28-11-2024, 07:28 PM
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प्रीति बोली "तुम मेरे दर्द और रोने की चिंता बिल्कुल मत करो। बिना चिंता आगे का काम शुरू करो। तुम्हारी बहन भी आज तुम्हें पूरी तरह से संतुष्ट करेगी, समझे? आज रात भले ही मेरी जान चली जाए पर मेरे भाई को जीवन की सबसे बड़ी खुशी देना है मुझे। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ।"
मैंने जोश में आकार तुरंत प्रीति को पुरानी पोजीशन में लिया और दोनों के शरीर पर रजाई औढ ली।
मेरा लिंग तो अभी भी लोहे की रॉड की तरह सख्त था लिंग का मुहाना प्रीति की गीली योनि पर रख कर मैं मिशीनरी पोजिशन में आ गया और अब हम दोनों फिर पुरानी पोजीशन में थे और दोनों ने किसिंग शुरू कर दी थी। बस अन्तर था प्रीति का जोश दिलाने वाली बातों का और उसके अपने भाई के प्रति समर्पण का। रात साढ़े बारह बजे थे इस वक्त। मैंने लिंग पर दबाव बनाते हुए अपनी कमर को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और प्रीति की चीखे फिर शुरू हो गई। पाँच मिनट में ही मैंने पाया कि लिंग लगभग तीन इंच अंदर जा चुका था और प्रीति का प्री-कम बेतहाशा उसकी योनि से छूट रहा है। अब धीरे-धीरे मैंने इसी पोजीशन में रहते हुए तीन इंच लिंग को ही अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। वियाग्रा कि गोली का हेवी डोज लेने के कारण मेरा जोश सातवें असमान पर था इस कारण इसी पोजीशन में बिना रुके मैं लगातार एक घंटे तक झटके लगाता रहा प्रीति भी मेरा भरपूर साथ दे रही थी और अपने पेरों और हाथो से मुझे प्रोत्साहित कर रही थी। उसकी चीखें अब मादक सिसकारीयों में बदल गई थी। योनि में अधिक प्री कम होने के कारण फचाक-फ़चाक की जोरदार आवाजें आ रही थी। रजाई के अंदर दोनों के बदन पसीने से इतने भीग गए कि प्रीति के शरीर और बेड शीट मुझे गीली महसूस होने लगी थी। एक घंटे तक लगातार उछलने के कारण मुझे थकान होने लगी थी इस के कारण मैं कुछ देर रुक गया। प्रीति की सांसे बेतहाशा उपर नीचे हो रही थी और मेरी भी। पांच मिनट आराम करने के बाद मैं प्रीति से बोला कैसा लगा रहा है मेरी प्यारी बहन। यह सुन कर उसने मुझे एक प्यारा चुम्बन दिया और बोली "मेरा भाई तो बहुत ही शैतान निकला और ताकतवर भी। इतना जोश कहाँ से आया तुम्हारे अंदर।" मैं बोला "तुम्हारी बातों से मेरी जान, तुम भी कितना साथ दे रही हो मेरा। अभी तक एक बार भी स्खलित नहीं हुई हो तुम।" प्रीति बोली तुम्हारी बहन भी इतनी कमजोर नहीं है भईया पहली बार ज़रूर सेक्स कर रही हूँ पर तुमको बराबरी की टक्कर देने का इरादा है मेरा और मेरे प्यारे भैया क्या आधे ही लिंग का हक है मेरा पूरा क्या अपनी पत्नी के लिए बचा रखा है। "मैं मुस्कुराया और प्रीति से कहा अब तैयार हो जा अपने भाई की असली ताकत देखने के लिए। मैंने लिंग को हाथ से महसूर किया कि लगातार एक घंटे के झटकों से चार से पांच इंच लिंग अंदर जा चुका है अब लगभग आधा और बाकी है। मैंने उसकी पेरों को फिर अपने कंधों पर उलझाया और लिंग को पूरी ताकत लगा कर अंदर दबाने लगा। इस बार मैंने प्रीति