10-12-2024, 03:18 PM
एक चीज़ और मैंने देखी के साड़ी नीचे बांधने से मैं ज़्यादा आरामदायक महसूस करती थी, बड़ा खुला खुला सा लगता था।
सारा दिन सफर करके हम रावत अंकल के गाँव पहुंचे, एक बहुत ही सुंदर राजस्थानी गाँव था वो! हम लोग शाम के करीब 7 बजे पहुंचे, तो घर के बाहर है बहुत बड़ा शामियाना लगा था, बिजली की रोशनी, रंग बिरंगी झंडियाँ। खूब चहल पहल वाला माहौल था। गंदे मंदे बच्चे हमारी गाड़ी के आस पास जमा हो गए।
हम दोनों गाड़ी से निकले और सीधे अंदर गए। अंदर शामियाने में रावत अंकल बैठे मिले, उनके साथ और भी बहुत से लोग बैठे थे, कुछ खड़े थे।
मेरे पति को देखते ही रावत अंकल खड़े हो गए- अरे आ गया, मेरा बेटा आ गया, आ हा हा!
और मेरे पति ने पहले उनके पाँव छूए और फिर गले लगे।
उनके बाद मैंने भी झुक कर रावत अंकल के पाँव छूये। मगर जब मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो मैंने आसपास नज़र मारी, सब मर्दों की निगाह मेरे जिस्म पर थी। जो पीछे खड़े थे, उन्होंने मेरी भरी हुई गांड का नज़ारा लिया होगा और जो सामने थे, उनकी निगाह मेरे सीने पर थे।
बेशक मैंने ब्रोच लगा कर अपने आँचल को गिरने से रोक रखा था, मगर जब भी औरत झुकती है, तो उसके बूब्स नीचे को लटक जाते हैं, और अगर मेरी साड़ी के पल्लू ने मेरे क्लीवेज को छुपा लिया था, मगर फिर भी मेरे झुकने से जो मेरे मम्मों की गोलाई थोड़ी सी बाहर को दिखी, उसे देख कर सब मर्दों की आँखों में चमक आ गई। देखने में तो सारे गाँव वाले ही लगते थे, सबके ज़्यादातर सफ़ेद लुंगी कुर्ते और रंग बिरंगी पगड़ियाँ बंधी थी। सबके सब बड़ी बड़ी मूँछों और दाढ़ी वाले थे।
मैं उठ कर सीधी हुई तो ताऊ जी ने मेरे सर पे हाथ रखा और वहीं पर खेल रहे एक लड़के को आवाज़ लगाई- ओ रामजस, जा भाभी को अम्मा के पास छोड़ कर आ!
मैं जैसे ही पलटी मेरी निगाह वहीं पे खड़े एक मर्द से टकराई। सिर्फ एक सेकंड की इस नजर मिलने में ही न जाने क्यों उसे देख कर मेरी आँखों में चमक आई, और मेरी आँखों की चमक देख कर उसके चेहरे का भी रंग सा बदला।
कोई बात कोई इशारा नहीं हुआ, मगर फिर जैसे कोई पैगाम एक दूसरे तक पहुँच गया।
मैं उनके बड़े सारे घर के अंदर गई। अंदर जनानखाना अलग से बना हुआ था। वहाँ पर सारी औरतें और लड़कियां थी। मेरे पीछे मेरे पति भी आ गए और वो भी मेरे साथ ही जनानखाने में गए, क्योंकि वो तो घर के ही बेटे थे तो वो बहुत से औरतों, लड़कियों से मिले, ताईजी से भी मुझे मिलवाया, और फिर जिस लड़की की शादी थी, उससे भी मिलवाया।
मेरी मुलाक़ात सबसे करवा कर वो चले गए।
जिस लड़की की शादी थी, चन्दा वो तो मेरे साथ ही चिपक गई। भाभी भाभी करती बस मुझे अपने साथ ही रखा उसने। चाय नाश्ता, खाना पीना, सब चलता रहा। ताई जी ने मुझे बिल्कुल अपनी बहू की तरह रखा, मुझे सारा दहेज का समान और बाकी सब रस्मों में शामिल किया।
रात को करीब 12 बजे हम सोये। अब जनानखाने में ही सोना था, तो मैंने एक पतली सी टी शर्ट और एक कैप्री पहन ली। ब्रा पेंटी की क्या ज़रूरत थी।
चंदा भी मेरे साथ ही लेटी।
शादी के बाद सुहागरात को लेकर उसके मन में बहुत सी शंकाएँ थी; उसने मुझसे पूछा- भाभी, मुझे न शादी के बाद वो सुहागरात से बहुत डर लगता है, सुनते हैं बहुत दर्द होता है।
मैंने पूछा- क्यों, तुमने पहले कभी कुछ नहीं किया?
वो बोली- भाभी यहाँ गाँव में … यहाँ तो सब से डर डर के चलना पड़ता है, हम तो किसी लड़के से बात भी नहीं करती।
मैंने कहा- तो तुझे क्या लगता है, सुहागरात को क्या होता है?
