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माँ बेटा एक दूजे के सहारे
#3
मैं पूरा का पूरा नंगा हो गया. मेरी आदत है कि जब मैं अकेला होता हूं ज्यादातर नंगा ही रहता हूं. उस दिन भी मैं अपने कपड़े उतार कर पूरा नंगा हो गया. मगर दरवाजा बंद करना मुझे याद ही नहीं रहा. मैं बेड पर लेट गया. मैंने लौड़े को हिलाना शुरू किया. पैंटी सूंघते हुए वो एक मिनट के अंदर ही पूरा टाइट हो गया. मैं पैंटी को लंड पर लगा कर मुठ मारने लगा. मेरी आंखें बंद थी. फिर कुछ देर तक मुठ मारने के बाद मैंने पैंटी को अपने मुँह पर रख लिया और जिस जगह पर माँ की चूत आती है उस जगह को चाटने लगा. मेरा लण्ड बहुत सख्त हो गया था और मेरा होने ही वाला था. ज्यों ज्यों मेरा वीर्यपात पास आ रहा था मेरे मुठ मारने की स्पीड तेज होती जा रही थी.

पता नहीं कब अचानक से माँ घर आ गयी और मुझे कहीं न पा कर वो मेरे रूम में आ गयी. उन्होंने मुझे मुठ मारते हुए देख लिया. एकदम से घबरा कर मैं उठ गया और खड़ा हो गया। पर मेरा वीर्यपात इतना पास था की मैं अभी भी अपने लण्ड को तेज तेज आगे पीछे कर रहा था. और मैं नंगा ही था.

मेर लण्ड लोहे की तरह था और मेरा काम पूरा होने ही वाला था तो लण्ड पर नसें तक दिख रही थी.

बस पैंटी मेरे मुँह में थी और लंड पर मेर हाथ चल रहे थे.. मैं मज़े में मुठ मार रहा था.

उन्होंने मुझे ऐसा करते देखा और चिल्लाईं- ये क्या कर रहे हो?

मैं डर गया ... मुझसे कुछ नहीं बोला गया.

माँ के आँखें आज फिर मेरे तने हुए लण्ड पर फिर से जम गयी थी. माँ गुस्से से मेरे पास आयी और मेरे हाथ से अपनी पैंटी छीनने की कोशिश की. मैंने जल्दी से मुँह से पैंटी हटाई और कुछ न सूझते हुए लण्ड को उस से ढकने की कोशिश की. इस कोशिश में लण्ड पर माँ की पैंटी लग गयी.

माँ ने पैंटी छीनने की कोशिश की तो गलती से उनका हाथ मेरे लौड़े पर लग गया। पैंटी उतारने की कोशिश में मेरा लौड़ा उनके हाथ में आ गया.

चाहे माँ ने जान भूझ कर मेरा लौड़ा पकड़ने की कोशिश न करी थी पर गलती से ही सही मेरा लौड़ा माँ के हाथ में आ गया.

ज्यों ही मेरे लौड़े पर माँ का हाथ पड़ा बस मेरे मुँह से एक जोर से आह की आवाज निकली और मेरे लौड़े ने अपने रस के धार छोड़नी शुरू कर दी. अब स्थिति यह थी की माँ के हाथ में मेरा लण्ड था जो अपनी पूरी ताकत से अपने माल निकल रहा था.

इस के पहले कि माँ अपने हाथ पीछे कर सके. उनका सारा हाथ मेरे लैंड के रस से भर गया। पूरा वीर्य उनके हाथ में गिर गया और कुछ छींटे तो उनकी साड़ी पर भी पद गए।

माँ को कुछ सूझ नहीं रहा था की वो क्या करे. उनका हाथ मेरे विर्य से भरा था.

उसके बाद मॉम ने मेरे हाथों से अपनी पेंटी खींची और चली गईं. मैं एकदम से घबरा गया था और उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था.

माँ गुस्से में थी. वो कुछ भी बोले बिना अपने कमरे में चली गयी.

मैं बहुत डर गया था. तो माँ के पीछे पीछे गया. मैंने माँ के कमरे के दरवाजे की दरार से देखा तो माँ ने मेरे वीर्य से भरा हुआ अपना हाथ अपने मुँह में डाल लिया और फिर वो अपने हाथ की उँगलियों से मेरे वीर्य को चाटने लगी.

