10-12-2024, 03:26 PM
शेर सिंह बोला- और मैं?
मैंने कहा- आपको तो पहली बार देख कर ही मेरे दिल में घंटी बज गई थी, मैंने तभी सोच लिया था कि आपसे मिलने का अगर जुगाड़ हो जाए तो मज़ा आ जाए।
शेर सिंह बोला- अच्छा, औरतें भी ऐसा सोचती हैं।
मैंने कहा- क्यों आपकी बीवी आपसे ऐसे खुल कर बात नहीं करती?
वो बोला- बात अजी कहाँ, आपने देख ही ली शादी में मोटी भैंस!
और फिर उसने नीचे झुक कर मेरे होंटों को चूमा तो मैंने भी अपना सर ऊपर उठा कर उसके होंठ चूम लिए।
“आह, मज़ा आ गया सविता तुम्हारी चूत मार कर … क्या लाजवाब औरत हो। एक नंबर की छिनाल हो साली, क्या मज़े ले कर चुदवाती हो, मगर मुझे ऐसी ही औरत पसंद है। तुम्हारे जैसी कुतिया।”
मैं मुस्कुरा दी।
वैसे मेरे पति मुझे 6-7 मिनट तक चोदते हैं, तब जा कर मेरा पानी गिरता है, मगर शेर सिंह के खुरदुरे लंड ने मेरा 3-4 मिनट में ही पानी गिरा दिया।
मैंने शेर सिंह से कहा- शेर ज़ोर से मार यार, मैं झड़ने वाली हूँ, चोद यार, और ज़ोर से चोद!
और उसने ऐसे जोरदार धक्के मारे कि मैं तो गोंद की तरह उसके जिस्म से चिपक गई और खुद ही उसके होंठों से होंठ जोड़ दिये। मेरे होंठ उसने अपने दाँतों से काट लिए और “ऊ…आहा” और मैं तृप्त हो गई, झड़ गई, मर ही गई।
सच में किसी लाश की तरह मैं नीचे को लुढ़क गई तो शेर सिंह ने अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया।
मैंने कहा- अरे आपने क्यों निकाल लिया, आप तो अपना करो न!
वो बोला- नहीं, अभी नहीं … जब तुम दोबारा पूरी हीट पर आओगी, फिर करूंगा।
और मेरे साथ लेट कर मुझसे बातें करने लगा। हमने बहुत सी बातें की, 4 दिन पहले जिस आदमी को मैं जानती तक नहीं थी, उस आदमी के साथ मैं बेल की तरह नंगी लेटी हुई बातें चोद रही थी। फिर वो बोला- 6 बजने वाले हैं, घर जाने का वक़्त हो गया.
मैंने कहा- तो फिर एक बार और करते हैं और चलते हैं।
मैंने अपनी टाँगे फिर से फैला दी।
वो बोला- नहीं कुतिया की चूत किसी कुतिया की तरह ही मारूँगा।
मैं उठी और घुटनों के बल हो गई, उसने पीछे से आकर मेरी चूत पर अपना लंड रखा और अंदर डाल दिया, थोड़ा सा ढीला था मगर अंदर घुस गया।
उसके बाद उसने फिर से मेरी चुदाई शुरू की। इस बार वो कुछ ज़्यादा ही वहशी हो रहा था। उसकी जांघें ज़ोर से आकर मेरी गांड पर लगती तो मेरा सारा जिस्म झूल जाता। हर धक्के के साथ ‘ठप्प ठप्प ठप्प…’ की आवाज़ आ रही थी।
मैं थोड़ा सा आगे को हुई तो उसने मेरे सर के बाल पकड़ लिए। मेरे पति और चाचाजी भी कई बार चुदाई में मेरे बाल खींच देते थे, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं थी।
इस बार गेम बहुत लंबी और जोरदार चली। मुझे भी झड़ने में करीब करीब 10 मिनट लग गए, मगर वो तो और भी लंबा खेला। दो बार झड़ने के बाद मैं पूरी तरह से शांत, ठंडी हो चुकी थी।
और इसके बाद के 5 मिनट ने मेरी बस करवा दी। मैं बिल्कुल सूखी थी, और वो इसी सूखेपन में भी मुझे उसी ज़ोर से चोद रहा था। तड़पा तड़पा कर उसने मुझे बेहाल कर दिया, मैं अपनी चूत में होने वाले दर्द से परेशान थी, मैं तो बस “उम्म्ह… अहह… हय… याह…” ही कर पा रही थी, और मेरी तकलीफ को वो समझ रहा था कि मुझे मज़ा आ रहा है, और वो और रगड़ रगड़ कर अपना लंड मेरी चूत में पेल रहा था।
शेर सिंह मेरे पति और चाचा दोनों से तगड़ा निकला और ऊपर से उसका ये खुरदुरा सा लंड … हर औरत चाहती है कि उसका मर्द चुदाई में तगड़ा हो, पर अगर कुछ ज़्यादा ही तगड़ा हो तो औरत की माँ चोद कर रख देता है, यही हाल मेरा था, घोड़ी बनी मैं थक चुकी थी, मैंने अपना सर ज़मीन से टिका लिया और मेरी गांड ऊपर हवा में उठी हुई थी, वो मेरी पीठ और मेरे कूल्हों को अपने हाथों से मसल रहा था, दबा दबा के दर्द करने लगा दिया था और वो किसी ज़ालिम सवार की तरह मुझे दौड़ाए जा रहा था।
मगर अब मुझे उसके लंड के कडकपन और उसकी स्पीड से लग रहा था कि वो झड़ने वाला है।
और फिर आखिर उसने पूछा- मेरा होने वाला है, अंदर ही गिरा दूँ?