वो पहले तो शर्मा गई, फिर हंसी, और मुस्कुरा कर बोली- भाभी, आपकी तो शादी हो चुकी है, आपको तो सब पता है, आप तो रोज़ करती भी होंगी भैया से। अब मुझे क्या पता कि क्या होता है सुहाग रात को!
मैंने पूछा- फिर भी बता तो, तेरी सहेलियों की जिनकी शादी हो चुकी है, वो भी बताती होंगी कुछ?
वो बोली- भाभी, उनकी बताई बातों की वजह से ही तो मैं डरी हुई हूँ। वो तो सब बताती हैं कि सुहागरात को पति आता है और अपना वो बड़ा सा, पूरा ज़ोर लगा कर यहाँ अंदर डाल देता हैं। बहुत दर्द होता है, मगर पति कुछ नहीं सुनता और उसी दर्द में अंदर बाहर करता रहता है। मेरी एक सहेली तो डर और दर्द के मारे बेहोश ही हो गई थी। क्या सच में इतना दर्द होता है?
मुझे उस बेचारी भोली भाली कन्या के सेक्स ज्ञान पर बहुत तरस आया कि क्यों हमारे कॉलेजों में बच्चियों को सेक्स का ज्ञान नहीं दिया जाता। क्यों नहीं उन्हें समझाया जाता कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। क्यों आज भी बच्चियाँ कम ज्ञान की वजह से इन सब चीजों से डरती हैं।
मैंने उसे समझाया- देख चंदा, डरने की कोई वजह नहीं है। कोई भी काम जब पहली बार होता है, तो उसमें मुश्किल आती है, थोड़ी सी। मगर उस मुश्किल से घबराना नहीं चाहिए। अब तुमने आज तक अपनी उस में (कहते हुये मैंने उसकी चूत पर तो नहीं, पर जांघ पर हाथ लगाया) कोई चीज़ नहीं डाली। उसका सुराख छोटा है। और जो तेरा पति होगा, उसका वो जो होता है, वो इस सुराख से थोड़ा सा मोटा होता है.
कह कर मैंने अपनी उंगली और अंगूठे से एक गोल आकार बनाया, फिर मैंने कहा- अब अपनी उंगली इस में डालो!
जब चंदा ने शर्माते हुये अपनी उंगली उस में डाली, तो पहले तो थोड़ी से उंगली टाइट गई, मगर बाद में मैंने अपनी उंगली और अंगूठे को ढील छोड़ दिया और उसकी उंगली बड़े आराम से मेरी उंगली और अंगूठे के गोल आकार से अंदर बाहर होने लगी।
सारा दिन सफर करके हम रावत अंकल के गाँव पहुंचे, एक बहुत ही सुंदर राजस्थानी गाँव था वो! हम लोग शाम के करीब 7 बजे पहुंचे, तो घर के बाहर है बहुत बड़ा शामियाना लगा था, बिजली की रोशनी, रंग बिरंगी झंडियाँ। खूब चहल पहल वाला माहौल था। गंदे मंदे बच्चे हमारी गाड़ी के आस पास जमा हो गए।
हम दोनों गाड़ी से निकले और सीधे अंदर गए। अंदर शामियाने में रावत अंकल बैठे मिले, उनके साथ और भी बहुत से लोग बैठे थे, कुछ खड़े थे।
मेरे पति को देखते ही रावत अंकल खड़े हो गए- अरे आ गया, मेरा बेटा आ गया, आ हा हा!
और मेरे पति ने पहले उनके पाँव छूए और फिर गले लगे।
उनके बाद मैंने भी झुक कर रावत अंकल के पाँव छूये। मगर जब मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो मैंने आसपास नज़र मारी, सब मर्दों की निगाह मेरे जिस्म पर थी। जो पीछे खड़े थे, उन्होंने मेरी भरी हुई गांड का नज़ारा लिया होगा और जो सामने थे, उनकी निगाह मेरे सीने पर थे।
बेशक मैंने ब्रोच लगा कर अपने आँचल को गिरने से रोक रखा था, मगर जब भी औरत झुकती है, तो उसके बूब्स नीचे को लटक जाते हैं, और अगर मेरी साड़ी के पल्लू ने मेरे क्लीवेज को छुपा लिया था, मगर फिर भी मेरे झुकने से जो मेरे मम्मों की गोलाई थोड़ी सी बाहर को दिखी, उसे देख कर सब मर्दों की आँखों में चमक आ गई। देखने में तो सारे गाँव वाले ही लगते थे, सबके ज़्यादातर सफ़ेद लुंगी कुर्ते और रंग बिरंगी पगड़ियाँ बंधी थी। सबके सब बड़ी बड़ी मूँछों और दाढ़ी वाले थे।
मैं उठ कर सीधी हुई तो ताऊ जी ने मेरे सर पे हाथ रखा और वहीं पर खेल रहे एक लड़के को आवाज़ लगाई- ओ रामजस, जा भाभी को अम्मा के पास छोड़ कर आ!
