12-11-2024, 09:49 AM
बचपन से सुरेखा मिश्रा यानि मैं बहुत ही तेज़ मिजाज की रही हूँ। खून में गर्मी कुछ ज़्यादा ही है. हालांकि घर से मैं ठीक ठाक सी ही हूँ, पिताजी की थोड़ी बहुत ज़मीन है गाँव में! वो खेती करके घर का गुजारा चलाते थे इसलिए हालत तो फटीचर थी.
मगर मैं बहुत ही बिंदास रही हूँ, जो चीज़ मुझे चाहिए, मैंने किसी भी कीमत पर वो हासिल की है। मगर जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई, मुझे ये समझ आ गया कि गरीबों के सिर्फ अरमान होते हैं, उनके पूरे होने की कोई गारंटी नहीं होती।
बेशक 10 क्लास तक आते आते मेरे व्यवहार में बहुत फर्क आ गया था, मगर फिर मुझे ये था कि मुझे अपनी पसंद की हर चीज़ पाने की कामना ज़रूर होती थी और मैं कोशिश भी यही करती कि मुझे साम, दाम दंड, भेद किसी भी तरीके से वो चीज़ मिल जानी चाहिए।
इसका एक उदहारण मैं ऐसे दे सकती हूँ कि मेरी ही क्लास की एक लड़की की एक लड़के से सेटिंग हो गई, वो हमसे अच्छे घर की थी. और मैं भी उस लड़के को पसंद करती थी।
जब मुझे पता चला कि सरिता के साथ उसका चक्कर चल रहा है, तो मुझे ऐसे लगा कि अगर मेरे पास बॉय फ्रेंड नहीं है, तो मेरी ज़िंदगी का कोई फायदा नहीं.
और मुझे चाहिए भी वही लड़का।
तो मैंने जैसे तैसे करके उस लड़के से सेटिंग कर ली और सरिता से पहले मैंने उससे सेक्स करके सरिता को बता भी दिया कि तेरा यार मैंने छीन लिया है।
उसके बाद सरिता उस लड़के से कभी नहीं मिली.
और बाद में मुझे भी इस रिश्ते में कोई मज़ा नहीं आया और मैंने भी उसे छोड़ दिया।
मगर इस अल्हड़ उम्र में सेक्स करके मैंने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मार ली। दिक्कत ये हो गई कि मुझे अब अक्सर मर्द की कमी महसूस होती। मेरा बड़ा दिल करता के कोई मेरा बॉयफ्रेंड हो, और वो मुझे खूब पेले।
इसी चक्कर में मैंने अपने ही गाँव के एक दो लड़को से दोस्ती करी, और खेतों में जाकर उनसे खूब चूत मरवाई। अब हमारे गाँव में खड़ी भाषा बोली जाती है, और औरतें भी अक्सर गाली निकाल देती हैं। मुझे भी देख सुन कर आदत पड़ने लगी। मेरे तेज़ स्वभाव की वजह से मेरी भाषा काफी गंदी हो गई, थी, मगर माँ के बार बार टोकते रहने के कारण मैं काफी सोच कर बोलती और कोशिश करती के मेरे मुँह से कोई गाली या गंदा शब्द न निकले।
एक दिन मुझे अपने ही गाँव के एक लड़के से खेत में चुदवाते मेरे चाचा ने देख लिया और उसने घर में बता दिया।
घर में जब बात पता चली तो सबसे बढ़िया तारीका जो कोई भी माँ बाप सोच सकते हैं, वो है लड़की की शादी।
मैं सिर्फ 19 साल की ही थी, जब मेरी शादी हो गई। शादी के बाद सुहागरात को ही पतिदेव फेल हो गए। या यूं कहूँ कि उन्होंने तो पूरी कोशिश करी, मगर मुझे ही देर तक और बार चुदने की आदत थी, तो पतिदेव के सुहाग रात को मारे गए 5-7 मिनट के शॉट मुझे बिल्कुल फीके लगे।
मैं तो सोच रही थी कि सारी रात ठुकाई होगी, मगर ये तो दारू के नशे में धुत्त कि शॉट आते ही मारा और एक सुबह सुबह 4 बजे। दोनों बार मेरे अंदर ही पिचकारी मारी और सो गए।
मैं सोचूँ ये किस चूतिये से शादी हो गई, ये तो कुछ भी न है। अरे इत्ते से दाढ़ भी गीली न हो … और ये भोंसड़ी का इसे ही चुदाई समझ रहा है।
उसके बाद भी मुझे अपने पति से कभी कोई मज़ा नहीं आया।
सारा दिन वो अपनी किराने की दुकान पर बैठता, रात को घर आता, दो पेग लगाता, खाना खाता और 5 मिनट की मेरी चुदाई करता और सो जाता।
शादी के तीन दिन बाद हम लोग हनीमून के लिए शिमला गए। एक दिन जाने का, एक दिन रहने का और तीसरा दिन वापिस का।
ये भी साला कोई हनीमून होता है। मैं सोच रही थी कि हफ्ता दस दिन रह कर आएंगे, मगर इन्हें तो अपनी दुकान की चिंता थी और हर चीज़ को महंगा महंगा बोल के न कुछ देखा न कुछ खाया, बस दो रात और एक दिन वहाँ रह कर मेरी चार बार चूत मार कर ये चूतिया नन्दन अपना हनीमून मना आया।
जब हम घर वापिस आए तो देखा कि मेरी बड़ी ननद और ननदोई जी आए हुये हैं। मैंने दोनों के पाँव छूए, तो ननदोई ने जब मुझे आशीर्वाद दिया तो उन्होंने मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक सहलाया, लगा जैसे नई बहू के जिस्म को छू कर
मगर मैं बहुत ही बिंदास रही हूँ, जो चीज़ मुझे चाहिए, मैंने किसी भी कीमत पर वो हासिल की है। मगर जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई, मुझे ये समझ आ गया कि गरीबों के सिर्फ अरमान होते हैं, उनके पूरे होने की कोई गारंटी नहीं होती।
बेशक 10 क्लास तक आते आते मेरे व्यवहार में बहुत फर्क आ गया था, मगर फिर मुझे ये था कि मुझे अपनी पसंद की हर चीज़ पाने की कामना ज़रूर होती थी और मैं कोशिश भी यही करती कि मुझे साम, दाम दंड, भेद किसी भी तरीके से वो चीज़ मिल जानी चाहिए।
इसका एक उदहारण मैं ऐसे दे सकती हूँ कि मेरी ही क्लास की एक लड़की की एक लड़के से सेटिंग हो गई, वो हमसे अच्छे घर की थी. और मैं भी उस लड़के को पसंद करती थी।
जब मुझे पता चला कि सरिता के साथ उसका चक्कर चल रहा है, तो मुझे ऐसे लगा कि अगर मेरे पास बॉय फ्रेंड नहीं है, तो मेरी ज़िंदगी का कोई फायदा नहीं.
