10-12-2024, 03:21 PM
उसने अपने गिलास से एक बड़ा घूंट भरा और बोला- बूब्स?
मैंने कहा- बूब्स…
और अपने मम्मों की तरफ अपनी उंगली से इशारा किया।
अब वो मेरे मम्मों को घूरने लगा। मैंने भी अपने कंधे से साड़ी का ब्रोच हटा दिया।
वो चुप था, शायद कुछ सोच रहा था। फिर बोला- शहर में आप सुबह कितने बजे उठती हैं?
मैंने कहा- सुबह 6 बजे … और उठ कर सबसे पहले सैर करने जाती हूँ।
वो बोला- आप भी सुबह की सैर करती हैं।
मैंने कहा- हाँ खुद को फिट रखने के लिए।
वो बोला- लो, मैं भी तो रोज़ सुबह 4 बजे सैर करने जाता हूँ, अगर आप चाहें तो सुबह चल सकती हैं, यहाँ पास में ही एक जंगल भी है, एक नहर भी है, मैं आपको सब दिखा दूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, सुबह मिलते हैं।
मैंने अपना गिलास खत्म किया और वहीं पर रख दिया।
मैं आगे थी और वो मेरे पीछे … सीडियों में अंधेरा सा था, तो वहाँ मेरी साड़ी मेरे पाँव में उलझी और जैसे ही मेरा संतुलन बिगड़ा, शेर सिंह ने अपना हाथ मेरी कमर में डाल कर मुझे संभाल लिया। मेरी साड़ी का पल्लू भी सरक गया और मेरे ब्लाउज़ से मेरे 36 साइज़ के उन्नत मम्में जैसे उछल कर मेरे ब्लाउज़ से बाहर आ गए हों। उसने बड़ी हसरत से मेरे मम्मों को देखा और मुझसे कहा- संभाल कर सविता जी।
मैं सीधी हो गई, मैंने अपना आँचल भी ठीक कर लिया, मगर शेर सिंह का हाथ मेरी नाभि पर ही था, और वो वैसे ही मुझे सारी सीढ़ियाँ उतार कर लाया। मैंने भी उसे नहीं कहा कि हाथ हटा लो। जब सीढ़ियाँ उतर गई तब मैंने कहा- शेर सिंह जी, सीढ़ियाँ खत्म अब तो हाथ हटा लो।
वो थोड़ा सा सकपकाया और उसने अपना हाथ हटा लिया।
फिर हम ताऊ जी के पास गए और शेर सिंह ने ताऊ जी से कहा कि बहू सुबह सैर को जाना पसंद करती है। तो ताऊ जी ने शेर सिंह की ही ड्यूटी लगा दी कि सुबह को बहू को सैर करवा लाये। उसके बाद मैं चंदा के पास चली गई। अब मैं सोच रही थी कि कुछ भी हो जाए, सुबह मैंने शेर सिंह को दे देनी है। वो ना करे तो भी एक बार उसको सीधी ऑफर दूँगी।
रात को चंदा के साथ सो गई, सुबह करीब चार बजे चंदा ने मुझे जगाया कि भाभी सैर को जाना है तो उठ जाओ।
अभी तो मेरी नींद भी पूरी नहीं हुई थी और रात का खुमार भी था, मगर जब शेर सिंह का ख्याल आया तो मैं उठ गई, हाथ मुँह धोकर एक सफ़ेद टी शर्ट और लोअर पहन कर मैं चल पड़ी।
ताऊ जी के घर के पास ही शेर सिंह का घर था। जब मैं उसके घर के सामने गई तो वो आँगन में ही कसरत कर रहा था; मैंने उससे पूछा- अरे आप इतनी जल्दी जाग गए और कसरत भी शुरू कर दी?
