10-12-2024, 03:22 PM
खेतों के पास ही उसने एक बड़ा सा तालाब बना रखा था। वहीं पे बहुत से पेड़ों की झुरमट के पास एक छोटा सा कमरा बना हुआ था।
मैंने पूछा- शेर सिंह जी, यह कमरा किस लिए बनाया है?
वो बोले- इस कमरे में फसल पकने पर हमारे मजदूर रहते हैं। कभी कभी हम भी यहाँ आ जाते हैं।
मैंने पूछा- आप यहाँ क्या करते हैं?
शेर सिंह मुस्कुराया और बोला- अंदर जा कर देख लो।
मैंने अंदर झांक कर देखा, अंदर फर्श पर एक मोटा गद्दा बिछा था और कमरे में इधर उधर कुछ दारू की बोतलें, और बर्तन, एक गैस चूल्हा … मतलब ये कमरा सिर्फ कंजरखाने के लिए ही था।
मैं अंदर तो नहीं गई, मगर शेर की नज़रें मैंने देखी, जैसे वो कह रहा हो, चल अंदर चल तुझे भी जन्नत का नज़ारा दिखाऊँ।
मैं भी समझ चुकी थी, मैं आज यहीं पर चुदने वाली हूँ तो मैंने छोटा सा पैंतरा आज़माया- शेर सिंह जी, लगता है मेरे कपड़ों में कोई कीड़ा घुस गया है, मेरे अंदर सुर्र सुर्र सी हो रही है.
कहते हुये मैं थोड़ा सा उछली और अपनी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
शेर सिंह बोला- सविता जी, आप उस कमरे में जाकर चेक कर लो।
यही तो मैं चाहती थी, मैं कमरे में गई और मैंने न दरवाजा बंद किया न कोई खिड़की बंद की, बस शेर सिंह से ज़रा सा अपना आप छुपा कर मैंने अपनी टी शर्ट उतार दी।
बेशक मैं दरवाजे की ओट में थी, मगर शेर सिंह थोड़ा सा आगे चल कर मुझे देख सकता था, और वही उसने किया, वो थोड़ा सा आगे बढ़ा और मैं उसके सामने अपनी टाइट लोअर में ऊपर से बिल्कुल नंगी, अपनी टी शर्ट हाथ में लिए खड़ी थी।
मैंने चोर आँख से देख लिया कि शेर सिंह मुझे नंगी देख लिया है, मगर मैं उसकी मौजूदगी से अंजान रही और अपनी टी शर्ट को उलट पलट कर, झाड़ कर देखने लगी, जैसे सच में उसमें कोई कीड़ा हो।
शेर सिंह और आगे चला, दरवाजे से आगे बढ़ा, तो दूसरी दीवार की खिड़की के सामने आया, वहाँ से उसने मुझे दूसरे एंगल से देखा।
तीसरी दीवार बंद थी तो मैंने सोचा कि अब वो चौथी दीवार की खिड़की से मुझे ज़रूर देखेगा।
तो मैंने अपना लोअर भी उतार दिया और दूसरी खिड़की की तरफ पीठ करके अपने कपड़े झाड़ने का नाटक करती रही।
वो दूसरी खिड़की के पास आया और उस खिड़की में से उसने मेरी पूरी नंगी पीठ, गांड जांघें सब देखी। उसके बाद वो बिल्कुल दरवाजे के सामने आ गया। मैंने सर उठा कर उसको देखा, और अपनी टी शर्ट से अपने बूब्स को ढकने की कोशिश की।
हम दोनों की नज़रें मिली, बहुत कुछ हमने एक क्षण में ही एक दूसरे से कह दिया। वो बिजली की गति से अंदर आया और आते ही मुझसे लिपट गया।
मैंने झूठा नाटक किया- अरे, अरे शेर सिंह जी, ये आप क्या कर रहे हैं?
