12-11-2024, 09:55 AM
मूत कर उठी ही थी कि अचानक किसी ने पीछे से आकर पकड़ लिया और मेरा मुँह दबा दिया. एक मोटा गर्म लंड मेरी गांड से भिड़ गया। लंड के आकार से ही मैं समझ गई कि ये तो ननदोई जी हैं।
ननदोई जी ने मेरे कान के पास अपना मुँह किया और बोले- देखो दुल्हनिया … हम अभी नहीं सोये नहीं थे. और बाहर जो तुम करके आई हो न, हमें सब पता है। अब अगर तुम चाहती हो कि बाहर जो काम अधूरा रह गया है, उसे मैं पूरा कर दूँ तो कोई शोर मत मचाना। बस चुपचाप ऐसे ही खड़ी रहना! हम दोनों मिल कर अपनी अपनी मन की मुराद पूरी कर लेंगे, ठीक है। हटाऊँ हाथ अपना, शोर तो नहीं करोगी?
मैंने सर हिला कर उनकी बात मानने का इशारा किया तो उन्होंने मेरे मुँह से अपना हाथ हटा लिया।
ननदोई जी मेरी टांग उठा कर बगल में एक दीवार पर टिकाई और अपना लंड का टोपा मेरी चूत पर रखा और जैसे ही ज़ोर लगाया, उनका चिकना टोपा मेरी गीली चूत में घुसता ही चला गया और मेरी प्यासी चूत को अंदर तक भर दिया।
उसके बाद तो वो पीछे से दे धक्का … दे धक्का।
मैं अपनी साड़ी और साया पकड़े खड़ी रही और ननदोई जी पीछे से मुझे चोदते रहे। कितनी देर वो लगे रहे। मेरी चूत से बहने वाला पानी मेरी जांघों को भिगोकर मेरे घुटनों तक पहुँच गया था।
मैं तो धन्य हो रही थी कि कैसे आराम से ननदोई जी ने मेरी खूब तसल्ली करवाई।
मैंने अपने ब्लाउज़ और ब्रा दोनों खोल दिये, उनका एक हाथ पकड़ा और अपने मम्मों पर रखा। ननदोई ने खूब मसला मेरे मम्मों को नोचा, मेरे मम्मों की घुंडियों को मसला। मम्मों को मसला तो चूत ने और भी पानी छोड़ा।
मेरी चिकनी चूत को उन्होंने खूब रगड़ा।
फिर बोले- इधर मेरी तरफ मुँह घुमा … सामने से चोदूँगा।
मैं उनकी तरफ घूमी तो उन्होंने फिर से मेरी दूसरी टांग उठा कर वहीं दीवार पर रखी और बोले- चल रख।
मैंने उनका लंड पकड़ा और अपनी चूत पर रखा और उन्होंने अंदर धकेला। और फिर से पच्च पिच्च की आवाज़ से गुसलखाना भर गया।
करीब 2-3 मिनट और चुदने के बाद मैं ननदोई जी से लिपट गई- ओह मेहमान जी, मैं तो गई।
हमारे में ननदोई को मेहमान जी भी कहते हैं।
तभी ननदोई जी ने मेरा मुँह अपने हाथ में पकड़ा और अपने मुँह से लगा लिया। दारू की गंदी बदबू से भरा, मगर फिर भी मैं अपने होंठ उनसे चुसवा रही थी, और वो अपनी जीभ मेरे मुँह के अंदर घुमा रहे थे, मेरे मम्मों को नोच रहे थे।
बड़ी मुश्किल से मैं खड़ी रह पाई. जबकि हालत तो मेरी ये थी कि पानी छूटने के साथ मैं भी नीचे फर्श पर ही गिर जाऊँ. मगर ननदोई जी ने मुझे पकड़ कर रखा और गिरने नहीं दिया।
जब मेरा पानी निकल गया तो ननदोई जी बोले- दुलहनिया, अब ऐसा कर तू मेरा भी पानी गिरवा दे, चूस इसे और खाली कर दे मुझे।
मैं नीचे फर्श पर बैठ गई और ननदोई जी का मस्त लंड चूसने लगी. थोड़ी ही देर में ननदोई जी ने मेरा सर कस के पकड़ लिया और मेरे मुँह को ही चोदने लगे।
मैं तो शादी से पहले भी ये सब करवा लेती थी।
बस फिर ननदोई जी ने अपने गाढ़े गर्म वीर्य से मेरा मुँह भर दिया। जब वो पूरी तरह झड़ चुके तो मैंने उनका लंड अपने मुँह से निकाला और उनका सारा वीर्य थूक दिया।
वो बोले- पी जाती मादरचोद, थूक क्यों दिया?
