22-11-2024, 11:11 AM
(This post was last modified: 23-11-2024, 01:03 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
माँ बेटा एक दूजे के सहारे
पहले हमारे घर में तीन लोग थे. मैं, मेरी माँ सुजाता और मेरे पिता लीलाधर जी.
हम बहुत अमीर तो नहीं थे पर हम मध्यम उच्च वर्गीय स्तर के लोग थे. मेरे पिता जी की एक किराने की छोटी सी दूकान थी और हमारे पास लगभग १० एकड़ जमीन भी थी. इसलिए हमारा गुजरा आराम से हो जाता था.
घर में खुशहाली थी और हर तरह की सुख सुविधा का सामान भी घर में था.
हमारे रिश्तेदार हम से कुछ काम अमीर थे. तो शायद इसलिए वो हमसे जलते भी थे. पर मेरे पिता जी दिल के बहुत ही अच्छे इंसान थे तो इसलिए तो टाइम बे टाइम जरूरत पड़ने पर अपने रिश्तेदारों की मदद भी कर देते थे. इसलिए हमारे घर में रिश्तेदारों का आना जाना लगा ही रहता था.
पर जैसे की आप सब जानते हैं की बुरा वक़्त आते किसी को भी पता नहीं चलता.
एक दिन अचानक मेरे पिता को लकवे का अटैक आ गया। इस से पिता जी की दाईं टांग और बांह बिलकुल काम करने से हट
गयी.
हम तुरंत पिता जी को उठा कर पास के शहर में हॉस्पिटल में ले गए और उन्हें दाखिल करवा दिया.
आप तो जानते ही हैं की कैसे ये प्राइवेट हॉस्पिटल वाले इंसान की खून की आखिरी बूँद तक निचोड़ लेते है.
पिता जी की हालत में कुछ भी सुधार नहीं हो रहा था पर ऊपर से हॉस्पिटल का बिल भी बढ़ता ही जा रहा था.
पिता जी को २ महीने हॉस्पिटल में रहना पड़ा. इन दो महीनों में हमारी साड़ी जमा पूँजी ख़तम हो गयी. स्थिति यह आ गयी थी की हमारी दूकान भी बिक गयी और सर पर कर्जा भी बहुत चढ़ गया.
आखिर दो महीनो के बाद पिता जी की मौत हो गयी. पर तब तक घर के हालात बहुत बिगड़ चुके थे. हमारी दूकान बिक चुकी थी और खेत भी लाला के पास गिरवी रखे थे.
हमने अपने रिश्तेदारों से कुछ पैसे की मदद मांगी पर वो तो सरे रिश्तेदार ऐसे गायब हो गए थे जैसे गधे के सर से सींग..
सब रिश्तेदारों ने हमसे मुँह मोड़ लिया और उन्होंने तो हमारा फ़ोन भी उठाना बंद कर दिया कि कहीं हम उनसे कोई उधर न मांग लें.
खैर हम कर भी क्या सकते थे. आखिर दोस्त और रिश्तेदार की पहचान बुरे समय में ही तो होती है.
और कोई चारा न देख कर हमने अपने खेत को भी बेच दिया और कर्ज चूका दिया.
अब हमारे घर के हालात बहुत खराब हो चुके थे.
घर में खाने को भी लाले पद गए थे. और कोई साधन न देख कर मैंने खेतों में मजदूरी करना शुरू कर दिया. जिन खेतों के कभी हम मालिक थे अब मैं उन्ही खेतों में मजदूर था.
वक़्त का ऐसा ही चक्कर होता है. हमारे सब रिश्तेदार हम से मुँह मोड़ चुके थे. और हम घर में सिर्फ माँ बेटा ही रह गए थे जो किसी तरह अपना समय पास कर रहे थे.
बजुर्गों ने सच ही कहा है की ग़ुरबत यानि गरीबी इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है.
इसी तरह करते करते समय निकल रहा था और धीरे धीरे पिता जी की मौत को १० साल हो गए थे.
अब मेरी उम्र ३२ साल पार कर गयी थी और मेरी माँ की उम्र भी ५३ साल की हो चुकी थी.
माँ को सबसे ज्यादा चिंता मेरी शादी की थी.
माँ ने अपनी रिश्तेदारी में सब लोगों से मिन्नतें कर ली थी कि किसी तरह मेरी शादी हो जाये क्योंकि मेरी शादी की उम्र निकलती जा रही थी. या यूँ कहें की लगभग निकल गयी थी पर किसी रिश्तेदार ने मेरी शादी में कोई मदद न की और न ही कोई दिलचस्पी दिखाई.
अब उम्र के साथ हर इंसान में उस उम्र की जरूरते पैदा होती ही हैं. मुझे भी सेक्स की बहुत इच्छा होती थी. पर मैं करता भी तो क्या करता. न तो मेरी शादी ही हो रही थी और गरीब होने के कारण मेरी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी. आजकल की लड़कियां तो अमीर लड़के चाहती है पर मैं उनकी ऐसी कोई इच्छा पूरी नहीं कर सकता था. और न ही मेरे पास इतने पैसे थे कि मैं किसी रंडी को बुला कर चोद सकता.
मेरे पास तो ले दे कर भगवन के दिए हुए बस दो हाथ ही थे. और मैं जितना हो सकता उनका इस्तेमाल करता था.
मैं अब हर रोज रात में मुठ मर कर अपनी गर्मी निकालता था.
बस ऐसे ही जिंदगी बीत रही थी.
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिस से मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला था.
यह बात है मेरे बुआ के बेटे की शादी की है। मेरे बुआ के बेटे की शादी थी. वैसे तो बुआ हम लोगों को शायद बुलाना नहीं चाहती थी पर रिश्तेदारी का ख्याल रखते हुए उसने फॉर्मेलिटी के तौर पर हम लोगों को भी शादी में बुला लिया.
मैं जानता था की वहां हम लोगों की कोई इज्जत तो हैं नहीं, पर माँ शादी में जाना चाहती थी. वो सोचती थी की चलो इसी बहाने से उनका अपने रिश्तेदारों से कुछ सम्बन्ध बना रहेगा और शायद वहां मेरी शादी का भी कोई चांस शुरू हो जाये. तो माँ की इच्छा देखते हुए हमने शादी में जाने का फैसला कर लिया..
माँ ने अपने सब से सुन्दर कपडे और साड़ीयां ले ली. और हम वहां शादी में चले गए.
मेरी माँ अपनी तरफ से खूब सज संवर कर तैयार हो रही थी.
आखिर थी तो वो भी एक औरत ही. तो सजने सँवारने का मौका तो बेचारी को सालों बाद मिला था.
तो दोस्तों वहां मैंने अपने घर की कई औरतों को देखा। उनमें से कोई मेरी बहन थी, चाची थी, बुआ थी, मौसी थी, या मामी थी।
माँ को मैंने बहुत देर बाद सजी संवरी देखा तो देखता ही रह गया. सच में मेरी माँ तो बहुत ही सुन्दर थी. शायद उतनी सुन्दर कोई और औरत शादी में नहीं थी. मैंने कभी अपनी माँ की सुंदरता पर ध्यान ही नहीं दिया था. शायद उस ने भी कभी इतना सुन्दर सज कर मेकअप आदि नहीं किया था. मेरी माँ काफी मोटी थी। उसके मम्मे बहुत बड़े बड़े थे शायद 42D से कम नहीं होंगे. उस से भी सुन्दर उनकी चूतड़ और गांड थी. शादी में आये हुए हर आदमी की आँखें मेरी माँ के मुम्मों और गांड से हट ही नहीं रही थी.
दूसरों की क्या कहूं खुद मेरी आँखें माँ की गांड पर ही बार बार जा रही थी.
