08-11-2024, 11:53 PM
ये सब जहां हुआ वही इस आदमों की कुल देवी की उपासना होती थी और वही पर एक आदम का मस्तक धड़ से अलग हो गया ।
आदमों ने ये देखा तो तेजी से सभी शस्त्र लेकर देवी की मूर्ति की तरफ़ बढ़े । उनके चेहरे वैसे भी भयानक थे अभी तो वो और भी भयानक लग रहे थे । सभी आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ बढ़े, रीमा चढ़कर तेज़ी से देवी के आसन की तरफ़ बढ़ गई । देवी का ऐसा ऐसा अपमान, एक स्त्री पूरी तरह से नग्न होकर देवी स्थान पर चढ़ जाये । सारे आदमों को त्योरियाँ तन गई । एक ही शब्द गूजने लगा - मृत्यु , मृत्यु मृत्यु ।
रीमा को अलग अब अंत निकट है, तभी एक आदम से रीमा पर भाला फेंका तो रीमा ने भी अपना त्रिशूल को फेंक दिया और हाथ में पकड़े आदम के सर को देवी की मूर्ति के आगे बने अंग्निकुण्ड की तरफ़ फेकने वाली थी । तभी बूढ़ा आदम आ गया ।
वो ज़ोर से चीखा - ये क्या किया तुमने, देवी स्थल को अपवित्र कर दिया ।
रीमा ने आदम के लिंग की तरफ़ इशारा करके - उधर देखो ।
इसने मेरे साथ बलात् काम किया है, क्या दंड है इसका, मृत्यु नहीं तो और क्या, उसके हंसते हुए सर को लहरा कर रीमा बोली ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु, इसे मृत्यु नहीं आएगी, हम सब मृत्यु की ही तो राह देख रहे है मूर्ख स्त्री । ये क्या किया तुमने ।
तभी बाक़ी आदम चिल्ला उठे - मृत्यु मृत्यु मृत्यु । इसी के साथ जैसे वे देवी मंच की तरफ़ बढ़ने को हुए, तभी रीमा ने पीछे देवी के हथों में लगा त्रिशूल खींच लिया, और फिर आकाश में तेज बिजली कड़की, एकदम से बहुत तेज आँधी आ गई । सभी आदमों की आँखें बंद होने को हो गई, और देवी मंच पर खड़ी रीमा के बाल हवा में लहराने लगे । जिस हाथ में तलवार और आदम का सर पकड़े थी, वो एक की जगह दो दिखने लगे, पीछे आदमों की कुल देवी की प्रतिमा के आगे खड़ी रीमा की छवि ऐसी बनी की सभी चकरा गये । ऐसा लगा सच में देवी अपने रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | लहराती जटाए, हाथ में कटा मुंड, हाथो में शस्त्र, रक्तिम आँखें और क्रोध से भरा चेहरा ।
बहु बहु भुजाये , शश्त्रो से लैस, अग्नि उगलते रंक्त रंजित नेत्र, रक्त को प्यासी जिव्हा, क्रोध से तमतमाता चेहरा उसे लगा जैसे सीधे कुल देवी ही अपने असली रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | सबको देवी की मूर्ति के आगे नंग्न खाड़ी रीमा ऐसी ही दिखाई दे रही थी |
सभी घुटनों के बल बैठ गए, सभी ने हाथ जोड़ लिए, सभी के सर झुक गये । रीमा का डर से कांपता, अपनी आत्मरक्षा के लिए हत्या को तंत्पर और डर और भय से पीली पड़ी उसकी गुलाबी चमड़ी घनघोर आश्चर्य में पड़ गयी | ये आदमखोर जो मेरे प्राण लेने तो तत्पर थे अब उसके सामने हाथ क्यों जोड़ रहे है |
बूढ़ा आदम - ही जगत जननी, मुक्ति देवी, मुक्ति ..... आप ही निर्माता हो हो आप ही विनाशक हो, आप ही सृजन कर्ता हो आप ही मुक्तिदाता हो | मुक्ति दो हमें देवी मुक्ति दो | आप ही हमें इस श्राप से मुक्त कर सकती हो | हमारे पापों को अब माफ़ कर दो | हमें इन अनंत काल की कष्टों से मुक्त कर दो | हम अपनी दिव्य शक्तियों से, अपने दिव्य रज के पान से हमें हमारी इन्द्रियां वापस कर दो, हमे जीवन मृत्यु के चक्र में लौटा दो, ताकि हम मुक्त हो सके | हमें मृत्यु दे दो माई, हमें मृत्यु दे दो देवी |
