12-11-2024, 09:53 AM
काफी देर बाद मुझे पेशाब लगी, सोचा जाकर मूत आऊँ। मैं अपने कमरे से निकली, देखा बाहर छत पर बिछे बिस्तर पर ननदोई जी सो रहे हैं, पर साथ में जीजी नहीं हैं।
मैंने साथ वाले कमरे में झाँका, अंदर से जीजी के खर्राटों की आवाज़ आ रही थी, मतलब जीजी गहरी नींद में थी।
फिर मैं गुसलखाने की तरफ बढ़ी, मगर मैं खुद को बहुत संभाल कर धीरे धीरे चल रही थी, क्योंकि मेरे पहने हुये गहने काफी आवाज़ करते थे। जब मैं ननदोई जी के पास से गुज़री तो मैंने उनकी तरफ देखा।
वो सो रहे थे, और उनकी लुंगी पूरी ऊपर उठी थी और मोटा काला लंड पूरा तना हुआ था। चाँदनी की रोशनी में उनका चमकता हुआ टोपा मैंने साफ देखा।
बस देखते ही तबीयत मचल गई, अरे यार, इनका लौड़ा तो मेरे पति से हर हिसाब से बेहतर है। बस चुदाई में मास्टर हों तो क्या बात है।
चलते चलते मेरे पाँव रुक गए, मैंने बड़े ध्यान से उनके लंड को देखा। मुझे अपने गाँव वाले लड़कों की याद आई, ऐसे ही मस्त लंड थे, उनके। मेरा दिल किया कि मैं ननदोई जी के लंड को पकड़ कर देखूँ, चूस कर देखूँ।
और अगर ये ऐसी ही गहरी नींद में सोये रहें तो मैं तो इसके ऊपर बैठ कर इनका लंड अपनी चूत में ले लूँ।
मैं कुछ पल सोचती रही, क्या करूँ, क्या न करूँ!
एक तरफ चूत में लगी आग … और दूसरी तरफ जमाने भर का डर। अगर किसी को पता चल गया, तो बहुत फजीहत होगी। अभी एक हफ्ता ही तो हुआ है, शादी को!
फिर सोचा, क्या होगा, अगर कुछ हुआ तो कह दूँगी, मैं तो मूतने जा रही थी, ननदोई जी ने पकड़ लिया। भैंणचोद, सारा इल्ज़ाम इसके ही सर डाल दूँगी।
बस यही सोच कर मैं तो ननदोई जी के पास जाकर बैठ गई और फिर मैंने बिना किसी भी बात की परवाह किए उनका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया।
मोटा गर्म लंड … साला हाथ में पकड़ कर ही मज़ा आ गया।
पकड़ तो लिया … पर अब क्या करूँ, चूत में लूँ या नहीं। फिर बिना कुछ सोचे, मैंने तो ननदोई जी का लंड मुँह में ले लिया।
अरे यार … क्या मज़ा आया।
पतिदेव ने तो आज तक कभी चूसने को नहीं दिया.