दोस्तों उससे पहले मैंने कभी उनको चुदाई की नजर से नहीं देखा था। लेकिन शादी में सारी की सारी औरतें इतना सज-संवर के आई थी, कि उनको देखने वाले हर आदमी का लंड खड़ा हो जाता और उन सब में सब से सेक्सी लग रही थी मेरी माँ ।
जब बारात में मैं शादी में आयी हुई लड़कियों और औरतों के साथ नाच रहा था, तब उनके चूचियों और गांड को दबाने का कई बार मौका मिला, और रात होते-होते मेरी हालत ऐसी हो गई थी, कि मुझे जाकर मुठ मारनी पड़ी।
उस दिन पहली बार मैंने सोचा कि अगर मुझे अपने घर की औरतों (मेरी माँ ) की चुदाई करने का मौका मिल जाये, तो बहुत अच्छा हो।
घर की औरतों को चोदने के बहुत फायदे हैं। सबसे पहला, जब चाहो जहां चाहो तुम उनको चोद सकते हो।
दूसरा फायदा यह है कि किसी को शक नहीं होता। मुझे चुदाई का बहुत शौक है। लेकिन मैं किसी औरत को अभी ज्यादा चोद नहीं सका था, बस किसी तरह पैसे जोड़ कर एक दो बार किसी सस्ती सी रंडी को चोद था। वैसे भी मैं डरता था कि चुदाई के चक्कर में कभी किसी लफड़े में ना फंस जाऊं। इसलिए मैंने यह ठान लिया था कि अब माँ को चोद कर ही रहूंगा।
अब पहली समस्या यह थी कि शुरुआत कैसे की जाये। क्यूंकी सब कुछ इसी बात पर निर्भर करता था कि अगर सबसे पहले गलत कदम उठा लिए और माँ को चोदने की कोशिश की, और उसने सबको बता दिया, तो मेरी जिंदगी के लोड़े लग जायेंगे।
सबसे पहले मां को चुनने के कुछ कारण थे। पहला यह है कि एक तो मां के नज़दीक आना सबसे आसान होता है। अगर कुछ गलत भी हो तो बचने का तरीका है। कई सारे बहाने होते हैं। और दूसरी सबसे जरूरी बात, कि अगर कुछ उल्टा-सीधा हो भी जाये तो मां तुम्हारी कभी किसी को बताएगी नहीं।
और वैसे भी मेरी पास माँ पर कोशिश करने के इलावा और कोई औरत है भी तो नहीं.
और फिर सब से बड़ी बात की माँ चाहे उम्र में 53 साल की हो गयी हो पर आज भी वो सेक्स की देवी लगती थी.
शादी के बाद हम घर वापिस आ गए पर अब मेरा अपनी माँ को देखने का नजरिया बदल चूका था. अब वो मुझे माँ नहीं बल्कि सेक्स की देवी और एक ऐसी सुन्दर औरत दिखाई देती थी, जिसे देख कर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था.
पर माँ को मेरे अंदर आये इस बदलाव का कुछ पता नहीं था. वो तो मेरे सामने उसी पुराने तरीके से ही रहती थी. घर के अंदर वो पहले ही की तरह पेटीकोट और ब्लाउज मैं रहती थी (गर्मी के कारण वो घर में साड़ी नहीं पहनती थी और हमारे पास AC तो था भी नहीं, यह मेरे लिए बहुत अच्छा था, इन कपड़ों में मैं माँ के सेक्सी और कामुक जिस्म का भरपूर नजारा कर सकता था.
माँ के बड़े बड़े मुम्मे और उनकी उभरी हुई गांड मेरी मुठ मारने की फैंटसी का साधन थी. मैं रोज अब माँ के कामुक बदन को सोच कर मुठ मरता था.
अब जब कभी माँ नहाने जाती थी तो मैं छुप कर बाथरूम के दरवाजे की दरार से उनके सेक्सी बदन को देखने की कोशिश करता था.
मेरी मॉम का फिगर 40-36-44 का होगा. उनकी गांड लगभग पूरी तरह से बाहर निकली हुई है. मेरी मॉम हमेशा साड़ी ही पहनती हैं.
वो साड़ी कुछ इस तरह से बांधती हैं कि उनका न दिखने वाला जिस्म पूरी तरह से कुछ इस तरह से दिखे, जिसे देख कर देखने वालों के लंड में आग लग जाए. जैसे एक तो उनकी नाभि हमेशा ही साफ़ दिखती थी. चूचों के ऊपर साड़ी का पल्लू कुछ इस तरह से रखती थीं, जिससे उनकी चूचियां पूरी तरह से फूली हुई दिखती थीं.
मॉम अपनी चूचियों की क्लीवेज कभी नहीं ढकती थीं, उनकी सिल्की चूचियों की गोरी दरार उनके गहरे गले वाले ब्लाउज में से साफ़ दिखती थी, उस पर मॉम की साड़ी का पल्लू उनकी चूचियों पर कुछ इस तरह से कसा हुआ होता था कि उनकी चूचियों में दो गुब्बारों में हवा भर कर गांठ बाँध दी गई हो.[img][/img]
उनको इस तरह से देख कर मैं उनको चोदने के बारे में ही सोचता रहता था. मुझे लगता था कि मेरी मॉम पापा के न रहने से संतुष्ट नहीं हो पाती हैं, इसीलिए वो इतनी कामुक दिखती हैं, ताकि अपने लिए वो लंड तलाश सकें.
एक दिन मॉम कपड़े बदल कर रही थीं, मैं चोरी से उन्हें देख रहा था. मॉम ने पहले अपनी साड़ी निकाली, उसके बाद पेटीकोट और ब्रा पेंटी उतार कर मॉम पूरी नंगी हो गईं. मैं दरवाज़े से झिरी से मॉम को नंगी होती हुई देख रहा था.
जैसे ही मेरी मॉम पूरी नंगी हुई, मेरा कलेजा हलक में आ गया. मैं अपने लंड को हिला रहा था और उनको देख रहा था.
नंगी हो जाने के बाद उन्होंने तेल लिया और अपनी चूत पर लगाया. फिर चूचियों पर मला. मॉम ने अपनी चूचियों की थोड़ा सहलाया और अपने निप्पल पकड़ कर चुचों को आगे खींचते हुए अपनी आंखें बंद करके मजा लिया. इससे मुझे उनकी चुदास साफ़ दिख रही थी.
तेल से मम्मों और चूत को घिसने के बाद मॉम ने एक ब्रा और पेंटी निकाली. उन्होंने बड़ी नफासत से उसको पहना, फिर आईने में घूम घूम कर पैंटी ब्रा को अपने मम्मों पर और गांड पर सैट करते हुए खुद को देखा. उसके बाद साड़ी पहन ली.
मुझे समझ आ गया कि मॉम किसी भी पल बाहर आ सकती हैं, इसलिए मैं लंड सहलाते हुए वहां से बाथरूम में चला गया. उधर जाकर मैंने मॉम के नाम की मुठ मारी.
मॉम ने मुझे आवाज देते हुए कहा- तुझे कुछ चाहिए हो तो बोल, मैं ज़रा बाजार जा रही हूँ.
मैंने कहा- नहीं, मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए, आप कितनी देर में वापस आओगी?
मॉम ने कहा- एक घंटे में आ जाऊंगी.
मैंने ओके कहते हुए उनको जाने दिया. मॉम अपनी गांड हिलाते हुए चली गईं.
उसके बाद जब भी मुझे मौका मिलता, मैं मॉम को देखता और मुठ मार लेता.
