23-11-2024, 04:31 PM
याद किसी की आ ही जाती है,रोते-रोते।
उम्र गुजर गयी है,गम-ए-हिज्र ढोते-ढोते।।
सब कुछ गंवा दिया है,पास बचा क्या है।
खोने की आदत सी हो गयी,खोते-खोते।।
दिन तो गुजर जाता है , मशरूफियत मे।
पुरखतर होने लगती है , शाम होते-होते।।
खिंजा अड़ी है,चमन उजाड़ने पे अपना।
मगर हम थके नही हैं, शजर बोते-बोते।।
हर आहट पे जाग जाते हैं, हम अक्सर।
तेरे आने का गुमां होता है , सोते-सोते