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Adultery रीमा की दबी वासना
रीमा -  परंतु यौवन ढलने तक स्त्री तो नियमित रजस्वला रहती है, फिर वो कैसे ब्रह्मचर्य का पालन करेगी ।
बूढ़ा आदम मुस्कुराया - मुझे तुमारी जिज्ञासा से आश्चर्य नहीं हुआ ध्यान  से सुनो 
बूढ़ा आदम - महिलाएं रजस्वला होते हुए कोई भी पूरुष के साथ शारीरिक संबंध न बांध कर ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है। ब्रह्मचर्य एक  अभ्यास से जुड़ा हुआ है । एक निश्चित अवधि के लिए या अपने शेष जीवन के लिए यौन गतिविधि से दूर रहने की औपचारिक प्रतिबद्धता को ही ब्रह्मचर्य कहते है ।गृहस्थ बनने से पहले तक  ब्रह्मचर्य  का पालन करना चाहिए ऐसा ज्ञान हमारे पूर्वज हमे देकर गए । 

रीमा - जब 
ब्रह्मचर्य इतना तेजस्वी बना सकता है तो आपको मुक्ति भी दिला सकता है ।
बूढ़ा आदम - नहीं, जो शरीर दो परमाणुओं की ऊर्जा के मिलन से बना है वो अकेले की तप से नष्ट तो हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं मिलेगी । दो बाते है एक है संभोग और दूसरा है मुक्ति। दोनो एक दूसरे के पूरक है ।  
सम्भोग के अंतिम समय जब आपके विचार शून्य हो जाते हैं , कोई विचार रह ही नहीं जाता सिर्फ़ एक साक्षी होता है जो असीम आनंद की अनुभूति करता है । जब विचार शून्य हो जाते हैं और आप साक्षी हो जाते हैं तो आप सीधे जाकर मिलते हैं परम ऊर्जा से । 
हर चक्र में कुछ ऊर्जा समाहित है जो बंद है अर्थात् जिस तक आपके चेतन मन की पहुँच नहीं है । जब आप संभोग की चरम अवस्था पर होते है तो इन चक्रो की सुसुप्त ऊर्जा प्रज्वलित होती है । जितना समय आप संभोग की चरम अवस्था में रहते है उतने समय तक ही ये चक्रीय ऊर्जा सक्रिय रहती है । इसे ऐसे समझो 
सबसे नीचे का चक्र है मूलाधार चक्र । मूलाधार चक्र में सातों चक्र से कई अधिक ऊर्जा है । इसका भी एक कारण है , मूलाधार चक्र हमारे प्रजनन तंत्र को ऊर्जा देता है । अब जहाँ से एक सम्पूर्ण शरीर के बीज का निर्माण होना हो जिसमें आत्मा रूपी ऊर्जा को सम्भालने की क्षमता होनी है , उसे अधिकतम ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी ही ।
तो मूलाधार से ऊर्जा जब नीचे यानी प्रजनन तंत्र की ओर बहती है तो वो सम्भोग में काम आती है ।
अब जब आप ध्यान करते हैं तो सबसे पहले यही मूलाधार चक्र खुलता है इसे से ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है और सारे चक्रों को खोलती चली जाती है । जब ये ऊर्जा सबसे ऊपर के चक्र सहस्त्राधार को खोल देती है इस अवस्था को समाधि कहते हैं ।
तो जब मूलाधार से ऊर्जा नीचे की ओर बहती है उसे सम्भोग कहते हैं
जब ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है तो उसे समाधी कहते हैं ।
नीचे की तरफ़ ऊर्जा का बहाव स्वाभाविक है , इसमें ज़्यादा प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती । जबकि ऊर्जा को ऊपर की ओर बहाने के लिए अधिक प्रयास की आवश्यकता पड़ती है ।
इसी लिए लोग अधिकतर सम्भोग में फँस कर रह जाते हैं । जो तपस्वी इस ऊर्जा को ऊपर की बहने का सिद्ध हासिल कर लेते है उनका संभोग में क्षरण नहीं होता । संभोग के उन क्षणों में जब आपका मूलाधार चक्र पूरी तरह प्रज्वलित है तो महा योगी/योगनी  उस वीर्य या रज रूपी ऊर्जा की खीच कर न केवल मस्तिष्क तक ले जा सकते है बल्कि एक तेज स्वास से उसे शरीर से बाहर निकाल कर प्राण भी त्याग सकते है । 