उन सब आदमों के लिए लिए वो उनकी कुल देवी थी जो अस्त्रों शस्त्र से लैस अपने प्राकृतिक रूप में सभी पापियों को मुक्ति देने निकल पड़ी है जिनके क्रोध की ज्वाला में सभी चर अचराचर जीव भस्म हो कर मुक्ति पा जाएँगें | वो ऐसी भयानक अग्नि की ज्वाला प्रज्वल्लित करेगी की जिसमे सब नष्ट हो जायेगा | ये फल फूल पौधे नदी नाले, ये सारी प्रक्रति सब भस्म होकर राख हो जायेगा ऐसी असीमित उर्जा और शक्ति का साकार स्वरुप थी देवी, जो उन्हें नजर आ रही थी | नर मुंडो से खेलने वाली, रक्त का जलपान करने वाली, हड्डियों का आभूषण पहनने वाली, देवताओं मनुष्यों किन्नरों गन्धर्वो रीछो और असुरों का संहार करके प्रलय लाने वाली, जिनके क्रोध की ज्वाला से कला चक्र भी विचलित हो जाता है उनके सामने मनुष्य क्या देवता भी अपना सर नवाते है | ऐसी महा शक्ति को नमन कर उनसे मुक्ति की कामना करना तो सौभाग्यशाली के जीवन में होता है |
रीमा जितना डरी हुई थी उतनी ही हैरान थी बाकि आदम उसके चरणों में पड़े मुक्ति मुक्ति चिल्ला रहे थे | उसे समझ न आया क्या करे, वो वहां से भाग निकलने को हुई लेकिन उसका दिमाग चकरा गया शायद वहां तेज हवा के कारण हवन कुंड से उठते धुए के करना हुआ होगा । जैसे ही वो धुएँ को पार कर आगे मूर्ति के पास आयी रीमा को यक़ीन यकीन नहीं हुआ उसके सामने एक देवी प्रकट हुई | रीमा हैरान विस्मित फैली आँखों से देख रही | उसने एक बारगी आंखे बंद की फिर खोली | सामने सच में आदि शक्ति देवी स्वयं प्रकट थी | पता नहीं ये कौन से नशे का असर था या सच था या सपना था लेकिन जो कुछ भी था वो रीमा को सामने साफ़ साफ़ दिख रहा था । रीमा का मन बार बार ये मानने का यक़ीन नहीं करता था फिर जो आँखो के सामने है, प्रत्यक्ष है उसे कैसे झुठला दे । उसने मनोविज्ञान पढ़ा था और उसे ये भी मालूम था की व्यक्ति जिस बारे में ज़्यादा सोचता है अकसर वो उसके सामने प्रकट हो जाता है या मन उसी छवि को अंदर से गढ़कर इतना मज़बूत बना देता है की कल्पना भी यथार्थ लगने लगती है । रीमा से पिछले कई दिनों से जिस तरह की घटनायें हुई उसके बाद रीमा के कुछ भी असंभव नहीं था । फिर भी ये सच नहीं हो सकता, मेरे मन की कोई कोरी कल्पना है जो मेरे मन में उठे प्रश्नों का उत्तर दे रही है ।
प्रकट हुए देवी बोली - मुक्ति दे दो इन्हें, बहुत कष्ट सहे इन सब ने | अब इनकी मुक्ति का समय है |
रीमाकी घिघ्घी बंध गयी - मै मै .............. |
कुछ चीजे हमारी कल्पना से परे होती है, अप्रकट होती है, अद्रश्य होती है लेकिन होती है | इस संसार में बहुत सी अद्रश्य उर्जाये है बस कुछ ही उन्हें महसूस कर पाते है और कुछ ही उन्हें संभाल पाते है | वो ये उर्जाये ही है जो मनुष्य से असंभव काम करवा लेती है | तुमारा मानव शःरीर सीमित उर्जा का स्थान है लेकिन तुम इस असीमित उर्जा का आवाहन कर इस कार्य को पूर्ण करो | काल तुम्हे इसे सहन करने की शक्ति देगा |