माँ अभी जवान थी और चुदने लायक माल थी। एक दिन जब सुबह वो बाथरूम में नहा रही थी तो मैं ने सोचा कि माँ को नंगी देखने का यह एक बढ़िया मौका है तो मैं बाथरूम के छेद के पास चला गया और माँ को बाथरूम में नहाते देखने लगा।
वो नहा रही थी और पूरी तरह से नंगी थी। मैंने माँ को नंगी देखा तो मेरा लंड बिलकुल खड़ा हो गया। दोस्तों, दिल में यही आ रहा था की अभी माँ को पकड़ लूँ और कसकर चोद लूँ।
मैं बाथरूम की खिड़की के पास छुप गया और अपनी माँ की नहाते हुए देखते लगा। मेरा बाप मर कर स्वर्ग सिधार गया और मेरी माँ को ढंग से चोद भी ना पाया। बाथरूम की खिड़की के पीछे मैं छिपा हुआ था और माँ को नहाते हुए देख रहा था। उसका जिस्म आज भी भरा हुआ और सुडौल था। मम्मे 42 " के थे और काफी कसे और गोल गोल मस्त थे।
कहीं से भी मेरी माँ के बदन पर फालतू चर्बी नही थी और बड़ा सुडौल बदन था उसका। वो डव साबुन को अपने मम्मो पर जल्दी जल्दी मल रही थी, फिर हाथ पैर और चेहरे पर साबुन लगाने लगी, फिर अंत में टांगो पर साबुन मलने लगी। फिर जांघ पर साबुन लगाते हुए माँ अपनी चूत पर पहुच गयी और साबुन चूत पर मलने लगी।
माँ बाथरूम के शीशे के तरफ चेहरा कर के पूरी नंगी झुकी हुई थी और पैरों में तेल लगा रही थी उनका बड़ा सा मोटा फुटबॉल जैसा 44 साइज का गांड क्लियर मेरे आंखो के सामने था और क्योंकि वो झुकी हुई थी तो उनका गांड का टाइट छेद और चूत का बंटवारा बिकुल साफ साफ मेरे आंखों के सामने था
क्योंकि माँ की बहुत सालों से चुदाई नहीं हुई थी तो शायद इसी लिए इसी बीच मेरी माँ का चुदने का दिल करने लगा और वो अपनी चूत में ऊँगली करने लगी।
फिर अचानक माँ ने अलमारी में से एक खीरा निकल लिया. मैं तो यह देख कर बहुत ही हैरान हो गया. मुझे इतना तो मालूम था की माँ की चुदाई बहुत सालों से नहीं हुई है तो उनका भी तो चुदवाने का मन करता होगा पर इतना मालूम नहीं था की वो खीरे से अपनी काम पिपासा शांत करती है,
खीरा लगभग ६ इंच लम्बा और काफी मोटा था. माँ ने उसको एक बार अपनी चूत की दरार में रगड़ा और फिर उसपर थोड़ा सरसों का तेल लगा लिया.
फिर माँ एक छोटे से स्टूल परटांगे चौड़ी करके बैठ गयी. अब मुझे अपनी माँ की चूत पूरी तरह से खुल कर दिखाई दे रही थी. माँ की चूत पर बहुत बड़े काले काले बाल थे. माँ ने बालों को इधर उधर करके चूत की फांको को खोला. अब मुझे माँ की चूत का छेद पूरी तरह से दिखाई दे रहा था. माँ की चूत चाहे बाहर से काली थी पर अंदर से पूरी लाल थी,
माँ ने खीरे का किनारा अपनी चूत पर रखा और धीरे से खीरे को अंदर डाल लिया. खीरा लगभग आधा अंदर चला गया क्योंकि वो पहले से ही तेल से तर था और खूब चिकना हो गया था। धीरे धीरे माँ ने पूरा खीरा अपनी चूत के अंदर डाल लिया और माँ की ऑंखें मजे से बंद हो गयी थी,
वो अब तेज तेज खीरे को अंदर बाहर कर रही थी और मजे से चिल्ला रही थी,
"आआआआअह्हह्हह....ईईईईईईई...ओह्ह्ह्हह्ह...अई..अई..अई....अई...." करके मेरी चुदासी माँ आवाज निकाल रही थी। "काश.....कोई मुझे चोद डाले.....कसके मुझे चोद दे.... सी सी सी सी.. हा हा हा .....ऊऊऊ ...." मेरी माँ बार बार चिल्ला रही थी।
वो अचानक उनका पूरा बदन अकड़ गया और वो जोर से चिल्ला कर झड़ने लगी. उनका पूरा बदन कांप रहा था और उनकी चूत से ढेर सारा पानी निकल कर बाथरूम के फर्श पर गिरने लगा. थोड़ी देर माँ का बदन इसी तरह कांपता रह और फिर धीरे धीरे शांत हो गया. माँ ने खीरा धो कर फिर से अलमारी में रख दिया.
आज मैं जान गया की मेरी माँ मुझसे कोई बात कहती नही है, पर आज भी उनका चुदवाने का और मोटा लौड़ा चूत में खाने का बड़ा दिल करता है। माँ बड़ी देर तक नहाते नहाते अपनी रसीली चूत में ऊँगली करती रही। चूत पर साबुन मलती रही। फिर उन्होंने बाल्टी भर भर कर जी भरकर नहाया और अपने जिस्म को साफ़ कर लिया।
अपनी चूत में माँ से कई बार पानी जग से भरकर डाला। फिर तौलिया लेकर मेरी माँ ने अपने सारे बदन को पोछा, अपने सुडौल मम्मे और चूचियों को भी माँ ने अच्छे से पोछा और फिर अंत में अपनी चूत को तौलिया से अच्छे से पोछा। अब उनकी चूत बड़ी सुंदर, साफ़ और गुलाबी लग रही थी।
जब माँ बाथरूम के बाहर आने लगी तो मैं वहां से हट गया। अपनी नंगी माँ को मैं देख ही चूका था और उनकी बुर चोदने का बड़ा मन था मेरा। मैंने कई बार माँ के रूप रंग को सोच सोच कर मुठ मारी।
इसका यह मतलब तो साफ था कि मम्मी के अंदर आग बची रहती थी।
मैं अभी तक कोई तरीका नहीं ढूंढ पाया था कि अपनी मां को चुदाई के लिए तैयार कैसे करुं।
फिर एक दिन मेरी मां की कुछ सहेलियां घर पर आई हुई थी। मेरी मां और उनकी चार पांच सहेलियों का एक ग्रुप था। यह सभी लगभग एक ही उम्र की थी और उन में से कई तो मेरी माँ की तरह विधवा थी, जो शादीशुदा भी थी वो भी लगता है की सेक्स की भूखी ही थी या उनका अपने पति से सेक्स का कोटा पूरा नहीं होता था. यह लोग हर कुछ दिन में एक-दूसरे के घर पर मिलती थी। यह उस टाइम पर मिलती थी जब उनके पति घर पर नहीं आते। तांकि खुल कर बात कर सके। मैंने सोचा की चलो आज इनकी बातें सुनी जाये। देखे ये कैसी बातें करते हैं।
शुरुआत में तो वे फालतू बातें कर रही थी अपने घर परिवार की, जो सब औरतें करती है। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उनकी बातो में खुलापन आने लगा। धीरे-धीरे वो अपनी पर्सनल बातें करने लगे। इन सब औरतों की बातो में एक बात तो समान थी कि यह सब उनके पति से खुश नहीं हो पा रही थी,
इनकी बात-चीत में इन लोगों ने यह बात पर भी चर्चा की कि अगर हम बाहर भी चुदाई करा ले, तो अपने आप को तो ठंडा कर सकते हैं। लेकिन इन लोगों ने उस विचार को ही खत्म कर दिया क्यूंकि यह सब बदनामी से डरती थी।
इसी बातचीत में मेरी मां ने एक बात बोली। जिसको सुनने के बाद मुझे लगा कि मेरा काम बन जायेगा।
अगर तुम में से कोई यह सोच रहा है कि मेरी मां ने कहा चलो अपने बेटों से चुदवा लेते हैं, तो ऐसा उसने कुछ नहीं कहा। मेरी मां ने जो बात कही थी, वह यह थी कि,
"आज-कल तो लड़के-लड़कियां 18-19 की उम्र में चोदने लगे हैं, अगर हम भी आज के ज़माने में पैदा हुई होती, तो चुदाई का पूरा मजा लेती। पर क्या करें हम पुराने जमाने की औरतें है, अब मेरी ही उदाहरण लो। मेरे पति को मरे हुए १० साल हो चुके है. पर मैं तो जिन्दा हूँ. पर क्या करूँ. मेरी चूत का कोई इलाज नहीं है. मेरा भी मन करता है की कोई मुझे जोर जोर से अपने बड़े और मोटे से लण्ड से चोदे, पर मैं क्या करूं. मैं तड़प के रह जाती हूँ. मैं बाहर भी किसी से चुदवा नहीं सकती क्योंकि बाद में वो आदमी मेरे को ब्लैकमेल कर सकता है और फिर मुझे रंडी की तरह हर रोज खुद या अपने दोस्तों से भी चुदवाने को कहेगा. और अगर वो बात किसी को पता चल गयी तो मैं तो बहुत बदनाम हो जाउंगी. मेरा एक ही बेटा है. वैसे भी उस बेचारे की शादी नहीं हो रही और अगर मेरी ऐसी बदनामी हो गयी तो उसकी भी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. इसलिए मैं मन को मार कर रह जाती हूँ. बस अब तो खीरे या मूली का ही सहारा है या अपनी उँगलियों से काम चलाना पड़ता है. पर उस में वो मजा कहाँ जो टांगे चौड़ी करके लेट जाने में है. बस नंगी होकर लेट जाओ और आदमी खुद ही लण्ड अंदर डाल कर कस कस कर चोदता है. आराम से पूरे लौड़े के अंदर बाहर होने के एहसास का मजा लो। अब खीरा मूली में तो खुद ही अपने ही हाथ से अंदर बाहर करना पड़ता है. "।
माँ की सहेलियों ने भी उनकी बात का समर्थन किया और कहा की उनकी भी ऐसे ही स्थिति है.
