चाह रहा था और इसके लिए गंजू के अड्डे से बेहतर जगह और क्या हो सकता था, लगे हाथों गंजू के साथ मुझे बांट कर अपनी मित्रता भी निभा लेता, लेकिन दुर्भाग्य से गंजू रांची गया हुआ था। फिर भी गंजू की अनुपस्थिति में उसकी खुशकिस्मती से उसके हाथ भलोटिया जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को प्रभावित करने का सुअवसर प्राप्त हो गया था। अबतक जो बात मुझे समझ में आया था वह यह कि गंजू के अलावा घनश्याम भी भलोटिया से भलिभांति परिचित था और भलोटिया के सामने मुझे पेश करके उसे तो खुश कर ही देता लेकिन साथ ही साथ अपनी मुराद भी (मुझे चोदने की, जिसके लिए वह मरा जा रहा था) पूरी कर लेता, या शायद दोनों साथ में मिलकर सम्मिलित रूप से मुझे भोगते। मेरे साथ अब जो कुछ होने वाला था उसे सोच कर मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी दिखाई नहीं दे रही थी और न ही मन में किसी प्रकार का भय था, क्योंकि अबतक घनश्याम और मेरे बीच जो बातें हुई थीं, कल्लू और घनश्याम के बीच जो बातचीत हुई थी और कल्लू की कामुक नज़रों का मुझपर जो असर हुआ, उन सबका परिणाम यह हुआ कि मेरे अंदर फिर से वासना की डायन जाग उठी थी। उत्तेजित तो मैं पहले से ही हो रही थी लेकिन कल्लू की मर्दानगी और उसकी कामुक नज़रों ने जैसे आग में घी डालने का काम कर दिया था। अंदर भालू या भलोटिया, जो भी था, जिसके सामने मुझे परोस कर मुझे दंडित करना चाह रहा था, उसकी कल्पना करते हुए मुझे रंच मात्र भी भय का अनुभव नहीं हो रहा था। वह मेरे साथ किस तरह पेश आने वाला था, इसकी भी मुझे कोई खास परवाह नहीं हो रही थी। सच तो यह था कि इसके उलट भलोटिया जैसे अजनबी की जो भालू जैसी काल्पनिक छवि मेरे मन में बन चुकी थी उसके साथ संसर्ग करने की कल्पना से मेरे अंदर अजीब तरह का रोमांच हो रहा था। जहां घनश्याम मुझे सजा देने की सोच रहा था वहीं मैं इस रोमांचक अनुभव के लिए बेताब हुई जा रही थी। मेरी इस मन: स्थिति का जरा भी आभास अगर घनश्याम को हो जाता तो पता नहीं उसके मन में क्या बीतती। यह सोचकर मुझे मन ही मन हंसी आ रही थी। घनश्याम जब मुझे यहां ले कर आ रहा था तो शुरू में मुझे बड़ा बुरा लग रहा था और मैं इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाह रही थी लेकिन अब मेरी मन: स्थिति बदल चुकी थी और मैं खुद ही पुरुष संसर्ग के लिए उत्तेजित हुई जा रही थी, अब चाहे वह पुरुष भालू या भलोटिया, या कल्लू या खुद घनश्याम हो।
इस वक्त भी, जब घनश्याम अपने हिसाब से मुझे मेरी करतूत की सजा देने की नीयत से यहां लेकर आया था, मेरे मन में कुछ और बातें चल रही थीं। मुझे तो अब साफ साफ महसूस हो रहा था कि मुझे दंडित करने की बात जो घनश्याम कह रहा था, वह सब झूठ था। दरअसल मुझे लगने लगा था कि रघु से चुद जाना और धोखे से जधु की भी शिकार बन जाना घनश्याम को खल रहा था या यों कहें कि वह मन ही मन कुढ़ रहा था। जो कुछ रघु और जधु ने मेरे साथ किया था उसे जानकर उसका भी मन मुझे चोदने को मचल उठा था और इस कारण मुझे दंड देने का बहाना बना कर इसी वक्त अपनी इच्छा पूरी करना चाह रहा था और इसके लिए गंजू के अड्डे से बेहतर जगह और क्या हो सकता था, लगे हाथों गंजू के साथ मुझे बांट कर अपनी मित्रता भी निभा लेता, लेकिन दुर्भाग्य से गंजू रांची गया हुआ था। फिर भी गंजू की अनुपस्थिति में उसकी खुशकिस्मती से उसके हाथ भलोटिया जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को प्रभावित करने का सुअवसर प्राप्त हो गया था। अबतक जो बात मुझे समझ में आया था वह यह कि गंजू के अलावा घनश्याम भी भलोटिया से भलिभांति परिचित था और भलोटिया के सामने मुझे पेश करके उसे तो खुश कर ही देता लेकिन साथ ही साथ अपनी मुराद भी (मुझे चोदने की, जिसके लिए वह मरा जा रहा था) पूरी कर लेता, या शायद दोनों साथ में मिलकर सम्मिलित रूप से मुझे भोगते। मेरे साथ अब जो कुछ होने वाला था उसे सोच कर मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी दिखाई नहीं दे रही थी और न ही मन में किसी प्रकार का भय था, क्योंकि अबतक घनश्याम और मेरे बीच जो बातें हुई थीं, कल्लू और घनश्याम के बीच जो बातचीत हुई थी और कल्लू की कामुक नज़रों का मुझपर जो असर हुआ, उन सबका परिणाम यह हुआ कि मेरे अंदर फिर से वासना की डायन जाग उठी थी। उत्तेजित तो मैं पहले से ही हो रही थी लेकिन कल्लू की मर्दानगी और उसकी कामुक नज़रों ने जैसे आग में घी डालने का काम कर दिया था। अंदर भालू या भलोटिया, जो भी था, जिसके सामने मुझे परोस कर मुझे दंडित करना चाह रहा था, उसकी कल्पना करते हुए मुझे रंच मात्र भी भय का अनुभव नहीं हो रहा था। वह मेरे साथ किस तरह पेश आने वाला था, इसकी भी मुझे कोई खास परवाह नहीं हो रही थी। सच तो यह था कि इसके उलट भलोटिया जैसे अजनबी की जो भालू जैसी काल्पनिक छवि मेरे मन में बन चुकी थी उसके साथ संसर्ग करने की कल्पना से मेरे अंदर अजीब तरह का रोमांच हो रहा था। जहां घनश्याम मुझे सजा देने की सोच रहा था वहीं मैं इस रोमांचक अनुभव के लिए बेताब हुई जा रही थी। मेरी इस मन: स्थिति का जरा भी आभास अगर घनश्याम को हो जाता तो पता नहीं उसके मन में क्या बीतती। यह सोचकर मुझे मन ही मन हंसी आ रही थी। घनश्याम जब मुझे यहां ले कर आ रहा था तो शुरू में मुझे बड़ा बुरा लग रहा था और मैं इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाह रही थी लेकिन अब मेरी मन: स्थिति बदल चुकी थी और मैं खुद ही पुरुष संसर्ग के लिए उत्तेजित हुई जा रही थी, अब चाहे वह पुरुष भालू या भलोटिया, या कल्लू या खुद घनश्याम हो।