रीमा उस शक्ति, या महा शक्ति के लावण्य आत्मीयता और सौंदर्य में खोयी मंत्र मुग्ध सी - काल ....... |
आदमों ने ये देखा तो तेजी से सभी शस्त्र लेकर देवी की मूर्ति की तरफ़ बढ़े । उनके चेहरे वैसे भी भयानक थे अभी तो वो और भी भयानक लग रहे थे । सभी आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ बढ़े, रीमा चढ़कर तेज़ी से देवी के आसन की तरफ़ बढ़ गई । देवी का ऐसा ऐसा अपमान, एक स्त्री पूरी तरह से नग्न होकर देवी स्थान पर चढ़ जाये । सारे आदमों को त्योरियाँ तन गई । एक ही शब्द गूजने लगा - मृत्यु , मृत्यु मृत्यु ।
रीमा को अलग अब अंत निकट है, तभी एक आदम से रीमा पर भाला फेंका तो रीमा ने भी अपना त्रिशूल को फेंक दिया और हाथ में पकड़े आदम के सर को देवी की मूर्ति के आगे बने अंग्निकुण्ड की तरफ़ फेकने वाली थी । तभी बूढ़ा आदम आ गया ।
वो ज़ोर से चीखा - ये क्या किया तुमने, देवी स्थल को अपवित्र कर दिया ।
रीमा ने आदम के लिंग की तरफ़ इशारा करके - उधर देखो ।
इसने मेरे साथ बलात् काम किया है, क्या दंड है इसका, मृत्यु नहीं तो और क्या, उसके हंसते हुए सर को लहरा कर रीमा बोली ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु, इसे मृत्यु नहीं आएगी, हम सब मृत्यु की ही तो राह देख रहे है मूर्ख स्त्री । ये क्या किया तुमने ।
तभी बाक़ी आदम चिल्ला उठे - मृत्यु मृत्यु मृत्यु । इसी के साथ जैसे वे देवी मंच की तरफ़ बढ़ने को हुए, तभी रीमा ने पीछे देवी के हथों में लगा त्रिशूल खींच लिया, और फिर आकाश में तेज बिजली कड़की, एकदम से बहुत तेज आँधी आ गई । सभी आदमों की आँखें बंद होने को हो गई, और देवी मंच पर खड़ी रीमा के बाल हवा में लहराने लगे । जिस हाथ में तलवार और आदम का सर पकड़े थी, वो एक की जगह दो दिखने लगे, पीछे आदमों की कुल देवी की प्रतिमा के आगे खड़ी रीमा की छवि ऐसी बनी की सभी चकरा गये । ऐसा लगा सच में देवी अपने रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | लहराती जटाए, हाथ में कटा मुंड, हाथो में शस्त्र, रक्तिम आँखें और क्रोध से भरा चेहरा ।
बहु बहु भुजाये , शश्त्रो से लैस, अग्नि उगलते रंक्त रंजित नेत्र, रक्त को प्यासी जिव्हा, क्रोध से तमतमाता चेहरा उसे लगा जैसे सीधे कुल देवी ही अपने असली रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | सबको देवी की मूर्ति के आगे नंग्न खाड़ी रीमा ऐसी ही दिखाई दे रही थी |
सभी घुटनों के बल बैठ गए, सभी ने हाथ जोड़ लिए, सभी के सर झुक गये । रीमा का डर से कांपता, अपनी आत्मरक्षा के लिए हत्या को तंत्पर और डर और भय से पीली पड़ी उसकी गुलाबी चमड़ी घनघोर आश्चर्य में पड़ गयी | ये आदमखोर जो मेरे प्राण लेने तो तत्पर थे अब उसके सामने हाथ क्यों जोड़ रहे है |
बूढ़ा आदम - ही जगत जननी, मुक्ति देवी, मुक्ति ..... आप ही निर्माता हो हो आप ही विनाशक हो, आप ही सृजन कर्ता हो आप ही मुक्तिदाता हो | मुक्ति दो हमें देवी मुक्ति दो | आप ही हमें इस श्राप से मुक्त कर सकती हो | हमारे पापों को अब माफ़ कर दो | हमें इन अनंत काल की कष्टों से मुक्त कर दो | हम अपनी दिव्य शक्तियों से, अपने दिव्य रज के पान से हमें हमारी इन्द्रियां वापस कर दो, हमे जीवन मृत्यु के चक्र में लौटा दो, ताकि हम मुक्त हो सके | हमें मृत्यु दे दो माई, हमें मृत्यु दे दो देवी |