फिर मेरी माँ ने बोला " अरे लेट कर चुदवाने का आनंद लिए तो सालों हो गए है, वो भी क्या दिन थे जब हर रोज चुदाई होती थी. मैं तो अपने पति का लौड़ा हर रोज चूसती थी. अब तो मेरे को लौड़े का स्वाद भी लगभग भूल ही गया है. मुँह में लण्ड को आइसक्रीम की तरह चूसने और फिर उसके माल (वीर्य) को चाट चाट कर पी लेने का मजा तो बीते अतीत की यादें ही बन कर रह गया है. कितना मन करता है कि मुँह में मोटा सा लौड़ा ले कर कस कस कर चूसूं पर कुछ कर नहीं सकती. मेरे को तो मांस के लौड़े का स्वाद ही याद नहीं आता अब तो. बस रोज रात को अपनी किस्मत पर रो रो कर और अपनी ही उँगलियों से अपना पानी निकल कर चुप चाप सो जाती हूँ. "
उनकी सहेलियों ने माँ की बात का समर्थन किया की उनका भी वही हाल है.
बस कुछ ऐसी ही बातें करके उनकी सहेलियां चली गयी.
मैं अपनी माँ की बातें सुन कर बहुत हैरान था और मेरा लण्ड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे बस फट ही जायेगा.
उन दिन मैंने माँ की याद और उनकी तड़पती कामुक जवानी की याद में तीन बार मुठ मारी।
इतना तो मेरे को पक्का हो गया था की मेरी माँ चुदासी है और चुदवाने को तड़प रही है. मैं यह भी जानता था की मेरी माँ बाहर किसी से चुदवा नहीं पायेगी, तो या तो उसे मुझे ही चोदना पड़ेगा या माँ ऐसे ही तड़पती रहेगी.
पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं करूँ तो क्या करूँ। मुझे मालूम था की माँ तो खुद मेरे से चुदवायेगी नहीं तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.
मां की इस बात के बाद मैंने यह प्लान बनाया कि एक रंडी को पैसे देकर अपने घर लाऊंगा, और कुछ ऐसा इंतजाम करूंगा कि मां मुझे उसको चोदते हुए पकड़ ले।
एक दिन मां बाहर गई हुई थी। तो मैंने उस रंडी को बुलाया और हम दोनों मस्त चुदाई करने लगे। मैंने दरवाजे को जान-बूझ कर ताला नहीं लगाया था, तांकि जब मैं चुदाई कर रहा हूं, तो मां मुझे उस रंडी के साथ पकड़ सके। और ठीक ऐसा ही हुआ। मां आई, और मां ने हम दोनों को चुदाई करते पकड़ लिया।
मैं जान भूज कर उस दिन रंडी को पूरा नंगा हो कर चोद रहा था. जब माँ ने हमे पकड़ा तो मेरा पूरा लौड़ा उस रंडी की चूत के अंदर था.
रंडी नीचे लेटी हुई थी और मैं उस के ऊपर लेट कर धक्के मार रहा था.
जब माँ ने दरवाजा खोला तो उसने हमें चुदाई करते हुए पाया.
मेरा पूरा लौड़ा रंडी के अंदर था. इसलिए माँ को मेरा लौड़ा और उसका साइज पता नहीं चला. पर जब मैंने माँ को देखते ही हैरान होने और डर जाने का नाटक करते हुए लौड़ा बाहर निकला तो धीरे धीरे लौड़े को बाहर आते माँ ने देखा. मेरा लौड़ा ८ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा था. शायद पिता जी का लण्ड भी इतना बड़ा नहीं था.
मेरे इतने बड़े लौड़े को देख कर माँ की तो जैसे आँखें ही उस पर जम गयी और उनका मुँह खुला रह गया.
मेरा लौड़ा रंडी की चूत के रस से भीगा हुआ था और रस से चमक रहा था.
माँ हैरानी से उसे देख रही थी.
फिर जैसे माँ को होश आया और उसने अपनी आँखें मेरे लण्ड से हटाई.
उसके बाद मां बहुत गुस्सा हुई। माँ तो गुस्से में पागल ही हो गयी थी.
मैं हैरान हो जाने और पकडे जाने का नाटक कर रहा था. मैं ऐसा दिखावा कर रहा था की मैं गलत काम करते हुए पकड़ा गया हूँ. मैं नंगा ही बैठा था. और मेरा आठ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा, बेलन जैसा लण्ड अपनी पूरी शान के साथ आसमान की ओर सर उठाये खड़ा था. मेरे मोटे लण्ड को देख कर एक बार तो माँ की आँखें जैसे फटी की फटी रह गयी. माँ की नजर मेरे लण्ड पर जम ही गयी थी. वो हैरानी के साथ मेरे लण्ड को देख रही थी. उन की आँखों में हैरानी और कुछ अजीब से भाव थे. पर कुछ देर के बाद जैसे वो किसी सन्मोहन से जगी और मेरे लौड़े से नजर दूर करी., ऐसा लग रहा था की माँ मेरे लौड़े से अपनी नजर हटाना नहीं चाहती थी, पर माँ को अब इस स्थिति में रंडी को भी तो भगाना था।
तो सबसे पहले तो उसने उस रंडी को गालियां देकर बाहर निकला। यह जिंदगी में पहली बार था जब मैंने अपनी मां के मुंह से इतनी गालियां सुनी थी।
रंडी के चले जाने के बाद पहले तो मां ने मुझे गालियां दी, थोड़ा मारा, और कहा "तुझे बहुत गर्मी चढ़ रही है. घर में खाना खाने के पैसे नहीं है और तू इन दो टके की बाजारू रंडियों पर पैसे बर्बाद कर रहा है. तुझे कोई शर्म लिहाज है भी या नहीं, तुझे इतना भी डर नहीं है की इन औरतों से तुझे कोई बीमारी भी लग सकती है. "
यह कह कर माँ ने मुझे खूब मारा, मैं भी चुपचाप मार खाता रहा और माँ भी रोती रही,
फिर कुछ देर के बाद माँ किचेन में चली गयी.
मेरा प्लान कामयाब रहा था पर बात कुछ आगे बढ़ नहीं रही थी.
पर कहते हैं न की भगवान आपकी मन की इच्छा पूरी करने का कुछ न कुछ इंतजाम कर देते हैं.
कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ.
धीरे धीरे अब मेरी हवस बढ़ रही थी. माँ को छुप छुप कर नहाते हुए तो मैं पहले भी देखता था पर मैं अब उनकी ब्रा और पैंटी छुपाने लगा था. रोज किसी की ब्रा या पैंटी चुपके से उठा कर ले जाता था और उसको सूंघते हुए मुठ मारता था. फिर उसी पैंटी में वीर्य पोंछ देता था. जब पैंटी सूख जाती थी तो उसे फिर से माँ के कपड़ों में रख देता था. या फिर उसको वैसे ही ले जाकर उसी जगह पर टांग देता था जहां से उतारी होती थी. ऐसे ही दिन बीतते गए.
एक दिन मैं काम से लौटा तो देखा आज माँ की नयी पैंटी बाथरूम में गंदे और धोने वाले कपड़ों में पड़ी थी. उसे मैंने आज पहली बार ही देखा था. मैंने पैंटी को उठा कर देखा और थोड़ा सूंघा तो उस में से माँ के चूत की सुगंध आ रही थी. माँ ने पैंटी को सारा दिन पहना था तो उस में से माँ के पेशाब की भी भीनी भीनी खुशबु आ रही थी. नयी पैंटी थी तो लंड मचलने लगा. मैं पैंटी को लेकर ऊपर अपने रूम पर गया. मैंने अपना बैग एक तरफ पटका और अपने कपड़े उतारने लगा.
haldvani
पहले हमारे घर में तीन लोग थे. मैं, मेरी माँ सुजाता और मेरे पिता लीलाधर जी.