मैंने कहा- हाँ आने दो, कोई दिक्कत नहीं!
और फिर उसने दोनों तरफ से मेरे कूल्हे पकड़ कर बहुत ज़ोर से दबाये और अपना गरम माल मेरे अंदर गिराया। गरम, गाढ़ा लेस!
मेरी पूरी चूत भर गई, और अब तो उसका लंड भी बड़ी पिचक पिचक की आवाज़ के साथ मेरे अंदर आ जा रहा था।
पूरी तरह खाली होने के बाद शेर सिंह मेरे साथ ही लेट गया।
वो लेटा तो मैंने उठ कर उसका लौड़ा पकड़ा और अपने मुँह में लेकर चूसा और अपनी जीभ से चाटने लगी।
शेर सिंह बोला- अरे मेरी जान, क्यों मुझे अपना गुलाम बना रही हो!
मैंने पूछा- क्यों, ऐसे कैसे तुम मेरे गुलाम बन जाओगे?
वो बोला- आज तक मेरी बीवी ने कभी मेरा लंड नहीं चूसा, और माल चाटने का तो मतलब ही नहीं, अब अगर तुम मुझे इतना प्यार करोगी, तो मैं कैसे तुम्हें भूल पाऊँगा। शादी के बाद तो तुम चली जाओगी, फिर ये सब प्रेम प्यार मुझसे कौन करेगा?
मैंने उसके लंड के छेद को अपनी जीभ की नोक से चाटते हुये कहा- तो ऐसा करते हैं, जब तक मैं यहाँ हूँ, वादा करो, तब तक तुम मुझे रोज़ इसी तरह भरपूर संभोग सुख दोगे। रोज़ मुझे चोदोगे और रोज़ मैं इसी तरह मैं तुम्हारा माल पीऊँगी।
वो खुश हो गया और बोला- तो क्या तुम सारा माल पी सकती हो?
मैंने कहा- हाँ, तुम चाहो तो झड़ने से पहले अपना लंड मेरे मुँह में डालो और सारा माल मेरे मुँह में गिराओ, मैं सारा माल पी जाऊँगी, मुझे मर्द का गाढ़ा गरम वीर्य पीना बहुत अच्छा लगता है।
उसने खुश हो कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठ चूम गया, बोला- तू सच में कुतिया है सविता। बस तू हिम्मत रखना, जब जहां मौका मिलेगा, मैं तुम्हें तब तब वहाँ वहाँ चोदूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, आज दोपहर को मैं फिर तुमसे मिलना चाहूंगी।
वो कुछ सोच कर बोला- ठीक है, दोपहर बाद मेरे घर पर!
हम दोनों ने मुस्कुरा कर एक दूसरे के होंठ चूमें और फिर उठ कर अपने अपने कपड़े पहने और वापिस तायाजी के घर आ गए.
उस वक़्त सात बजने वाले थे। तायाजी ने सैर के बारे में पूछा, मैंने शेर सिंह और उसके खेतों की, नहर की बहुत तारीफ की, और कह दिया कि मैं तो रोज़ सुबह सैर करने जाया करूंगी।
उसके बाद अगले 6 दिन मैं और वहाँ रही और इन 6 दिन में मैंने शेर सिंह से खूब चुदवाया। उस मर्द के बच्चे ने भी मुझे अपना माल पिला पिला कर तृप्त कर दिया।
मैंने कहा- आपको तो पहली बार देख कर ही मेरे दिल में घंटी बज गई थी, मैंने तभी सोच लिया था कि आपसे मिलने का अगर जुगाड़ हो जाए तो मज़ा आ जाए।
शेर सिंह बोला- अच्छा, औरतें भी ऐसा सोचती हैं।
मैंने कहा- क्यों आपकी बीवी आपसे ऐसे खुल कर बात नहीं करती?
