12-11-2024, 09:51 AM
शादी के बाद सुहागरात पर मेरे पति मेरी चूत का कुछ ना कर सके. मैं हनीमून से भी प्यासी चूत लिए आ गयी. घर पर मेरे ननद ननदोई आये हुए थे. तो क्या हुआ?
जब हम शिमला से हनीमून मना कर घर वापिस आए तो देखा कि मेरी बड़ी ननद और ननदोई जी आए हुये हैं। मैंने दोनों के पाँव छूए, तो ननदोई ने जब मुझे आशीर्वाद दिया तो उन्होंने मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक सहलाया, लगा जैसे नई बहू के जिस्म को छू कर ठर्की अपनी ठर्क मिटा रहा हो।
देखने में भी वो अच्छे खासे थे, लंबे तगड़े।
और इधर मुझे भी बचपन से बुरी आदतें!
मैं भी सोचने लगी, इस लंबे चौड़े लम्पट ननदोई का लंड भी तगड़ा होगा। अगर ये मुझे पेले तो हो सकता है कि मेरे पति से ज़्यादा मज़ा मुझे दे।
खैर यह तो मेरे दिल का विचार था. मगर मैंने फिर भी अपनी ननदोई जी से एक बार नज़रें मिलाई; लगा कि जैसे जो मेरे मन में सीन चल रहा है, वो ननदोई जी ने पढ़ लिया है।
शाम को दोनों जीजा साला ने पेग भी लगाए और खाना खाने के बाद जीजी और ननदोई जी का बिस्तर ऊपर छत पर लगा दिया गया, हमारा कमरा भी छत पर ही था।
साथ वाला कमरा भी खाली था, उसमें भी बिस्तर लगा दिया गया था ताकि अगर रात को कहीं जीजी और ननदोई जी को ठंड लगे तो वो अंदर कमरे में जाकर सो सकें।
रात को हम लोग देर से सोये। पतिदेव को काफी चढ़ी हुई थी, अंदर कमरे में आते ही वो मुझ पर टूट पड़े। साड़ी साया दोनों ऊपर उठाए और बस घच्च से अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
मैंने कहा- अरे शर्म करो, बाहर जीजी और ननदोई जी सोये हैं।
मगर पतिदेव को आग लगी पड़ी थी। सिर्फ तीन मिनट की चुदाई और फिर मेरी साड़ी में ही पिचकारी मार दी। मेरी साड़ी से ही अपना लंड साफ किया और सो गए।
मैं सोचने लगी, यार कभी तो देर तक पेले मुझे! साले मेरे गाँव के लड़के कितने दमदार थे, क्या पेलते थे मुझे, साले माँ चोद कर रख देते थे मेरी। मगर ये तो जैसे हाथ लगाने ही आता है। मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदलती रही मगर नींद नहीं आई।
जब हम शिमला से हनीमून मना कर घर वापिस आए तो देखा कि मेरी बड़ी ननद और ननदोई जी आए हुये हैं। मैंने दोनों के पाँव छूए, तो ननदोई ने जब मुझे आशीर्वाद दिया तो उन्होंने मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक सहलाया, लगा जैसे नई बहू के जिस्म को छू कर ठर्की अपनी ठर्क मिटा रहा हो।
देखने में भी वो अच्छे खासे थे, लंबे तगड़े।
और इधर मुझे भी बचपन से बुरी आदतें!
मैं भी सोचने लगी, इस लंबे चौड़े लम्पट ननदोई का लंड भी तगड़ा होगा। अगर ये मुझे पेले तो हो सकता है कि मेरे पति से ज़्यादा मज़ा मुझे दे।
खैर यह तो मेरे दिल का विचार था. मगर मैंने फिर भी अपनी ननदोई जी से एक बार नज़रें मिलाई; लगा कि जैसे जो मेरे मन में सीन चल रहा है, वो ननदोई जी ने पढ़ लिया है।
शाम को दोनों जीजा साला ने पेग भी लगाए और खाना खाने के बाद जीजी और ननदोई जी का बिस्तर ऊपर छत पर लगा दिया गया, हमारा कमरा भी छत पर ही था।
साथ वाला कमरा भी खाली था, उसमें भी बिस्तर लगा दिया गया था ताकि अगर रात को कहीं जीजी और ननदोई जी को ठंड लगे तो वो अंदर कमरे में जाकर सो सकें।
रात को हम लोग देर से सोये। पतिदेव को काफी चढ़ी हुई थी, अंदर कमरे में आते ही वो मुझ पर टूट पड़े। साड़ी साया दोनों ऊपर उठाए और बस घच्च से अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
मैंने कहा- अरे शर्म करो, बाहर जीजी और ननदोई जी सोये हैं।
मगर पतिदेव को आग लगी पड़ी थी। सिर्फ तीन मिनट की चुदाई और फिर मेरी साड़ी में ही पिचकारी मार दी। मेरी साड़ी से ही अपना लंड साफ किया और सो गए।
मैं सोचने लगी, यार कभी तो देर तक पेले मुझे! साले मेरे गाँव के लड़के कितने दमदार थे, क्या पेलते थे मुझे, साले माँ चोद कर रख देते थे मेरी। मगर ये तो जैसे हाथ लगाने ही आता है। मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदलती रही मगर नींद नहीं आई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
