10-12-2024, 03:20 PM
ताऊ जी ने बताया कि ये शेर सिंह उनके गाँव का सबसे बड़ा ज़मीनदार है, गाँव में सबसे ज़्यादा ज़मीन इसके पास है। बहुत नेक और शरीफ इंसान है।
मेरे दिल में आया कि कह दूँ, ताऊ जी मुझे तो शरीफ नहीं लगता … ये आपकी बहू के मम्में घूर रहा था, आप कहते हैं कि शरीफ है!
खैर शेर सिंह वहाँ बैठा भी मुझे देखता रहा, मुझे भी उसका देखना अच्छा लग रहा था, मेरा भी दिल कुछ कुछ मचल रहा था। एक दूसरे के लिए हरामजदगी हम दोनों के मन में थे और हमारी आँखों में झलक रही थी।
कुछ देर हम बातें करते रहे, मगर मैंने नोटिस किया कि शेर सिंह मेरा बदन घूर रहा था। कभी उसकी नज़र मेरे सपाट गोरे पेट पर होती, कभी मेरे सीने पर, कभी चेहरे पर। मतलब उसकी आँखों में मैं साफ पढ़ पा रही थी कि अगर मैं उसको मिल जाऊँ तो वो मुझे कच्चा चबा जाए। एक हवस, एक भूख उसकी आँखों में थी, मगर फिर भी वो बहुत शरीफ बन के दिखा रहा था।
शादी से एक दिन पहले सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो गए, घर में गहमा गहमी और बढ़ गई। उस रात जो और दोस्त रिश्तेदार शहर से आए थे, उनके लिए शराब का भी इंतजाम था, और नाच गाने का भी। शराब का सारा इंतजाम शेर सिंह ने किया था।
दिल तो मेरा भी था के एक आध पेग मुझे भी मिल जाता। मेरा भी नाचने का मन कर रहा था, मगर लेडीज़ का प्रोग्राम ही अलग था। और स्टेज पर जहां डीजे लगा था, सब नाच गाना हो रहा था, वहाँ सिर्फ मर्द ही जाकर नाच रहे थे।
मगर शेर सिंह तो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था।
जैसे ही मैं पीछे को घूमी, देखा … शेर सिंह वहाँ खड़ा था और उसके हाथ में दो गिलास थे दारू के।
पहले तो मैं डर गई कि कहीं इसने मेरी और चाचाजी की बातें तो नहीं सुन ली।
मगर मेरे चौंक जाने पर वो बोला- खम्मा घनी सविता जी, मैं आपको डराना नहीं चाहता था, मैं तो बस आपके लिए ये लेकर आया था।
उसके हाथ में शराब का गिलास था.
अब मैं सोचने लगी, गिलास लूँ या न लूँ!
पर वो बोला- आपके पति ने भेजा है, कहा है कि मैडम को एक दे आना।
अब तो कोई दिक्कत नहीं थी, मैंने उसके हाथ से गिलास ले लिया और दो घूंट पी लिए। मैं वहाँ एक छोटी दीवार पर बैठ गई, तो वो भी मेरे साथ ही आ कर बैठ गया। अपनी जेब से उसने तले हुये काजू निकाले और मेरी और बढ़ाए, मैंने काफी सारे उठा लिए और एक एक कर के खाने लगी, और साथ में धीरे धीरे अपना गिलास भी खाली करने लगी।
शेर सिंह मुझसे इधर उधर की बातें करने लगा, फिर मेरे बारे में पूछने लगा।
बंदा दिलचस्प लगा मुझे; मैं भी उस से मगज मारती रही। मैं सोच रही थी, ये बंदा मुद्दे पर क्यों नहीं आ रहा क्योंकि उसकी आँखें उसके दिल की बात साफ तौर पर बता रही थी, वो मेरे मम्मों को बार बार घूर रहा था।
फिर वो बोला- एक बात कहूँ सविता जी, आप न … बहुत खूबसूरत हो।
मैंने सोचा, अब आया मुद्दे पर; मैंने भी साथ की साथ तीर छोड़ा- अच्छा जी, आपको मुझमें क्या खूबसूरत लगा?
वो बोला- लो जी, आप तो सर से लेकर पाँव तक खूबसूरत हो.
मैंने कहा- फिर भी … ऐसा क्या है जो आपको सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगा मुझमें?
