10-12-2024, 06:12 PM
"मर्दों के साथ बिंदास मस्ती करने वाली भूखी कुतिया मुझे सिखा रही है क्या सही है और क्या ग़लत, और मेरे अधिकार की बात करती है? तुझे मेरी मर्दानगी जगाने का शौक चर्राया था ना? तुझे इसका अधिकार किसने दिया था? मेरी औरतखोरी को जगाई हो तो अब भुगतो। देख ली ना मेरी मर्दानगी? फिर भी मैंने तुझे सुधरने का मौका दिया था लेकिन तू रंडी है और रंडी ही रहेगी। तू सुधरने वाली नहीं है। अब आगे जो होगा उसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी है। अब मुझपर तोहमत लगाने का तुम्हें कोई हक नहीं है। अभी गंजू के घर में एक नया बंदा आया हुआ है। उसे भी पता है कि हम वहां किसलिए आ रहे हैं। प्रभावशाली आदमी है। चुपचाप चलो और उसे खुश कर दो। हम सबका भला होगा।" वह बोलता चला जा रहा था और मैं सिर्फ सर झुका कर सुनने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। उसकी आखिरी बात सुनकर तो मेरे होश गुम हो गये। यह तो दलाल की तरह किसी के सामने भी मुझे परोसने की बात कर रहा था। भालू शायद उसी के बारे में कह रहा था। हे भगवान। क्या वह कोई भालू टाईप आदमी होगा? मैं घबरा गई।
"मानती हूं कि गलती मेरी है, लेकिन मेरी ग़लती की सजा इस तरह मुझे जलील करके तो मत दो।" मैं गिड़गिड़ाने लगी।
"जलील तो हो चुकी हो तुम। अब कोई नाटक मत करना। भला आदमी है। वह खुश होगा तो हम सब खुश रहेंगे।" वह मुझे चेतावनी देते हुए बोला।
"भला आदमी? खाक भला आदमी। भला आदमी इस तरह यहां वहां औरतखोरी नहीं करता है।" मैं बोली।
"औरतखोरी? तुम लड़कियां मर्दोंखोरी करो वह अच्छा है और हम मर्द औरतखोरी करें वह तुम्हें अस्वीकार्य है, यह तो तुम्हारा दोगलापन है। अब अपनी बकवास बंद करो। देखो हम गंजू के घर पहुंच गये हैं।" मैं ने देखा कि सचमुच हम गंजू के घर के सामने थे। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा कि आज किस मुसीबत में फंस गयी हूं। यहां से भाग निकलने का कोई मार्ग मुझे सूझ नहीं रहा था।इस बियाबान जंगल के बीच में भाग कर जाती भी तो निश्चित ही भटक कर किसी और मुसीबत में फंस जाती। सामने झोपड़ी के दरवाजे के बाहर एक लंबा चौड़ा, काला कलूटा, मुच्छड़, हब्शी टाईप, हट्टा-कट्टा, करीब तीस चालीस की उम्र का खूंखार सा दिखने वाला आदमी मुस्तैद खड़ा नजर आ रहा था। वह काफी चौकन्ना दिखाई दे रहा था। हमारी कार रुकते ही वह सशंकित नजरों से हमारी ओर देखने लगा। वह एक कद्दावर, करीब छः फुट ऊंचा व्यक्ति था। वह काले रंग की एक तंग पतलून और एक काली टाईट टी-शर्ट पहने हुए था। टाईट कपड़ों के कारण उसकी उभरी हुई मांशपेशियां साफ साफ दिखाई दे रही थीं।
उसका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उसे देख कर कोई भी सामान इन्सान खौफजदा हो जाय। जहां मैं भयभीत थी वहीं घनश्याम मुस्कुरा रहा था। घनश्याम कार से उतरा और मुझे भी उतरने के लिए कहने लगा लेकिन मैं तो जैसे कार की सीट पर जम सी गई थी।
"उतर नीचे।" घनश्याम मुझे घूरते हुए बोला। फिर भी मेरे शरीर में कोई हरकत नहीं हुई। घनश्याम से रहा नहीं गया और उसने मेरी ओर का दरवाजा खोलकर मुझे कार से बाहर खींच लिया। मैं उसके झटके से गिरने को हो रही थी लेकिन घनश्याम की मजबूत पकड़ के कारण गिरने से बची।
"क्या करते हो? अभी मैं गिर पड़ती।" मैं गुस्से से बोली।