मेरा लौड़ा तो माँ को मेरा वीर्य चाट ते देख कर फिर से एकदम खड़ा हो गया. पर मैंने कुछ नहीं किया और चुपचाप अपने कमरे में आ गया.

माँ ने भी कोई बात नहीं की। वो बस बिलकुल चुप थी. जैसे उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहे और क्या करे.

शाम को जब माँ सोफे पर बैठे थी तो मैंने उनसे बात की. मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा- मॉम मुझसे ग़लती हो गई

... आगे से ऐसा नहीं होगा.

माँ चुप रही. वो कुछ सोच में थी.

मैंने माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और माँ से कहा.

"माँ मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ. गुस्सा न हो कर प्लीज मेरी बात शांति और ध्यान से सुने. मैं आज के वाकये पर बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे सच में ऐसा नहीं करना चाहिए था. जो भी हुआ गलत हुआ. पर माँ आप ही सोचो मैं भी क्या करूँ. मेरे उम्र ३२ साल हो गयी है. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं की मैं रोज रोज किसी रंडी से अपना जोश उतार सकूँ. न ही मेरी शादी हो रही है. हम गरीब हैं इस लिए कोई रिश्तेदार मेरी शादी की लिए उत्सुक नहीं है. कोई भी आदमी अपनी बेटी मुझ से ब्याहना है चाहता. पर मेरी भी तो कुछ शारीरिक जरूरतें हैं. मैं क्या करु और जाऊँ तो कहाँ जाऊं। मुझे एक औरत के शरीर की बहुत चाहना होती है. पर गरीब होने के कारन कुछ कर नहीं सकता. "

माँ चुप रही. वो मेरी स्थिति समझ सकती थी पर वो बेचारी भी क्या करती.

मैं फिर बोला

"माँ. मैं जानता हूँ की जैसी मेरी स्थिति है ठीक वैसी ही हालत आप की भी है. आप भी एक मर्द के शरीर के लिए तरस रही है. आप भी अभी बहुत सुन्दर और जवान है. और आप तो पिछले १० साल से विधवा हैं. आप भी मेरी तरह चाहती है की आप की शारीरिक जरूरतों को कोई मर्द पूरा करे. मैंने आप को बहुत बार बाथरूम में अपनी उँगलियों से अपनी काम इच्छा रगड़ते देखा है. मैंने आप को कितनी ही बार खीरे या मूली से अपने आप को शांत करते देखा है. "

माँ की आँखें हैरानी से खुली रह गयी. वो नहीं जानती थी की मुझे उन की इस गुप्त काम क्रियाओँ के बारे में पता है. उन होने मुझे रोकने और न करने के लिए मुँह खोला ही था पर मैंने उन्हें बोलने से पहले ही आगे बोलते हुए कहा.

"माँ इतना ही नहीं मैंने कई बार आप और आप की सहेलियों की बातें भी सुनी हैं. जब आप कहती थी की आप का चुदवाने का बहुत मन कर रहा है. माँ मैं जानता हूँ की जैसे मैं सेक्स के लिए तड़प रहा हूँ. आप भी मेरी तरह ही सेक्स की भूखी है और तड़प रही है. पर हम दोनों के पास अपनी इस समस्या का कोई समाधान नहीं है. न ही मैं किसी औरत को चोद सकता हूँ और अपनी सेक्स की भूख मिटा सकता हूँ और न ही आप किसी बाहर के आदमी से अपनी सेक्स की इच्छा पूरी कर सकती है. और गरीब होने के कारन ऐसा कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा की आने वाले समय में कुछ हो सकेगा. ऐसा लगता है की भगवान ने हमे किसी गहरी खाई में धकेल दिया है. जहां कोई रास्ता नहीं है. हम दोनों जाएं तो जाएँ कहाँ. "

मैं जोश में चुदाई जैसे शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस पर ध्यान ही नहीं दिया. वो तो हैरान और चुप चाप बैठी रही.

माँ को शांत और चुप देख कर मैं फिर से बोला

"माँ इस जीवन में हम दोनों माँ बेटा एक दूजे के सहारे ही है. अब अपना जीवन हम दोनों को इक दूसरे के सहारे और साथ में ही गुजारना है. हमे अपनी समस्याओं का समाधान भी खुद ही ढूंढ़ना होगा. और कोर तीसरा हमारी मदद करने वाला नहीं है.