हम बहुत अमीर तो नहीं थे पर हम मध्यम उच्च वर्गीय स्तर के लोग थे. मेरे पिता जी की एक किराने की छोटी सी दूकान थी और हमारे पास लगभग १० एकड़ जमीन भी थी. इसलिए हमारा गुजरा आराम से हो जाता था.
घर में खुशहाली थी और हर तरह की सुख सुविधा का सामान भी घर में था.
हमारे रिश्तेदार हम से कुछ काम अमीर थे. तो शायद इसलिए वो हमसे जलते भी थे. पर मेरे पिता जी दिल के बहुत ही अच्छे इंसान थे तो इसलिए तो टाइम बे टाइम जरूरत पड़ने पर अपने रिश्तेदारों की मदद भी कर देते थे. इसलिए हमारे घर में रिश्तेदारों का आना जाना लगा ही रहता था.
पर जैसे की आप सब जानते हैं की बुरा वक़्त आते किसी को भी पता नहीं चलता.
एक दिन अचानक मेरे पिता को लकवे का अटैक आ गया। इस से पिता जी की दाईं टांग और बांह बिलकुल काम करने से हट
गयी.
हम तुरंत पिता जी को उठा कर पास के शहर में हॉस्पिटल में ले गए और उन्हें दाखिल करवा दिया.
आप तो जानते ही हैं की कैसे ये प्राइवेट हॉस्पिटल वाले इंसान की खून की आखिरी बूँद तक निचोड़ लेते है.
पिता जी की हालत में कुछ भी सुधार नहीं हो रहा था पर ऊपर से हॉस्पिटल का बिल भी बढ़ता ही जा रहा था.
पिता जी को २ महीने हॉस्पिटल में रहना पड़ा. इन दो महीनों में हमारी साड़ी जमा पूँजी ख़तम हो गयी. स्थिति यह आ गयी थी की हमारी दूकान भी बिक गयी और सर पर कर्जा भी बहुत चढ़ गया.
आखिर दो महीनो के बाद पिता जी की मौत हो गयी. पर तब तक घर के हालात बहुत बिगड़ चुके थे. हमारी दूकान बिक चुकी थी और खेत भी लाला के पास गिरवी रखे थे.
हमने अपने रिश्तेदारों से कुछ पैसे की मदद मांगी पर वो तो सरे रिश्तेदार ऐसे गायब हो गए थे जैसे गधे के सर से सींग..
सब रिश्तेदारों ने हमसे मुँह मोड़ लिया और उन्होंने तो हमारा फ़ोन भी उठाना बंद कर दिया कि कहीं हम उनसे कोई उधर न मांग लें.
खैर हम कर भी क्या सकते थे. आखिर दोस्त और रिश्तेदार की पहचान बुरे समय में ही तो होती है.
और कोई चारा न देख कर हमने अपने खेत को भी बेच दिया और कर्ज चूका दिया.
अब हमारे घर के हालात बहुत खराब हो चुके थे.
घर में खाने को भी लाले पद गए थे. और कोई साधन न देख कर मैंने खेतों में मजदूरी करना शुरू कर दिया. जिन खेतों के कभी हम मालिक थे अब मैं उन्ही खेतों में मजदूर था.
वक़्त का ऐसा ही चक्कर होता है. हमारे सब रिश्तेदार हम से मुँह मोड़ चुके थे. और हम घर में सिर्फ माँ बेटा ही रह गए थे जो किसी तरह अपना समय पास कर रहे थे.
बजुर्गों ने सच ही कहा है की ग़ुरबत यानि गरीबी इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है.
इसी तरह करते करते समय निकल रहा था और धीरे धीरे पिता जी की मौत को १० साल हो गए थे.
अब मेरी उम्र ३२ साल पार कर गयी थी और मेरी माँ की उम्र भी ५३ साल की हो चुकी थी.
माँ को सबसे ज्यादा चिंता मेरी शादी की थी.
माँ ने अपनी रिश्तेदारी में सब लोगों से मिन्नतें कर ली थी कि किसी तरह मेरी शादी हो जाये क्योंकि मेरी शादी की उम्र निकलती जा रही थी. या यूँ कहें की लगभग निकल गयी थी पर किसी रिश्तेदार ने मेरी शादी में कोई मदद न की और न ही कोई दिलचस्पी दिखाई.
अब उम्र के साथ हर इंसान में उस उम्र की जरूरते पैदा होती ही हैं. मुझे भी सेक्स की बहुत इच्छा होती थी. पर मैं करता भी तो क्या करता. न तो मेरी शादी ही हो रही थी और गरीब होने के कारण मेरी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी. आजकल की लड़कियां तो अमीर लड़के चाहती है पर मैं उनकी ऐसी कोई इच्छा पूरी नहीं कर सकता था. और न ही मेरे पास इतने पैसे थे कि मैं किसी रंडी को बुला कर चोद सकता.
मेरे पास तो ले दे कर भगवन के दिए हुए बस दो हाथ ही थे. और मैं जितना हो सकता उनका इस्तेमाल करता था.
मैं अब हर रोज रात में मुठ मर कर अपनी गर्मी निकालता था.
बस ऐसे ही जिंदगी बीत रही थी.
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिस से मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला था.
यह बात है मेरे बुआ के बेटे की शादी की है। मेरे बुआ के बेटे की शादी थी. वैसे तो बुआ हम लोगों को शायद बुलाना नहीं चाहती थी पर रिश्तेदारी का ख्याल रखते हुए उसने फॉर्मेलिटी के तौर पर हम लोगों को भी शादी में बुला लिया.
मैं जानता था की वहां हम लोगों की कोई इज्जत तो हैं नहीं, पर माँ शादी में जाना चाहती थी. वो सोचती थी की चलो इसी बहाने से उनका अपने रिश्तेदारों से कुछ सम्बन्ध बना रहेगा और शायद वहां मेरी शादी का भी कोई चांस शुरू हो जाये. तो माँ की इच्छा देखते हुए हमने शादी में जाने का फैसला कर लिया..
माँ ने अपने सब से सुन्दर कपडे और साड़ीयां ले ली. और हम वहां शादी में चले गए.
मेरी माँ अपनी तरफ से खूब सज संवर कर तैयार हो रही थी.
आखिर थी तो वो भी एक औरत ही. तो सजने सँवारने का मौका तो बेचारी को सालों बाद मिला था.
तो दोस्तों वहां मैंने अपने घर की कई औरतों को देखा। उनमें से कोई मेरी बहन थी, चाची थी, बुआ थी, मौसी थी, या मामी थी।
माँ को मैंने बहुत देर बाद सजी संवरी देखा तो देखता ही रह गया. सच में मेरी माँ तो बहुत ही सुन्दर थी. शायद उतनी सुन्दर कोई और औरत शादी में नहीं थी. मैंने कभी अपनी माँ की सुंदरता पर ध्यान ही नहीं दिया था. शायद उस ने भी कभी इतना सुन्दर सज कर मेकअप आदि नहीं किया था. मेरी माँ काफी मोटी थी। उसके मम्मे बहुत बड़े बड़े थे शायद 42D से कम नहीं होंगे. उस से भी सुन्दर उनकी चूतड़ और गांड थी. शादी में आये हुए हर आदमी की आँखें मेरी माँ के मुम्मों और गांड से हट ही नहीं रही थी.
दूसरों की क्या कहूं खुद मेरी आँखें माँ की गांड पर ही बार बार जा रही थी.