मैंने कहा- अगली बार पी जाऊँगी।
मैं उठ कर खड़ी हुई तो ननदोई जी, मुझसे लिपट गए और बोले- जल्दी मिलना मेरी जान, अब तुम बिन न रहा जाएगा।
मैंने कहा- बस आप आते जाते रहिएगा तो हम मिलते भी रहेंगे।
कह कर मैं गुसलखाने से बाहर निकल आई।
उसके बाद हर महीने बीस दिन में जीजी और ननदोई जी कभी हमारे तो कभी हम उनके घर आते जाते रहते और ऐसे ही हम मिलते भी रहते।
और आज तक मिल रहे हैं।
ननदोई जी ने मेरे कान के पास अपना मुँह किया और बोले- देखो दुल्हनिया … हम अभी नहीं सोये नहीं थे. और बाहर जो तुम करके आई हो न, हमें सब पता है। अब अगर तुम चाहती हो कि बाहर जो काम अधूरा रह गया है, उसे मैं पूरा कर दूँ तो कोई शोर मत मचाना। बस चुपचाप ऐसे ही खड़ी रहना! हम दोनों मिल कर अपनी अपनी मन की मुराद पूरी कर लेंगे, ठीक है। हटाऊँ हाथ अपना, शोर तो नहीं करोगी?
मैंने सर हिला कर उनकी बात मानने का इशारा किया तो उन्होंने मेरे मुँह से अपना हाथ हटा लिया।
ननदोई जी मेरी टांग उठा कर बगल में एक दीवार पर टिकाई और अपना लंड का टोपा मेरी चूत पर रखा और जैसे ही ज़ोर लगाया, उनका चिकना टोपा मेरी गीली चूत में घुसता ही चला गया और मेरी प्यासी चूत को अंदर तक भर दिया।
उसके बाद तो वो पीछे से दे धक्का … दे धक्का।
मैं अपनी साड़ी और साया पकड़े खड़ी रही और ननदोई जी पीछे से मुझे चोदते रहे। कितनी देर वो लगे रहे। मेरी चूत से बहने वाला पानी मेरी जांघों को भिगोकर मेरे घुटनों तक पहुँच गया था।
मैं तो धन्य हो रही थी कि कैसे आराम से ननदोई जी ने मेरी खूब तसल्ली करवाई।
मैंने अपने ब्लाउज़ और ब्रा दोनों खोल दिये, उनका एक हाथ पकड़ा और अपने मम्मों पर रखा। ननदोई ने खूब मसला मेरे मम्मों को नोचा, मेरे मम्मों की घुंडियों को मसला। मम्मों को मसला तो चूत ने और भी पानी छोड़ा।
मेरी चिकनी चूत को उन्होंने खूब रगड़ा।
फिर बोले- इधर मेरी तरफ मुँह घुमा … सामने से चोदूँगा।
मैं उनकी तरफ घूमी तो उन्होंने फिर से मेरी दूसरी टांग उठा कर वहीं दीवार पर रखी और बोले- चल रख।
मैंने उनका लंड पकड़ा और अपनी चूत पर रखा और उन्होंने अंदर धकेला। और फिर से पच्च पिच्च की आवाज़ से गुसलखाना भर गया।
करीब 2-3 मिनट और चुदने के बाद मैं ननदोई जी से लिपट गई- ओह मेहमान जी, मैं तो गई।
हमारे में ननदोई को मेहमान जी भी कहते हैं।
तभी ननदोई जी ने मेरा मुँह अपने हाथ में पकड़ा और अपने मुँह से लगा लिया। दारू की गंदी बदबू से भरा, मगर फिर भी मैं अपने होंठ उनसे चुसवा रही थी, और वो अपनी जीभ मेरे मुँह के अंदर घुमा रहे थे, मेरे मम्मों को नोच रहे थे।
बड़ी मुश्किल से मैं खड़ी रह पाई. जबकि हालत तो मेरी ये थी कि पानी छूटने के साथ मैं भी नीचे फर्श पर ही गिर जाऊँ. मगर ननदोई जी ने मुझे पकड़ कर रखा और गिरने नहीं दिया।
जब मेरा पानी निकल गया तो ननदोई जी बोले- दुलहनिया, अब ऐसा कर तू मेरा भी पानी गिरवा दे, चूस इसे और खाली कर दे मुझे।
मैं नीचे फर्श पर बैठ गई और ननदोई जी का मस्त लंड चूसने लगी. थोड़ी ही देर में ननदोई जी ने मेरा सर कस के पकड़ लिया और मेरे मुँह को ही चोदने लगे।
मैं तो शादी से पहले भी ये सब करवा लेती थी।
बस फिर ननदोई जी ने अपने गाढ़े गर्म वीर्य से मेरा मुँह भर दिया। जब वो पूरी तरह झड़ चुके तो मैंने उनका लंड अपने मुँह से निकाला और उनका सारा वीर्य थूक दिया।
वो बोले- पी जाती मादरचोद, थूक क्यों दिया?
मैंने कहा- अगली बार पी जाऊँगी।
मैं उठ कर खड़ी हुई तो ननदोई जी, मुझसे लिपट गए और बोले- जल्दी मिलना मेरी जान, अब तुम बिन न रहा जाएगा।
मैंने कहा- बस आप आते जाते रहिएगा तो हम मिलते भी रहेंगे।
कह कर मैं गुसलखाने से बाहर निकल आई।
उसके बाद हर महीने बीस दिन में जीजी और ननदोई जी कभी हमारे तो कभी हम उनके घर आते जाते रहते और ऐसे ही हम मिलते भी रहते।
और आज तक मिल रहे हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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