मगर उसने मेरी बात की कोई परवाह नहीं की और मुझे अपनी मजबूत बाहों में जकड़ कर पहले मेरे माथे को एक बार चूमा और फिर सीधा मेरे होंठों को चूम लिया।
मैंने उसके चुंबन का कोई विरोध नहीं किया, तो उसने मुझे गोद में ही उठा लिया और लेजा कर उस गद्दे पर लेटा दिया और खुद जाकर मेरे पैरों के पास बैठ गया। उसने मेरे पैर से मेरे जूते निकाले और मेरे पाँव को चूमा, मेरे पाँव चूमते चूमते वो ऊपर तक आया, और घुटने, जांघ से होते हुये, ऊपर तक आया और मेरे दोनों गाल, मेरी पलकें, मेरा माथा और होंठ सब जगह चूमा।
मैं बिल्कुल नंगी अपनी आँखें बंद किये लेटी थी; मेरी तरफ से उसको पूर्ण समर्पण था कि यार जैसे चाहे जो चाहे कर ले।
वो उठ कर खड़ा हुआ और फिर उसने अपने कपड़े जूते उतारे, लोअर उतारते ही उसका मोटा लंबा काला और बदशक्ल सा लंड मेरे सामने आया जो काफी तनाव में आ चुका था, मगर अभी तक उसने अपना सर पूरी तरह ऊपर को नहीं उठाया था।
शेर सिंह मेरी टाँगों के बीच में आया और उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा। मैं उसकी आँखों में देख रही थी!
और अगले ही पल एक मोटा खुरदुरा सा लंड मेरी चूत में घुसा।
जब दो चार बार अंदर बाहर हुआ तो मुझे पता चला कि ये लंड यूं ही बेवजह से नसों से भरा, खुरदुरा, भद्दा सा नहीं है। कभी कभी मेरे पति डोटेड कोंडोम पहन कर मेरी चुदाई करते, तो कोंडोम पर जो उभरे हुया डोट्स या दाने होते, वो जब चूत के अंदर रगड़ते तो मुझे बड़ा मज़ा आता, बड़ी खुजली सी मिटती उससे।
मगर ये तो रेडीमेड रिब्स और डोट्स वाला लंड था, बिना कोंडोम के!
मेरी चूत के अंदर उसने खलबली मचा दी। क्या रगड़ा साले ने मुझे।
मैंने भी अपनी टाँगें ऊपर हवा में उठा ली और अपनी बांहें उसके गले में डाल दी। पुराना फौजी, गाँव का आदमी, कसरती, ताकतवर, क्या कुछ नहीं था उसके जिस्म में … ऊपर से एक तगड़ा लंड। दो मिनट की चुदाई ने ही उसने मुझे पेल के रख दिया और उसका खुरदुरा लंड तो मेरी चूत को पानी पे पानी छोड़ने पर मजबूर कर रहा था, उसके हर एक धक्के से मैं निहाल हुई जाती थी।
जब भी उसका लंड मेरी चूत के अंदर जाता या बाहर आता, न जाने कितनी तरह की खुजली और गुदगुदी करता जाता। मैं खुद भी अपनी कमर को नीचे लेटी लेटी हिला रही थी।
जब वो लंड मेरे अंदर डालता तो मैं भी अपनी चूत ऊपर को उठा कर उसको अपने अंदर लेती और जब वो बाहर निकलता तो मैं अपनी चूत को सिकोड़ लेती, भींच लेती जिससे उसका लंड अटक कर रुक कर, मेरी चूत रगड़ खाकर बाहर निकलता।
शेर सिंह बोला- ऐसा लग रहा है जैसे आप मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूस रही हो।
मैंने कहा- ये भी तो एक मुँह ही है, पर इतना ज़रूर है आप जैसा खुरदुरा और सख्त लंड मैंने आज तक नहीं देखा।
शेर सिंह बोला- तो इसका मतलब यह है कि तुमने और भी बहुत से लोगों से चुदवाया है?