का मुह बंद नहीं किया क्योंकि मुझे उसकी चीखें सुनना थी। मैंरी पूरी ताकत लगाने और ढेर सारा प्री कम होने के कारण मुझे चमत्कार होता नजर आया और 15 मिनट तक लगातार दबाव बनाने के कारण लिंग योनि में लगभग 7 इंच तक उतर गया और मुझे महसूस हुआ कि आगे रास्ता बंद है। इस दौरान प्रीति की जोरदार चीखें मुझे उत्साहित करती रही पर बाहर होती मूसलाधार बारिश और बंद दरवाजों में दबकर रह गई और प्रीति ने दर्द सहन करने के लिए मेरी पीठ को नाखून से नोच कर जख्मी कर दिया। इसके बदले में मैं भी कभी उसके गाल पर, कभी कन्धों पर तो कभी उसके बूब्स पर दाँतों से काटता रहा। अब प्रीति का शरीर दर्द से थोड़ी देर तक काँपता रहा। जब वह शांत हुई तो उसने लंबी-लंबी साँसे लेते हुए मुझसे पूछा" क्या हुआ भईया गया क्या पूरा अंदर? "मैंने कहा" आगे रास्ता बंद है मेरी बहन। " उसने अपने हाथो से मेरे लिंग का मुआयना किया और पाया कि लगभग दो इंच लिंग अंदर जाना और बाकी था। उसने कहा और थोड़ा जोर लगाओ मेरे भाई, अंदर एग्जस्ट हो जाएगा। यह सुन कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मेने फिर अपनी पूरी ताकत लगाकर दबाव डाला तो प्रीति ने भी अपने हाथो से मेरे कूल्हों को-को अपनी और खींचा। इसका नतीजा यह रहा कि 8 इंच लम्बा और 3 मोटा भीमकाय लिंग मेरी मासूम-सी बहन की छोटी-सी अनछुई योनि में प्रवेश कर चुका था। मेरी बहन दर्द के मारे तड़प रही थी कांप रही थी और में उसके चेहरे बूब्स और वालों को सहला कर और उसके चेहरे को चूम कर उसको दिलासा दे रहा था।
प्रीति की योनि मुझे इतनी कसी हुई महसूस हो रही थी मानो किसी-किसी ताकतवर पहलवान ने दोनों हाथों से अपनी मुट्ठीयों में मेरे लिंग को कस रखा है।
कुछ समय बिना किसी हलचल के बीत गया। प्रीति बोली "अब मेरा भाई खुश हैं ना कि कोई तो है जो उसको पूरी खुशी दे सकती है। मेने कहा हाँ मेरी प्यारी बहन मान गया तुझे की तू अपने भाई के लिए जान भी दे सकती है।"
कुछ देर बाद प्रीति बोली "चल अब शुरू हो जा अपनी बहन को जन्नत में पहुचाने के लिए।" मैंने कहा तू अकेली थोड़े ही है मैं भी तो आऊंगा तेरे साथ। यह कहकर मेने उसके पैरों को आजाद कर दिया जिससे प्रीति के पैर सीधे हो गए और अराम की मुद्रा में आ गई। अब मैंने झटके प्रारम्भ करने के लिए जैसे ही अपनी कमर को उठाने की कोशिश की मैंने पाया के मेरे लिंग में बुरी तरह से फंस कर प्रीति के शरीर का निचला हिस्सा भी उपर उठ रहा है। मेने महसूस किया कि प्रीति की योनि से मेरा लिंग बाहर नहीं आ पा रहा था। योनि के अंदर हवा वेक्युम बनने के कारण शायद ऎसा हो रहा था। ऎसा मेरे अत्यधिक मोटे और लंबे लिंग और प्रीति की कुछ ज़्यादा ही टाइट योनि के कारण हुआ था। यह स्थिति वेसी ही थी जैसी कुत्ते और कुतिया के सेक्स के बाद होती है। हम दोनों ने एक दूसरे को आश्चर्य से देखा। मैंने प्रीति से मजाक में कहा कि अब तो हम हमेशा के लिए जुड़ गए हैं, अब मेरी जान मुझसे कभी भी दूर नहीं हो सकती। ऎसा सुनकर प्रीति अपनी मुट्ठीयों से मेरे सीने पर मारने लगी और बोली "अब क्या होगा भैया, ये कैसे बाहर आएगा?"