हालांकि मुझे तो बचपन से ही लंड चूसना अच्छा लगता था। थोड़ा सा चूसा, मज़ा आया।
मगर मुझे पेशाब भी ज़ोर की लगी थी तो सोचा कि पहले मूत कर आती हूँ. अपनी चड्डी भी अंदर ही उतार आऊँगी और वापिस आ कर इस मस्त लौड़े के ऊपर बैठ जाना है, ननदोई जी जागें या सोये रहें … उन्हें अच्छा लगे ये बुरा … मुझे जो करना है, वो करना है।
मैं गुसलखाने में गई। गुसलखाने में कोई दरवाजा नहीं था, बस एक पर्दा लगा था, जो भी अंदर जाता, पर्दा हटा कर जाता। अगर पर्दा लगा है तो मतलब कोई अंदर है, पर्दा नहीं लगा तो मतलब गुसलखाना खाली है।
मगर मैंने परदा नहीं लगाया, खुल्लमखुल्ला गुसलखाने में जाकर अपनी साड़ी और साया, दोनों ऊपर उठाए और अपनी कच्छी उतार कर मूतने बैठ गई।
शर्र … की आवाज़ चूत में से मूत निकला।
मैंने साथ वाले कमरे में झाँका, अंदर से जीजी के खर्राटों की आवाज़ आ रही थी, मतलब जीजी गहरी नींद में थी।
फिर मैं गुसलखाने की तरफ बढ़ी, मगर मैं खुद को बहुत संभाल कर धीरे धीरे चल रही थी, क्योंकि मेरे पहने हुये गहने काफी आवाज़ करते थे। जब मैं ननदोई जी के पास से गुज़री तो मैंने उनकी तरफ देखा।
वो सो रहे थे, और उनकी लुंगी पूरी ऊपर उठी थी और मोटा काला लंड पूरा तना हुआ था। चाँदनी की रोशनी में उनका चमकता हुआ टोपा मैंने साफ देखा।
बस देखते ही तबीयत मचल गई, अरे यार, इनका लौड़ा तो मेरे पति से हर हिसाब से बेहतर है। बस चुदाई में मास्टर हों तो क्या बात है।
चलते चलते मेरे पाँव रुक गए, मैंने बड़े ध्यान से उनके लंड को देखा। मुझे अपने गाँव वाले लड़कों की याद आई, ऐसे ही मस्त लंड थे, उनके। मेरा दिल किया कि मैं ननदोई जी के लंड को पकड़ कर देखूँ, चूस कर देखूँ।
और अगर ये ऐसी ही गहरी नींद में सोये रहें तो मैं तो इसके ऊपर बैठ कर इनका लंड अपनी चूत में ले लूँ।
मैं कुछ पल सोचती रही, क्या करूँ, क्या न करूँ!
एक तरफ चूत में लगी आग … और दूसरी तरफ जमाने भर का डर। अगर किसी को पता चल गया, तो बहुत फजीहत होगी। अभी एक हफ्ता ही तो हुआ है, शादी को!
फिर सोचा, क्या होगा, अगर कुछ हुआ तो कह दूँगी, मैं तो मूतने जा रही थी, ननदोई जी ने पकड़ लिया। भैंणचोद, सारा इल्ज़ाम इसके ही सर डाल दूँगी।
बस यही सोच कर मैं तो ननदोई जी के पास जाकर बैठ गई और फिर मैंने बिना किसी भी बात की परवाह किए उनका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया।
मोटा गर्म लंड … साला हाथ में पकड़ कर ही मज़ा आ गया।
पकड़ तो लिया … पर अब क्या करूँ, चूत में लूँ या नहीं। फिर बिना कुछ सोचे, मैंने तो ननदोई जी का लंड मुँह में ले लिया।
अरे यार … क्या मज़ा आया।
पतिदेव ने तो आज तक कभी चूसने को नहीं दिया.
हालांकि मुझे तो बचपन से ही लंड चूसना अच्छा लगता था। थोड़ा सा चूसा, मज़ा आया।
मगर मुझे पेशाब भी ज़ोर की लगी थी तो सोचा कि पहले मूत कर आती हूँ. अपनी चड्डी भी अंदर ही उतार आऊँगी और वापिस आ कर इस मस्त लौड़े के ऊपर बैठ जाना है, ननदोई जी जागें या सोये रहें … उन्हें अच्छा लगे ये बुरा … मुझे जो करना है, वो करना है।
मैं गुसलखाने में गई। गुसलखाने में कोई दरवाजा नहीं था, बस एक पर्दा लगा था, जो भी अंदर जाता, पर्दा हटा कर जाता। अगर पर्दा लगा है तो मतलब कोई अंदर है, पर्दा नहीं लगा तो मतलब गुसलखाना खाली है।
मगर मैंने परदा नहीं लगाया, खुल्लमखुल्ला गुसलखाने में जाकर अपनी साड़ी और साया, दोनों ऊपर उठाए और अपनी कच्छी उतार कर मूतने बैठ गई।
शर्र … की आवाज़ चूत में से मूत निकला।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