वो बोला- बात अजी कहाँ, आपने देख ही ली शादी में मोटी भैंस!
और फिर उसने नीचे झुक कर मेरे होंटों को चूमा तो मैंने भी अपना सर ऊपर उठा कर उसके होंठ चूम लिए।
“आह, मज़ा आ गया सविता तुम्हारी चूत मार कर … क्या लाजवाब औरत हो। एक नंबर की छिनाल हो साली, क्या मज़े ले कर चुदवाती हो, मगर मुझे ऐसी ही औरत पसंद है। तुम्हारे जैसी कुतिया।”
मैं मुस्कुरा दी।
वैसे मेरे पति मुझे 6-7 मिनट तक चोदते हैं, तब जा कर मेरा पानी गिरता है, मगर शेर सिंह के खुरदुरे लंड ने मेरा 3-4 मिनट में ही पानी गिरा दिया।
मैंने शेर सिंह से कहा- शेर ज़ोर से मार यार, मैं झड़ने वाली हूँ, चोद यार, और ज़ोर से चोद!
और उसने ऐसे जोरदार धक्के मारे कि मैं तो गोंद की तरह उसके जिस्म से चिपक गई और खुद ही उसके होंठों से होंठ जोड़ दिये। मेरे होंठ उसने अपने दाँतों से काट लिए और “ऊ…आहा” और मैं तृप्त हो गई, झड़ गई, मर ही गई।
सच में किसी लाश की तरह मैं नीचे को लुढ़क गई तो शेर सिंह ने अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया।
मैंने कहा- अरे आपने क्यों निकाल लिया, आप तो अपना करो न!
वो बोला- नहीं, अभी नहीं … जब तुम दोबारा पूरी हीट पर आओगी, फिर करूंगा।
और मेरे साथ लेट कर मुझसे बातें करने लगा। हमने बहुत सी बातें की, 4 दिन पहले जिस आदमी को मैं जानती तक नहीं थी, उस आदमी के साथ मैं बेल की तरह नंगी लेटी हुई बातें चोद रही थी। फिर वो बोला- 6 बजने वाले हैं, घर जाने का वक़्त हो गया.
मैंने कहा- तो फिर एक बार और करते हैं और चलते हैं।
मैंने अपनी टाँगे फिर से फैला दी।
वो बोला- नहीं कुतिया की चूत किसी कुतिया की तरह ही मारूँगा।
मैं उठी और घुटनों के बल हो गई, उसने पीछे से आकर मेरी चूत पर अपना लंड रखा और अंदर डाल दिया, थोड़ा सा ढीला था मगर अंदर घुस गया।
उसके बाद उसने फिर से मेरी चुदाई शुरू की। इस बार वो कुछ ज़्यादा ही वहशी हो रहा था। उसकी जांघें ज़ोर से आकर मेरी गांड पर लगती तो मेरा सारा जिस्म झूल जाता। हर धक्के के साथ ‘ठप्प ठप्प ठप्प…’ की आवाज़ आ रही थी।
मैं थोड़ा सा आगे को हुई तो उसने मेरे सर के बाल पकड़ लिए। मेरे पति और चाचाजी भी कई बार चुदाई में मेरे बाल खींच देते थे, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं थी।
इस बार गेम बहुत लंबी और जोरदार चली। मुझे भी झड़ने में करीब करीब 10 मिनट लग गए, मगर वो तो और भी लंबा खेला। दो बार झड़ने के बाद मैं पूरी तरह से शांत, ठंडी हो चुकी थी।
और इसके बाद के 5 मिनट ने मेरी बस करवा दी। मैं बिल्कुल सूखी थी, और वो इसी सूखेपन में भी मुझे उसी ज़ोर से चोद रहा था। तड़पा तड़पा कर उसने मुझे बेहाल कर दिया, मैं अपनी चूत में होने वाले दर्द से परेशान थी, मैं तो बस “उम्म्ह… अहह… हय… याह…” ही कर पा रही थी, और मेरी तकलीफ को वो समझ रहा था कि मुझे मज़ा आ रहा है, और वो और रगड़ रगड़ कर अपना लंड मेरी चूत में पेल रहा था।
शेर सिंह मेरे पति और चाचा दोनों से तगड़ा निकला और ऊपर से उसका ये खुरदुरा सा लंड … हर औरत चाहती है कि उसका मर्द चुदाई में तगड़ा हो, पर अगर कुछ ज़्यादा ही तगड़ा हो तो औरत की माँ चोद कर रख देता है, यही हाल मेरा था, घोड़ी बनी मैं थक चुकी थी, मैंने अपना सर ज़मीन से टिका लिया और मेरी गांड ऊपर हवा में उठी हुई थी, वो मेरी पीठ और मेरे कूल्हों को अपने हाथों से मसल रहा था, दबा दबा के दर्द करने लगा दिया था और वो किसी ज़ालिम सवार की तरह मुझे दौड़ाए जा रहा था।
मगर अब मुझे उसके लंड के कडकपन और उसकी स्पीड से लग रहा था कि वो झड़ने वाला है।
और फिर आखिर उसने पूछा- मेरा होने वाला है, अंदर ही गिरा दूँ?