मैं जैसे ही पलटी मेरी निगाह वहीं पे खड़े एक मर्द से टकराई। सिर्फ एक सेकंड की इस नजर मिलने में ही न जाने क्यों उसे देख कर मेरी आँखों में चमक आई, और मेरी आँखों की चमक देख कर उसके चेहरे का भी रंग सा बदला।
कोई बात कोई इशारा नहीं हुआ, मगर फिर जैसे कोई पैगाम एक दूसरे तक पहुँच गया।
मैं उनके बड़े सारे घर के अंदर गई। अंदर जनानखाना अलग से बना हुआ था। वहाँ पर सारी औरतें और लड़कियां थी। मेरे पीछे मेरे पति भी आ गए और वो भी मेरे साथ ही जनानखाने में गए, क्योंकि वो तो घर के ही बेटे थे तो वो बहुत से औरतों, लड़कियों से मिले, ताईजी से भी मुझे मिलवाया, और फिर जिस लड़की की शादी थी, उससे भी मिलवाया।
मेरी मुलाक़ात सबसे करवा कर वो चले गए।
जिस लड़की की शादी थी, चन्दा वो तो मेरे साथ ही चिपक गई। भाभी भाभी करती बस मुझे अपने साथ ही रखा उसने। चाय नाश्ता, खाना पीना, सब चलता रहा। ताई जी ने मुझे बिल्कुल अपनी बहू की तरह रखा, मुझे सारा दहेज का समान और बाकी सब रस्मों में शामिल किया।
रात को करीब 12 बजे हम सोये। अब जनानखाने में ही सोना था, तो मैंने एक पतली सी टी शर्ट और एक कैप्री पहन ली। ब्रा पेंटी की क्या ज़रूरत थी।
चंदा भी मेरे साथ ही लेटी।
शादी के बाद सुहागरात को लेकर उसके मन में बहुत सी शंकाएँ थी; उसने मुझसे पूछा- भाभी, मुझे न शादी के बाद वो सुहागरात से बहुत डर लगता है, सुनते हैं बहुत दर्द होता है।
मैंने पूछा- क्यों, तुमने पहले कभी कुछ नहीं किया?
वो बोली- भाभी यहाँ गाँव में … यहाँ तो सब से डर डर के चलना पड़ता है, हम तो किसी लड़के से बात भी नहीं करती।
मैंने कहा- तो तुझे क्या लगता है, सुहागरात को क्या होता है?
वो पहले तो शर्मा गई, फिर हंसी, और मुस्कुरा कर बोली- भाभी, आपकी तो शादी हो चुकी है, आपको तो सब पता है, आप तो रोज़ करती भी होंगी भैया से। अब मुझे क्या पता कि क्या होता है सुहाग रात को!
मैंने पूछा- फिर भी बता तो, तेरी सहेलियों की जिनकी शादी हो चुकी है, वो भी बताती होंगी कुछ?
वो बोली- भाभी, उनकी बताई बातों की वजह से ही तो मैं डरी हुई हूँ। वो तो सब बताती हैं कि सुहागरात को पति आता है और अपना वो बड़ा सा, पूरा ज़ोर लगा कर यहाँ अंदर डाल देता हैं। बहुत दर्द होता है, मगर पति कुछ नहीं सुनता और उसी दर्द में अंदर बाहर करता रहता है। मेरी एक सहेली तो डर और दर्द के मारे बेहोश ही हो गई थी। क्या सच में इतना दर्द होता है?
मुझे उस बेचारी भोली भाली कन्या के सेक्स ज्ञान पर बहुत तरस आया कि क्यों हमारे कॉलेजों में बच्चियों को सेक्स का ज्ञान नहीं दिया जाता। क्यों नहीं उन्हें समझाया जाता कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। क्यों आज भी बच्चियाँ कम ज्ञान की वजह से इन सब चीजों से डरती हैं।
मैंने उसे समझाया- देख चंदा, डरने की कोई वजह नहीं है। कोई भी काम जब पहली बार होता है, तो उसमें मुश्किल आती है, थोड़ी सी। मगर उस मुश्किल से घबराना नहीं चाहिए। अब तुमने आज तक अपनी उस में (कहते हुये मैंने उसकी चूत पर तो नहीं, पर जांघ पर हाथ लगाया) कोई चीज़ नहीं डाली। उसका सुराख छोटा है। और जो तेरा पति होगा, उसका वो जो होता है, वो इस सुराख से थोड़ा सा मोटा होता है.
कह कर मैंने अपनी उंगली और अंगूठे से एक गोल आकार बनाया, फिर मैंने कहा- अब अपनी उंगली इस में डालो!
जब चंदा ने शर्माते हुये अपनी उंगली उस में डाली, तो पहले तो थोड़ी से उंगली टाइट गई, मगर बाद में मैंने अपनी उंगली और अंगूठे को ढील छोड़ दिया और उसकी उंगली बड़े आराम से मेरी उंगली और अंगूठे के गोल आकार से अंदर बाहर होने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.