मैं सोच रही थी कि वो मेरे मम्मों के बारे में कहेगा लेकिन वो बोला- वो जो आप नीचे को करके साड़ी बांधती हो न … तो जो आपकी धुन्नी(नाभि) है, वो बड़ी शानदार लगती है।
मैंने कहा- धुन्नी? यह क्या होती है?
अब दारू का सुरूर तो उसको भी था, उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरी नाभि को हल्का सा छू कर बोला- ये धुन्नी!
उसके छूने से मुझे करंट सा लगा, उसको भी लगा होगा। मगर मैंने अपनी साड़ी का आँचल अपने पेट से हटा कर अपनी नाभि उसके सामने करके पूछा- अरे, इस नाभि में ऐसा क्या खास है, जो आपको अच्छा लगा?
वो एक तक मेरी नाभि को ही देखने लगा पर बोल कुछ नहीं पाया।
मैंने कहा- बहुत लोग कहते हैं मेरी नाभि सुंदर है पर मेरे पति को मेरे बूब्स पसंद हैं.
मैंने थोड़ी और बेशर्म हो कर कहा।
उसने अपने गिलास से एक बड़ा घूंट भरा और बोला- बूब्स?
मैंने कहा- बूब्स…
और अपने मम्मों की तरफ अपनी उंगली से इशारा किया।
अब वो मेरे मम्मों को घूरने लगा। मैंने भी अपने कंधे से साड़ी का ब्रोच हटा दिया।
वो चुप था, शायद कुछ सोच रहा था। फिर बोला- शहर में आप सुबह कितने बजे उठती हैं?
मैंने कहा- सुबह 6 बजे … और उठ कर सबसे पहले सैर करने जाती हूँ।
वो बोला- आप भी सुबह की सैर करती हैं।
मैंने कहा- हाँ खुद को फिट रखने के लिए।
वो बोला- लो, मैं भी तो रोज़ सुबह 4 बजे सैर करने जाता हूँ, अगर आप चाहें तो सुबह चल सकती हैं, यहाँ पास में ही एक जंगल भी है, एक नहर भी है, मैं आपको सब दिखा दूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, सुबह मिलते हैं।
मैंने अपना गिलास खत्म किया और वहीं पर रख दिया।
मैं आगे थी और वो मेरे पीछे … सीडियों में अंधेरा सा था, तो वहाँ मेरी साड़ी मेरे पाँव में उलझी और जैसे ही मेरा संतुलन बिगड़ा, शेर सिंह ने अपना हाथ मेरी कमर में डाल कर मुझे संभाल लिया। मेरी साड़ी का पल्लू भी सरक गया और मेरे ब्लाउज़ से मेरे 36 साइज़ के उन्नत मम्में जैसे उछल कर मेरे ब्लाउज़ से बाहर आ गए हों। उसने बड़ी हसरत से मेरे मम्मों को देखा और मुझसे कहा- संभाल कर सविता जी।
मैं सीधी हो गई, मैंने अपना आँचल भी ठीक कर लिया, मगर शेर सिंह का हाथ मेरी नाभि पर ही था, और वो वैसे ही मुझे सारी सीढ़ियाँ उतार कर लाया। मैंने भी उसे नहीं कहा कि हाथ हटा लो। जब सीढ़ियाँ उतर गई तब मैंने कहा- शेर सिंह जी, सीढ़ियाँ खत्म अब तो हाथ हटा लो।
वो थोड़ा सा सकपकाया और उसने अपना हाथ हटा लिया।
फिर हम ताऊ जी के पास गए और शेर सिंह ने ताऊ जी से कहा कि बहू सुबह सैर को जाना पसंद करती है। तो ताऊ जी ने शेर सिंह की ही ड्यूटी लगा दी कि सुबह को बहू को सैर करवा लाये। उसके बाद मैं चंदा के पास चली गई। अब मैं सोच रही थी कि कुछ भी हो जाए, सुबह मैंने शेर सिंह को दे देनी है। वो ना करे तो भी एक बार उसको सीधी ऑफर दूँगी।
रात को चंदा के साथ सो गई, सुबह करीब चार बजे चंदा ने मुझे जगाया कि भाभी सैर को जाना है तो उठ जाओ।
अभी तो मेरी नींद भी पूरी नहीं हुई थी और रात का खुमार भी था, मगर जब शेर सिंह का ख्याल आया तो मैं उठ गई, हाथ मुँह धोकर एक सफ़ेद टी शर्ट और लोअर पहन कर मैं चल पड़ी।
मेरे दिल में आया कि कह दूँ, ताऊ जी मुझे तो शरीफ नहीं लगता … ये आपकी बहू के मम्में घूर रहा था, आप कहते हैं कि शरीफ है!