मेरी हँसी नहीं रुक रही थी यह देख कर प्रीति को भी हंसी आने लगी। मैंने कहा रुको कुछ करता हूँ।
मैंने दोनों हाथों से प्रीति की कमर के निचले हिस्से को पकड़ कर प्रीति की शरीर को नीचे बेड की और दबाया और साथ ही अपनी कमर को ऊपर खींचा। इससे लिंग का कुछ हिस्सा योनि के बाहर आ गया। अब मेने अपने दोनों हाथों से प्रीति के दोनों हाथों को उसके सिर के ऊपर खींचा और उभरे हुए बड़े-बड़े बूब्स को चूसते हुए कमर के झटके प्रारम्भ किए। मैंने जैसे ही पहला झटका नीचे की और दिया निकला हुआ लिंग फिर अंदर चला गया। अब मेने बिना रुके झटके देना शुरू कर दिए। मैं जितनी बार मेरी कमर को ऊपर खीचता प्रीति का शरीर लिंग में फँस कर ऊपर उठ आता और जैसे ही नीचे झटका देता प्रीति के कूल्हे बेड से टकराते जिससे मेरा लिंग किसी कील की भांति प्रीति की योनि में धंस जाता। यह बिल्कुल वैसा ही थे जैसे हम किसी कुल्हाड़ी के अंदर लकड़ी का हत्था ठोकते हैं। इस प्रक्रिया में मेरे लिंग दो इंच बाहर आकर ढाई इंच अंदर चले जाता था। 10-15 मिनट के झटकों में ही मेने किला फतह कर लिया था और पूरा का पूरा लिंग योनि में प्रवेश कर गया था और प्रीति चीखते सिसकारते हुए पहली बार स्खलित हुई और बेसुध हो गई थी। मुझे उस पर दया आ गई और मैं रुक गया। लगभग 5-10 मिनट उसकी बेहोशी की अवस्था में उसे प्यार करता रहा, उसके होठों को चूसा और बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बाद उसने आँखें खोली और बोली भैया तुमने तो सच में मुझे जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने कहा "एक खुश खबरी और है" , वह बोली "क्या?"
मैं बोला तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई, पूरा लिंग अंदर ले ही लिया अखिर तुमने और तुमसे जीत भी गया मैं। तुम पहली बार झड़ चुकी हो और मैं नहीं झड़ा हूँ अभी।
प्रीति बोली "क्या सच में? पूरा चला गया अंदर? मुझे यकीन नहीं हो रहा है।"
प्रीति ने राहत की साँस लेते हुए कहा "मतलब अब इससे ज़्यादा दर्द नहीं सहना है मुझे।"
मैंने कहा "मेरा भी स्पर्म बाहर आने में योगदान करो मेरी बहन तुम्हारा भाई भी जन्नत के मजे लेना चाहता है।"
प्रीति ने अपने पैरों को दूर करते हुए और मेरे मुँह को पकड़ कर एक प्यारा चुंबन लिया और मेरी आँखो में झाँकते हुए बोली "तो आओ मेरे प्यारे भईया, देखते हैं अपनी बहन को पहली बार झड़ने से पहले कितनी बार जन्नत दिखा पाते हो।" ऎसा कहकर वह मेरे चेहरे को अपने बूब्स पर ले गई अपने निप्पल को मेरे मुँह में पिलाकर अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कामुकता भारी अंगड़ाई लेने लगी।
मैं तो इसी बात का इंतजार कर रहा था। रात के दो लगभग दो बज चुके थे और मेरा जोश अब भी अपने चरम पर था। अब मैंने प्रीति की टांगों को ऊपर उठकर फिर से उसे चोदना शुरु किया। इस बार मैं मेरा लिंग प्रीति के स्खलन के कारण असानी से अंदर बाहर कर पा रहा था। जैसे ही मैंने पहली बार लिंग को पूरा बाहर किया प्रीति ने मुझे इस तरह जकड़ा कि मैं कही भाग रहा हूँ। यह देख कर मुझे हंसी आ गई तो प्रीति बोली "उसे अंदर करो जल्दी भईया वर्ना मेरी जान निकल जाएगी।" मैंने भी गपाक से पूरा 9 इंच लिंग उसकी योनि में डाल दिया और प्रीति ने कामुक सिसकारी के साथ राहत की साँस ली। अब