माँ अब मैं जो कहने जा रहा हूँ, आप प्लीज गुस्सा मत होना और जरा शांति से मेरी बात सुन्ना. और फिर शांति से उस पर विचार करना और फिर कोई निर्णय लेना. मुझे कोई जल्दी नहीं हैं. आप जो भी निर्णय लेंगी मुझे मंजूर होगा. "

माँ चुपचाप मेरी ओर देखती रही. उसे कोई आईडिया नहीं था की मेरे मन में क्या है.

मैं माँ को प्यार से देखते हुए बोलै.

"माँ हम दोनों को भगवान ने एक दूसरे के सहारे ही छोड़ दिया है. अब इस जीवन में हम माँ बेटा हर चीज के लिए एक दुसरे के सहारे हैं. चाहे वो पैसा हो, कोइ काम हो, कहीं आना जाना हो, बीमारी हो या जीवन की कोई भी इच्छा या जरूरत हो तो हम दोनों ही एक दुसरे का सहारा है. और हम दोनों ही सेक्स के लिए तड़प रहे हैं. जब भगवान ने हमे एक दुसरे की मदद करने को रखा है तो शायद भगवान् ही चाहता है की हम दोनों ही सेक्स के लिए भी एक दुसरे का सहारा बने. और एक दुसरे के सेक्स की जरूरत पूरी करें. घर में हम दोनों ही हैं तो किसी को कानो कान पता भी नहीं चलेगा और हम दोनों एक दुसरे से सेक्स भी कर सकेंगे."

माँ मेरी बात सुननते ही गुस्से से भड़क गयी और एकदम गुस्से में खड़ी हो गयी और बोली

"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है. तुजे मालूम भी है की तू यह क्या कह रहा है."

माँ गुस्से से कांप रही थी.

मैंने माँ को शांत करते हुए कहा.

"माँ बैठ जाओ और शांति से मेरी बात सुनो. देखो हमें सब रिश्तेदारों ने छोड़ दिया है. कोई भी हमारी मदद नहीं करता. हर दुःख सुख और जरूरत के लिए हम दोनों को एक दूजे का हे सहारा है. मेरी शादी का कोई चांस नहीं है. मैं कब तक अपने हाथों से मुठ मारता रहूँगा. और आप का तो कुछ भी नहीं हो सकता. आप की तो अब कोई शादी भी नहीं होगी. आप के बातें मैंने सुनी है (सहेलियों के साथ ), आप सेक्स के लिए कितना तड़प रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूँ. आप क्या सारी जिंदगी चुदाई के लिए ऐसे ही तड़पती रहोगी. क्या सारी उम्र अपनी उँगलियों या खीरे मूली से ही अपनी तड़प शांत करती रहोगी. क्या आप नहीं चाहती की आप की भी अच्छी तरह से चुदाई हो. आप के पास मेरी इस बात के इलावा क्या कोई और रास्ता है जिस से आप और मेरी काम सेक्स की जरूरत पूरी हो सके। माँ आप शांति से सोच कर कोई निर्णय लें. मुझे आप के निर्णय का इन्तजार रहेगा. एक तरफ है इसी तरह सारी जिंदगी तड़प तड़प कर मुठ मार मार कर जीवन गुजारना और दूसरी तरफ है एक दुसरे का साथ. और जिसमे है रोज की जबरदस्त चुदाई और प्यार. हम दोनों माँ बेटा है तो किसी को शक भी नहीं होगा और हम खुल कर चुदाई कर सकेंगे. मैं आप को मजबूर नहीं कर सकता पर आप शांति से सोच कर अपने निर्णय मेरे को बता देना "

(मैं जोश में चुदाई मुठ मारना जैसे खुले शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस ओर ध्यान ही नहीं दिया और चुप चाप बैठी रही.)

यह बोल कर मैं उठ कर अपने कमरे में चला गया और माँ किसी गहरी सोच में डूबी हुई सोफे पर पत्थर की मूर्ती की तरह बैठी रही.

मैं माँ को बोल कर अपने कमरे में चला गया पर माँ किसी पत्थर की मूर्ती की तरह चुपचाप बैठी रही. शायद मेरी बात उनके लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की उनका अपना बेटा ही उन्हें चोदने और आपस में ही सेक्स भरा जीवन बिताने का ऑफर देगा.

शाम को भी माँ ने मेरे से कोई बात नहीं कृ. बस वो चुपचाप घर का काम करती रही.