खैर शेर सिंह वहाँ बैठा भी मुझे देखता रहा, मुझे भी उसका देखना अच्छा लग रहा था, मेरा भी दिल कुछ कुछ मचल रहा था। एक दूसरे के लिए हरामजदगी हम दोनों के मन में थे और हमारी आँखों में झलक रही थी।
कुछ देर हम बातें करते रहे, मगर मैंने नोटिस किया कि शेर सिंह मेरा बदन घूर रहा था। कभी उसकी नज़र मेरे सपाट गोरे पेट पर होती, कभी मेरे सीने पर, कभी चेहरे पर। मतलब उसकी आँखों में मैं साफ पढ़ पा रही थी कि अगर मैं उसको मिल जाऊँ तो वो मुझे कच्चा चबा जाए। एक हवस, एक भूख उसकी आँखों में थी, मगर फिर भी वो बहुत शरीफ बन के दिखा रहा था।
शादी से एक दिन पहले सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो गए, घर में गहमा गहमी और बढ़ गई। उस रात जो और दोस्त रिश्तेदार शहर से आए थे, उनके लिए शराब का भी इंतजाम था, और नाच गाने का भी। शराब का सारा इंतजाम शेर सिंह ने किया था।
दिल तो मेरा भी था के एक आध पेग मुझे भी मिल जाता। मेरा भी नाचने का मन कर रहा था, मगर लेडीज़ का प्रोग्राम ही अलग था। और स्टेज पर जहां डीजे लगा था, सब नाच गाना हो रहा था, वहाँ सिर्फ मर्द ही जाकर नाच रहे थे।
मगर शेर सिंह तो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था।
जैसे ही मैं पीछे को घूमी, देखा … शेर सिंह वहाँ खड़ा था और उसके हाथ में दो गिलास थे दारू के।
पहले तो मैं डर गई कि कहीं इसने मेरी और चाचाजी की बातें तो नहीं सुन ली।
मगर मेरे चौंक जाने पर वो बोला- खम्मा घनी सविता जी, मैं आपको डराना नहीं चाहता था, मैं तो बस आपके लिए ये लेकर आया था।
उसके हाथ में शराब का गिलास था.
अब मैं सोचने लगी, गिलास लूँ या न लूँ!
पर वो बोला- आपके पति ने भेजा है, कहा है कि मैडम को एक दे आना।
अब तो कोई दिक्कत नहीं थी, मैंने उसके हाथ से गिलास ले लिया और दो घूंट पी लिए। मैं वहाँ एक छोटी दीवार पर बैठ गई, तो वो भी मेरे साथ ही आ कर बैठ गया। अपनी जेब से उसने तले हुये काजू निकाले और मेरी और बढ़ाए, मैंने काफी सारे उठा लिए और एक एक कर के खाने लगी, और साथ में धीरे धीरे अपना गिलास भी खाली करने लगी।
शेर सिंह मुझसे इधर उधर की बातें करने लगा, फिर मेरे बारे में पूछने लगा।
बंदा दिलचस्प लगा मुझे; मैं भी उस से मगज मारती रही। मैं सोच रही थी, ये बंदा मुद्दे पर क्यों नहीं आ रहा क्योंकि उसकी आँखें उसके दिल की बात साफ तौर पर बता रही थी, वो मेरे मम्मों को बार बार घूर रहा था।
फिर वो बोला- एक बात कहूँ सविता जी, आप न … बहुत खूबसूरत हो।
मैंने सोचा, अब आया मुद्दे पर; मैंने भी साथ की साथ तीर छोड़ा- अच्छा जी, आपको मुझमें क्या खूबसूरत लगा?
वो बोला- लो जी, आप तो सर से लेकर पाँव तक खूबसूरत हो.
मैंने कहा- फिर भी … ऐसा क्या है जो आपको सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगा मुझमें?
मैं सोच रही थी कि वो मेरे मम्मों के बारे में कहेगा लेकिन वो बोला- वो जो आप नीचे को करके साड़ी बांधती हो न … तो जो आपकी धुन्नी(नाभि) है, वो बड़ी शानदार लगती है।
मैंने कहा- धुन्नी? यह क्या होती है?
