03-12-2024, 10:38 PM
रेखा ने अपने सर को थोड़ा सा झुकाया और मेरे होठों को अपने होठों की कैद में ले लिया।
अब हम दोनों होंठों की घमासान लड़ाई में कूद पड़े थे, कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा था.
रेखा अपनी जीभ मेरे होठों में डाल कर चुसवाने लगी और हाथों को मेरे सीने और नीचे तक फिराने लगी।
मेरा लन्ड पूरी तरह कड़क हो चुका था और लन्ड के ऊपरी हिस्से में हल्का गीलापन भी आ चुका था।
अचानक रेखा का हाथ थोड़ा ज्यादा नीचे तक पहुंच गया और मेरे बदन से तौलिया अलग हो गया.
तौलिया रूपी दीवार हटते ही मेरा लन्ड अपने पूरे विराट स्वरूप में बाहर उछल कूद मचाने लग गया।
मैंने हल्के से उठ कर रेखा को भी अपने साथ लिटा लिया और अपने होठों की कारीगरी दिखाते हुए रेखा के बोबों को सहलाने लगा।
हम दोनों की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे.
तभी मेरे मन में ख्याल आया कि पहली बार को थोड़ा अलग बनाया जाए.
मैंने उठ कर तौलिया लपेटा और रेखा को अपनी गोद में उठाकर बरसती बारिश में छत पर ले गया.
छत पर लेजाकर रेखा को लिटा दिया और खुद उसको बाहों में भर कर उसके पास लेट गया।
ऊपर से घटाएं बरस रही थी और नीचे की घटाएं बरसने को तैयार हो रही थी।
रेखा से अब सहन करना मुश्किल हो रहा था, वह मुझे बार बार ‘जान आओ न … मेरी प्यास बुझा दो प्लीज! आज बादल बन कर छा जाओ और मेरी प्यासी धरती की प्यास बुझा दो प्लीज!’ ऐसे बोल रही थी.
देसी चूत हिंदी में चुदाई के लिए गिड़गिड़ा रही थी.
मैं भी बोल रहा था- हां जान, आज तुम्हारी और मेरी दोनों की प्यास पूरी बुझाऊँगा!
चुम्माचाटी करते करते मैंने एक हाथ से रेखा की साड़ी अलग कर दी और रेखा के पहाड़ की चोटियों जैसे तने हुए स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही चूमने लग गया.
एक हाथ से दूसरे स्तन को भींच रहा था तो दूसरे हाथ को रेखा के पेटीकोट के ऊपर से रेखा की चूत और जांघों पर फेर रहा था।
जैसे ही मेरा हाथ रेखा की चूत के ऊपर जाता, रेखा उत्तेजनावश अपनी टांगें रगड़ने लग जाती.
रेखा को सहलाते सहलाते मैंने रेखा का ब्लाउज उतार दिया और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया.
बाकी काम रेखा ने आसान कर दिया और खुद ही पैर चलाकर पेटीकोट को नीचे खिसका कर अलग कर दिया.
अब मेरी जान रेखा सिर्फ पेंटी और ब्रा में थी और अजंता एलोरा की किसी जीवित मूर्ति के समान मेरे सामने बरसती बूंदों के बीच लेती थी।
मैंने उसके स्तनों को ब्रा के ऊपर से ही मुंह में भर लिया और अपने हाथों से रेखा के पूरे बदन को रगड़ने लग गया.
रेखा के होठों से गर्म गर्म सांसें निकल रही थी और कांपते हुए लहजे में कह
अब हम दोनों होंठों की घमासान लड़ाई में कूद पड़े थे, कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा था.
रेखा अपनी जीभ मेरे होठों में डाल कर चुसवाने लगी और हाथों को मेरे सीने और नीचे तक फिराने लगी।
मेरा लन्ड पूरी तरह कड़क हो चुका था और लन्ड के ऊपरी हिस्से में हल्का गीलापन भी आ चुका था।
अचानक रेखा का हाथ थोड़ा ज्यादा नीचे तक पहुंच गया और मेरे बदन से तौलिया अलग हो गया.
तौलिया रूपी दीवार हटते ही मेरा लन्ड अपने पूरे विराट स्वरूप में बाहर उछल कूद मचाने लग गया।
मैंने हल्के से उठ कर रेखा को भी अपने साथ लिटा लिया और अपने होठों की कारीगरी दिखाते हुए रेखा के बोबों को सहलाने लगा।
हम दोनों की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे.
तभी मेरे मन में ख्याल आया कि पहली बार को थोड़ा अलग बनाया जाए.
मैंने उठ कर तौलिया लपेटा और रेखा को अपनी गोद में उठाकर बरसती बारिश में छत पर ले गया.
छत पर लेजाकर रेखा को लिटा दिया और खुद उसको बाहों में भर कर उसके पास लेट गया।
ऊपर से घटाएं बरस रही थी और नीचे की घटाएं बरसने को तैयार हो रही थी।
रेखा से अब सहन करना मुश्किल हो रहा था, वह मुझे बार बार ‘जान आओ न … मेरी प्यास बुझा दो प्लीज! आज बादल बन कर छा जाओ और मेरी प्यासी धरती की प्यास बुझा दो प्लीज!’ ऐसे बोल रही थी.
देसी चूत हिंदी में चुदाई के लिए गिड़गिड़ा रही थी.
मैं भी बोल रहा था- हां जान, आज तुम्हारी और मेरी दोनों की प्यास पूरी बुझाऊँगा!
चुम्माचाटी करते करते मैंने एक हाथ से रेखा की साड़ी अलग कर दी और रेखा के पहाड़ की चोटियों जैसे तने हुए स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही चूमने लग गया.
एक हाथ से दूसरे स्तन को भींच रहा था तो दूसरे हाथ को रेखा के पेटीकोट के ऊपर से रेखा की चूत और जांघों पर फेर रहा था।
जैसे ही मेरा हाथ रेखा की चूत के ऊपर जाता, रेखा उत्तेजनावश अपनी टांगें रगड़ने लग जाती.
रेखा को सहलाते सहलाते मैंने रेखा का ब्लाउज उतार दिया और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया.
बाकी काम रेखा ने आसान कर दिया और खुद ही पैर चलाकर पेटीकोट को नीचे खिसका कर अलग कर दिया.
अब मेरी जान रेखा सिर्फ पेंटी और ब्रा में थी और अजंता एलोरा की किसी जीवित मूर्ति के समान मेरे सामने बरसती बूंदों के बीच लेती थी।
मैंने उसके स्तनों को ब्रा के ऊपर से ही मुंह में भर लिया और अपने हाथों से रेखा के पूरे बदन को रगड़ने लग गया.
रेखा के होठों से गर्म गर्म सांसें निकल रही थी और कांपते हुए लहजे में कह
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