खाना खाने के टाइम भी हमारे बीच में कोई बात चीत नहीं हुई. एक भोजल सी ख़ामोशी हमारे दरमियान छाई रही..

खाना खाने के बाद मैं चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गया। मैंने एक लुंगी पहन रखी थी और ढीला सा कच्छा पहना था ताकि रात में मुझे मुठ मारने में दिक्कत न हो.

माँ भी किचन का काम निबटा कर अपने कमरे में जा कर लेट गयी.

मेरा दिल तो बहुत देर से बहुत तेज तेज धड़क रहा था. पर जब माँ अपने कमरे में जा कर लेट गयी और उनके कमरे की लाइट भी बंद हो गयी तो मेरा दिल भुज गया. मुझे लग रहा था की मैंने अपनी माँ से सेक्स सम्भन्ध बनाने की बात करके गलती कर दी है. मेरा तो आज मुठ मारने का भी मन नहीं कर रहा था.

मुझे नींद नहीं आ रही थी.

इसी तरह रात के ११ बज गए.

मैं सोने ही जा रहा था की अचानक मेरे कमरे के दरवाजे पर कुछ आवाज हुई. मैंने सर घुमा कर देखा तो दरवाजा धीरे धीरे खुल रहा था.

मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की जैसे मेरा तो हार्ट अटैक ही आ जायेगा.

दरवाजे से मेरी माँ जिसने एक ढीला सी मैक्सी पहन रखी थी अंदर आयी.

कमरे में खिड़की से बाहर से थोड़ी रौशनी आ रही थी जिस से सब कुछ ठीक से दिखाई दे रहा था.

माँ ने मेरी तरफ देखा और मेरे बेड के पास आ गयी. मैं भी अपलक माँ की तरफ ही देख रहा था.

मैं माँ की ओर देख रहा था मैने अपनी आँखें अपनी माँ की आँखों की तरफ की और उनकी आँखों में देखा.

माँ की आँखों में बेइंतेहा शर्मा की लाली थी. माँ ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली. वो मेरी ओर ज्यादा देर तक न देख सकी.

मैं माँ को देखते हुए मुस्कुरा रहा था. और माँ बहुत ही शर्मा रही थी. मैंने माँ को बैठने या लेटने के लिए कुछ न कहा और आराम से अपने बीएड पर लेटा रहा. तो माँ बेचारी आइए ही कड़ी रही. मैं शरारत से मुस्कुरा रहा था.

माँ भी चुप थी. अब वो वापिस भी नहीं है सकती थी. जब मैंने उन्हें बैठने या लेटने को न कहा तो माँ ने आखिर अपनी चुप्पी तोड़ी और मुझे बोली

माँ ने मुझे देखते हुए कहा।

"थोड़ा परे को तो सरक मुझे भी लेटने के लिए थोड़ी जगह दे. देख कैसे अकेला ही पूरा बेड घेर कर लेटा है. "

कहते हुए माँ के होंठों पर एक शरारती सी मुस्कान थी.

मैंने फटाफट पीछे को हो कर माँ के लेटने के लिए जगह बनाई।

खाली जगह में माँ मेरे साथ लेट गयी.

मेरा दिल धड़क रहा था. लगता था माँ ने कोई निर्णय कर लिया है और हम दोनों माँ बेटे के जिंदगी खुशियों से भरने वाली है.

माँ बिलकुल मेरे साथ ही लेटी थी. हमारे शरीरों के बीच में मुश्किल से ६ इंच का फासला था.

माँ का दिल भी इतने जोर से धड़क रहा था कि उनके दिल के धड़कने की आवाज मुझे साफ सुनाई दे रही थी. शायद मेरे तेज तेज धड़कते दिल की आवाज मेरी माँ को भी सुनाई दे रही हो.

यह हमारे जीवन का एक बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण क्षण था. जो हमारे आने वाले जीवन की दिशा बदल देने वाला था.

मैंने माँ से प्यार से पूछा

"माँ क्या आप ने मेरी बात पर कुछ गौर किया.? आप ने क्या निर्णय लिया है?"

जवाब में माँ कुछ नहीं बोली. उनकी गालें शर्म से लाल हो रही थी. शर्म से उनसे कुछ कहा नहीं जा रहा था. बस उन्होंने आगे बढ़ कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूमने लगी.