शुरू हुआ मेरा तांडव। मेरे झटकों का सैलाब जो शुरू हुआ तो लगातार चलता ही रहा। किसी पिस्टन की भांति मेरा भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा। प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में-में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झाड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ। पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी, मेरी बात सुनते ही वह बोली नहीं बाहर नहीं पागल अंदर ही चाहिए मुझे तेरा प्यार, प्लीज।
यह सुनकर मैंने प्रीति को पूरी शक्ति लगाकर बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ्तार को अलग ही लेवल पर ले गया और अखिर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी।
मैंने जोश में आकार तुरंत प्रीति को पुरानी पोजीशन में लिया और दोनों के शरीर पर रजाई औढ ली।
मेरा लिंग तो अभी भी लोहे की रॉड की तरह सख्त था लिंग का मुहाना प्रीति की गीली योनि पर रख कर मैं मिशीनरी पोजिशन में आ गया और अब हम दोनों फिर पुरानी पोजीशन में थे और दोनों ने किसिंग शुरू कर दी थी। बस अन्तर था प्रीति का जोश दिलाने वाली बातों का और उसके अपने भाई के प्रति समर्पण का। रात साढ़े बारह बजे थे इस वक्त। मैंने लिंग पर दबाव बनाते हुए अपनी कमर को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और प्रीति की चीखे फिर शुरू हो गई। पाँच मिनट में ही मैंने पाया कि लिंग लगभग तीन इंच अंदर जा चुका था और प्रीति का प्री-कम बेतहाशा उसकी योनि से छूट रहा है। अब धीरे-धीरे मैंने इसी पोजीशन में रहते हुए तीन इंच लिंग को ही अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। वियाग्रा कि गोली का हेवी डोज लेने के कारण मेरा जोश सातवें असमान पर था इस कारण इसी पोजीशन में बिना रुके मैं लगातार एक घंटे तक झटके लगाता रहा प्रीति भी मेरा भरपूर साथ दे रही थी और अपने पेरों और हाथो से मुझे प्रोत्साहित कर रही थी। उसकी चीखें अब मादक सिसकारीयों में बदल गई थी। योनि में अधिक प्री कम होने के कारण फचाक-फ़चाक की जोरदार आवाजें आ रही थी। रजाई के अंदर दोनों के बदन पसीने से इतने भीग गए कि प्रीति के शरीर और बेड शीट मुझे गीली महसूस होने लगी थी। एक घंटे तक लगातार उछलने के कारण मुझे थकान होने लगी थी इस के कारण मैं कुछ देर रुक गया। प्रीति की सांसे बेतहाशा उपर नीचे हो रही थी और मेरी भी। पांच मिनट आराम करने के बाद मैं प्रीति से बोला कैसा लगा रहा है मेरी प्यारी बहन। यह सुन कर उसने मुझे एक प्यारा चुम्बन दिया और बोली "मेरा भाई तो बहुत ही शैतान निकला और ताकतवर भी। इतना जोश कहाँ से आया तुम्हारे अंदर।" मैं बोला "तुम्हारी बातों से मेरी जान, तुम भी कितना साथ दे रही हो मेरा। अभी तक एक बार भी स्खलित नहीं हुई हो तुम।" प्रीति बोली तुम्हारी बहन भी इतनी कमजोर नहीं है भईया पहली बार ज़रूर सेक्स कर रही हूँ पर तुमको बराबरी की टक्कर देने का इरादा है मेरा और मेरे प्यारे भैया क्या आधे ही लिंग का हक है मेरा पूरा क्या अपनी पत्नी के लिए बचा रखा है। "मैं मुस्कुराया और प्रीति से कहा अब तैयार हो जा अपने भाई की असली ताकत देखने के लिए। मैंने लिंग को हाथ से महसूर किया कि लगातार एक घंटे के झटकों से चार से पांच इंच लिंग