मैंने कहा- बहुत से तो नहीं, पर कुछ खास दोस्तों से, जिनको देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई।
मैंने पूछा- शेर सिंह जी, यह कमरा किस लिए बनाया है?
वो बोले- इस कमरे में फसल पकने पर हमारे मजदूर रहते हैं। कभी कभी हम भी यहाँ आ जाते हैं।
मैंने पूछा- आप यहाँ क्या करते हैं?
शेर सिंह मुस्कुराया और बोला- अंदर जा कर देख लो।
मैंने अंदर झांक कर देखा, अंदर फर्श पर एक मोटा गद्दा बिछा था और कमरे में इधर उधर कुछ दारू की बोतलें, और बर्तन, एक गैस चूल्हा … मतलब ये कमरा सिर्फ कंजरखाने के लिए ही था।
मैं अंदर तो नहीं गई, मगर शेर की नज़रें मैंने देखी, जैसे वो कह रहा हो, चल अंदर चल तुझे भी जन्नत का नज़ारा दिखाऊँ।
मैं भी समझ चुकी थी, मैं आज यहीं पर चुदने वाली हूँ तो मैंने छोटा सा पैंतरा आज़माया- शेर सिंह जी, लगता है मेरे कपड़ों में कोई कीड़ा घुस गया है, मेरे अंदर सुर्र सुर्र सी हो रही है.
कहते हुये मैं थोड़ा सा उछली और अपनी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
शेर सिंह बोला- सविता जी, आप उस कमरे में जाकर चेक कर लो।
यही तो मैं चाहती थी, मैं कमरे में गई और मैंने न दरवाजा बंद किया न कोई खिड़की बंद की, बस शेर सिंह से ज़रा सा अपना आप छुपा कर मैंने अपनी टी शर्ट उतार दी।
बेशक मैं दरवाजे की ओट में थी, मगर शेर सिंह थोड़ा सा आगे चल कर मुझे देख सकता था, और वही उसने किया, वो थोड़ा सा आगे बढ़ा और मैं उसके सामने अपनी टाइट लोअर में ऊपर से बिल्कुल नंगी, अपनी टी शर्ट हाथ में लिए खड़ी थी।
मैंने चोर आँख से देख लिया कि शेर सिंह मुझे नंगी देख लिया है, मगर मैं उसकी मौजूदगी से अंजान रही और अपनी टी शर्ट को उलट पलट कर, झाड़ कर देखने लगी, जैसे सच में उसमें कोई कीड़ा हो।
शेर सिंह और आगे चला, दरवाजे से आगे बढ़ा, तो दूसरी दीवार की खिड़की के सामने आया, वहाँ से उसने मुझे दूसरे एंगल से देखा।
तीसरी दीवार बंद थी तो मैंने सोचा कि अब वो चौथी दीवार की खिड़की से मुझे ज़रूर देखेगा।
तो मैंने अपना लोअर भी उतार दिया और दूसरी खिड़की की तरफ पीठ करके अपने कपड़े झाड़ने का नाटक करती रही।
वो दूसरी खिड़की के पास आया और उस खिड़की में से उसने मेरी पूरी नंगी पीठ, गांड जांघें सब देखी। उसके बाद वो बिल्कुल दरवाजे के सामने आ गया। मैंने सर उठा कर उसको देखा, और अपनी टी शर्ट से अपने बूब्स को ढकने की कोशिश की।
हम दोनों की नज़रें मिली, बहुत कुछ हमने एक क्षण में ही एक दूसरे से कह दिया। वो बिजली की गति से अंदर आया और आते ही मुझसे लिपट गया।
मैंने झूठा नाटक किया- अरे, अरे शेर सिंह जी, ये आप क्या कर रहे हैं?
