01-12-2024, 12:27 PM
भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ़्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा।
प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है, पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है? बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ?
पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी। मेरी आवाज़ सुनते ही वह होश मैं आई और पूछा "क्या बोल रहे हो भईया?"
मैंने दोबारा पूछा "तेरे अंदर ही डिस्चार्ज होना है या बाहर?"
यह सुन कर प्रीति बोली "नहीं बाहर नहीं निकालना है मेरे भोले भैया, अंदर ही चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार, इस पल को इतना यादगार बना दो की हम कभी इसे ना भूल सके।"
यह सुनकर मैंने पूरी शक्ति लगाकर प्रीति को बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ़्तार को किसी वाइब्रेटर के समान तेज कर दिया और कुछ मिनट बाद ही आख़िर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में पूरे प्रेशर से छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी। स्खलित होने के कुछ सेकंड पहले मैंने मेरे लिंग इतनी ज़ोर से प्रीति की योनि पर दबाया कि सारा का सारा लिंग योनि में समा गया और मेरे लिंग के ऊपर की हड्डी और प्रीति की योनि के ऊपर की हड्डी आपस में इस तरह टकराई मानो कुदरत कह रही हो कि इससे आगे बढ़ने की अब-अब कोई संभावना नहीं है तुम्हारे पास।
मेरे जोरदार दबाव के कारण प्रीति का शरीर भी बेड के ऊपर की और खिसकने लगा, जिसे मैंने उसके कंधों को पकड़ कर नीचे की और खिंच कर रोका।
बहुत दिनों तक सेक्स या हस्त मैथुन नहीं करने के कारण मानो वीर्य का गर्म ज्वालामुखी मेरे शरीर में जमा हो गया था, जो आज मेरी प्यारी-सी नाज़ुक बहन की योनि की गहराईयों में फट पड़ा था। प्रीति का स्खलन भी साथ में होने के कारण उसकी योनी की गहराई में गर्म लावे का सैलाब आ गया था। जिसका असर प्रीति के शरीर की प्रतिक्रिया से साफ़ जाहिर हो रहा था। उसका पसीने से लथपथ बदन जोर-जोर से झटके ले रहा था। शरीर रह-रह कर अकड़ रहा था। मैं बस जैसे तैसे उसे सम्भाले हुए था।
उस समय प्रीति के प्यारे मासूम चेहरे पर आ रहे चरमसुख (आॅरगेस्म) के भावों को देखने से मुझे मिल रहे चरमसुख के अहसासों को कई गुना बढ़ा रहे थे।
लगभग 5-10 मिनट तक हम दोनों के नग्न शरीर एक दूसरे में किसी नाग नागिन के जोड़े की तरह लिपटे रहे और मेरा वीर्य भी झटके ले के कर लिंग से निकालता रहा और योनि की गागर को भरता रहा। इस दौरान प्रीति भी अपने मुलायम हाथों से मेरी पीठ और कुल्हों को सहला कर और होठों के चुंबन से मानो मुझे शाबासी दे रही थी।
हम दोनों थकान और सेक्स का चरमसुख मिलने के कारण लगभग बेहोश हो गए थे।
मैंने घड़ी पर नज़र डाली तो देखा कि सुबह के पाँच बजे थे। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि पिछले 5-6 घंटों से मैं प्रीति को लगातार चोद रहा था और प्रीति की भी हिम्मत और समर्पण की दाद देनी पड़ेगी की अपने भाई को अपना कौमार्य तो समर्पित किया ही साथ ही पहली बार में ही इतनी लंबी चुदाई को सहन भी किया।
अब हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर गहरी नींद में जा चुके थे। मेरा लिंग भी वीर्य स्खलन होने के बाद पता नहीं कब नर्म होकर धीरे-धीरे प्रीति की योनि से बाहर आ गया और योनि में भरा ढेर सारा द्रव्य भी बेड पर फैलता चला गया।
अगले दिन दोपहर लगभग 12 बजे तक हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सोते रहे।
सुबह प्रीति से पहले मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि आधा दिन बीत चुका है और मेरी प्यारी बहन अब भी गहरी नींद में है और पूरी नग्न अवस्था में मेरे बेड पर किसी बहुत पसंदीदा तोहफे की तरह सजी हुई है। मैंने बहुत ही प्यार से उसके माथे को चूम कर उसके गालों को सहलाते हुए उसे उठाया।
वह घबरा कर अचानक उठ कर बैठ गई और मुझसे नज़दीक पाकर तुरंत मुझसे लिपट गई।
मैंने आश्चर्य से पूछा "क्या हुआ मेरी जान?"
वह बोली "रात में जो हुआ क्या वह सब हक़ीक़त था या कोई सपना था भैया?"