[Image: AVvXsEjOd7uG3DzLOkTzXxckSGqtoW97zSk2nzUb...LLw=s16000]



बूढ़ा आदम एक लंबी सांस खीच कर - तुम्हें देवी वही महा तपस्वनी वाली सिद्धि देकर गई है । तुम देवी के प्रताप से उर्ध्वरेता महा महिषी तपस्वनी बन गई हो । जो हमारी वर्षों से संचित ऊर्जा को स्खलन के बाद न केवल अपनी गर्भ  में संभाल सकती हो बल्कि जिन योगियों की कुंडलिनी जागरण का अभ्यास नहीं है उनके शरीर में भी ऊर्जा का प्रहाव पलट सकती हो, बशर्ते वो उस समाधि की अवस्था में हो जो केवल संभोग के ज़रिये ही प्राप्त की जा सकती है । 
रीमा - आपने तो काम की लेकर मेरी पूरी सोच समझ ही हिला दी । अब तक मैं सिर्फ़ वासना को ही समझती रही ।
बूढ़ा आदम - इसलिए देवी, बहुत फर्क है देवी, भावना का फर्क है, लक्ष्य का फर्क है | क्या संतानोपत्ति के लिए किये गए सम्भोग और सामान्य वासना तृप्ति के सम्भोग में कोई अंतर नहीं | क्या गर्भ धारण करते समय दंपत्ति उत्तम संतान के  समस्त ब्रम्हांड की सकारात्मक शक्तियों का, अपने पूज्य देवी देवताओं का अहवान नहीं करते |  बहुत फर्क है देवी | भावना का फर्क है, कर्म का फर्क है और मिलने वाले कर्म फल का अंतर है | 
रीमा हल्का सा हँसते हुए - आपकी फ़िलासफ़ी एक तरफ़ और लेकिन ३६ मूसल लंड को लेना, तुम सबकी  मुक्ति हो न हो मेरी ज़रूर हो हो जाएगी ।
बूढ़ा आदम - मैं देख रहा था आपने महा देवी की अग्नि को आत्मसात् कर लिया है, उसके आगे कामाग्नि क्या है । 

[Image: AVvXsEiLzldvdgT4qFc0fCOe_Wx1zQxVg7pgenQd...fnN=s16000]



रीमा - फिर भी हाड़ मांस के शरीर का क्या । 
बूढ़ा आदम - ऐसा नहीं की हम अभी संभोग शुरू कर देगें, उसकी एक प्रक्रिया है और उस प्रक्रिया से गुजरकर आपको पूरी साधना करनी होगी, जब साधना पूर्ण होगी, तभी आपकी योनि हमारे लिंग को लेने के लिए उपयुक्त होगी । अन्यथा मैथुन तो उस मूर्ख बालक ने भी किया था, वीर्य क्षरण भी कर दिया लेकिन मुक्ति नहीं मिली ।  मेरे पास है आपके लिए कुछ, जो शायद आपका भय निकाल दे, एक लंबी साधना प्रक्रिया  । 
इतने में दोनों उस पाषाण प्रतिमा की पास पहुँच गये । रीमा ने देखा एक निर्वस्त्र स्त्री की पत्थर नुमा मूर्ति है, जिस्म स्त्री पीठ के बल लेती है और उसकी जाँघे घुटनों से मुड़ी हुई है और उसकी योनि पूरी तरह से खुली है, यहाँ तक की उसकी योनि में दो  उँगली जाने भर की जगह भी । प्रतिमा को देखकर लगता ही नहीं की वो निर्जीव पत्थर है, ऐसा लगता है किसी ने साक्षात मैथुन करती स्त्री को पत्थर में ढाल दिया है । 
रीमा - ऐसा लगता है किसी साक्षत् स्त्री को इस पत्थर में उतार दिया हो । 
बूढ़ा आदम - आप सच कह रही है देवी, ये प्रतिमा नहीं है, ये देवी लोचना है जो हमारे साथ ही साथ अपना भी मुक्ति का मार्ग देख रही है । 
रीमा - मतलब तुम कह रहे हो ये पत्थर नहीं है एक मनुष्य शरीर है।