अब दारू का सुरूर तो उसको भी था, उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरी नाभि को हल्का सा छू कर बोला- ये धुन्नी!
उसके छूने से मुझे करंट सा लगा, उसको भी लगा होगा। मगर मैंने अपनी साड़ी का आँचल अपने पेट से हटा कर अपनी नाभि उसके सामने करके पूछा- अरे, इस नाभि में ऐसा क्या खास है, जो आपको अच्छा लगा?
वो एक तक मेरी नाभि को ही देखने लगा पर बोल कुछ नहीं पाया।
मैंने कहा- बहुत लोग कहते हैं मेरी नाभि सुंदर है पर मेरे पति को मेरे बूब्स पसंद हैं.
मैंने थोड़ी और बेशर्म हो कर कहा।
उसने अपने गिलास से एक बड़ा घूंट भरा और बोला- बूब्स?
मैंने कहा- बूब्स…
और अपने मम्मों की तरफ अपनी उंगली से इशारा किया।
अब वो मेरे मम्मों को घूरने लगा। मैंने भी अपने कंधे से साड़ी का ब्रोच हटा दिया।
वो चुप था, शायद कुछ सोच रहा था। फिर बोला- शहर में आप सुबह कितने बजे उठती हैं?
मैंने कहा- सुबह 6 बजे … और उठ कर सबसे पहले सैर करने जाती हूँ।
वो बोला- आप भी सुबह की सैर करती हैं।
मैंने कहा- हाँ खुद को फिट रखने के लिए।
वो बोला- लो, मैं भी तो रोज़ सुबह 4 बजे सैर करने जाता हूँ, अगर आप चाहें तो सुबह चल सकती हैं, यहाँ पास में ही एक जंगल भी है, एक नहर भी है, मैं आपको सब दिखा दूँगा।
मैंने कहा- तो ठीक है, सुबह मिलते हैं।
मैंने अपना गिलास खत्म किया और वहीं पर रख दिया।
मैं आगे थी और वो मेरे पीछे … सीडियों में अंधेरा सा था, तो वहाँ मेरी साड़ी मेरे पाँव में उलझी और जैसे ही मेरा संतुलन बिगड़ा, शेर सिंह ने अपना हाथ मेरी कमर में डाल कर मुझे संभाल लिया। मेरी साड़ी का पल्लू भी सरक गया और मेरे ब्लाउज़ से मेरे 36 साइज़ के उन्नत मम्में जैसे उछल कर मेरे ब्लाउज़ से बाहर आ गए हों। उसने बड़ी हसरत से मेरे मम्मों को देखा और मुझसे कहा- संभाल कर सविता जी।
मैं सीधी हो गई, मैंने अपना आँचल भी ठीक कर लिया, मगर शेर सिंह का हाथ मेरी नाभि पर ही था, और वो वैसे ही मुझे सारी सीढ़ियाँ उतार कर लाया। मैंने भी उसे नहीं कहा कि हाथ हटा लो। जब सीढ़ियाँ उतर गई तब मैंने कहा- शेर सिंह जी, सीढ़ियाँ खत्म अब तो हाथ हटा लो।
वो थोड़ा सा सकपकाया और उसने अपना हाथ हटा लिया।
फिर हम ताऊ जी के पास गए और शेर सिंह ने ताऊ जी से कहा कि बहू सुबह सैर को जाना पसंद करती है। तो ताऊ जी ने शेर सिंह की ही ड्यूटी लगा दी कि सुबह को बहू को सैर करवा लाये। उसके बाद मैं चंदा के पास चली गई। अब मैं सोच रही थी कि कुछ भी हो जाए, सुबह मैंने शेर सिंह को दे देनी है। वो ना करे तो भी एक बार उसको सीधी ऑफर दूँगी।
रात को चंदा के साथ सो गई, सुबह करीब चार बजे चंदा ने मुझे जगाया कि भाभी सैर को जाना है तो उठ जाओ।
अभी तो मेरी नींद भी पूरी नहीं हुई थी और रात का खुमार भी था, मगर जब शेर सिंह का ख्याल आया तो मैं उठ गई, हाथ मुँह धोकर एक सफ़ेद टी शर्ट और लोअर पहन कर मैं चल पड़ी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.