06-12-2024, 06:54 PM
(07-11-2024, 05:09 PM)Rajen4u Wrote: इसी उम्र में अबतक मेरी सेक्स यात्रा में पांच पुरुषों का नाम जुड़ चुका था। पांचों के पांचों उम्र में मुझसे कहीं ज्यादा बड़े और एक नंबर के औरतखोर थे, जिन्हें अपनी हवस के आगे मेरी कमसिन उम्र की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी। मेरी नादानी में ही शुरुआत घुसा ने की और मुझे सेक्स के मजे से परिचित कराया। वह मुझ नादान लड़की के लिए जीवन का सबसे सुखद अनुभव था। पुरुष और स्त्री के बीच संसर्ग में इतना आनंद मिलता है, यह अनुभव मुझे बड़ा अच्छा लगा। लेकिन विवाह से पहले इस तरह का शारीरिक संबंध समाज मे वर्जित है, उस नादान उम्र में इसका मुझे पता नहीं था। जबतक मुझे पता चलता, तबतक घुसा ने मुझे सेक्स का चस्का लगा दिया था। घुसा बड़ी अच्छी तरह से जानता था कि मैं जिस उम्र में थी, उस उम्र में ही यदि मेरी नादानी का फायदा उठाकर लगातार चुदाई की जाय तो चुदाई का चस्का लगना स्वाभाविक है। वही मेरे साथ उसने किया। लगे हाथों घनश्याम और गंजू ने भी इस में अपना योगदान दे दिया। फिर तो मुझे सेक्स का ऐसा चस्का लगा कि अब रघु और जधु भी एक एक करके मेरी कमसिन उम्र की परवाह किए बिना बहती गंगा में डुबकी लगाने आते चले गए और मैं कामुकता की आंधी में बहती हुई उदारतापूर्वक अपना तन परोसती चली गयी। आगे क्या क्या होना था यह तो भगवान ही जानता था।
यही सब सोचते हुए जल्दी से बाहर निकल पड़ी क्योंकि मैंने घनश्याम को आते हुए देख लिया था।
"अरे रोज, कहां थी तुम? क्लास में दिखाई नहीं दी?" मैंने पीछे से रेखा की आवाज सुनी तो सन्न रह गई। मैं उनकी नजरों से बच कर निकलना चाह रही थी।
"मुझे आज प्रिंसिपल से काम था। क्लास के लिए नहीं आई थी। काम हो गया, अब निकल रही हूं।" मैं पीछे मुड़ी और बोली। रेखा के साथ रश्मि और शीला भी थी। उनके सवालों का और सिलसिला चालू हो उससे पहले ही मुझे वहां से खिसकने में ही भलाई नजर आ रही थी।
"लेकिन तू यहां रघु से क्या बात कर रही थी?" शीला बोली। उसकी बात सुनकर मैं चौंक गई और साथ ही साथ घबरा भी गयी। हे भगवान, तो इन लोगों ने मुझे रघु से बातें करते हुए भी देख लिया था। पता नहीं क्या सोच रही थीं होंगी। जो सोचना है सोचने दो, लौड़े से, मैं अपनी सफाई देना जरूरी नहीं समझ रही थी।
"अरे कुछ नहीं, बस इससे पूछ रही थी कि उसने घनश्याम को देखा है क्या? लो, वो आ गये। अच्छा अब मैं चलती हूं।" कहकर ज्यों ही सामने मेरी नजर गई तो, सचमुच मेरी मनचाही एक अकल्पनीय घटना हो गई, संयोग से उसी समय घनश्याम कार के साथ सामने हाजिर हो गया। चलने में तकलीफ़ हो रही थी लेकिन दांत भींच कर मैं तेज कदमों से कार की ओर बढ़ती चली गई। लाख कोशिशों के बावजूद मैं अपनी चाल को सामान्य नहीं रख पा रही थी, जिसे निश्चित तौर पर मेरी सहेलियों नें ताड़ लिया होगा और घनश्याम की पैनी नजर से भला कैसे बच सकती थी। वह मुझे शंकित नजरों से घूर रहा था। मैं उससे नजरें मिलाने की हिम्मत भी नहीं कर पा रही थी। कार के पास पहुंच कर अनिश्चय की स्थिति में थी कि सामने बैठूं या पीछे। मैं ने पीछे बैठने के लिए पीछे का दरवाजा खोलने लगी कि घनश्याम बोल उठा,
"क्या हुआ, पीछे क्यों बैठ रही हो?"
"बस अ ऐसे ही। थोड़ा पसर कर बैठ कर बैठने का मन हो रहा है।" मैं झिझकते हुए बोली।
"पसर कर बैठना है तो भी सामने बैठो। मैं खा नहीं जाऊंगा।" घनश्याम हुक्म देते हुए बोला। मैं जानती थी कि मेरी थोड़ी सी भी असावधानी से मेरी पोल पट्टी खुल जाएगी, इस कारण मैं पीछे की सीट पर बैठना चाहती थी लेकिन उसकी बात नहीं मानकर पीछे बैठना भी उसे अनचाहे शंका में डालने वाला होता। मन ही मन डरते हुए और भगवान से मनाते हुए कि मेरी लंडखोरी का राज न खुलने पाए, मैं सामने सीट पर जा बैठी।
आगे की गरमागरम घटना अगली कड़ी में पढ़िए। तबतक के लिए आप सभी सेक्स के रसिक पाठकों से आप लोगों की गरम रोजा आज्ञा लेती है। नमस्कार।