उस वक़्त उसने एक लंगोट पहना था और उसका पसीने से भीगा कसरती बदन देख कर मेरा उससे लिपट जाने को दिल किया।
वो बोला- जी रात दो बजे वापिस आया, फिर सोचा, अब दो घंटे के लिए क्या सोना तो पहले दौड़ कर आया, फिर कसरत करने लगा।
उसने मुझे एक कुर्सी पर बैठाया और अंदर जा कर कपड़े पहन कर आ गया।
अभी अंधेरा ही था, हम दोनों गाँव से बाहर की ओर चल पड़े। कुछ दूर जाने पर बीहड़ सा आ गया। फिर हम चल कर नहर पर पहुंचे। थोड़ी थोड़ी रोशनी सी हो गई थी। नहर का एक किनारा थोड़ा सा कच्चा छोड़ा गया था। जहां से लोग उस नहर में उतर सकें और नहा धो सकें, अपने मवेशियों को पानी पिला सकें।
नहर के आस पास बहुत घने पेड़ थे, हल्की ठंडी ठंडी हवा चल रही थी, मौसम बहुत सुहावना था, मुझे तो मस्ती चढ़ रही थी।
वहीं पर एक पीपल के पेड़ के पास मैं जा कर बैठ गई।
शेर सिंह बोला- अगर आपको ऐतराज न हो तो मैं नहा लूँ?
मैंने कहा- जी बिल्कुल … शौक से नहाइये।
उसने अपने कपड़े उतारे और सिर्फ एक छोटी से लंगोटी पहने वो पानी में उतर गया।
सांवला बदन, पतला मगर बलिष्ठ, मांसपेशी वाला मजबूत मर्द। मैं सोच रही थी, ये लंगोटी भी क्यों पहन रखी है, यार इसे भी उतार दे और अपना मस्त लंड दिखा दे इस प्यासी औरत को।
वो बांका मर्द खूब मल मल कर नहाया खूब पानी में तैरा, कभी इधर को तैर जाए कभी उधर को।
मैंने पूछा- ऐसे खुले पानी में नहाने का अपना ही मज़ा है।
वो बोला- आप भी आ जाओ।
मैंने कहाँ- अरे नहीं, कोई आ गया तो?
उसने बहुत कहा मगर मैं नहीं मानी।
फिर मुझे टट्टी का ज़ोर पड़ने लगा। वैसे भी पिछले दो तीन दिनो से मैं कुछ ज़्यादा ही खा रही थी। मैंने शेर सिंह से कहा- शेर सिंह जी, मुझे तो ज़ोर पड़ रहा है पेट में… कहाँ जाऊँ?
वो बोला- अरे सविता जी, कहीं भी बैठ जाओ, यहाँ कौन आता जाता है।
मैंने कहा- पर बाद में धोनी भी तो है।
वो बोला- उसकी क्या दिक्कत है, पहले आप यहीं रेत से साफ कर लो, फिर पानी से धो लेना।
मैंने आस पास देखा और सामने ही एक झाड़ी सी के पीछे गई, पर मैंने पहले खड़े हो कर अपनी लोअर नीचे खिसकाई, ताकि दूर से शेर सिंह को मेरे नंगी होने का एहसास हो जाए। जब मैं फ्री हो गई तो पहले मैं अपने हाथ में ढेर सारी रेत लेकर अपनी गांड साफ की और फिर खड़ी होकर अपनी लोअर ऊपर की।
इस बार मैंने देखा के शेर सिंह ने बड़े गौर से मेरी गांड को देखा।
मेरे लिए इतना भी बहुत था कि ये जो देख रहा है, मेरे चक्कर में आ जाएगा।
फिर मैं धोने के लिए वहाँ जाकर बैठ गई जहां पानी उथला सा था और शेर सिंह से मैं ज़्यादा दूर भी नहीं थी। मैंने अपनी लोअर फिर से नीचे की और अपनी गांड शेर सिंह की तरफ करके बैठ गई, हमारे बीच कोई झाड़ी नहीं थी तो वो अच्छे से मेरे को देख सकता था, और देख रहा था।
