08-12-2024, 07:21 PM
"ठीक है भाई, ठीक बोल रहे हो, साला ठर्की बुड्ढा बड़े काम का आदमी है। वह भी क्या सोचेगा। बड़े दिनों बाद मिलने का मौका मिल रहा है। ऐसी शानदार गिफ्ट के साथ मिलूंगा तो उसकी भी तबीयत खुश हो जाएगी। मैं आ रहा हूं।" घनश्याम मुझे तिरछी नजरों से देखते हुए बोला और कार को गंजू के घर की दिशा में आगे बढ़ा दिया। उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि गंजू यदि घर से बाहर रांची में है तो घनश्याम उसके घर में किससे मिलने जा रहा है। और यह किस गिफ्ट की बात कर रहा है। मुझे कुछ गड़बड़ का अंदेशा होने लगा।
"मैं बोल रही हूं ना कि मुझे माफ कर दो तो फिर गंजू के घर की ओर क्यों जा रहे हो? मैं जानती हूं कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, और अभी इस वक्त मुझे तुम्हारे मन की मुराद पूरी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वैसे भी गंजू तो घर में है नहीं फिर हम वहां क्यों जा रहे हैं?" मैं धड़कते दिल से बोली। यह ठर्की बुड्ढा किसे बोल रहा था मुझे पता नहीं था। कहीं गंजू की अनुपस्थिति में उसका स्थान कोई ठर्की तो नहीं लेने वाला था? मैं भीतर ही भीतर परेशान हो उठी। पता नहीं घनश्याम के दिमाग में क्या चल रहा था।
"चुपचाप बैठी रह। तुमने माफी लायक गलती नहीं की है गधी कहीं की। तू आज बिना सजा के बच नहीं सकती।" घनश्याम मुझे डांटते हुए बोला।
"मैं बोल रही हूं कार रोको नहीं तो चलती कार से कूद पड़ूंगी।" मैं विरोध करते हुए बोली।
"मैं भी देखता हूं, लॉक कंडीशन में कार का दरवाजा कैसे खोल कर कूदती हो।" वह कार चलाते हुए बोला। उसकी बात सुनकर मैं सकते में आ गयी। सचमुच मैं बेबस चिड़िया की भांति उस कार रुपी पिंजड़े में कैद थी।
"तुम करना क्या चाह रहे हो?" मैं भयभीत स्वर में बोली।
"गंजू के अड्डे पर पहुंच कर बहुत जल्दी पता चल जाएगा। थोड़ा इंतजार कर।"
"तुम मेरी मर्जी के बगैर मेरे साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं कर सकते। यदि ऐसा किया तो मैं सबकुछ मां को बता दूंगी।" मैं धमकी भरे स्वर में बोली।
"तुम्हारी मां? हा हा हा हा। तुम्हारी मां तुम्हारी बात से ज्यादा मेरी बात का यकीन करेगी।"
"ऐसा नहीं हो सकता है। एक मां अपनी बेटी से ज्यादा तुम जैसे ड्राइवर की बात का यकीन नहीं कर सकती।" मैं जानती थी कि घनश्याम, मेरी मां को अपनी दमदार हथियार का सुखद स्वाद चखा कर अपने वश में कर चुका था और इस बूते पर मेरी अपेक्षा उसका पलड़ा भारी था, लेकिन फिर भी बोली।
"तुम्हारे भरोसे की दाद देता हूं लेकिन सच यही है कि मेरे लंड की गुलाम से ऐसी आशा करना खुद को झूठी तसल्ली देने के अलावा और कुछ नहीं है। विश्वास न हो तो कोशिश करके देख लेना।" वह बोला और मैं जानती थी कि वह झूठ नहीं बोल रहा था। वह बेफिक्र कार चलाता हुआ झाड़ियों को चीरता, गंजू के झोपड़ीनुमा ऐशगाह की ओर बढ़ा जा रहा था।
"लेकिन मेरी मां को ऑफिस से लाने के लिए देर नहीं होगी क्या? उसका क्या जवाब है तुम्हारे पास?" मैं बोली।
"उसकी चिंता मत करो। ऑफिस के बाद उसे एक जरूरी ऑफिशियल मीटिंग अटेंड करना है, जो उसके बताने के हिसाब से कम से कम आज तीन घंटे से कम चलने वाला नहीं है। तबतक के लिए मैं बेफिक्र हूं और तुम्हें भी इस बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।" घनश्याम बोला। मैं अचंभित रह गई कि जो बातें मुझे भी पता होनी चाहिए वे बातें मां सिर्फ घनश्याम को बता रही थी। यह घनश्याम तो मां के लिए हमारे परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य बन गया था।
