11-12-2024, 07:36 PM
"कैसे हो कल्लू मियां? बाहर पहरेदारी कर रहे हो?" झोपड़ी के पास पहुंच कर वह उस मुस्टंडे से बोला।
"ठीक हैं घंशू भाई। हां पहरेदारी ही समझ लो।" वह भी मुस्कुरा कर बोला लेकिन उसकी मुस्कराहट उसके चेहरे की तरह ही भयानक थी। लाल लाल बाहर की ओर उभरे हुए होंठों के अंदर पीले पीले दांत बड़े ही गंदे लग रहे थे।
"भालू, मेरा मतलब, भलोटिया के साथ आए हो?" वह कल्लू से बोला।
"हां, वह अंदर है, लेकिन गजानन (गंजू) साहब रांची गये हुए हैं।" वह मुझे ऊपर से नीचे लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोला। जिस तरह वह मुझे देख रहा था, उससे मुझे गुस्सा और घिन दोनों आ रहा था, लेकिन इतने दिनों में मेरी ही आदत खराब हो गई थी, इसलिए आदतन मेरी नजरें उसकी जांघों के बीच चली गई और वहां का नजारा देख कर मैं स्तंभित रह गई। उसके पैंट के सामने का हिस्सा असामान्य रूप से उभरा हुआ था। मेरा चेहरा लाल हो उठा। वह कमीना भी मेरी नज़रों को और मेरे चेहरे के बदलते रंग को ताड़ लिया था। उसकी गंदी मुस्कान और गहरी हो उठी। उसकी आंखों में अजीब सी चमक मैं स्पष्ट रूप से देख सकती थी। मेरी चोरी पकड़े जाने का अहसास करके मेरा चेहरा और सुर्ख हो उठा। उसे साफ साफ पता चल गया था कि मैं किस टाईप की लड़की हूं। मुझे अपने ऊपर बड़ी कोफ्त हो रही थी। छि छि, मैं भी कितनी घटिया बन गई थी। थोड़ा भी खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकती थी। सच तो यह था कि न चाहते हुए भी मेरी नंगी चूत गीली होने लग गई थी।
"मुझे पता है, और तुम्हें बंद दरवाजे के बाहर पहरेदारी करने की जरूरत क्या है? भलोटिया तो है ना अंदर?" कहकर घनश्याम दरवाजे की ओर मुखातिब हुआ।
"हां हां, भलोटिया साहब अंदर ही हैं। हम तो बस ऐसे ही थोड़ा सावधानी के हिसाब से बाहर तैनात हैं।" कहकर वह दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ा।
"ठीक है, ठीक है, तू पहरेदारी कर, हम अंदर जाते हैं। और यह क्या है बे, साले जुगाड़ दिखी नहीं कि हथियार तैयार? कंट्रोल कर।" घनश्याम उसके पैंट के आगे के उभार की ओर इशारा करते हुए बोला।
"का करें भाई, ई साला हमारे कंट्रोल से बाहर का चीज है। जुगाड़ दिखी नहीं कि उछलना शुरू कर देता है। जुगाड़ तो जुगाड़, अईसा मस्त जुगाड़, कंट्रोल कहां से होगा।" वह बोला। मैं जानती थी कि ये लोग मुझे ही जुगाड़ बता रहे हैं लेकिन मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी। वैसे भी कल्लू मियां की तीक्ष्ण दृष्टि से बच कहां पाई थी। उसके चेहरे का भाव बता रहा था कि सब कुछ तो समझ गया था वह।
"अबे, भलोटिया के सामान पर नजर न लगा।" घनश्याम बोला।
"नजर कहां लगा रहे हैं। देखने की चीज देखना गलत है क्या? आंखें बंद कर लें क्या?"
"आंखें बंद करने को कौन बोल रहा है? साले, मन ही मन तो....."
"मन की बात का क्या। मिलेगी तब तो?"
"ओ हो, मतलब मन ही मन मना रहे हो कि मिल जाए?"
"मिल जाए तो खुशकिस्मती मानेंगे।"
"इसका मतलब उम्मीद है और मन में खिचड़ी पक रही है?"