मैंने कहा- हाँ आने दो, कोई दिक्कत नहीं!
और फिर उसने दोनों तरफ से मेरे कूल्हे पकड़ कर बहुत ज़ोर से दबाये और अपना गरम माल मेरे अंदर गिराया। गरम, गाढ़ा लेस!
मेरी पूरी चूत भर गई, और अब तो उसका लंड भी बड़ी पिचक पिचक की आवाज़ के साथ मेरे अंदर आ जा रहा था।
पूरी तरह खाली होने के बाद शेर सिंह मेरे साथ ही लेट गया।
वो लेटा तो मैंने उठ कर उसका लौड़ा पकड़ा और अपने मुँह में लेकर चूसा और अपनी जीभ से चाटने लगी।
शेर सिंह बोला- अरे मेरी जान, क्यों मुझे अपना गुलाम बना रही हो!
मैंने पूछा- क्यों, ऐसे कैसे तुम मेरे गुलाम बन जाओगे?
वो बोला- आज तक मेरी बीवी ने कभी मेरा लंड नहीं चूसा, और माल चाटने का तो मतलब ही नहीं, अब अगर तुम मुझे इतना प्यार करोगी, तो मैं कैसे तुम्हें भूल पाऊँगा। शादी के बाद तो तुम चली जाओगी, फिर ये सब प्रेम प्यार मुझसे कौन करेगा?
मैंने उसके लंड के छेद को अपनी जीभ की नोक से चाटते हुये कहा- तो ऐसा करते हैं, जब तक मैं यहाँ हूँ, वादा करो, तब तक तुम मुझे रोज़ इसी तरह भरपूर संभोग सुख दोगे। रोज़ मुझे चोदोगे और रोज़ मैं इसी तरह मैं तुम्हारा माल पीऊँगी।
वो खुश हो गया और बोला- तो क्या तुम सारा माल पी सकती हो?
मैंने कहा- हाँ, तुम चाहो तो झड़ने से पहले अपना लंड मेरे मुँह में डालो और सारा माल मेरे मुँह में गिराओ, मैं सारा माल पी जाऊँगी, मुझे मर्द का गाढ़ा गरम वीर्य पीना बहुत अच्छा लगता है।
उसने खुश हो कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठ चूम गया, बोला- तू सच में कुतिया है सविता। बस तू हिम्मत रखना, जब जहां मौका मिलेगा, मैं तुम्हें तब तब वहाँ वहाँ चोदूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, आज दोपहर को मैं फिर तुमसे मिलना चाहूंगी।
वो कुछ सोच कर बोला- ठीक है, दोपहर बाद मेरे घर पर!
हम दोनों ने मुस्कुरा कर एक दूसरे के होंठ चूमें और फिर उठ कर अपने अपने कपड़े पहने और वापिस तायाजी के घर आ गए.
उस वक़्त सात बजने वाले थे। तायाजी ने सैर के बारे में पूछा, मैंने शेर सिंह और उसके खेतों की, नहर की बहुत तारीफ की, और कह दिया कि मैं तो रोज़ सुबह सैर करने जाया करूंगी।
उसके बाद अगले 6 दिन मैं और वहाँ रही और इन 6 दिन में मैंने शेर सिंह से खूब चुदवाया। उस मर्द के बच्चे ने भी मुझे अपना माल पिला पिला कर तृप्त कर दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.