माँ का उत्तर बिलकुल स्पष्ट था. मैंने भी अपने होंठ खोल दिए और माँ के होंठों को अपने होंठों के बीच दबा कर चूसने लगा.

मैंने फिर अपना चेहरा पीछे किया और शरारती सी मुस्कान में कहा

"माँ बताओ न आप का क्या निर्णय है. क्या मैं आप की हाँ समझूँ?"

हालाँकि अब सब स्पष्ट ही था. माँ ने मेरे कमरे में आ कर और मेरे होंठों को चूम कर सब बता ही दिया था पर मैं तो शरारत कर रहा था.

पर माँ तो आखिर माँ ही थी. वो मुँह से कुछ बोल कैसे सकती थी.

जब मैंने माँ से दोबारा उन का निर्णय पूछा तो माँ ने शर्म से अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया और मुझसे चिपकते हुए धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरी लुंगी में डाल दिया और मेरे तने हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ लिया.

फिर माँ ने धीमे से अपना मुँह मेरे कान के पास किया और मेरे लौड़े को अपने हाथ से आगे पीछे करते हुए, जैसे वो मेरा मुठ मार रही हो, धीरे से बोली

"यह है मेरा निर्णय."


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और मेरे लौड़े को जोर से दबा दिया. कि मेरी तो जैसे चीख ही निकल गयी.

माँ अब मेरे लौड़े पर अपने हाथ को तेज तेज आगे पीछे करते हुए मेरे लण्ड को प्यार से सहला रही थी, और फिर मेरे कान में फिर से बोली.

"बेटा मुझे बोलने में बहुत शर्म आ रही है. बस अब कुछ न पूछ. तू खुद ही समझ जा. तू अपना दिल भी बता दे कि तेरे दिल में क्या इच्छा है."

मैंने अपना हाथ नीचे ले जा कर माँ की सलवार मैं घुसेड़ दिया. माँ के कोई पैंटी नहीं पहनी थी. मेरा हाथ सीधा माँ की चूत पर पहुंच गया.

मेरे को एक और झटका सा लगा. माँ की चूत, जिसे मैंने न जाने कितनी बार छुप छुप कर बाथरूम में देखा था की उस पर झांटों का पूरा जंगल ऊगा हुआ था. अब बिलकुल क्लीन शेव थी. लगता था माँ अपनी पहली चुदाई के लिए झांटे साफ करके पूरी तयारी करके आयी थी.

मैंने माँ की फूली हुई चूत को अपनी मुठी में भर लिया और उसे मुट्ठी में मसलते हुए बोला।

"माँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी बात पर सहानुभूति पूर्वक फैसला किया। अब आपको कभी भी चुदाई के लिए तड़पना नहीं पड़ेगा और न ही मेरे जीवन में कोई कमी रहेगी. हम दोनों माँ बेटा एक दूजे का सहारा बनेंगे और एक दुसरे की हर तरह से इच्छा पूर्ती करेंगे. आज से दुनिया की नजरों में हम माँ बेटा है पर घर के अंदर हम दोनों एक मर्द और औरत है. दोनों एक दूजे की सेक्स की जरूरत पूरी करेंगे. आज के बाद न ही मेरे को मुठ मारना पड़ेगा और न ही आपको अपनी उँगलियों से या किसी खीरे गाजर आदि से अपनी इच्छा पूरी करने की जरूरत रहेगी. आज से इस बेड पर रोज माँ बेटे की चुदाई होगी. ठीक है न?"

माँ ने फिर शर्म से अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया और अपने हाथ में पकडे मेरे लौड़े को प्यार से मसलती हुई बोली

"ठीक है बेटा. शायद भगवान को यही मंजूर है. अगर उसकी यही इच्छा है तो ऐसे ही सही. आज से हम दोनों एक दुसरे की सेक्स की जरूरत भी पूरी करेंगे. और सच में एक दूजे का सहारा बनेंगे."

यह कहते हुए माँ मेरे से लिपट गयी, पर उसने हाथ में पकड़ा हुआ मेरा लौड़ा नहीं छोड़ा और उसे धीरे धीरे मुठियाती रही. शायद माँ को १० साल बाद एक असली लौड़ा पकड़ने का मौका मिला था तो वो लण्ड को छोड़ना नहीं चाहती थी. मैंने भी माँ की चूत को अपने हाथ में भरे रखा और धीरे से एक ऊँगली माँ की चूत, जो की अब उसके बह रहे काम रस से गीली हो गयी थी, में घुसेड़ दी.