मैं मुस्कराते हुए बोला "वह सपना था"।
यह बोल कर मैंने अपने बेड की और इशारा किया और उठ कर खड़ा हो गया।
उसने मेरे नंगे बदन पर नज़र घूमाते हुए बेड पर नज़र डाली।
सारा बिस्तर बेतरतीब हो रहा था। बेडशीट पर खून के निशान थे जो प्रीति का कौमार्य भंग होने के कारण लगे थे और ढेर सारे वीर्य और योनि से निकलने वाले पदार्थ के दाग थे। उसके बाद अचानक प्रीति का ध्यान ख़ुद के बदन पर गया, जो अब भी पूरी तरह नग्न था। उसके हाथ अनायास ही अपने विशाल सख्त स्तनों को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगे।
अब उसकी आँखों के आगे रात का सारा घटना क्रम घूमने लगा। मैं बड़े प्यार से उसके चेहरे के पल-पल बदलते भावों को देख रहा था।
कुछ पलों तक सोचने के बाद प्रीति लड़खड़ाती आवाज़ में बोली "मेरे कपड़े कहाँ है भैया?"
इस बार भी मैंने बेडरूम के एक कोने में पड़े उसके कटे-फटे गाउन, ब्रा और पैंटी की और इशारा किया।
नग्न अवस्था में ही वह वहाँ तक पहुची और कटे हुए ब्रा और गाउन के टुकड़े को उठा कर मुझे गुस्से से देखने लगी।
मैं अब भी उसे देख कर मुस्करा रहा था।
कुछ सोच कर वह चलते हुए मेरे करीब आई और मेरे चेहरे के पास अपना प्यारा-सा खूबसूरत चेहरा नज़दीक लाकर धीरे से बोली "तुमने बड़ी ही चालाकी और खूबसूरती से अपनी सगी बहन को पाने के लिए ये जाल बुना था और बड़ी आसानी से कामयाब भी हो गये।"
"है ना मेरे प्यारे भैया?"
मेने भी अपने चेहरे को उसके थोड़ा और नज़दीक ले जाकर बड़े ही आत्म विश्वास से कहा "अपने भाई की चालाकी पर कोई शक है क्या मेरी प्यारी बहन?"
इस जवाब का इनाम मुझे तुरंत ही मिल गया।
प्रीति ने अपने एक हाथ से मेरे बालों को पकड़ कर मेरे सर को अपने चेहरे की और खींचा और
एक बहुत ही प्यारा-सा होंठो का चुंबन शुरू कर दिया और अपनी ज़ुबान मेरे मुंह में घुमाने लगी, साथ ही उसके दूसरे हाथ से मेरे शिथिल लिंग को सहलाने लगा।
मैं भी कहाँ कम था, मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके गोल-मटोल बड़े-बड़े कुल्हों में अपनी उंगलियों को दबाते हुए उसका पूरा बदन अपनी और खिंच लिया और चुंबन में पूरा योगदान देने लगा।
प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है, पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है? बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ?
पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी। मेरी आवाज़ सुनते ही वह होश मैं आई और पूछा "क्या बोल रहे हो भईया?"
मैंने दोबारा पूछा "तेरे अंदर ही डिस्चार्ज होना है या बाहर?"
यह सुन कर प्रीति बोली "नहीं बाहर नहीं निकालना है मेरे भोले भैया, अंदर ही चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार, इस पल को इतना यादगार बना दो की हम कभी इसे ना भूल सके।"
यह सुनकर मैंने पूरी शक्ति लगाकर प्रीति को बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ़्तार को किसी वाइब्रेटर के समान तेज कर दिया और कुछ मिनट बाद ही आख़िर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में पूरे प्रेशर से छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी। स्खलित होने के कुछ सेकंड पहले मैंने मेरे लिंग इतनी ज़ोर से प्रीति की योनि पर दबाया कि सारा का सारा लिंग योनि में समा गया और मेरे लिंग के ऊपर की हड्डी और प्रीति की योनि के ऊपर की हड्डी आपस में इस तरह टकराई मानो कुदरत कह रही हो कि इससे आगे बढ़ने की अब-अब कोई संभावना नहीं है तुम्हारे पास।
मेरे जोरदार दबाव के कारण प्रीति का शरीर भी बेड के ऊपर की और खिसकने लगा, जिसे मैंने उसके कंधों को पकड़ कर नीचे की और खिंच कर रोका।
बहुत दिनों तक सेक्स या हस्त मैथुन नहीं करने के कारण मानो वीर्य का गर्म ज्वालामुखी मेरे शरीर में जमा हो गया था, जो आज मेरी प्यारी-सी नाज़ुक बहन की योनि की गहराईयों में फट पड़ा था। प्रीति का स्खलन भी साथ में होने के कारण उसकी योनी की गहराई में गर्म लावे का सैलाब आ गया था। जिसका असर प्रीति के शरीर की प्रतिक्रिया से साफ़ जाहिर हो रहा था। उसका पसीने से लथपथ बदन जोर-जोर से झटके ले रहा था। शरीर रह-रह कर अकड़ रहा था। मैं बस जैसे तैसे उसे सम्भाले हुए था।
