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Adultery रीमा की दबी वासना
बूढ़ा आदम - नहीं देवी, मेरे शरीर के परमाणु तब तक उस अवस्था में नहीं लौटेगे जब तब उनका आपने शरीर के परमाणुवों से मिलन नहीं होता, इसलिए आपका रक्त, रज और मेरे वीर्य का मिलन होना आवश्यक है , फिर हम दोनों अपनी स्वास साधन क्रिया से उस त्रिशक्ति रस को पुनः लिंग के माध्यम से अपने शरीर में स्थापित कर देगें और वो ऊर्जा हमारे मूलाधार चक्र से होती हुई रक्त संचार के माध्यम से वो हमारे पूरे शरीर में फैल जाएगा और हम अपनी मृत्यु अवस्था में वापस आ जाएँगें, फिर आपको हमारे ऊर्जित रक्त की भेंट उस पत्थर मूर्ति की योनि पर चढ़ानी होगी, जिसकी वजह से हमको ये गति प्राप्त हुई है । 

रीमा - मेरे लिए ये सब नया है लेकिन तुम अपने लिंग से कैसे कोई चीज शरीर में वापस प्रवेश करा दोगे । 
बूढ़ा आदम - साँसो के अभ्यास से सब संभव है, उस संभोग के चरम पर हमारे शरीर का ताप इतना होगा की कोई भी तरल पदार्थ नष्ट हो जाएगा, इसलिए हमारे शरीर से वीर्य नहीं, बल्कि उसकी ऊर्जा ही बाहर निकलेगी और आपकी योनि से होते हुए गर्भ तक जाएगी और आप अपनी महाशक्ति से उस ऊर्जा को न केवल हमारे शरीर में प्रस्थापित कर देगी बल्कि एक साथ ही सातो  चक्रो  को सक्रिय कर देगी और हम समाधि अवस्था में चले जायेगें ।फिर आपको हमारे निष्प्राण शरीर को चीर कर जो भी रक्त आपको मिले, उसमे अपने रक्त की एक बूँद मिलकर उसे मूर्ति के योनि द्वार में डालना होगा और हमे पाप मुक्त कर इस लोक से हमेशा के लिए विदा कर दे । हो सकता है हमारे रक्त की बलि इस पाषाण बन ऋषि का श्राप झेल रही ऋषि पत्नी को भी श्राप से मुक्त कर दे ।
रीमा - ये पत्थर मूर्ति के बारे तुमने कुछ बताया ही नहीं ?
बूढ़ा आदम - इनके बारे में तो बताना ही भूल गया, इन्ही देवी के कारण हम ऋषि के कोप का भाजन बने और इतने सालो से यहाँ मुक्ति को तड़प रहे है । ये भी अपने जड़वत रूप में खुले आकाश ने नीचे सर्दी गर्मी बारिश सब कुछ भोग रही है, चलिए आपको वही पाषाण स्थल पर ही ले चलता हूँ ।
रीमा को बूढ़े आदम की बारे समझ आई तो उसके जीवन के सहज ज्ञान की कायल हो गयी | सच ही तो कह रहा था बुढा | आज के समय में भले ही चुदाई को लोग बुरा बना दिया गया हो लेकिन पुराने समय में ये सहज था | स्त्री पुरुष का संसर्ग करना एक सहज और प्राकृतिक क्रिया है | 
पाषाण स्थल की तरफ़ जाते हुए - आप सब कुल कितने है यहाँ । 
बूढ़ा आदम - कुल हम ४०० थे लेकिन काल चक्र में सब टिक न सके, ३५० से ज़्यादा के शरीर नष्ट हो गये है, उनका मानव शरीर ही नहीं बचा और उन्हें मुक्ति भी नहीं मिली । कुल १० लोग ऐसे है जिनके शरीर स्थूल हो गये (पूर्णतः मिट्टी बन गये है), उनका मानव शरीर में लौटना संभव नहीं है । पता नहीं ऐसे लोगो को कैसे मुक्ति मिलेगी, मिलेगी या यू ही अनंत काल तक यहाँ भटकते रहेगें ।
रीमा - तुम ४० लोग हो जिन्हें मुक्ति चाहिए । 
बूढ़ा आदम - नहीं हम ३६ है और एक वो पाषाण प्रतिमा । ४ लोगों ने अग्नि स्नान कर लिया था, उसी काल में इससे उनके शरीर ऐसे हालत में पहुँच गये की उनका वापस लौटना अब संभव नहीं है ।
रीमा - क्या उन लोगो की आत्मायें भी संभोग करेगी । 
बूढ़ा आदम - नहीं आत्मा की अवस्था, अलग होती है, वो सिर्फ़ एक ऊर्जा है जिसे एक आयाम से दूसरे आयाम में जाना है, मुझे इसका ज्ञान नहीं वो क्या करेगी । मैं तो यथार्थ के लिए पुरुषार्थ कर रहा हूँ । हो सकता है पाषाण प्रतिमा के साथ उनको मुक्ति मिले ।
रीमा - आप बहुत गंभीर बात कर रहे है, आप मुझे जो मांग रहे है उसका मतलब जो मुझे समझ में आया की आप चुदाई मेरा मतलब सम्भोग से मुक्ति पा जायेगे ................. मेरा सवाल है कैसे ? मै भयभीत हूँ, आप सभी ३६ पुरुष मेरे साथ चुदाई मेरा मतलब सम्भोग करेगे और वो भी इस तरह के लिंग के साथ | मेरे प्राण एक दो लिंग सम्भालने में ही निकल जाएँगें ।
एक लम्बी ख़ामोशी छा गयी रीमा ने काफी देर बाद उस ख़ामोशी को तोडा  - यानि तुम सब मिलकर मुझे चोदोगे | हर चुदाई के बाद तुम लोगो की मुक्ति के लिए मुझे अपना रक्त बहाना पड़ेगा | 
बुढा आदम - नहीं देवी वो तो बस रक्त का एक परमाणु ही पर्याप्त है | आपनी गुदा भंजन में हुए घात के लिए मै उस बालक की तरफ से क्षमा प्रार्थी हूँ | आप के परमाणु अभी दिव्या शक्तियों से ओत प्रोत है ।
रीमा - फिर भी चालीस  पुरुष एक स्त्री को चोदेगे, सिर्फ़ अपनी मुक्ति के लिए | 
बुढा आदम - देवी आप इसे गलत दिशा से विचार कर रही है | यहाँ वासना जैसा कुछ नहीं है हमें आपके योवन का भोग नहीं करना है | हमें आपके अधरों का रस नहीं पीना है, हमें आपके स्तनों का दग्ध पान नहीं करना है | हमें आपकी योनि का मर्दन करके कामवासना का चरम सुख नहीं प्राप्त करना है | 
रीमा आवेश में बोली - लेकिन उससे क्या बदल जायेगा, जायेगा तो लिंग ही मेरी चूत में, मेरा मतलब योनि में, चुदुंगी तो मै ही न | कोई फर्क है |
बुढा आदम - ऐसा नहीं है शरीर में ऊर्जा का प्रहाव होता रहता है । जिन शरीर के अंगो की बात आप कर रही है, युवा शरीर में उन अंगो की तरफ़ को ऊर्जा का प्रहाव होता है, और इसीलिए स्त्री पुरुष संसर्ग को व्याकुल रहते है । मस्तिष्क से ये पूरी ऊर्जा का नियंत्रण होता है । सामान्य मनुष्य के मस्तिष्क के नियंत्रण में ये ऊर्जा प्रवाह नहीं होता है इसलिए जब शरीर की ऊर्जा का प्रहाव योनि या लिंग की तरफ़ होता है तो वे मनुष्य काम पीड़ित हो जाते है । ये एक युवा सामान्य मानव शरीर के काम  ऊर्जा का प्रहाव है । इस ऊर्जा के फल स्वरूप ही पुरुष में वीर्य का और स्त्रियों में रज रस का निर्माण होता है और इंसके मिलन से नया जीवन का निर्माण होता है, जो संभोग के बाद स्त्री के गर्भ में स्थापित हो जाता है। लेकिन हमारे ऋषियों मुनियो ने वर्षों की साधना तपस्या से जीवन के इन ऊर्जा प्रवाहों का पता लगाया और इन्हें संरक्षित करने का, नियंत्रित करने का मार्ग सुझाया । 
रीमा - मैं आपका आशय समझ नहीं पा रही हूँ ।