मैंने बड़े अच्छे से अपनी गांड धोई, और कुछ ज़्यादा ही धोई देर तक समय लगा कर ताकि वो और अच्छे से देख ले।
फिर मैं उठी, अपनी लोअर ऊपर किया और जब पलटी तो शेर सिंह ने भी मुँह घुमा लिया, सिर्फ दिखावे को कि उसने मेरी गांड नहीं देखी।
वो पानी से बाहर आकर खड़ा था और उसकी लंगोट में उसका लंड अपना आकार ले रहा था।
मेरे दिल में इच्छा हुई कि इससे कहूँ कि ‘शेर सिंह अपना लंड दिखाना…’ पर मैं ऐसे नहीं कह सकती थी।
पर इतना ज़रूर था कि उसके लंड की शेप देख कर मैंने सोच लिया था कि मैं इसके लंड से अपनी प्यास ज़रूर बुझाऊँगी।
नहा कर शेर सिंह पेड़ की ओट में गया मगर ओट भी उसने बस इतनी सी ली कि वो थोड़ा सा छुप सके। जब उसने अपना लंगोट खोला तो उसका पूरा लंड मैंने देखा। थोड़ी सी झांट, मगर एक लंबा लंड, जिस पर नसें सी उभरी हुई थी।
मेरी तो लार टपक पड़ी … अरे यार क्या मस्त लंड है इसका तो!
मगर मैं भी जानती थी कि जैसे मैंने बहाने से इसे अपनी गांड दिखाई थी, वैसे ही इसने मुझे अपना लंड दिखाया है।
मतलब साफ है के आग दोनों तरफ है बराबर लगी हुई।
वो अपना ट्रैक सूट पहन कर आ गया, उसका लंगोट उसके हाथ में था, मतलब लोअर ने नीचे वो नंगा था और इधर अपने लोअर के नीचे मैं नंगी थी।
दोनों के मन में यही चल रहा था कि पहले बात कौन शुरू करे!
इतना तो तय था कि आज नहीं तो कल शेर सिंह से मैं चुदने वाली थी।
फिर शेर सिंह बोला- इधर मेरे खेत हैं, चलिये आपको वो भी दिखा लाता हूँ।
हम उसके खेतों की ओर चले गए।
मैंने कहा- बूब्स…
और अपने मम्मों की तरफ अपनी उंगली से इशारा किया।
अब वो मेरे मम्मों को घूरने लगा। मैंने भी अपने कंधे से साड़ी का ब्रोच हटा दिया।
वो चुप था, शायद कुछ सोच रहा था। फिर बोला- शहर में आप सुबह कितने बजे उठती हैं?
मैंने कहा- सुबह 6 बजे … और उठ कर सबसे पहले सैर करने जाती हूँ।
वो बोला- आप भी सुबह की सैर करती हैं।
मैंने कहा- हाँ खुद को फिट रखने के लिए।
वो बोला- लो, मैं भी तो रोज़ सुबह 4 बजे सैर करने जाता हूँ, अगर आप चाहें तो सुबह चल सकती हैं, यहाँ पास में ही एक जंगल भी है, एक नहर भी है, मैं आपको सब दिखा दूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, सुबह मिलते हैं।
मैंने अपना गिलास खत्म किया और वहीं पर रख दिया।
मैं आगे थी और वो मेरे पीछे … सीडियों में अंधेरा सा था, तो वहाँ मेरी साड़ी मेरे पाँव में उलझी और जैसे ही मेरा संतुलन बिगड़ा, शेर सिंह ने अपना हाथ मेरी कमर में डाल कर मुझे संभाल लिया। मेरी साड़ी का पल्लू भी सरक गया और मेरे ब्लाउज़ से मेरे 36 साइज़ के उन्नत मम्में जैसे उछल कर मेरे ब्लाउज़ से बाहर आ गए हों। उसने बड़ी हसरत से मेरे मम्मों को देखा और मुझसे कहा- संभाल कर सविता जी।
