12-11-2024, 09:46 AM
पिछले दिनों मेरी ननद की अकाल मृत्यु हो गई। हमें शाम के 6 बजे ननदोई जी का फोन आया तो हम दोनों मियां बीवी अपने दोनों बच्चों को स्कूटर पे लादकर उनके गाँव के लिए चल दिये।
सर्दी का मौसम था तो मैंने साड़ी के ऊपर से स्वेटर और शाल ले रखी थी।
जीजी और ननदोई जी से हमारा बहुत प्यार था। हम दोनों तो घर से बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुये गाँव पहुंचे। शाम के करीब साढ़े सात बज गए थे।
ननदोई जी के घर पहुंचे तो वहाँ अंदर कमरे में मेरी ननद की लाश पड़ी थी, पास ही नीचे फर्श पर दरी गद्दा बिछा था, जिस पर ननदोई जी बैठे थे. और भी एक दो लोग आस पास बैठे थे।
पहले तो मेरे पतिदेव ने जाकर मृत जीजी के पाँव छुए और फिर अपने जीजा से गले मिल कर रोये।
मैं भी रो रही थी.
जब पति देव ननदोई जी से अलग हुये तो मैं भी अपने ननदोई को ढांडस बंधाने के लिए और उनका दुख सांझा करने के लिए आगे हुयी। वो एक शाल से ओढ़े बैठे थे. जैसे ही मैं उनसे गले मिली, तो उन्होंने मुझे अपनी शाल में ढक लिया और एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से सीधा मेरा मम्मा पकड़ लिया।
मैं तो एकदम से हैरान हो गई कि ये ननदोई जी क्या कर रहे हैं। सामने उनकी बीवी की लाश पड़ी है और यह आदमी मेरे मम्मे को दबा रहा है।
अब मेरे और मेरे ननदोई के बीच पिछले शुरू से ही सेटिंग थी, मैंने अपने पति से ज़्यादा अपने ननदोई से चुदवाया है मगर मैं समझती थी कि यह कोई मौका नहीं था.
मगर ननदोई जी ने शाल की आड़ में मेरे मम्मों को खूब मसला. मेरा तो जो रोना आ रहा था, वो भी गायब हो गया। मैं तो सिर्फ रोने का नाटक कर रही थी.
पर कम तो मैं भी नहीं थी, मैंने भी उसी शाल की आड़ में उनका लंड पकड़ कर दबा दिया। कहने को दोनों एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे, मगर असल दोनों एक दूसरे के साथ अपने नाजायज रिश्ते को पक्का कर रहे थे।
और ननदोई जी तो मेरे ब्लाउज़ को नीचे ऊपर उठाने की कोशिश करने लगे ताकि मेरा मम्मा बाहर निकल आए और वो मेरी घुंडियाँ मसल सकें।
खैर इतनी सफलता तो उन्हें नहीं मिली, मगर मेरे ब्लाउज़ ब्रा को उन्होंने अस्त व्यस्त कर दिया।
उनसे छूट कर मैं सीधा गुसलखाने गई, और अंदर जा कर मैंने दुबारा से अपने ब्रा और ब्लाउज़ को सेट किया। और फिर बाहर आकर घर की और औरतों के साथ बैठ गई।
अगले दिन संस्कार हुआ।
संस्कार के बाद बाकी सब तो चले गए मगर हम रुक गए.
अभी भी कोई न कोई आ रहा था तो सबके लिए चाय पानी खाने का इंतजाम मेरे और मेरे पति के सर पर ही था।
हम कुछ दिन वहाँ रहे। और इन दिनों में भी जब भी मौका मिला ननदोई जी ने मुझे बख्शा नहीं, हाँ चोद तो नहीं सके पर मेरे मम्मे और गांड को कई बार सहला दिया।
बल्कि एक बार जब अकेले में मैं उन्हें खाना देने गई और मैंने पूछा- और कुछ मेहमान जी?
तो वो बोले- चूत चाहिए तेरी, देगी क्या?
मैंने कहा- कितनी बार तो ले ली … अब और कितनी लोगे?