दोस्तों उससे पहले मैंने कभी उनको चुदाई की नजर से नहीं देखा था। लेकिन शादी में सारी की सारी औरतें इतना सज-संवर के आई थी, कि उनको देखने वाले हर आदमी का लंड खड़ा हो जाता और उन सब में सब से सेक्सी लग रही थी मेरी माँ ।
जब बारात में मैं शादी में आयी हुई लड़कियों और औरतों के साथ नाच रहा था, तब उनके चूचियों और गांड को दबाने का कई बार मौका मिला, और रात होते-होते मेरी हालत ऐसी हो गई थी, कि मुझे जाकर मुठ मारनी पड़ी।
उस दिन पहली बार मैंने सोचा कि अगर मुझे अपने घर की औरतों (मेरी माँ ) की चुदाई करने का मौका मिल जाये, तो बहुत अच्छा हो।
घर की औरतों को चोदने के बहुत फायदे हैं। सबसे पहला, जब चाहो जहां चाहो तुम उनको चोद सकते हो।
दूसरा फायदा यह है कि किसी को शक नहीं होता। मुझे चुदाई का बहुत शौक है। लेकिन मैं किसी औरत को अभी ज्यादा चोद नहीं सका था, बस किसी तरह पैसे जोड़ कर एक दो बार किसी सस्ती सी रंडी को चोद था। वैसे भी मैं डरता था कि चुदाई के चक्कर में कभी किसी लफड़े में ना फंस जाऊं। इसलिए मैंने यह ठान लिया था कि अब माँ को चोद कर ही रहूंगा।
अब पहली समस्या यह थी कि शुरुआत कैसे की जाये। क्यूंकी सब कुछ इसी बात पर निर्भर करता था कि अगर सबसे पहले गलत कदम उठा लिए और माँ को चोदने की कोशिश की, और उसने सबको बता दिया, तो मेरी जिंदगी के लोड़े लग जायेंगे।
सबसे पहले मां को चुनने के कुछ कारण थे। पहला यह है कि एक तो मां के नज़दीक आना सबसे आसान होता है। अगर कुछ गलत भी हो तो बचने का तरीका है। कई सारे बहाने होते हैं। और दूसरी सबसे जरूरी बात, कि अगर कुछ उल्टा-सीधा हो भी जाये तो मां तुम्हारी कभी किसी को बताएगी नहीं।
और वैसे भी मेरी पास माँ पर कोशिश करने के इलावा और कोई औरत है भी तो नहीं.
और फिर सब से बड़ी बात की माँ चाहे उम्र में 53 साल की हो गयी हो पर आज भी वो सेक्स की देवी लगती थी.
शादी के बाद हम घर वापिस आ गए पर अब मेरा अपनी माँ को देखने का नजरिया बदल चूका था. अब वो मुझे माँ नहीं बल्कि सेक्स की देवी और एक ऐसी सुन्दर औरत दिखाई देती थी, जिसे देख कर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था.
पर माँ को मेरे अंदर आये इस बदलाव का कुछ पता नहीं था. वो तो मेरे सामने उसी पुराने तरीके से ही रहती थी. घर के अंदर वो पहले ही की तरह पेटीकोट और ब्लाउज मैं रहती थी (गर्मी के कारण वो घर में साड़ी नहीं पहनती थी और हमारे पास AC तो था भी नहीं, यह मेरे लिए बहुत अच्छा था, इन कपड़ों में मैं माँ के सेक्सी और कामुक जिस्म का भरपूर नजारा कर सकता था.
माँ के बड़े बड़े मुम्मे और उनकी उभरी हुई गांड मेरी मुठ मारने की फैंटसी का साधन थी. मैं रोज अब माँ के कामुक बदन को सोच कर मुठ मरता था.
अब जब कभी माँ नहाने जाती थी तो मैं छुप कर बाथरूम के दरवाजे की दरार से उनके सेक्सी बदन को देखने की कोशिश करता था.
मेरी मॉम का फिगर 40-36-44 का होगा. उनकी गांड लगभग पूरी तरह से बाहर निकली हुई है. मेरी मॉम हमेशा साड़ी ही पहनती हैं.
वो साड़ी कुछ इस तरह से बांधती हैं कि उनका न दिखने वाला जिस्म पूरी तरह से कुछ इस तरह से दिखे, जिसे देख कर देखने वालों के लंड में आग लग जाए. जैसे एक तो उनकी नाभि हमेशा ही साफ़ दिखती थी. चूचों के ऊपर साड़ी का पल्लू कुछ इस तरह से रखती थीं, जिससे उनकी चूचियां पूरी तरह से फूली हुई दिखती थीं.
मॉम अपनी चूचियों की क्लीवेज कभी नहीं ढकती थीं, उनकी सिल्की चूचियों की गोरी दरार उनके गहरे गले वाले ब्लाउज में से साफ़ दिखती थी, उस पर मॉम की साड़ी का पल्लू उनकी चूचियों पर कुछ इस तरह से कसा हुआ होता था कि उनकी चूचियों में दो गुब्बारों में हवा भर कर गांठ बाँध दी गई हो.[img][/img]
उनको इस तरह से देख कर मैं उनको चोदने के बारे में ही सोचता रहता था. मुझे लगता था कि मेरी मॉम पापा के न रहने से संतुष्ट नहीं हो पाती हैं, इसीलिए वो इतनी कामुक दिखती हैं, ताकि अपने लिए वो लंड तलाश सकें.
एक दिन मॉम कपड़े बदल कर रही थीं, मैं चोरी से उन्हें देख रहा था. मॉम ने पहले अपनी साड़ी निकाली, उसके बाद पेटीकोट और ब्रा पेंटी उतार कर मॉम पूरी नंगी हो गईं. मैं दरवाज़े से झिरी से मॉम को नंगी होती हुई देख रहा था.
जैसे ही मेरी मॉम पूरी नंगी हुई, मेरा कलेजा हलक में आ गया. मैं अपने लंड को हिला रहा था और उनको देख रहा था.
नंगी हो जाने के बाद उन्होंने तेल लिया और अपनी चूत पर लगाया. फिर चूचियों पर मला. मॉम ने अपनी चूचियों की थोड़ा सहलाया और अपने निप्पल पकड़ कर चुचों को आगे खींचते हुए अपनी आंखें बंद करके मजा लिया. इससे मुझे उनकी चुदास साफ़ दिख रही थी.
तेल से मम्मों और चूत को घिसने के बाद मॉम ने एक ब्रा और पेंटी निकाली. उन्होंने बड़ी नफासत से उसको पहना, फिर आईने में घूम घूम कर पैंटी ब्रा को अपने मम्मों पर और गांड पर सैट करते हुए खुद को देखा. उसके बाद साड़ी पहन ली.
मुझे समझ आ गया कि मॉम किसी भी पल बाहर आ सकती हैं, इसलिए मैं लंड सहलाते हुए वहां से बाथरूम में चला गया. उधर जाकर मैंने मॉम के नाम की मुठ मारी.
मॉम ने मुझे आवाज देते हुए कहा- तुझे कुछ चाहिए हो तो बोल, मैं ज़रा बाजार जा रही हूँ.
मैंने कहा- नहीं, मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए, आप कितनी देर में वापस आओगी?
मॉम ने कहा- एक घंटे में आ जाऊंगी.
मैंने ओके कहते हुए उनको जाने दिया. मॉम अपनी गांड हिलाते हुए चली गईं.
उसके बाद जब भी मुझे मौका मिलता, मैं मॉम को देखता और मुठ मार लेता.