मैं सीधी हो गई, मैंने अपना आँचल भी ठीक कर लिया, मगर शेर सिंह का हाथ मेरी नाभि पर ही था, और वो वैसे ही मुझे सारी सीढ़ियाँ उतार कर लाया। मैंने भी उसे नहीं कहा कि हाथ हटा लो। जब सीढ़ियाँ उतर गई तब मैंने कहा- शेर सिंह जी, सीढ़ियाँ खत्म अब तो हाथ हटा लो।
वो थोड़ा सा सकपकाया और उसने अपना हाथ हटा लिया।
फिर हम ताऊ जी के पास गए और शेर सिंह ने ताऊ जी से कहा कि बहू सुबह सैर को जाना पसंद करती है। तो ताऊ जी ने शेर सिंह की ही ड्यूटी लगा दी कि सुबह को बहू को सैर करवा लाये। उसके बाद मैं चंदा के पास चली गई। अब मैं सोच रही थी कि कुछ भी हो जाए, सुबह मैंने शेर सिंह को दे देनी है। वो ना करे तो भी एक बार उसको सीधी ऑफर दूँगी।
रात को चंदा के साथ सो गई, सुबह करीब चार बजे चंदा ने मुझे जगाया कि भाभी सैर को जाना है तो उठ जाओ।
अभी तो मेरी नींद भी पूरी नहीं हुई थी और रात का खुमार भी था, मगर जब शेर सिंह का ख्याल आया तो मैं उठ गई, हाथ मुँह धोकर एक सफ़ेद टी शर्ट और लोअर पहन कर मैं चल पड़ी।
ताऊ जी के घर के पास ही शेर सिंह का घर था। जब मैं उसके घर के सामने गई तो वो आँगन में ही कसरत कर रहा था; मैंने उससे पूछा- अरे आप इतनी जल्दी जाग गए और कसरत भी शुरू कर दी?
उस वक़्त उसने एक लंगोट पहना था और उसका पसीने से भीगा कसरती बदन देख कर मेरा उससे लिपट जाने को दिल किया।
वो बोला- जी रात दो बजे वापिस आया, फिर सोचा, अब दो घंटे के लिए क्या सोना तो पहले दौड़ कर आया, फिर कसरत करने लगा।
उसने मुझे एक कुर्सी पर बैठाया और अंदर जा कर कपड़े पहन कर आ गया।
अभी अंधेरा ही था, हम दोनों गाँव से बाहर की ओर चल पड़े। कुछ दूर जाने पर बीहड़ सा आ गया। फिर हम चल कर नहर पर पहुंचे। थोड़ी थोड़ी रोशनी सी हो गई थी। नहर का एक किनारा थोड़ा सा कच्चा छोड़ा गया था। जहां से लोग उस नहर में उतर सकें और नहा धो सकें, अपने मवेशियों को पानी पिला सकें।
नहर के आस पास बहुत घने पेड़ थे, हल्की ठंडी ठंडी हवा चल रही थी, मौसम बहुत सुहावना था, मुझे तो मस्ती चढ़ रही थी।
वहीं पर एक पीपल के पेड़ के पास मैं जा कर बैठ गई।
शेर सिंह बोला- अगर आपको ऐतराज न हो तो मैं नहा लूँ?
मैंने कहा- जी बिल्कुल … शौक से नहाइये।
उसने अपने कपड़े उतारे और सिर्फ एक छोटी से लंगोटी पहने वो पानी में उतर गया।
सांवला बदन, पतला मगर बलिष्ठ, मांसपेशी वाला मजबूत मर्द। मैं सोच रही थी, ये लंगोटी भी क्यों पहन रखी है, यार इसे भी उतार दे और अपना मस्त लंड दिखा दे इस प्यासी औरत को।
वो बांका मर्द खूब मल मल कर नहाया खूब पानी में तैरा, कभी इधर को तैर जाए कभी उधर को।
मैंने पूछा- ऐसे खुले पानी में नहाने का अपना ही मज़ा है।
वो बोला- आप भी आ जाओ।
मैंने कहाँ- अरे नहीं, कोई आ गया तो?