वो बोले- देख, अब मेरी बीवी तो रही नहीं, तो अब तो मुझे तेरा ही सहारा है, अब मना मत कर दियो ससुरी।
मैं हंस कर बाहर आ गयी।
सर्दी का मौसम था तो मैंने साड़ी के ऊपर से स्वेटर और शाल ले रखी थी।
जीजी और ननदोई जी से हमारा बहुत प्यार था। हम दोनों तो घर से बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुये गाँव पहुंचे। शाम के करीब साढ़े सात बज गए थे।
ननदोई जी के घर पहुंचे तो वहाँ अंदर कमरे में मेरी ननद की लाश पड़ी थी, पास ही नीचे फर्श पर दरी गद्दा बिछा था, जिस पर ननदोई जी बैठे थे. और भी एक दो लोग आस पास बैठे थे।
पहले तो मेरे पतिदेव ने जाकर मृत जीजी के पाँव छुए और फिर अपने जीजा से गले मिल कर रोये।
मैं भी रो रही थी.
जब पति देव ननदोई जी से अलग हुये तो मैं भी अपने ननदोई को ढांडस बंधाने के लिए और उनका दुख सांझा करने के लिए आगे हुयी। वो एक शाल से ओढ़े बैठे थे. जैसे ही मैं उनसे गले मिली, तो उन्होंने मुझे अपनी शाल में ढक लिया और एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से सीधा मेरा मम्मा पकड़ लिया।
मैं तो एकदम से हैरान हो गई कि ये ननदोई जी क्या कर रहे हैं। सामने उनकी बीवी की लाश पड़ी है और यह आदमी मेरे मम्मे को दबा रहा है।
अब मेरे और मेरे ननदोई के बीच पिछले शुरू से ही सेटिंग थी, मैंने अपने पति से ज़्यादा अपने ननदोई से चुदवाया है मगर मैं समझती थी कि यह कोई मौका नहीं था.
मगर ननदोई जी ने शाल की आड़ में मेरे मम्मों को खूब मसला. मेरा तो जो रोना आ रहा था, वो भी गायब हो गया। मैं तो सिर्फ रोने का नाटक कर रही थी.
पर कम तो मैं भी नहीं थी, मैंने भी उसी शाल की आड़ में उनका लंड पकड़ कर दबा दिया। कहने को दोनों एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे, मगर असल दोनों एक दूसरे के साथ अपने नाजायज रिश्ते को पक्का कर रहे थे।
और ननदोई जी तो मेरे ब्लाउज़ को नीचे ऊपर उठाने की कोशिश करने लगे ताकि मेरा मम्मा बाहर निकल आए और वो मेरी घुंडियाँ मसल सकें।
खैर इतनी सफलता तो उन्हें नहीं मिली, मगर मेरे ब्लाउज़ ब्रा को उन्होंने अस्त व्यस्त कर दिया।
उनसे छूट कर मैं सीधा गुसलखाने गई, और अंदर जा कर मैंने दुबारा से अपने ब्रा और ब्लाउज़ को सेट किया। और फिर बाहर आकर घर की और औरतों के साथ बैठ गई।
अगले दिन संस्कार हुआ।
संस्कार के बाद बाकी सब तो चले गए मगर हम रुक गए.
अभी भी कोई न कोई आ रहा था तो सबके लिए चाय पानी खाने का इंतजाम मेरे और मेरे पति के सर पर ही था।
हम कुछ दिन वहाँ रहे। और इन दिनों में भी जब भी मौका मिला ननदोई जी ने मुझे बख्शा नहीं, हाँ चोद तो नहीं सके पर मेरे मम्मे और गांड को कई बार सहला दिया।
बल्कि एक बार जब अकेले में मैं उन्हें खाना देने गई और मैंने पूछा- और कुछ मेहमान जी?
तो वो बोले- चूत चाहिए तेरी, देगी क्या?
मैंने कहा- कितनी बार तो ले ली … अब और कितनी लोगे?
वो बोले- देख, अब मेरी बीवी तो रही नहीं, तो अब तो मुझे तेरा ही सहारा है, अब मना मत कर दियो ससुरी।
मैं हंस कर बाहर आ गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