उस समय प्रीति के प्यारे मासूम चेहरे पर आ रहे चरमसुख (आॅरगेस्म) के भावों को देखने से मुझे मिल रहे चरमसुख के अहसासों को कई गुना बढ़ा रहे थे।
लगभग 5-10 मिनट तक हम दोनों के नग्न शरीर एक दूसरे में किसी नाग नागिन के जोड़े की तरह लिपटे रहे और मेरा वीर्य भी झटके ले के कर लिंग से निकालता रहा और योनि की गागर को भरता रहा। इस दौरान प्रीति भी अपने मुलायम हाथों से मेरी पीठ और कुल्हों को सहला कर और होठों के चुंबन से मानो मुझे शाबासी दे रही थी।
हम दोनों थकान और सेक्स का चरमसुख मिलने के कारण लगभग बेहोश हो गए थे।
मैंने घड़ी पर नज़र डाली तो देखा कि सुबह के पाँच बजे थे। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि पिछले 5-6 घंटों से मैं प्रीति को लगातार चोद रहा था और प्रीति की भी हिम्मत और समर्पण की दाद देनी पड़ेगी की अपने भाई को अपना कौमार्य तो समर्पित किया ही साथ ही पहली बार में ही इतनी लंबी चुदाई को सहन भी किया।
अब हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर गहरी नींद में जा चुके थे। मेरा लिंग भी वीर्य स्खलन होने के बाद पता नहीं कब नर्म होकर धीरे-धीरे प्रीति की योनि से बाहर आ गया और योनि में भरा ढेर सारा द्रव्य भी बेड पर फैलता चला गया।
अगले दिन दोपहर लगभग 12 बजे तक हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सोते रहे।
सुबह प्रीति से पहले मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि आधा दिन बीत चुका है और मेरी प्यारी बहन अब भी गहरी नींद में है और पूरी नग्न अवस्था में मेरे बेड पर किसी बहुत पसंदीदा तोहफे की तरह सजी हुई है। मैंने बहुत ही प्यार से उसके माथे को चूम कर उसके गालों को सहलाते हुए उसे उठाया।
वह घबरा कर अचानक उठ कर बैठ गई और मुझसे नज़दीक पाकर तुरंत मुझसे लिपट गई।
मैंने आश्चर्य से पूछा "क्या हुआ मेरी जान?"
वह बोली "रात में जो हुआ क्या वह सब हक़ीक़त था या कोई सपना था भैया?"
मैं मुस्कराते हुए बोला "वह सपना था"।
यह बोल कर मैंने अपने बेड की और इशारा किया और उठ कर खड़ा हो गया।
उसने मेरे नंगे बदन पर नज़र घूमाते हुए बेड पर नज़र डाली।
सारा बिस्तर बेतरतीब हो रहा था। बेडशीट पर खून के निशान थे जो प्रीति का कौमार्य भंग होने के कारण लगे थे और ढेर सारे वीर्य और योनि से निकलने वाले पदार्थ के दाग थे। उसके बाद अचानक प्रीति का ध्यान ख़ुद के बदन पर गया, जो अब भी पूरी तरह नग्न था। उसके हाथ अनायास ही अपने विशाल सख्त स्तनों को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगे।
अब उसकी आँखों के आगे रात का सारा घटना क्रम घूमने लगा। मैं बड़े प्यार से उसके चेहरे के पल-पल बदलते भावों को देख रहा था।
कुछ पलों तक सोचने के बाद प्रीति लड़खड़ाती आवाज़ में बोली "मेरे कपड़े कहाँ है भैया?"
इस बार भी मैंने बेडरूम के एक कोने में पड़े उसके कटे-फटे गाउन, ब्रा और पैंटी की और इशारा किया।
नग्न अवस्था में ही वह वहाँ तक पहुची और कटे हुए ब्रा और गाउन के टुकड़े को उठा कर मुझे गुस्से से देखने लगी।
मैं अब भी उसे देख कर मुस्करा रहा था।
कुछ सोच कर वह चलते हुए मेरे करीब आई और मेरे चेहरे के पास अपना प्यारा-सा खूबसूरत चेहरा नज़दीक लाकर धीरे से बोली "तुमने बड़ी ही चालाकी और खूबसूरती से अपनी सगी बहन को पाने के लिए ये जाल बुना था और बड़ी आसानी से कामयाब भी हो गये।"
"है ना मेरे प्यारे भैया?"
मेने भी अपने चेहरे को उसके थोड़ा और नज़दीक ले जाकर बड़े ही आत्म विश्वास से कहा "अपने भाई की चालाकी पर कोई शक है क्या मेरी प्यारी बहन?"
इस जवाब का इनाम मुझे तुरंत ही मिल गया।
प्रीति ने अपने एक हाथ से मेरे बालों को पकड़ कर मेरे सर को अपने चेहरे की और खींचा और
एक बहुत ही प्यारा-सा होंठो का चुंबन शुरू कर दिया और अपनी ज़ुबान मेरे मुंह में घुमाने लगी, साथ ही उसके दूसरे हाथ से मेरे शिथिल लिंग को सहलाने लगा।
मैं भी कहाँ कम था, मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके गोल-मटोल बड़े-बड़े कुल्हों में अपनी उंगलियों को दबाते हुए उसका पूरा बदन अपनी और खिंच लिया और चुंबन में पूरा योगदान देने लगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.