"फिर भी मैं बोल रही हूं कि जो तुम मेरे साथ करने जा रहे हो वह सरासर गलत है और मेरी इच्छा के बगैर ऐसा करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।" मैं जबरदस्ती दृढ़ता दिखाती हुई बोली।
"मैं बोल रही हूं ना कि मुझे माफ कर दो तो फिर गंजू के घर की ओर क्यों जा रहे हो? मैं जानती हूं कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, और अभी इस वक्त मुझे तुम्हारे मन की मुराद पूरी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वैसे भी गंजू तो घर में है नहीं फिर हम वहां क्यों जा रहे हैं?" मैं धड़कते दिल से बोली। यह ठर्की बुड्ढा किसे बोल रहा था मुझे पता नहीं था। कहीं गंजू की अनुपस्थिति में उसका स्थान कोई ठर्की तो नहीं लेने वाला था? मैं भीतर ही भीतर परेशान हो उठी। पता नहीं घनश्याम के दिमाग में क्या चल रहा था।
"चुपचाप बैठी रह। तुमने माफी लायक गलती नहीं की है गधी कहीं की। तू आज बिना सजा के बच नहीं सकती।" घनश्याम मुझे डांटते हुए बोला।
"मैं बोल रही हूं कार रोको नहीं तो चलती कार से कूद पड़ूंगी।" मैं विरोध करते हुए बोली।
"मैं भी देखता हूं, लॉक कंडीशन में कार का दरवाजा कैसे खोल कर कूदती हो।" वह कार चलाते हुए बोला। उसकी बात सुनकर मैं सकते में आ गयी। सचमुच मैं बेबस चिड़िया की भांति उस कार रुपी पिंजड़े में कैद थी।
"तुम करना क्या चाह रहे हो?" मैं भयभीत स्वर में बोली।
"गंजू के अड्डे पर पहुंच कर बहुत जल्दी पता चल जाएगा। थोड़ा इंतजार कर।"
"तुम मेरी मर्जी के बगैर मेरे साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं कर सकते। यदि ऐसा किया तो मैं सबकुछ मां को बता दूंगी।" मैं धमकी भरे स्वर में बोली।
"तुम्हारी मां? हा हा हा हा। तुम्हारी मां तुम्हारी बात से ज्यादा मेरी बात का यकीन करेगी।"
"ऐसा नहीं हो सकता है। एक मां अपनी बेटी से ज्यादा तुम जैसे ड्राइवर की बात का यकीन नहीं कर सकती।" मैं जानती थी कि घनश्याम, मेरी मां को अपनी दमदार हथियार का सुखद स्वाद चखा कर अपने वश में कर चुका था और इस बूते पर मेरी अपेक्षा उसका पलड़ा भारी था, लेकिन फिर भी बोली।
"तुम्हारे भरोसे की दाद देता हूं लेकिन सच यही है कि मेरे लंड की गुलाम से ऐसी आशा करना खुद को झूठी तसल्ली देने के अलावा और कुछ नहीं है। विश्वास न हो तो कोशिश करके देख लेना।" वह बोला और मैं जानती थी कि वह झूठ नहीं बोल रहा था। वह बेफिक्र कार चलाता हुआ झाड़ियों को चीरता, गंजू के झोपड़ीनुमा ऐशगाह की ओर बढ़ा जा रहा था।
"लेकिन मेरी मां को ऑफिस से लाने के लिए देर नहीं होगी क्या? उसका क्या जवाब है तुम्हारे पास?" मैं बोली।
"उसकी चिंता मत करो। ऑफिस के बाद उसे एक जरूरी ऑफिशियल मीटिंग अटेंड करना है, जो उसके बताने के हिसाब से कम से कम आज तीन घंटे से कम चलने वाला नहीं है। तबतक के लिए मैं बेफिक्र हूं और तुम्हें भी इस बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।" घनश्याम बोला। मैं अचंभित रह गई कि जो बातें मुझे भी पता होनी चाहिए वे बातें मां सिर्फ घनश्याम को बता रही थी। यह घनश्याम तो मां के लिए हमारे परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य बन गया था।
"फिर भी मैं बोल रही हूं कि जो तुम मेरे साथ करने जा रहे हो वह सरासर गलत है और मेरी इच्छा के बगैर ऐसा करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।" मैं जबरदस्ती दृढ़ता दिखाती हुई बोली।