माँ ने एक आह की आवाज करी पर मेरी ऊँगली को अपनी चूत में से निकलने की कोशिश भी न करि. बल्कि आगे को खिसक कर ऊँगली को और पूरा अंदर तक लेने की कोशिश की।

मैं बहुत खुश था.

भगवान ने हम माँ बेटे की सुन ली थी.

मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा.

मैंने माँ को अपने से चिपकाया और अपनी ऊँगली को माँ की चूत में आगे को धकेल कर पूरी तरह से उन की चूत में घुसा दिया और बोला

"माँ अपनी चूत को आगे को धकेल रही हो. क्या अपनी चूत में मेरी ऊँगली अच्छी लगी. क्या दूसरी ऊँगली भी आपकी चूत में घुसेड़ दूँ?"

माँ ने अपना सर न में हिलाया और कहा

"अरे नहीं."

मैंने बोला "माँ क्या आपको अंदर घुसी हुई ऊँगली पसंद नहीं आयी?"

माँ शर्माती हुई सी मेरे सीने में अपना मुँह छुपा कर बोली.

"अब तुमसे यह नया रिश्ता बन रहा है तो मैं अब ऊँगली को क्यों घुसवाना चाहूंगी। ऊँगली से तो मैं खुद ही पिछले १० साल से कर रही हूँ. क्या अब भी ऊँगली से ही काम चलाऊंगी? अब तो मुझे तेरी ऊँगली नहीं बल्कि तेरा उन्गला चाहिए."

मैं थोड़ा हैरान हो कर बोला.

"माँ ऊँगली तो मैं समझता हूँ. पुर तुम अपनी चूत में यह उन्गला क्या चाहती हो? उन्गला क्या होता है?"

माँ ने अपने हाथ में पकडे हुए मेरे लौड़े को मुठिआते हुए और प्यार से उस पर अपने हाथ फेरते हुए कहा

"एह् है तेरा उन्गला। अब मुझे अपने अंदर इसे लेना है. ऊँगली नहीं "

मैं समझ गया की माँ की वासना अब बहुत बढ़ गयी है और वो चुदवाने के लिए पूरी तैयार है.

मैंने मस्ती से झूमते हुए माँ से कहा

"माँ बस आज के बाद तझे कभी अपनी ऊँगली प्रयोग नहीं करनी पड़ेगी. मेरा यह ७ इंच लम्बा और ३ इंच मोटा उन्गला आपकी चूत की सेवा करने के लिए तैयार रहेगा.

माँ के मुँह पर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और वो भी प्यार से मेरे से चिपक गयी पर इस सब में उसने मेरा लौड़ा अपने हाथ से न छोड़ा और उसे प्यार से सहलाती रही. माँ को १० साल के बाद एक हाड़ मांस का लौड़ा हाथ में आया था. लगता था की माँ उसे मन भर के प्यार किये बिना नहीं छोड़ेगी.

फिर माँ मेरे से बोली

"अच्छा एक बात बता। उस दिन तू मेरी कच्छी को क्यों सूंघ रहा था और क्यों चाट रहा था? तुझे शर्म नहीं आयी जो तू इतनी गन्दी जगह लगी हुई पैंटी को चाट रहा था.? "

मैं माँ को अपने से चिपकता बोला।

"माँ कौन कहता है कि वो गन्दी जगह है या उस को सूंघना ठीक नहीं है. आपकी चूत से तो बहुत ही अच्छी खुशबु आती है.

आपकी पैंटी के अगले भाग पर मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैं बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके रस को सूंघने और चाटने लगा था. पर आपकी चूत का रस तो शहदसे भी प्यारा था."

मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.

मैंने बोला- "वाह माँ.. क्या महक थी आपकी चूत की.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद रखूँगा.. आई लव यू माँ "..

तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और वो बोली- मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..

मैं बोला- ऐसा नहीं है.. फिर मैंने उसकी चूत को अपनी गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।

मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से 'आआ.. आआआह..' रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।

मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी चूत को छोड़ दूँ..

लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- बेटा.. क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू... से..

ये कहती हुई वो 'सॉरी' बोली.. तो मैं तपाक से बोला- "माँ शर्माओ नहीं और खुल कर बोलो. चूत को चूत ही केहते है तो इसमें शर्माना क्या. सेंटेंस पूरा करो.. और वैसे भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर कहो।

तो बोली- नहीं.. फिर कभी..