अंदर जा चुका है अब लगभग आधा और बाकी है। मैंने उसकी पेरों को फिर अपने कंधों पर उलझाया और लिंग को पूरी ताकत लगा कर अंदर दबाने लगा। इस बार मैंने प्रीति का मुह बंद नहीं किया क्योंकि मुझे उसकी चीखें सुनना थी। मैंरी पूरी ताकत लगाने और ढेर सारा प्री कम होने के कारण मुझे चमत्कार होता नजर आया और 15 मिनट तक लगातार दबाव बनाने के कारण लिंग योनि में लगभग 7 इंच तक उतर गया और मुझे महसूस हुआ कि आगे रास्ता बंद है। इस दौरान प्रीति की जोरदार चीखें मुझे उत्साहित करती रही पर बाहर होती मूसलाधार बारिश और बंद दरवाजों में दबकर रह गई और प्रीति ने दर्द सहन करने के लिए मेरी पीठ को नाखून से नोच कर जख्मी कर दिया। इसके बदले में मैं भी कभी उसके गाल पर, कभी कन्धों पर तो कभी उसके बूब्स पर दाँतों से काटता रहा। अब प्रीति का शरीर दर्द से थोड़ी देर तक काँपता रहा। जब वह शांत हुई तो उसने लंबी-लंबी साँसे लेते हुए मुझसे पूछा" क्या हुआ भईया गया क्या पूरा अंदर? "मैंने कहा" आगे रास्ता बंद है मेरी बहन। " उसने अपने हाथो से मेरे लिंग का मुआयना किया और पाया कि लगभग दो इंच लिंग अंदर जाना और बाकी था। उसने कहा और थोड़ा जोर लगाओ मेरे भाई, अंदर एग्जस्ट हो जाएगा। यह सुन कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मेने फिर अपनी पूरी ताकत लगाकर दबाव डाला तो प्रीति ने भी अपने हाथो से मेरे कूल्हों को-को अपनी और खींचा। इसका नतीजा यह रहा कि 8 इंच लम्बा और 3 मोटा भीमकाय लिंग मेरी मासूम-सी बहन की छोटी-सी अनछुई योनि में प्रवेश कर चुका था। मेरी बहन दर्द के मारे तड़प रही थी कांप रही थी और में उसके चेहरे बूब्स और वालों को सहला कर और उसके चेहरे को चूम कर उसको दिलासा दे रहा था।
प्रीति की योनि मुझे इतनी कसी हुई महसूस हो रही थी मानो किसी-किसी ताकतवर पहलवान ने दोनों हाथों से अपनी मुट्ठीयों में मेरे लिंग को कस रखा है।
कुछ समय बिना किसी हलचल के बीत गया। प्रीति बोली "अब मेरा भाई खुश हैं ना कि कोई तो है जो उसको पूरी खुशी दे सकती है। मेने कहा हाँ मेरी प्यारी बहन मान गया तुझे की तू अपने भाई के लिए जान भी दे सकती है।"
कुछ देर बाद प्रीति बोली "चल अब शुरू हो जा अपनी बहन को जन्नत में पहुचाने के लिए।" मैंने कहा तू अकेली थोड़े ही है मैं भी तो आऊंगा तेरे साथ। यह कहकर मेने उसके पैरों को आजाद कर दिया जिससे प्रीति के पैर सीधे हो गए और अराम की मुद्रा में आ गई। अब मैंने झटके प्रारम्भ करने के लिए जैसे ही अपनी कमर को उठाने की कोशिश की मैंने पाया के मेरे लिंग में बुरी तरह से फंस कर प्रीति के शरीर का निचला हिस्सा भी उपर उठ रहा है। मेने महसूस किया कि प्रीति की योनि से मेरा लिंग बाहर नहीं आ पा रहा था। योनि के अंदर हवा वेक्युम बनने के कारण शायद ऎसा हो रहा था। ऎसा मेरे अत्यधिक मोटे और लंबे लिंग और प्रीति की कुछ ज़्यादा ही टाइट योनि के कारण हुआ था। यह स्थिति वेसी ही थी जैसी कुत्ते और कुतिया के सेक्स के बाद होती है। हम दोनों ने एक दूसरे को आश्चर्य से देखा। मैंने प्रीति से मजाक में कहा कि अब तो हम हमेशा के लिए जुड़ गए हैं, अब मेरी जान मुझसे कभी भी दूर नहीं हो सकती। ऎसा सुनकर प्रीति अपनी मुट्ठीयों से मेरे सीने पर मारने लगी और बोली "अब क्या होगा भैया, ये कैसे बाहर आएगा?"