"उम्मीद पर तो दुनिया टिका है।"
"ठीक हैं घंशू भाई। हां पहरेदारी ही समझ लो।" वह भी मुस्कुरा कर बोला लेकिन उसकी मुस्कराहट उसके चेहरे की तरह ही भयानक थी। लाल लाल बाहर की ओर उभरे हुए होंठों के अंदर पीले पीले दांत बड़े ही गंदे लग रहे थे।
"भालू, मेरा मतलब, भलोटिया के साथ आए हो?" वह कल्लू से बोला।
"हां, वह अंदर है, लेकिन गजानन (गंजू) साहब रांची गये हुए हैं।" वह मुझे ऊपर से नीचे लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोला। जिस तरह वह मुझे देख रहा था, उससे मुझे गुस्सा और घिन दोनों आ रहा था, लेकिन इतने दिनों में मेरी ही आदत खराब हो गई थी, इसलिए आदतन मेरी नजरें उसकी जांघों के बीच चली गई और वहां का नजारा देख कर मैं स्तंभित रह गई। उसके पैंट के सामने का हिस्सा असामान्य रूप से उभरा हुआ था। मेरा चेहरा लाल हो उठा। वह कमीना भी मेरी नज़रों को और मेरे चेहरे के बदलते रंग को ताड़ लिया था। उसकी गंदी मुस्कान और गहरी हो उठी। उसकी आंखों में अजीब सी चमक मैं स्पष्ट रूप से देख सकती थी। मेरी चोरी पकड़े जाने का अहसास करके मेरा चेहरा और सुर्ख हो उठा। उसे साफ साफ पता चल गया था कि मैं किस टाईप की लड़की हूं। मुझे अपने ऊपर बड़ी कोफ्त हो रही थी। छि छि, मैं भी कितनी घटिया बन गई थी। थोड़ा भी खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकती थी। सच तो यह था कि न चाहते हुए भी मेरी नंगी चूत गीली होने लग गई थी।
"मुझे पता है, और तुम्हें बंद दरवाजे के बाहर पहरेदारी करने की जरूरत क्या है? भलोटिया तो है ना अंदर?" कहकर घनश्याम दरवाजे की ओर मुखातिब हुआ।
"हां हां, भलोटिया साहब अंदर ही हैं। हम तो बस ऐसे ही थोड़ा सावधानी के हिसाब से बाहर तैनात हैं।" कहकर वह दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ा।
"ठीक है, ठीक है, तू पहरेदारी कर, हम अंदर जाते हैं। और यह क्या है बे, साले जुगाड़ दिखी नहीं कि हथियार तैयार? कंट्रोल कर।" घनश्याम उसके पैंट के आगे के उभार की ओर इशारा करते हुए बोला।
"का करें भाई, ई साला हमारे कंट्रोल से बाहर का चीज है। जुगाड़ दिखी नहीं कि उछलना शुरू कर देता है। जुगाड़ तो जुगाड़, अईसा मस्त जुगाड़, कंट्रोल कहां से होगा।" वह बोला। मैं जानती थी कि ये लोग मुझे ही जुगाड़ बता रहे हैं लेकिन मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी। वैसे भी कल्लू मियां की तीक्ष्ण दृष्टि से बच कहां पाई थी। उसके चेहरे का भाव बता रहा था कि सब कुछ तो समझ गया था वह।
"अबे, भलोटिया के सामान पर नजर न लगा।" घनश्याम बोला।
"नजर कहां लगा रहे हैं। देखने की चीज देखना गलत है क्या? आंखें बंद कर लें क्या?"
"आंखें बंद करने को कौन बोल रहा है? साले, मन ही मन तो....."
"मन की बात का क्या। मिलेगी तब तो?"
"ओ हो, मतलब मन ही मन मना रहे हो कि मिल जाए?"
"मिल जाए तो खुशकिस्मती मानेंगे।"
"इसका मतलब उम्मीद है और मन में खिचड़ी पक रही है?"
"उम्मीद पर तो दुनिया टिका है।"