मगर उसने मेरी बात की कोई परवाह नहीं की और मुझे अपनी मजबूत बाहों में जकड़ कर पहले मेरे माथे को एक बार चूमा और फिर सीधा मेरे होंठों को चूम लिया।
मैंने उसके चुंबन का कोई विरोध नहीं किया, तो उसने मुझे गोद में ही उठा लिया और लेजा कर उस गद्दे पर लेटा दिया और खुद जाकर मेरे पैरों के पास बैठ गया। उसने मेरे पैर से मेरे जूते निकाले और मेरे पाँव को चूमा, मेरे पाँव चूमते चूमते वो ऊपर तक आया, और घुटने, जांघ से होते हुये, ऊपर तक आया और मेरे दोनों गाल, मेरी पलकें, मेरा माथा और होंठ सब जगह चूमा।
मैं बिल्कुल नंगी अपनी आँखें बंद किये लेटी थी; मेरी तरफ से उसको पूर्ण समर्पण था कि यार जैसे चाहे जो चाहे कर ले।
वो उठ कर खड़ा हुआ और फिर उसने अपने कपड़े जूते उतारे, लोअर उतारते ही उसका मोटा लंबा काला और बदशक्ल सा लंड मेरे सामने आया जो काफी तनाव में आ चुका था, मगर अभी तक उसने अपना सर पूरी तरह ऊपर को नहीं उठाया था।
शेर सिंह मेरी टाँगों के बीच में आया और उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा। मैं उसकी आँखों में देख रही थी!
और अगले ही पल एक मोटा खुरदुरा सा लंड मेरी चूत में घुसा।
जब दो चार बार अंदर बाहर हुआ तो मुझे पता चला कि ये लंड यूं ही बेवजह से नसों से भरा, खुरदुरा, भद्दा सा नहीं है। कभी कभी मेरे पति डोटेड कोंडोम पहन कर मेरी चुदाई करते, तो कोंडोम पर जो उभरे हुया डोट्स या दाने होते, वो जब चूत के अंदर रगड़ते तो मुझे बड़ा मज़ा आता, बड़ी खुजली सी मिटती उससे।
मगर ये तो रेडीमेड रिब्स और डोट्स वाला लंड था, बिना कोंडोम के!
मेरी चूत के अंदर उसने खलबली मचा दी। क्या रगड़ा साले ने मुझे।
मैंने भी अपनी टाँगें ऊपर हवा में उठा ली और अपनी बांहें उसके गले में डाल दी। पुराना फौजी, गाँव का आदमी, कसरती, ताकतवर, क्या कुछ नहीं था उसके जिस्म में … ऊपर से एक तगड़ा लंड। दो मिनट की चुदाई ने ही उसने मुझे पेल के रख दिया और उसका खुरदुरा लंड तो मेरी चूत को पानी पे पानी छोड़ने पर मजबूर कर रहा था, उसके हर एक धक्के से मैं निहाल हुई जाती थी।
जब भी उसका लंड मेरी चूत के अंदर जाता या बाहर आता, न जाने कितनी तरह की खुजली और गुदगुदी करता जाता। मैं खुद भी अपनी कमर को नीचे लेटी लेटी हिला रही थी।
जब वो लंड मेरे अंदर डालता तो मैं भी अपनी चूत ऊपर को उठा कर उसको अपने अंदर लेती और जब वो बाहर निकलता तो मैं अपनी चूत को सिकोड़ लेती, भींच लेती जिससे उसका लंड अटक कर रुक कर, मेरी चूत रगड़ खाकर बाहर निकलता।
शेर सिंह बोला- ऐसा लग रहा है जैसे आप मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूस रही हो।
मैंने कहा- ये भी तो एक मुँह ही है, पर इतना ज़रूर है आप जैसा खुरदुरा और सख्त लंड मैंने आज तक नहीं देखा।
शेर सिंह बोला- तो इसका मतलब यह है कि तुमने और भी बहुत से लोगों से चुदवाया है?
मैंने कहा- बहुत से तो नहीं, पर कुछ खास दोस्तों से, जिनको देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.