06-12-2024, 09:29 PM
"अनजाने और अचानक? मैं मुझे इतना बेवकूफ नजर आता हूं? सबकुछ तेरी रजामंदी से पूरे होशो-हवास में हुआ है कुतिया, वरना तू आसमान सर में उठा लेती। तेरी नस नस से वाकिफ हूं। बता कौन कौन लोग थे?" वह गुस्से से पूछ रहा था।
"अ अ अ गेटकीपर और उसका...." मैं सर झुका कर हकलाते हुए बोली और चुप हो गई।
"और उसका कौन?"
"उ उ उ उसका जुड़वां भाई।"
"सिर्फ दो?"
"हां।"
"यह नहीं हो सकता है। बता और कौन था?"
"सच बोल रही हूं।"
"झूठ, सरासर झूठ। मैं पक्का बोल सकता हूं कि सिर्फ दो नहीं हो सकते हैं।" उसकी बात सुनकर मुझे पूरा सच बताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मेरी बातें सुनकर उसे विश्वास करना ही पड़ा।
"बहुत बढ़िया। एकदम ठीक हुआ तुम्हारी जैसी रंडी के साथ यही होना था। अब मैं बताऊंगा कि तुम जैसी लंडखोर की सजा कैसी होनी चाहिए।" वह बोला।
"नहीं नहीं प्लीज़, मुझे माफ कर दो। उन लोगों ने पहले ही मेरी हालत खराब कर दी है। मुझसे और झेला नहीं जाएगा। आज के बाद ऐसी ग़लती नहीं करूंगी।" मैं गिड़गिड़ाने लगी।
"चुप हरामजादी, झेला नहीं जाएगा। वहां खंडहर में बुरी तरह चुदकर भी यहां गेटकीपर से मरवाने की तलब लगी थी। चुदने की तलब में दो अलग-अलग लोगों से बारी बारी चार बार चुदकर भी तुझे पता नहीं चला कि एक आदमी चोद रहा हे कि दो आदमी। चुदाई की इतनी मस्ती चढ़ी है तो ठीक है आज ऐसी कुटाई करेंगे कि तेरी सारी गर्मी निकल जाएगी।" "प्लीज़ ऐसा जुल्म मत करो मेरे साथ।" मैं उसकी बातों से भयभीत होकर बोली।
"अब और कुछ बोलोगी तो एक झापड़ रसीद कर दूंगा और यहीं रोड किनारे पटक कर चोदूंगा साली रंडी।" घनश्याम तैश मे आ कर बोला। अब मेरी बोलती बंद हो गई। मैं जानती थी कि गंजू के यहां कितनी बुरी तरह मुझे नोच खसोट का सामना करना पड़ेगा। उसने मेरी एक नहीं सुनी और गंजू को फोन लगाने लगा।
"हलो गंजू भाई, कहां हो?" वह बोला। चूंकि फोन का स्पीकर ऑन नहीं था इसलिए मैं उनके वार्तालाप को स्पष्ट तौर पर सुन नहीं सकती थी। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था कि पता नहीं उधर से क्या जवाब मिलेगा।
उधर से गंजू ने क्या कहा मुझे पता नहीं।
"मैं इस समय तुम्हारे घर की ओर आ रहा हूं।" घनश्याम ने फिर कहा। इसका जवाब भी गंजू ने क्या दिया मुझे पता नहीं लेकिन घनश्याम का चेहरा थोड़ा मायूस दिखाई दे रहा था।
"ओह, फिर तो बेकार ही आ रहा हूं तुम्हारे पास। काम बताने का नहीं करने का था और वह भी इसी समय।" उनकी बातें सुनकर मैं ने राहत की सांस ली। चलो छुटकारा मिला। मैंने अंदाजा लगा लिया था कि इस वक्त गंजू अपने घर पर नहीं था। लेकिन फिर उधर से गंजू कुछ कह रहा था जिसे घनश्याम सुनने लगा था।
"काम मजेदार था, लेकिन अब बता कर फायदा क्या है।" घनश्याम कार रोक कर बोला, फिर उधर से आती हुई आवाज को सुनने लगा।
"वही चिड़िया इस वक्त मेरे साथ है। मजा करना था। लेकिन चलो कोई बात नहीं। फिर कभी।" घनश्याम गंजू का उत्तर सुनकर बोला और फोन काटना चाह ही रहा था कि उधर से आती हुई आवाज ने घनश्याम को ऐसा करने से रोक दिया। उधर से आती हुई बातें सुनकर घनश्याम के चेहरे का भाव बदल गया। "कौन? भालू? वही ना, मोटू?" कहकर फिर वह गंजू की बातें सुनने लगा और ज्यों ज्यों वह आगे सुनता गया, उसके चेहरे पर मुस्कान तैरती चली गई।
"अ अ अ गेटकीपर और उसका...." मैं सर झुका कर हकलाते हुए बोली और चुप हो गई।
"और उसका कौन?"