मेरी हँसी नहीं रुक रही थी यह देख कर प्रीति को भी हंसी आने लगी। मैंने कहा रुको कुछ करता हूँ।
मैंने दोनों हाथों से प्रीति की कमर के निचले हिस्से को पकड़ कर प्रीति की शरीर को नीचे बेड की और दबाया और साथ ही अपनी कमर को ऊपर खींचा। इससे लिंग का कुछ हिस्सा योनि के बाहर आ गया। अब मेने अपने दोनों हाथों से प्रीति के दोनों हाथों को उसके सिर के ऊपर खींचा और उभरे हुए बड़े-बड़े बूब्स को चूसते हुए कमर के झटके प्रारम्भ किए। मैंने जैसे ही पहला झटका नीचे की और दिया निकला हुआ लिंग फिर अंदर चला गया। अब मेने बिना रुके झटके देना शुरू कर दिए। मैं जितनी बार मेरी कमर को ऊपर खीचता प्रीति का शरीर लिंग में फँस कर ऊपर उठ आता और जैसे ही नीचे झटका देता प्रीति के कूल्हे बेड से टकराते जिससे मेरा लिंग किसी कील की भांति प्रीति की योनि में धंस जाता। यह बिल्कुल वैसा ही थे जैसे हम किसी कुल्हाड़ी के अंदर लकड़ी का हत्था ठोकते हैं। इस प्रक्रिया में मेरे लिंग दो इंच बाहर आकर ढाई इंच अंदर चले जाता था। 10-15 मिनट के झटकों में ही मेने किला फतह कर लिया था और पूरा का पूरा लिंग योनि में प्रवेश कर गया था और प्रीति चीखते सिसकारते हुए पहली बार स्खलित हुई और बेसुध हो गई थी। मुझे उस पर दया आ गई और मैं रुक गया। लगभग 5-10 मिनट उसकी बेहोशी की अवस्था में उसे प्यार करता रहा, उसके होठों को चूसा और बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बाद उसने आँखें खोली और बोली भैया तुमने तो सच में मुझे जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने कहा "एक खुश खबरी और है" , वह बोली "क्या?"
मैं बोला तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई, पूरा लिंग अंदर ले ही लिया अखिर तुमने और तुमसे जीत भी गया मैं। तुम पहली बार झड़ चुकी हो और मैं नहीं झड़ा हूँ अभी।
प्रीति बोली "क्या सच में? पूरा चला गया अंदर? मुझे यकीन नहीं हो रहा है।"
प्रीति ने राहत की साँस लेते हुए कहा "मतलब अब इससे ज़्यादा दर्द नहीं सहना है मुझे।"
मैंने कहा "मेरा भी स्पर्म बाहर आने में योगदान करो मेरी बहन तुम्हारा भाई भी जन्नत के मजे लेना चाहता है।"
प्रीति ने अपने पैरों को दूर करते हुए और मेरे मुँह को पकड़ कर एक प्यारा चुंबन लिया और मेरी आँखो में झाँकते हुए बोली "तो आओ मेरे प्यारे भईया, देखते हैं अपनी बहन को पहली बार झड़ने से पहले कितनी बार जन्नत दिखा पाते हो।" ऎसा कहकर वह मेरे चेहरे को अपने बूब्स पर ले गई अपने निप्पल को मेरे मुँह में पिलाकर अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कामुकता भारी अंगड़ाई लेने लगी।
मैं तो इसी बात का इंतजार कर रहा था। रात के दो लगभग दो बज चुके थे और मेरा जोश अब भी अपने चरम पर था। अब मैंने प्रीति की टांगों को ऊपर उठकर फिर से उसे चोदना शुरु किया। इस बार मैं मेरा लिंग प्रीति के स्खलन के कारण असानी से अंदर बाहर कर पा रहा था। जैसे ही मैंने पहली बार लिंग को पूरा बाहर किया प्रीति ने मुझे इस तरह जकड़ा कि मैं कही भाग रहा हूँ। यह देख कर मुझे हंसी आ गई तो प्रीति बोली "उसे अंदर करो जल्दी भईया वर्ना मेरी जान निकल जाएगी।" मैंने भी गपाक से पूरा 9 इंच लिंग उसकी योनि में डाल दिया और प्रीति ने कामुक सिसकारी के साथ राहत की साँस ली। अब शुरू हुआ मेरा तांडव। मेरे झटकों का सैलाब जो शुरू हुआ तो लगातार चलता ही रहा। किसी पिस्टन की भांति मेरा भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा। प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में-में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झाड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ। पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी, मेरी बात सुनते ही वह बोली नहीं बाहर नहीं पागल अंदर ही चाहिए मुझे तेरा प्यार, प्लीज।
यह सुनकर मैंने प्रीति को पूरी शक्ति लगाकर बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ्तार को अलग ही लेवल पर ले गया और अखिर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