उसने बहुत कहा मगर मैं नहीं मानी।
फिर मुझे टट्टी का ज़ोर पड़ने लगा। वैसे भी पिछले दो तीन दिनो से मैं कुछ ज़्यादा ही खा रही थी। मैंने शेर सिंह से कहा- शेर सिंह जी, मुझे तो ज़ोर पड़ रहा है पेट में… कहाँ जाऊँ?
वो बोला- अरे सविता जी, कहीं भी बैठ जाओ, यहाँ कौन आता जाता है।
मैंने कहा- पर बाद में धोनी भी तो है।
वो बोला- उसकी क्या दिक्कत है, पहले आप यहीं रेत से साफ कर लो, फिर पानी से धो लेना।
मैंने आस पास देखा और सामने ही एक झाड़ी सी के पीछे गई, पर मैंने पहले खड़े हो कर अपनी लोअर नीचे खिसकाई, ताकि दूर से शेर सिंह को मेरे नंगी होने का एहसास हो जाए। जब मैं फ्री हो गई तो पहले मैं अपने हाथ में ढेर सारी रेत लेकर अपनी गांड साफ की और फिर खड़ी होकर अपनी लोअर ऊपर की।
इस बार मैंने देखा के शेर सिंह ने बड़े गौर से मेरी गांड को देखा।
मेरे लिए इतना भी बहुत था कि ये जो देख रहा है, मेरे चक्कर में आ जाएगा।
फिर मैं धोने के लिए वहाँ जाकर बैठ गई जहां पानी उथला सा था और शेर सिंह से मैं ज़्यादा दूर भी नहीं थी। मैंने अपनी लोअर फिर से नीचे की और अपनी गांड शेर सिंह की तरफ करके बैठ गई, हमारे बीच कोई झाड़ी नहीं थी तो वो अच्छे से मेरे को देख सकता था, और देख रहा था।
मैंने बड़े अच्छे से अपनी गांड धोई, और कुछ ज़्यादा ही धोई देर तक समय लगा कर ताकि वो और अच्छे से देख ले।
फिर मैं उठी, अपनी लोअर ऊपर किया और जब पलटी तो शेर सिंह ने भी मुँह घुमा लिया, सिर्फ दिखावे को कि उसने मेरी गांड नहीं देखी।
वो पानी से बाहर आकर खड़ा था और उसकी लंगोट में उसका लंड अपना आकार ले रहा था।
मेरे दिल में इच्छा हुई कि इससे कहूँ कि ‘शेर सिंह अपना लंड दिखाना…’ पर मैं ऐसे नहीं कह सकती थी।
पर इतना ज़रूर था कि उसके लंड की शेप देख कर मैंने सोच लिया था कि मैं इसके लंड से अपनी प्यास ज़रूर बुझाऊँगी।
नहा कर शेर सिंह पेड़ की ओट में गया मगर ओट भी उसने बस इतनी सी ली कि वो थोड़ा सा छुप सके। जब उसने अपना लंगोट खोला तो उसका पूरा लंड मैंने देखा। थोड़ी सी झांट, मगर एक लंबा लंड, जिस पर नसें सी उभरी हुई थी।
मेरी तो लार टपक पड़ी … अरे यार क्या मस्त लंड है इसका तो!
मगर मैं भी जानती थी कि जैसे मैंने बहाने से इसे अपनी गांड दिखाई थी, वैसे ही इसने मुझे अपना लंड दिखाया है।
मतलब साफ है के आग दोनों तरफ है बराबर लगी हुई।
वो अपना ट्रैक सूट पहन कर आ गया, उसका लंगोट उसके हाथ में था, मतलब लोअर ने नीचे वो नंगा था और इधर अपने लोअर के नीचे मैं नंगी थी।
दोनों के मन में यही चल रहा था कि पहले बात कौन शुरू करे!
इतना तो तय था कि आज नहीं तो कल शेर सिंह से मैं चुदने वाली थी।
फिर शेर सिंह बोला- इधर मेरे खेत हैं, चलिये आपको वो भी दिखा लाता हूँ।
हम उसके खेतों की ओर चले गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.