माँ अभी जवान थी और चुदने लायक माल थी। एक दिन जब सुबह वो बाथरूम में नहा रही थी तो मैं ने सोचा कि माँ को नंगी देखने का यह एक बढ़िया मौका है तो मैं बाथरूम के छेद के पास चला गया और माँ को बाथरूम में नहाते देखने लगा।
वो नहा रही थी और पूरी तरह से नंगी थी। मैंने माँ को नंगी देखा तो मेरा लंड बिलकुल खड़ा हो गया। दोस्तों, दिल में यही आ रहा था की अभी माँ को पकड़ लूँ और कसकर चोद लूँ।
मैं बाथरूम की खिड़की के पास छुप गया और अपनी माँ की नहाते हुए देखते लगा। मेरा बाप मर कर स्वर्ग सिधार गया और मेरी माँ को ढंग से चोद भी ना पाया। बाथरूम की खिड़की के पीछे मैं छिपा हुआ था और माँ को नहाते हुए देख रहा था। उसका जिस्म आज भी भरा हुआ और सुडौल था। मम्मे 42 " के थे और काफी कसे और गोल गोल मस्त थे।
कहीं से भी मेरी माँ के बदन पर फालतू चर्बी नही थी और बड़ा सुडौल बदन था उसका। वो डव साबुन को अपने मम्मो पर जल्दी जल्दी मल रही थी, फिर हाथ पैर और चेहरे पर साबुन लगाने लगी, फिर अंत में टांगो पर साबुन मलने लगी। फिर जांघ पर साबुन लगाते हुए माँ अपनी चूत पर पहुच गयी और साबुन चूत पर मलने लगी।
माँ बाथरूम के शीशे के तरफ चेहरा कर के पूरी नंगी झुकी हुई थी और पैरों में तेल लगा रही थी उनका बड़ा सा मोटा फुटबॉल जैसा 44 साइज का गांड क्लियर मेरे आंखो के सामने था और क्योंकि वो झुकी हुई थी तो उनका गांड का टाइट छेद और चूत का बंटवारा बिकुल साफ साफ मेरे आंखों के सामने था
क्योंकि माँ की बहुत सालों से चुदाई नहीं हुई थी तो शायद इसी लिए इसी बीच मेरी माँ का चुदने का दिल करने लगा और वो अपनी चूत में ऊँगली करने लगी।
फिर अचानक माँ ने अलमारी में से एक खीरा निकल लिया. मैं तो यह देख कर बहुत ही हैरान हो गया. मुझे इतना तो मालूम था की माँ की चुदाई बहुत सालों से नहीं हुई है तो उनका भी तो चुदवाने का मन करता होगा पर इतना मालूम नहीं था की वो खीरे से अपनी काम पिपासा शांत करती है,
खीरा लगभग ६ इंच लम्बा और काफी मोटा था. माँ ने उसको एक बार अपनी चूत की दरार में रगड़ा और फिर उसपर थोड़ा सरसों का तेल लगा लिया.
फिर माँ एक छोटे से स्टूल परटांगे चौड़ी करके बैठ गयी. अब मुझे अपनी माँ की चूत पूरी तरह से खुल कर दिखाई दे रही थी. माँ की चूत पर बहुत बड़े काले काले बाल थे. माँ ने बालों को इधर उधर करके चूत की फांको को खोला. अब मुझे माँ की चूत का छेद पूरी तरह से दिखाई दे रहा था. माँ की चूत चाहे बाहर से काली थी पर अंदर से पूरी लाल थी,
माँ ने खीरे का किनारा अपनी चूत पर रखा और धीरे से खीरे को अंदर डाल लिया. खीरा लगभग आधा अंदर चला गया क्योंकि वो पहले से ही तेल से तर था और खूब चिकना हो गया था। धीरे धीरे माँ ने पूरा खीरा अपनी चूत के अंदर डाल लिया और माँ की ऑंखें मजे से बंद हो गयी थी,
वो अब तेज तेज खीरे को अंदर बाहर कर रही थी और मजे से चिल्ला रही थी,
"आआआआअह्हह्हह....ईईईईईईई...ओह्ह्ह्हह्ह...अई..अई..अई....अई...." करके मेरी चुदासी माँ आवाज निकाल रही थी। "काश.....कोई मुझे चोद डाले.....कसके मुझे चोद दे.... सी सी सी सी.. हा हा हा .....ऊऊऊ ...." मेरी माँ बार बार चिल्ला रही थी।
वो अचानक उनका पूरा बदन अकड़ गया और वो जोर से चिल्ला कर झड़ने लगी. उनका पूरा बदन कांप रहा था और उनकी चूत से ढेर सारा पानी निकल कर बाथरूम के फर्श पर गिरने लगा. थोड़ी देर माँ का बदन इसी तरह कांपता रह और फिर धीरे धीरे शांत हो गया. माँ ने खीरा धो कर फिर से अलमारी में रख दिया.
आज मैं जान गया की मेरी माँ मुझसे कोई बात कहती नही है, पर आज भी उनका चुदवाने का और मोटा लौड़ा चूत में खाने का बड़ा दिल करता है। माँ बड़ी देर तक नहाते नहाते अपनी रसीली चूत में ऊँगली करती रही। चूत पर साबुन मलती रही। फिर उन्होंने बाल्टी भर भर कर जी भरकर नहाया और अपने जिस्म को साफ़ कर लिया।
अपनी चूत में माँ से कई बार पानी जग से भरकर डाला। फिर तौलिया लेकर मेरी माँ ने अपने सारे बदन को पोछा, अपने सुडौल मम्मे और चूचियों को भी माँ ने अच्छे से पोछा और फिर अंत में अपनी चूत को तौलिया से अच्छे से पोछा। अब उनकी चूत बड़ी सुंदर, साफ़ और गुलाबी लग रही थी।
जब माँ बाथरूम के बाहर आने लगी तो मैं वहां से हट गया। अपनी नंगी माँ को मैं देख ही चूका था और उनकी बुर चोदने का बड़ा मन था मेरा। मैंने कई बार माँ के रूप रंग को सोच सोच कर मुठ मारी।
इसका यह मतलब तो साफ था कि मम्मी के अंदर आग बची रहती थी।
मैं अभी तक कोई तरीका नहीं ढूंढ पाया था कि अपनी मां को चुदाई के लिए तैयार कैसे करुं।
फिर एक दिन मेरी मां की कुछ सहेलियां घर पर आई हुई थी। मेरी मां और उनकी चार पांच सहेलियों का एक ग्रुप था। यह सभी लगभग एक ही उम्र की थी और उन में से कई तो मेरी माँ की तरह विधवा थी, जो शादीशुदा भी थी वो भी लगता है की सेक्स की भूखी ही थी या उनका अपने पति से सेक्स का कोटा पूरा नहीं होता था. यह लोग हर कुछ दिन में एक-दूसरे के घर पर मिलती थी। यह उस टाइम पर मिलती थी जब उनके पति घर पर नहीं आते। तांकि खुल कर बात कर सके। मैंने सोचा की चलो आज इनकी बातें सुनी जाये। देखे ये कैसी बातें करते हैं।
शुरुआत में तो वे फालतू बातें कर रही थी अपने घर परिवार की, जो सब औरतें करती है। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उनकी बातो में खुलापन आने लगा। धीरे-धीरे वो अपनी पर्सनल बातें करने लगे। इन सब औरतों की बातो में एक बात तो समान थी कि यह सब उनके पति से खुश नहीं हो पा रही थी,
इनकी बात-चीत में इन लोगों ने यह बात पर भी चर्चा की कि अगर हम बाहर भी चुदाई करा ले, तो अपने आप को तो ठंडा कर सकते हैं। लेकिन इन लोगों ने उस विचार को ही खत्म कर दिया क्यूंकि यह सब बदनामी से डरती थी।
इसी बातचीत में मेरी मां ने एक बात बोली। जिसको सुनने के बाद मुझे लगा कि मेरा काम बन जायेगा।
अगर तुम में से कोई यह सोच रहा है कि मेरी मां ने कहा चलो अपने बेटों से चुदवा लेते हैं, तो ऐसा उसने कुछ नहीं कहा। मेरी मां ने जो बात कही थी, वह यह थी कि,
"आज-कल तो लड़के-लड़कियां 18-19 की उम्र में चोदने लगे हैं, अगर हम भी आज के ज़माने में पैदा हुई होती, तो चुदाई का पूरा मजा लेती। पर क्या करें हम पुराने जमाने की औरतें है, अब मेरी ही उदाहरण लो। मेरे पति को मरे हुए १० साल हो चुके है. पर मैं तो जिन्दा हूँ. पर क्या करूँ. मेरी चूत का कोई इलाज नहीं है. मेरा भी मन करता है की कोई मुझे जोर जोर से अपने बड़े और मोटे से लण्ड से चोदे, पर मैं क्या करूं. मैं तड़प के रह जाती हूँ. मैं बाहर भी किसी से चुदवा नहीं सकती क्योंकि बाद में वो आदमी मेरे को ब्लैकमेल कर सकता है और फिर मुझे रंडी की तरह हर रोज खुद या अपने दोस्तों से भी चुदवाने को कहेगा. और अगर वो बात किसी को पता चल गयी तो मैं तो बहुत बदनाम हो जाउंगी. मेरा एक ही बेटा है. वैसे भी उस बेचारे की शादी नहीं हो रही और अगर मेरी ऐसी बदनामी हो गयी तो उसकी भी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. इसलिए मैं मन को मार कर रह जाती हूँ. बस अब तो खीरे या मूली का ही सहारा है या अपनी उँगलियों से काम चलाना पड़ता है. पर उस में वो मजा कहाँ जो टांगे चौड़ी करके लेट जाने में है. बस नंगी होकर लेट जाओ और आदमी खुद ही लण्ड अंदर डाल कर कस कस कर चोदता है. आराम से पूरे लौड़े के अंदर बाहर होने के एहसास का मजा लो। अब खीरा मूली में तो खुद ही अपने ही हाथ से अंदर बाहर करना पड़ता है. "।
माँ की सहेलियों ने भी उनकी बात का समर्थन किया और कहा की उनकी भी ऐसे ही स्थिति है.