"उ उ उ उसका जुड़वां भाई।"
"सिर्फ दो?"
"हां।"
"यह नहीं हो सकता है। बता और कौन था?"
"सच बोल रही हूं।"
"झूठ, सरासर झूठ। मैं पक्का बोल सकता हूं कि सिर्फ दो नहीं हो सकते हैं।" उसकी बात सुनकर मुझे पूरा सच बताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मेरी बातें सुनकर उसे विश्वास करना ही पड़ा।
"बहुत बढ़िया। एकदम ठीक हुआ तुम्हारी जैसी रंडी के साथ यही होना था। अब मैं बताऊंगा कि तुम जैसी लंडखोर की सजा कैसी होनी चाहिए।" वह बोला।
"नहीं नहीं प्लीज़, मुझे माफ कर दो। उन लोगों ने पहले ही मेरी हालत खराब कर दी है। मुझसे और झेला नहीं जाएगा। आज के बाद ऐसी ग़लती नहीं करूंगी।" मैं गिड़गिड़ाने लगी।
"चुप हरामजादी, झेला नहीं जाएगा। वहां खंडहर में बुरी तरह चुदकर भी यहां गेटकीपर से मरवाने की तलब लगी थी। चुदने की तलब में दो अलग-अलग लोगों से बारी बारी चार बार चुदकर भी तुझे पता नहीं चला कि एक आदमी चोद रहा हे कि दो आदमी। चुदाई की इतनी मस्ती चढ़ी है तो ठीक है आज ऐसी कुटाई करेंगे कि तेरी सारी गर्मी निकल जाएगी।" "प्लीज़ ऐसा जुल्म मत करो मेरे साथ।" मैं उसकी बातों से भयभीत होकर बोली।
"अब और कुछ बोलोगी तो एक झापड़ रसीद कर दूंगा और यहीं रोड किनारे पटक कर चोदूंगा साली रंडी।" घनश्याम तैश मे आ कर बोला। अब मेरी बोलती बंद हो गई। मैं जानती थी कि गंजू के यहां कितनी बुरी तरह मुझे नोच खसोट का सामना करना पड़ेगा। उसने मेरी एक नहीं सुनी और गंजू को फोन लगाने लगा।
"हलो गंजू भाई, कहां हो?" वह बोला। चूंकि फोन का स्पीकर ऑन नहीं था इसलिए मैं उनके वार्तालाप को स्पष्ट तौर पर सुन नहीं सकती थी। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था कि पता नहीं उधर से क्या जवाब मिलेगा।
उधर से गंजू ने क्या कहा मुझे पता नहीं।
"मैं इस समय तुम्हारे घर की ओर आ रहा हूं।" घनश्याम ने फिर कहा। इसका जवाब भी गंजू ने क्या दिया मुझे पता नहीं लेकिन घनश्याम का चेहरा थोड़ा मायूस दिखाई दे रहा था।
"ओह, फिर तो बेकार ही आ रहा हूं तुम्हारे पास। काम बताने का नहीं करने का था और वह भी इसी समय।" उनकी बातें सुनकर मैं ने राहत की सांस ली। चलो छुटकारा मिला। मैंने अंदाजा लगा लिया था कि इस वक्त गंजू अपने घर पर नहीं था। लेकिन फिर उधर से गंजू कुछ कह रहा था जिसे घनश्याम सुनने लगा था।
"काम मजेदार था, लेकिन अब बता कर फायदा क्या है।" घनश्याम कार रोक कर बोला, फिर उधर से आती हुई आवाज को सुनने लगा।
"वही चिड़िया इस वक्त मेरे साथ है। मजा करना था। लेकिन चलो कोई बात नहीं। फिर कभी।" घनश्याम गंजू का उत्तर सुनकर बोला और फोन काटना चाह ही रहा था कि उधर से आती हुई आवाज ने घनश्याम को ऐसा करने से रोक दिया। उधर से आती हुई बातें सुनकर घनश्याम के चेहरे का भाव बदल गया। "कौन? भालू? वही ना, मोटू?" कहकर फिर वह गंजू की बातें सुनने लगा और ज्यों ज्यों वह आगे सुनता गया, उसके चेहरे पर मुस्कान तैरती चली गई।


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