और मुझे चाहिए भी वही लड़का।
तो मैंने जैसे तैसे करके उस लड़के से सेटिंग कर ली और सरिता से पहले मैंने उससे सेक्स करके सरिता को बता भी दिया कि तेरा यार मैंने छीन लिया है।
उसके बाद सरिता उस लड़के से कभी नहीं मिली.
और बाद में मुझे भी इस रिश्ते में कोई मज़ा नहीं आया और मैंने भी उसे छोड़ दिया।
मगर इस अल्हड़ उम्र में सेक्स करके मैंने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मार ली। दिक्कत ये हो गई कि मुझे अब अक्सर मर्द की कमी महसूस होती। मेरा बड़ा दिल करता के कोई मेरा बॉयफ्रेंड हो, और वो मुझे खूब पेले।
इसी चक्कर में मैंने अपने ही गाँव के एक दो लड़को से दोस्ती करी, और खेतों में जाकर उनसे खूब चूत मरवाई। अब हमारे गाँव में खड़ी भाषा बोली जाती है, और औरतें भी अक्सर गाली निकाल देती हैं। मुझे भी देख सुन कर आदत पड़ने लगी। मेरे तेज़ स्वभाव की वजह से मेरी भाषा काफी गंदी हो गई, थी, मगर माँ के बार बार टोकते रहने के कारण मैं काफी सोच कर बोलती और कोशिश करती के मेरे मुँह से कोई गाली या गंदा शब्द न निकले।
एक दिन मुझे अपने ही गाँव के एक लड़के से खेत में चुदवाते मेरे चाचा ने देख लिया और उसने घर में बता दिया।
घर में जब बात पता चली तो सबसे बढ़िया तारीका जो कोई भी माँ बाप सोच सकते हैं, वो है लड़की की शादी।
मैं सिर्फ 19 साल की ही थी, जब मेरी शादी हो गई। शादी के बाद सुहागरात को ही पतिदेव फेल हो गए। या यूं कहूँ कि उन्होंने तो पूरी कोशिश करी, मगर मुझे ही देर तक और बार चुदने की आदत थी, तो पतिदेव के सुहाग रात को मारे गए 5-7 मिनट के शॉट मुझे बिल्कुल फीके लगे।
मैं तो सोच रही थी कि सारी रात ठुकाई होगी, मगर ये तो दारू के नशे में धुत्त कि शॉट आते ही मारा और एक सुबह सुबह 4 बजे। दोनों बार मेरे अंदर ही पिचकारी मारी और सो गए।
मैं सोचूँ ये किस चूतिये से शादी हो गई, ये तो कुछ भी न है। अरे इत्ते से दाढ़ भी गीली न हो … और ये भोंसड़ी का इसे ही चुदाई समझ रहा है।
उसके बाद भी मुझे अपने पति से कभी कोई मज़ा नहीं आया।
सारा दिन वो अपनी किराने की दुकान पर बैठता, रात को घर आता, दो पेग लगाता, खाना खाता और 5 मिनट की मेरी चुदाई करता और सो जाता।
शादी के तीन दिन बाद हम लोग हनीमून के लिए शिमला गए। एक दिन जाने का, एक दिन रहने का और तीसरा दिन वापिस का।
ये भी साला कोई हनीमून होता है। मैं सोच रही थी कि हफ्ता दस दिन रह कर आएंगे, मगर इन्हें तो अपनी दुकान की चिंता थी और हर चीज़ को महंगा महंगा बोल के न कुछ देखा न कुछ खाया, बस दो रात और एक दिन वहाँ रह कर मेरी चार बार चूत मार कर ये चूतिया नन्दन अपना हनीमून मना आया।
जब हम घर वापिस आए तो देखा कि मेरी बड़ी ननद और ननदोई जी आए हुये हैं। मैंने दोनों के पाँव छूए, तो ननदोई ने जब मुझे आशीर्वाद दिया तो उन्होंने मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक सहलाया, लगा जैसे नई बहू के जिस्म को छू कर
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
