06-12-2024, 07:00 PM
गरम रोज (भाग 14)
जैसे ही कार स्टार्ट हुई, "हां तो अब बताओ, क्लास में सब ठीक-ठाक रहा ना?" घनश्याम पूछ बैठा।
"हां।" मेरा संक्षिप्त उत्तर सुनकर वह मेरी ओर देखने लगा।
"नहीं, ठीक ठाक तो नहीं रहा। तुम्हारा लाल चेहरा कुछ और ही बता रहा है। तुम ठीक से चल भी नहीं पा रही हो। क्या बात है?" वह शंकित हो कर पूछ रहा था।
"क क क्या बकवास है। मैं ठीक तो हूं।" मैं उसकी बात टालने की कोशिश करते हुए बोली।
"तुम्हारी बात सुनकर पक्का यकीन हो गया है कि कुछ गड़बड़ है। सच बताओ क्या हुआ है? तुम्हारी गर्दन पर दांतों का निशान भी दिखाई दे रहा है। हे भगवान! मैं भी कितना गधा हूं। अगर मेरा अंदाजा सही है तो आज कॉलेज में भी तूने अपने ऊपर किसी न किसी को चढ़ने दिया है। सही बोल रहा हूं ना?" अब उसकी आवाज में गुस्से को साफ महसूस करके मेरी रूह फना हो गई। मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। बोलूं तो क्या बोलूं। सचमुच मेरी हालत खुद ही चीख चीखकर कर मुझ पर जो बीती है, उसे बयां कर रही थी।
"न न नहीं तो! ज ज जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ भी नहीं हुआ है। यह तो यह तो... " इससे पहले कि आगे और कुछ बोलती,
"चुप हरामजादी । एक दम चुप। कुछ बोलने की जरूरत नहीं है,.. " इतना कहकर कार चलाते हुए उसने सीधे अपना बायां हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल कर सीधे मेरी चूत को छू लिया। हे भगवान, मैं अपनी सीट पर बैठे बैठे चौंक कर उछल ही पड़ी। उफ कमीना कहीं का।
"यह क्या है? हरामजादी, मेरा लौड़ा कम पड़ा था जो यहां आकर क्लास करने के बदले पता नहीं किस किस से मरवा रही थी? एकदम साफ है कि तू एक नहीं, दो तीन लोगों का लौड़ा खा कर आ रही है। मैं समझ गया कि तू ऐसे सुधरने वाली नहीं है। तुझे शायद इसका आभास नहीं हो रहा है लेकिन सच यह है कि तू पूरी तरह रंडी बन गई है। आज तुझे बताऊंगा कि तेरे जैसे लड़की के साथ कैसा सलूक किया जाना चाहिए।" उसने मेरी चूत को छूकर अंदाजा लगा लिया था कि मैं लगभग कितने लोगों से चुद कर आ रही हूं। मुझे काटो तो खून नहीं। उसने कार की रफ्तार बढ़ा दी और सीधे जंगल के रास्ते की ओर मोड़ दिया। यह रास्ता गंजू के घर की ओर जाता था। हालांकि घनश्याम के हाथ का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूत पर हुआ, इतनी जबरदस्त चुदाई होने के बावजूद मेरे मन के तार झनझना उठे थे लेकिन मेरा क्लांत शरीर अब और चुदाई को झेलने की स्थिति में नहीं था। मैं घबड़ा उठी थी।
"नहीं नहीं, सिर्फ एक, वह भी सबकुछ अचानक हो गया।" मैं सफाई देने लगी।
"मुझे मत सिखाओ। कम से कम तीन लोगों से तो जरूर मरवाई हो।" वह गुर्रा कर बोला। उसका अंदाजा लगभग सही ही था। मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
"तुम सही बोल रहे हो लेकिन यह सब अचानक और अनजाने में हो गया।" मैं अब भी सफाई देने से बाज नहीं आ रही थी।
जैसे ही कार स्टार्ट हुई, "हां तो अब बताओ, क्लास में सब ठीक-ठाक रहा ना?" घनश्याम पूछ बैठा।
"हां।" मेरा संक्षिप्त उत्तर सुनकर वह मेरी ओर देखने लगा।
"नहीं, ठीक ठाक तो नहीं रहा। तुम्हारा लाल चेहरा कुछ और ही बता रहा है। तुम ठीक से चल भी नहीं पा रही हो। क्या बात है?" वह शंकित हो कर पूछ रहा था।
"क क क्या बकवास है। मैं ठीक तो हूं।" मैं उसकी बात टालने की कोशिश करते हुए बोली।
"तुम्हारी बात सुनकर पक्का यकीन हो गया है कि कुछ गड़बड़ है। सच बताओ क्या हुआ है? तुम्हारी गर्दन पर दांतों का निशान भी दिखाई दे रहा है। हे भगवान! मैं भी कितना गधा हूं। अगर मेरा अंदाजा सही है तो आज कॉलेज में भी तूने अपने ऊपर किसी न किसी को चढ़ने दिया है। सही बोल रहा हूं ना?" अब उसकी आवाज में गुस्से को साफ महसूस करके मेरी रूह फना हो गई। मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। बोलूं तो क्या बोलूं। सचमुच मेरी हालत खुद ही चीख चीखकर कर मुझ पर जो बीती है, उसे बयां कर रही थी।
"न न नहीं तो! ज ज जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ भी नहीं हुआ है। यह तो यह तो... " इससे पहले कि आगे और कुछ बोलती,
"चुप हरामजादी । एक दम चुप। कुछ बोलने की जरूरत नहीं है,.. " इतना कहकर कार चलाते हुए उसने सीधे अपना बायां हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल कर सीधे मेरी चूत को छू लिया। हे भगवान, मैं अपनी सीट पर बैठे बैठे चौंक कर उछल ही पड़ी। उफ कमीना कहीं का।
"यह क्या है? हरामजादी, मेरा लौड़ा कम पड़ा था जो यहां आकर क्लास करने के बदले पता नहीं किस किस से मरवा रही थी? एकदम साफ है कि तू एक नहीं, दो तीन लोगों का लौड़ा खा कर आ रही है। मैं समझ गया कि तू ऐसे सुधरने वाली नहीं है। तुझे शायद इसका आभास नहीं हो रहा है लेकिन सच यह है कि तू पूरी तरह रंडी बन गई है। आज तुझे बताऊंगा कि तेरे जैसे लड़की के साथ कैसा सलूक किया जाना चाहिए।" उसने मेरी चूत को छूकर अंदाजा लगा लिया था कि मैं लगभग कितने लोगों से चुद कर आ रही हूं। मुझे काटो तो खून नहीं। उसने कार की रफ्तार बढ़ा दी और सीधे जंगल के रास्ते की ओर मोड़ दिया। यह रास्ता गंजू के घर की ओर जाता था। हालांकि घनश्याम के हाथ का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूत पर हुआ, इतनी जबरदस्त चुदाई होने के बावजूद मेरे मन के तार झनझना उठे थे लेकिन मेरा क्लांत शरीर अब और चुदाई को झेलने की स्थिति में नहीं था। मैं घबड़ा उठी थी।
"नहीं नहीं, सिर्फ एक, वह भी सबकुछ अचानक हो गया।" मैं सफाई देने लगी।
"मुझे मत सिखाओ। कम से कम तीन लोगों से तो जरूर मरवाई हो।" वह गुर्रा कर बोला। उसका अंदाजा लगभग सही ही था। मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
"तुम सही बोल रहे हो लेकिन यह सब अचानक और अनजाने में हो गया।" मैं अब भी सफाई देने से बाज नहीं आ रही थी।