बूढ़ा आदम - पुरुष और स्त्री दोनों के शरीर में काम ऊर्जा का प्रवाह मस्तिष्क से निकल कर मेरु दंड से होता हुआ स्वाधिष्ठान चक्र  तक जाता है और वहाँ से मनुष्य के जननांगों में । मनुष्य के शरीर में कुल सात चक्र होते है जिनका नाम- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र है। यह सभी चक्र हमारे विचारों, भावनाओं, स्मृतियों, अनुभवों और कर्मों के कारक हैं। एक व्यक्ति हठ योग के माध्यम से इन चक्रों को पूर्णतः जागृत कर सकता है। सबसे नीचे का चक्र है मूलाधार चक्र । मूलाधार चक्र सब चक्रो का आधार है, मूलाधार चक्र हमारे प्रजनन तंत्र को ऊर्जा देता है इसीलए  मूलाधार चक्र में सातों चक्र से कई अधिक ऊर्जा है । अगला चक्र स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है और यह सामान्य बुद्धि का आभाव, अविश्वास, सर्वनाश, क्रूरता और अवहेलना जैसी निम्न भावनाओं को नियंत्रित करता है। इस चक्र से काम भावना और उन्नत भाव जन्म लेता है। ये दो चक्र संभोग अवस्था में सक्रिय रूप से भाग लेते है ।

[Image: AVvXsEgJ0DiVx8QODsJ3VyEv3S8uVTUiX-9y9QkZ...fZA=s16000]



सामान्यतः इन चक्र में अंतर्निहित ऊर्जा को जगाने के लिए योगी तपस्या करते है और इस विधि को कुण्डीलनी जागरण कहते है, योग और तप के ज़रिये मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र जब सभी चक्र जाग्रत हो जाते है तो ऐसे व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त हो जाती है । इसी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए योगी कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करते है और वीर्य का संरक्षण करते हुए उर्ध्वरेता बनने की कोशिश करते है  । वीर्य के संरक्षण से बल बुद्धि और आरोग्यता आती है । इसी तरह स्त्री भी अपनी कुंडलिनी जागरण कर सकती है ।
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RE: रीमा की दबी वासना - by vijayveg - 16-11-2024, 08:42 AM



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