03-12-2024, 05:04 PM
अंदर जाकर देखा तो अनीता बर्तन साफ कर रही थी. मैंने बर्तन रखने के बहाने से उसकी गांड पर अपने लौड़े से सहला दिया. वो थोड़ी सी हिचक कर एक तरफ सरक गई तो मेरी भी हवा टाइट हो गई. मैं चुपचाप बाहर आ गया.
कुछ देर तक मैंने बच्चों के साथ टीवी देखा और फिर उनको अपने साथ ही अपने बेडरूम में सुलाने के लिए ले गया. हमारे बेडरूम में से ही अन्दर वाले कमरे का दरवाजा बना हुआ था जिसमें अनीता सोती थी. कुछ देर के बाद वो अपने हाथ पौंछती हुई कमरे में आई और सामने से गुजरी.
उसकी मटकती हुई गांड को देख कर मेरे मन में टीस सी उठने लगी. वो अन्दर चली गई और मैंने लाइट बन्द कर ली. कमरे में अन्धेरा हो गया लेकिन अनीता के कमरे की हल्की रोशनी अभी भी इधर आ रही थी.
मेरा हाथ मेरे तने हुए लंड पर चला गया. सोचने लगा कि चुदाई का मौका मिलना तो मुश्किल है लेकिन मुठ मारे बिना ये लौड़ा मुझे सोने नहीं देगा. मैं अपनी लोअर के अन्दर से ही अन्डवियर में हाथ डाल कर अपने लंड को सहलाने और मसलने लगा.
सलहज की चूत और गांड के बारे में सोच कर लंड काफी देर पहले से ही तना हुआ था इसलिए उसने अंडरवियर में ही टोपे को चिकना कर रखा था. जब मैंने लंड के टोपे को अपने हाथ से ऊपर नीचे करना शुरू किया तो मेरी आंखें स्वत: ही बंद होने लगीं.
उस समय हाथ मेरे लंड पर चल रहे थे लेकिन मन ख्यालों ही ख्यालों में अनीता की मैक्सी को उठाकर उसके बदन के दर्शन करने की कामुक कल्पनाओं में गोते लगाने लगा था. हाय … इसकी गांड … इसके स्तन … कितने रसीले होंगे अनीता के स्तन … चूस-चूस कर पी लूंगा उनको. कुछ ऐसी ही कल्पनाओं में डूबा हुआ मैं अपने लंड पर तेजी से हाथ को चला रहा था.
मेरी आंखें बंद थीं और बच्चे बगल में ही सो रहे थे. अंधरे में मुठ मारने के पूरे मजे ले रहा था. मन तो कर रहा था कि लोअर को निकाल दूं लेकिन सोचा कि कहीं अगर बच्चे जाग गये तो उन पर गलत असर जायेगा. इसलिए अंडरवियर के अंदर ही लंड को दबोचे रहा.
तेजी से हाथ लंड को रगड़ रहा था कि अचानक ही कमरे की लाइट जल गई. मैंने हड़बड़ाहट में एकदम से हाथ को लोअर के अंदर से बाहर खींच लिया. सामने दूसरे कमरे के दरवाजे पर अनीता खड़ी हुई थी. मैंने सोचा कि आज तो इसने मुझे शायद मुठ मारते हुए देख ही लिया होगा. मगर उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे.
कुछ देर तक मैंने बच्चों के साथ टीवी देखा और फिर उनको अपने साथ ही अपने बेडरूम में सुलाने के लिए ले गया. हमारे बेडरूम में से ही अन्दर वाले कमरे का दरवाजा बना हुआ था जिसमें अनीता सोती थी. कुछ देर के बाद वो अपने हाथ पौंछती हुई कमरे में आई और सामने से गुजरी.
उसकी मटकती हुई गांड को देख कर मेरे मन में टीस सी उठने लगी. वो अन्दर चली गई और मैंने लाइट बन्द कर ली. कमरे में अन्धेरा हो गया लेकिन अनीता के कमरे की हल्की रोशनी अभी भी इधर आ रही थी.
मेरा हाथ मेरे तने हुए लंड पर चला गया. सोचने लगा कि चुदाई का मौका मिलना तो मुश्किल है लेकिन मुठ मारे बिना ये लौड़ा मुझे सोने नहीं देगा. मैं अपनी लोअर के अन्दर से ही अन्डवियर में हाथ डाल कर अपने लंड को सहलाने और मसलने लगा.
सलहज की चूत और गांड के बारे में सोच कर लंड काफी देर पहले से ही तना हुआ था इसलिए उसने अंडरवियर में ही टोपे को चिकना कर रखा था. जब मैंने लंड के टोपे को अपने हाथ से ऊपर नीचे करना शुरू किया तो मेरी आंखें स्वत: ही बंद होने लगीं.
उस समय हाथ मेरे लंड पर चल रहे थे लेकिन मन ख्यालों ही ख्यालों में अनीता की मैक्सी को उठाकर उसके बदन के दर्शन करने की कामुक कल्पनाओं में गोते लगाने लगा था. हाय … इसकी गांड … इसके स्तन … कितने रसीले होंगे अनीता के स्तन … चूस-चूस कर पी लूंगा उनको. कुछ ऐसी ही कल्पनाओं में डूबा हुआ मैं अपने लंड पर तेजी से हाथ को चला रहा था.
मेरी आंखें बंद थीं और बच्चे बगल में ही सो रहे थे. अंधरे में मुठ मारने के पूरे मजे ले रहा था. मन तो कर रहा था कि लोअर को निकाल दूं लेकिन सोचा कि कहीं अगर बच्चे जाग गये तो उन पर गलत असर जायेगा. इसलिए अंडरवियर के अंदर ही लंड को दबोचे रहा.
तेजी से हाथ लंड को रगड़ रहा था कि अचानक ही कमरे की लाइट जल गई. मैंने हड़बड़ाहट में एकदम से हाथ को लोअर के अंदर से बाहर खींच लिया. सामने दूसरे कमरे के दरवाजे पर अनीता खड़ी हुई थी. मैंने सोचा कि आज तो इसने मुझे शायद मुठ मारते हुए देख ही लिया होगा. मगर उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