"मेरे रहते कैसे गिरोगी? वैसे भी एक बात बोलूं?" वह शरारती लहजे में बोला।
"बोलो।"
"वैसे तुम गिर तो चुकी हो।" उसकी बात सुनकर मेरी जुबान में ताला लग गया। कितना कमीना है यह। उसकी बात का अर्थ समझ कर मन ही मन गुस्सा आने लगा कि खुद लौंडिया बाजी करेंगे तो ठीक, हम लौंडा बाजी करें तो गिरी हुई। हरामी कहीं का।
"सच बोला। मगर गिरा हुआ आदमी बोला।" मेरे मुंह से भी निकला।
"हा हा हा हा। तुम भी सच बोली।" वह हंसते हुए बोला और मुझे खींचता हुआ झोपड़ी की ओर बढ़ा।
"मानती हूं कि गलती मेरी है, लेकिन मेरी ग़लती की सजा इस तरह मुझे जलील करके तो मत दो।" मैं गिड़गिड़ाने लगी।
"जलील तो हो चुकी हो तुम। अब कोई नाटक मत करना। भला आदमी है। वह खुश होगा तो हम सब खुश रहेंगे।" वह मुझे चेतावनी देते हुए बोला।
"भला आदमी? खाक भला आदमी। भला आदमी इस तरह यहां वहां औरतखोरी नहीं करता है।" मैं बोली।
"औरतखोरी? तुम लड़कियां मर्दोंखोरी करो वह अच्छा है और हम मर्द औरतखोरी करें वह तुम्हें अस्वीकार्य है, यह तो तुम्हारा दोगलापन है। अब अपनी बकवास बंद करो। देखो हम गंजू के घर पहुंच गये हैं।" मैं ने देखा कि सचमुच हम गंजू के घर के सामने थे। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा कि आज किस मुसीबत में फंस गयी हूं। यहां से भाग निकलने का कोई मार्ग मुझे सूझ नहीं रहा था।इस बियाबान जंगल के बीच में भाग कर जाती भी तो निश्चित ही भटक कर किसी और मुसीबत में फंस जाती। सामने झोपड़ी के दरवाजे के बाहर एक लंबा चौड़ा, काला कलूटा, मुच्छड़, हब्शी टाईप, हट्टा-कट्टा, करीब तीस चालीस की उम्र का खूंखार सा दिखने वाला आदमी मुस्तैद खड़ा नजर आ रहा था। वह काफी चौकन्ना दिखाई दे रहा था। हमारी कार रुकते ही वह सशंकित नजरों से हमारी ओर देखने लगा। वह एक कद्दावर, करीब छः फुट ऊंचा व्यक्ति था। वह काले रंग की एक तंग पतलून और एक काली टाईट टी-शर्ट पहने हुए था। टाईट कपड़ों के कारण उसकी उभरी हुई मांशपेशियां साफ साफ दिखाई दे रही थीं।
उसका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उसे देख कर कोई भी सामान इन्सान खौफजदा हो जाय। जहां मैं भयभीत थी वहीं घनश्याम मुस्कुरा रहा था। घनश्याम कार से उतरा और मुझे भी उतरने के लिए कहने लगा लेकिन मैं तो जैसे कार की सीट पर जम सी गई थी।
"उतर नीचे।" घनश्याम मुझे घूरते हुए बोला। फिर भी मेरे शरीर में कोई हरकत नहीं हुई। घनश्याम से रहा नहीं गया और उसने मेरी ओर का दरवाजा खोलकर मुझे कार से बाहर खींच लिया। मैं उसके झटके से गिरने को हो रही थी लेकिन घनश्याम की मजबूत पकड़ के कारण गिरने से बची।
"क्या करते हो? अभी मैं गिर पड़ती।" मैं गुस्से से बोली।
"मेरे रहते कैसे गिरोगी? वैसे भी एक बात बोलूं?" वह शरारती लहजे में बोला।
"बोलो।"
"वैसे तुम गिर तो चुकी हो।" उसकी बात सुनकर मेरी जुबान में ताला लग गया। कितना कमीना है यह। उसकी बात का अर्थ समझ कर मन ही मन गुस्सा आने लगा कि खुद लौंडिया बाजी करेंगे तो ठीक, हम लौंडा बाजी करें तो गिरी हुई। हरामी कहीं का।
"सच बोला। मगर गिरा हुआ आदमी बोला।" मेरे मुंह से भी निकला।
"हा हा हा हा। तुम भी सच बोली।" वह हंसते हुए बोला और मुझे खींचता हुआ झोपड़ी की ओर बढ़ा।


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