उन सब आदमों के लिए लिए वो उनकी कुल देवी थी जो अस्त्रों शस्त्र से लैस अपने प्राकृतिक रूप में सभी पापियों को मुक्ति देने निकल पड़ी है जिनके क्रोध की ज्वाला में सभी चर अचराचर जीव भस्म हो कर मुक्ति पा जाएँगें | वो ऐसी भयानक अग्नि की ज्वाला प्रज्वल्लित करेगी की जिसमे सब नष्ट हो जायेगा | ये फल फूल पौधे नदी नाले, ये सारी प्रक्रति सब भस्म होकर राख हो जायेगा ऐसी असीमित उर्जा और शक्ति का साकार स्वरुप थी देवी, जो उन्हें नजर आ रही थी | नर मुंडो से खेलने वाली, रक्त का जलपान करने वाली, हड्डियों का आभूषण पहनने वाली, देवताओं मनुष्यों किन्नरों गन्धर्वो रीछो और असुरों का संहार करके प्रलय लाने वाली, जिनके क्रोध की ज्वाला से कला चक्र भी विचलित हो जाता है उनके सामने मनुष्य क्या देवता भी अपना सर नवाते है | ऐसी महा शक्ति को नमन कर उनसे मुक्ति की कामना करना तो सौभाग्यशाली के जीवन में होता है |
रीमा जितना डरी हुई थी उतनी ही हैरान थी बाकि आदम उसके चरणों में पड़े मुक्ति मुक्ति चिल्ला रहे थे | उसे समझ न आया क्या करे, वो वहां से भाग निकलने को हुई लेकिन उसका दिमाग चकरा गया शायद वहां तेज हवा के कारण हवन कुंड से उठते धुए के करना हुआ होगा । जैसे ही वो धुएँ को पार कर आगे मूर्ति के पास आयी रीमा को यक़ीन यकीन नहीं हुआ उसके सामने एक देवी प्रकट हुई | रीमा हैरान विस्मित फैली आँखों से देख रही | उसने एक बारगी आंखे बंद की फिर खोली | सामने सच में आदि शक्ति देवी स्वयं प्रकट थी | पता नहीं ये कौन से नशे का असर था या सच था या सपना था लेकिन जो कुछ भी था वो रीमा को सामने साफ़ साफ़ दिख रहा था । रीमा का मन बार बार ये मानने का यक़ीन नहीं करता था फिर जो आँखो के सामने है, प्रत्यक्ष है उसे कैसे झुठला दे । उसने मनोविज्ञान पढ़ा था और उसे ये भी मालूम था की व्यक्ति जिस बारे में ज़्यादा सोचता है अकसर वो उसके सामने प्रकट हो जाता है या मन उसी छवि को अंदर से गढ़कर इतना मज़बूत बना देता है की कल्पना भी यथार्थ लगने लगती है । रीमा से पिछले कई दिनों से जिस तरह की घटनायें हुई उसके बाद रीमा के कुछ भी असंभव नहीं था । फिर भी ये सच नहीं हो सकता, मेरे मन की कोई कोरी कल्पना है जो मेरे मन में उठे प्रश्नों का उत्तर दे रही है ।
प्रकट हुए देवी बोली - मुक्ति दे दो इन्हें, बहुत कष्ट सहे इन सब ने | अब इनकी मुक्ति का समय है |
रीमाकी घिघ्घी बंध गयी - मै मै .............. |
कुछ चीजे हमारी कल्पना से परे होती है, अप्रकट होती है, अद्रश्य होती है लेकिन होती है | इस संसार में बहुत सी अद्रश्य उर्जाये है बस कुछ ही उन्हें महसूस कर पाते है और कुछ ही उन्हें संभाल पाते है | वो ये उर्जाये ही है जो मनुष्य से असंभव काम करवा लेती है | तुमारा मानव शःरीर सीमित उर्जा का स्थान है लेकिन तुम इस असीमित उर्जा का आवाहन कर इस कार्य को पूर्ण करो | काल तुम्हे इसे सहन करने की शक्ति देगा |
रीमा उस शक्ति, या महा शक्ति के लावण्य आत्मीयता और सौंदर्य में खोयी मंत्र मुग्ध सी - काल ....... |