बूढ़ा आदम - अब ये ख़ुद प्रत्यक्ष अनुभव करो, शब्दों का कोई अर्थ नहीं है यहाँ  । 
रीमा - पहले मैं चमत्कारों को नहीं मानती थी तुमसे मिलने के बाद मानने लगी हूँ लेकिन अभी भी यह संशय है । 
बूढ़ा आदम - संशय अभी दूर हो जाएगा । 
पीठ के बल लेटी मूर्ति के योनि छिद्र की तरफ़ इशारा करके - इसमें अपनी उँगली डालिये ।
रीमा ने डरते हुए - अपनी उँगली उसमें डाली, ऊपर से पाषाण और रीमा की उँगली को अंदर वही अहसास हुआ जो उसे अपनी योनि में उँगली डालने में होता है । 
बूढ़ा आदम - ये योनि से रिसता रस, लोचना  देवी की अतृप्त काम वासना की अन्नत प्रतीक्षा  है । हम वासना रत होकर अपने सुसुप्त परमाणुओं को सक्रिय करेगें और आपकी ऊर्जा से सातो चक्रो को उर्जित कर समाधि अवस्था में चले जायेगें । उन्ही परमाणुओं को आपको देवी लोचना के गर्भ में निष्पादित करना है, जब सबके परमाणु देवी लोचना के गर्भ में पहुँच जायेगें तो उनके गर्भ में उस संचित ऊर्जा की अग्नि शायद देवी की कामाग्नि को नष्ट कर दे और वो भी मुक्त हो जाए, ऐसा मेरा अनुमान है ।

 
रीमा ने इतन कुछ देख लिया था सुन लिया था की अब कुछ और सुनने समझने की ताक़त नहीं बची थी । एक पत्थर के अंदर मानव वो भी जीवित - विज्ञान में ये संभव नहीं है । 
बूढ़ा आदम - विज्ञान क्या है, जिसको हम प्रमाणित कर पाये, इसका अर्थ है जो प्रमाणित नहीं क्या वो सत्य नहीं हो सकता, क्या वो वास्तविक नहीं हो सकता । ये आकाश अन्नत है और यहाँ अनंत ऊर्जा के स्वरूप है, कौन सी ऊर्जा किस रूप में क्या चमत्कार कर सकती है हम तुक्ष लोगो को क्या पता । 

[Image: AVvXsEiTeapXKKcnOCvG_axVgfBqSyP_iBWw7cVE...=w640-h426]

रीमा बूढ़े आदम की तरफ़ देखती हुई - क्या है आपकी कहानी, मैं सुनना चाहूँगी । इन सबके बीच रीमा ये भी भूल गई वो आदम के साथ बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में चल फिर रही है । न स्तनों को छिपाने का संकोच, न थिरकते नितंब कौन देख रहा है इसकी चिंता । रीमा के गले में एक हड्डी की माला पड़ी थी और शरीर पर नीला भभूत ।


बुढा आदम -हम न ही आदमखोर है, न ही मांस मदिरा भक्षी है, इ ही स्त्री खोर है और न ही जंगली है | ये बात है लगभग 800 साल पहले की | 
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RE: रीमा की दबी वासना - by vijayveg - 16-11-2024, 08:47 AM



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