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए थी। उसके सीने की धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।

तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी दो?

तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी अच्छी है...

तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।

वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?

तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे माँ ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ.. करोगे?

तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही माँ की बुर चाटने की मेरी इच्छा पूरी हो जाएगी क्या?

ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा.

मुझे लग रहा था की माँ भी अपनी चूत चटवाना चाहती है. पर शायद शर्मा रही है. या तो ये खुद ही मेरे साथ खेल कर रही है.. ताकि मैं ही अपनी तरफ से पहल करूँ। ( वो तो मेरे को बाद में माँ ने बताया की वो भी रोज मेरे पापा का लौड़ा चूसती थी और वीर्य चाटती थी.)

तो मैंने भी कुछ सोचते हुए बोला- क्यों क्यों लगता है की वो सूंघने की जगह नहीं है?

माँ बोली- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मैं तो इसलिए बोली थी.. क्योंकि वहाँ से गंदी बदबू भी आती है ना.. इसलिए।

मैंने बोला- अरे आप नहीं समझ सकती कि एक जवान लड़की की और एक जवान लड़के के लिंग में कितनी शक्ति होती है। दोनों में ही अपनी-अपनी अलग खुशबू होती है.. जो एक-दूसरे को दीवाना बना देती है।

तो वो बोली- मैं कैसे मानूं?

मैं बोला- अब ये तुम्हारे ऊपर है.. मानो या ना मानो.. सच तो बदलेगा नहीं..

तो वो बोली- क्या तुम मुझे महसूस करा सकते हो?

मैं तपाक से बोला- क्यों नहीं..

तो बो बोली "तो ठीक है मुझे महसूस करवाओ".

शायद उस पर वासना का भूत सवार हो चुका था।

मैं भी देरी ना करते हुए बिस्तर से उठा और झट से माँ की सलवार खोल दी. माँ ने भी कोई इतराज न किया। बल्कि उसने तो खुद अपनी कमीज भी उतार दी. अब मेरी माँ मेरे सामने बिलकुल नंगी थी. मैंने भी फटाफट अपने कपडे उतरे और खुद भी माँ की तरह नंगा हो गया. अब माँ बेटे का वासना का खेल शुरू होने ही वाला था. माँ अभी भी थोड़ा शर्मा रही थी. पर मैंने घुटनों के बल बैठकर उसकी मुलायम चिकनी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर खोल दिया.. ताकि उसकी चूत ठीक से देख सकूँ।

मैंने जैसे ही उसकी चूत का दीदार किया तो मुझे तो ऐसा लगा.. जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया हूँ.. उसकी चूत बहुत ही प्यारी और कोमल सी दिख रही थी..

मेरी तो जैसे साँसें थम सी गई थीं.. क्योंकि ये मेरा पहला मौका था.. जब मैंने अपनी माँ की चूत को इतनी करीब से देखा था.

उसकी चूत बिल्कुल कसी हुई थी.. कुछ फूली-फूली सी.. और उसके बीच में एक महीन सी दरार थी.. जो कि उसके छेद को काफ़ी संकरा किए हुए थी।

इतनी प्यारी संरचना को देखकर मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया था.. जिससे मुझे कुछ होश ही नहीं था कि मैं कहाँ हूँ.. कैसा हूँ। माँ की चूत पिछले १० साल से चूड़ी जो न थी.

खैर.. जब मैं उसकी चूत को टकटकी लगाए कुछ देर यूँ ही देखता रहा.. तो उसने मेरे हाथ पर एक छोटी सी चिकोटी काटी.. जो कि उसकी जाँघ को मजबूती से कसे हुए था।

तो मेरा ध्यान उसकी चूत से टूटा और मैंने 'आउच..' बोलते हुए उसकी ओर देखा.. उसकी नजरों में लाज के साथ-साथ एक अजीब सी चमक भी दिख रही थी।

ऐसी नजरों को कुछ ज्ञानी बंधु.. वासना की लहर की संज्ञा भी देते हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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Messages In This Thread
RE: माँ बेटा एक दूजे के सहारे - by neerathemall - 23-11-2024, 01:28 PM
RE: मा बेटा - by neerathemall - 22-11-2024, 11:11 AM



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