फिर मेरी माँ ने बोला " अरे लेट कर चुदवाने का आनंद लिए तो सालों हो गए है, वो भी क्या दिन थे जब हर रोज चुदाई होती थी. मैं तो अपने पति का लौड़ा हर रोज चूसती थी. अब तो मेरे को लौड़े का स्वाद भी लगभग भूल ही गया है. मुँह में लण्ड को आइसक्रीम की तरह चूसने और फिर उसके माल (वीर्य) को चाट चाट कर पी लेने का मजा तो बीते अतीत की यादें ही बन कर रह गया है. कितना मन करता है कि मुँह में मोटा सा लौड़ा ले कर कस कस कर चूसूं पर कुछ कर नहीं सकती. मेरे को तो मांस के लौड़े का स्वाद ही याद नहीं आता अब तो. बस रोज रात को अपनी किस्मत पर रो रो कर और अपनी ही उँगलियों से अपना पानी निकल कर चुप चाप सो जाती हूँ. "
उनकी सहेलियों ने माँ की बात का समर्थन किया की उनका भी वही हाल है.
बस कुछ ऐसी ही बातें करके उनकी सहेलियां चली गयी.
मैं अपनी माँ की बातें सुन कर बहुत हैरान था और मेरा लण्ड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे बस फट ही जायेगा.
उन दिन मैंने माँ की याद और उनकी तड़पती कामुक जवानी की याद में तीन बार मुठ मारी।
इतना तो मेरे को पक्का हो गया था की मेरी माँ चुदासी है और चुदवाने को तड़प रही है. मैं यह भी जानता था की मेरी माँ बाहर किसी से चुदवा नहीं पायेगी, तो या तो उसे मुझे ही चोदना पड़ेगा या माँ ऐसे ही तड़पती रहेगी.
पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं करूँ तो क्या करूँ। मुझे मालूम था की माँ तो खुद मेरे से चुदवायेगी नहीं तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.
मां की इस बात के बाद मैंने यह प्लान बनाया कि एक रंडी को पैसे देकर अपने घर लाऊंगा, और कुछ ऐसा इंतजाम करूंगा कि मां मुझे उसको चोदते हुए पकड़ ले।
एक दिन मां बाहर गई हुई थी। तो मैंने उस रंडी को बुलाया और हम दोनों मस्त चुदाई करने लगे। मैंने दरवाजे को जान-बूझ कर ताला नहीं लगाया था, तांकि जब मैं चुदाई कर रहा हूं, तो मां मुझे उस रंडी के साथ पकड़ सके। और ठीक ऐसा ही हुआ। मां आई, और मां ने हम दोनों को चुदाई करते पकड़ लिया।
मैं जान भूज कर उस दिन रंडी को पूरा नंगा हो कर चोद रहा था. जब माँ ने हमे पकड़ा तो मेरा पूरा लौड़ा उस रंडी की चूत के अंदर था.
रंडी नीचे लेटी हुई थी और मैं उस के ऊपर लेट कर धक्के मार रहा था.
जब माँ ने दरवाजा खोला तो उसने हमें चुदाई करते हुए पाया.
मेरा पूरा लौड़ा रंडी के अंदर था. इसलिए माँ को मेरा लौड़ा और उसका साइज पता नहीं चला. पर जब मैंने माँ को देखते ही हैरान होने और डर जाने का नाटक करते हुए लौड़ा बाहर निकला तो धीरे धीरे लौड़े को बाहर आते माँ ने देखा. मेरा लौड़ा ८ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा था. शायद पिता जी का लण्ड भी इतना बड़ा नहीं था.
मेरे इतने बड़े लौड़े को देख कर माँ की तो जैसे आँखें ही उस पर जम गयी और उनका मुँह खुला रह गया.
मेरा लौड़ा रंडी की चूत के रस से भीगा हुआ था और रस से चमक रहा था.
माँ हैरानी से उसे देख रही थी.
फिर जैसे माँ को होश आया और उसने अपनी आँखें मेरे लण्ड से हटाई.
उसके बाद मां बहुत गुस्सा हुई। माँ तो गुस्से में पागल ही हो गयी थी.
मैं हैरान हो जाने और पकडे जाने का नाटक कर रहा था. मैं ऐसा दिखावा कर रहा था की मैं गलत काम करते हुए पकड़ा गया हूँ. मैं नंगा ही बैठा था. और मेरा आठ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा, बेलन जैसा लण्ड अपनी पूरी शान के साथ आसमान की ओर सर उठाये खड़ा था. मेरे मोटे लण्ड को देख कर एक बार तो माँ की आँखें जैसे फटी की फटी रह गयी. माँ की नजर मेरे लण्ड पर जम ही गयी थी. वो हैरानी के साथ मेरे लण्ड को देख रही थी. उन की आँखों में हैरानी और कुछ अजीब से भाव थे. पर कुछ देर के बाद जैसे वो किसी सन्मोहन से जगी और मेरे लौड़े से नजर दूर करी., ऐसा लग रहा था की माँ मेरे लौड़े से अपनी नजर हटाना नहीं चाहती थी, पर माँ को अब इस स्थिति में रंडी को भी तो भगाना था।
तो सबसे पहले तो उसने उस रंडी को गालियां देकर बाहर निकला। यह जिंदगी में पहली बार था जब मैंने अपनी मां के मुंह से इतनी गालियां सुनी थी।
रंडी के चले जाने के बाद पहले तो मां ने मुझे गालियां दी, थोड़ा मारा, और कहा "तुझे बहुत गर्मी चढ़ रही है. घर में खाना खाने के पैसे नहीं है और तू इन दो टके की बाजारू रंडियों पर पैसे बर्बाद कर रहा है. तुझे कोई शर्म लिहाज है भी या नहीं, तुझे इतना भी डर नहीं है की इन औरतों से तुझे कोई बीमारी भी लग सकती है. "
यह कह कर माँ ने मुझे खूब मारा, मैं भी चुपचाप मार खाता रहा और माँ भी रोती रही,
फिर कुछ देर के बाद माँ किचेन में चली गयी.
मेरा प्लान कामयाब रहा था पर बात कुछ आगे बढ़ नहीं रही थी.
पर कहते हैं न की भगवान आपकी मन की इच्छा पूरी करने का कुछ न कुछ इंतजाम कर देते हैं.
कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ.
धीरे धीरे अब मेरी हवस बढ़ रही थी. माँ को छुप छुप कर नहाते हुए तो मैं पहले भी देखता था पर मैं अब उनकी ब्रा और पैंटी छुपाने लगा था. रोज किसी की ब्रा या पैंटी चुपके से उठा कर ले जाता था और उसको सूंघते हुए मुठ मारता था. फिर उसी पैंटी में वीर्य पोंछ देता था. जब पैंटी सूख जाती थी तो उसे फिर से माँ के कपड़ों में रख देता था. या फिर उसको वैसे ही ले जाकर उसी जगह पर टांग देता था जहां से उतारी होती थी. ऐसे ही दिन बीतते गए.
एक दिन मैं काम से लौटा तो देखा आज माँ की नयी पैंटी बाथरूम में गंदे और धोने वाले कपड़ों में पड़ी थी. उसे मैंने आज पहली बार ही देखा था. मैंने पैंटी को उठा कर देखा और थोड़ा सूंघा तो उस में से माँ के चूत की सुगंध आ रही थी. माँ ने पैंटी को सारा दिन पहना था तो उस में से माँ के पेशाब की भी भीनी भीनी खुशबु आ रही थी. नयी पैंटी थी तो लंड मचलने लगा. मैं पैंटी को लेकर ऊपर अपने रूम पर गया. मैंने अपना बैग एक तरफ पटका और अपने कपड़े उतारने लगा.
haldvani
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.