08-11-2024, 11:50 PM
इधर रीमा को नियमित समय पर खाना मिलता और सारी सेवा हो रही थी लेकिन न तो उसके हाथ पाँव खोले गये और न ही उसको कही बाहर जाने की अनुमति थी । एक जंगली पत्तो की परत से उसका बदन ढका गया था । बाक़ी जो भी आदम पानी के प्रभाव में आये थे वो सारे इस समय मिट्टी स्नान कर रहे थे । रीमा इतना तो समझ गई थी इन सभी आदमों की उम्र अलग अलग है और जो कम उम्र के है उनका उसको देखने का नज़रिया अलग है बाक़ी उम्रदराज़ लोगो से । ऐसा लगता है उम्रदराज़ लोगो में न कोई भावना है न कोई संवेदना है । एक दिन रीमा ने एक आदम को अपना फल खाने को दिया लेकिन उसने लेने से मना कर दिया । तीन दिन बाद बूढ़ा आदम वापस आया । जिस दिन पूर्ण चंद्रमा होगा उस दिन पूजा है और फिर हम तुमारे रज रक्त की बलि देगें ।
रीमा - मुझे मारने से क्या मिलेगा ।
बूढ़ा आदम - अगर मृत्यु आवश्यक हुई तो वो भी करेगें ।
रीमा - लेकिन मुझे बिना मारे अगर तुमारा काम हो जाये तो ।
बूढ़ा आदम - मुक्ति इतनी आसान नहीं है ।
रीमा - मुक्ति तुम्हें चाहिए फिर मुझे क्यों मारना है ख़ुद को मारो ।
बूढ़ा आदम - तुम ही मुक्ति द्वार हो सकती हो, अब अगर तुमारे रज रक्त की बलि देवी ने स्वीकार कर ली और हेम मुक्ति दे दी तो हम तुम्हें नहीं मारेजें ।
रीमा को कुछ समझ नहीं आया । अब तक उसका डर भी काफ़ी हद तक निकल गया था । बूढ़ा आदम चलने को हुआ तो रीमा बोली - मुझे अगर यहाँ घूमने को मिल जाये, मैं यहाँ पड़े पड़े बोर हो जाती हूँ ।
बूढ़ा आदम - साधना इतनी आसान नहीं ।
रीमा - तो मुझे साधना कछ में ही बेज दो ।
बूढ़े आदम ने अपने एक युवा से कुछ मूल भाषा में कहा और चला गया ।
अगले दिन से रीमा को दो अलग अलग जगह पर आदम अपनी उपस्थिति में टहलाते थे । जिनमे से एक युवा आदम रीमा पर ज़्यादा ही आसक्त था । रीमा की सेवा में कोई कमी नहीं थी जैसा बकरे की बलि देने से पहले खिलाया पिलाया जाता है वैसे ही रीमा को भी सब कुछ खाने को उपलब्ध था । बस बाहर अकेले जाने की आज़ादी नहीं थी ।
अगले कुछ दिनो में रीमा ने उन आदम लोगो के बारे में काफ़ी कुछ जाना, लेकिन जितना वो जानती उतना ही वो रहस्यमयी प्रतीत होते । पहली बात जो उनसे जानी की ये आदमखोर नहीं है, असल में ये भोजन नहीं करते है, निद्रा भी इनकी न के बराबर है और ज़्यादातर साधना और तपस्या में लीन रहते है और इनकी साधना करने का कारण मुक्ति है । इन्हें मुक्ति चाहिए, सबको मुक्ति चाहिए । सब बस मरना चाहते है । लेकिन क्यों ये एक बड़ा सवाल था और इसका जवाब अभी रीमा के पास नहीं था । उसको ये तो पता चल गया था की अगर इनको मुक्ति न मिली तो ये ज़रूर रीमा को मार डालेगे, तो रीमा को ये तो समझ आ चुका था की बचने का एक ही रास्ता है वो है मुक्ति लेकिन कैसे । रीमा को उनकी साधना के तरीक़े अजीब लगते थे, ढेर सारी हड्डियाँ, जानवरो की बलि और रक्त को अग्नि में डालना और पता नहीं क्या क्या लेकिन एक बार जो उसे समझ आयी, यहाँ कामनाओ का कोई मूल्य नहीं है, सभी ऐसा लगता है जैसे वैरागी है । जबसे यहाँ आयी है उसके मन में भी सांसारिक विचार नहीं आये, कामना, भय, चिंता सब जैसे दूर हो गया हो सिर्फ़ उस मृत्यु के विचार को छोड़कर । उसे बस वही बात कभी कभार परेशान करती अन्यथा वो यहाँ गहरी मानसिक शांति में थी ।
यहाँ आकर उसे समझ आया की उसके नंग्न शरीर को देखकर भी ज़्यादातर आदमों की भाव भंगिमाये क्यों नहीं बदली । क्योंकि वे साधना रत होकर अब इससे ऊपर जा चुके थे जहां शरीर का आकर्षण शायद उन्हें प्रभावित नहीं करता था । बस कुछ थे जो शायद अभी इस सिद्धि से दूर थे और उनका मन अभी भी चंचल था । उन्हीं चंचल मन वाले आदम में से एक आदम रीमा की सेवा में लगा था । उसके आँखों में रीमा के लिए आकर्षण साफ़ नज़र आता था वो रीमा को निवस्त्र देखने की यथा संभव कोशिश भी करता और रीमा का शक सही था, एक दिन उसने उसी आदम को अपना लिंग मसलते देख लिया, पहले तो वो वहाँ से जाना चाहती थी लेकिन आँड़ लेकर उसने देखा की उसके पहने हुए पत्तों को सूंघकर वो अपना लिंग मसल रहा है, मतलब ये वासना मुक्त नहीं है लेकिन बड़ी कोशिश के बाद भी उसका लिंग में तनाव नहीं आया और कुछ देर बाद एक हल्का सफ़ेद द्रव्य निकला और वो शांत हो गया ।
रीमा का दिमाग़ घूम गया, ये क्या माजरा है, इनके लिंगों में कठोरता नहीं आती लेकिन स्खलन होता है । वैसे अच्छा है इनके लिंक कठोर नहीं होते नहीं तो ये तो स्त्रियों की योनि ही फाड़ डालते, रीमा ने जीतने भी आदम देखे थे सबके निर्जीव लिंग भी रोहित से दोगुने थे । वो सोच रही थी कौन से जीव है कौन सी मनुष्य की प्रजाति है न कुछ खाते है न सोते है और बाहर की दुनिया में इनके बारे में कितनी ग़लत अवधारणा फैली है की ये आदमखोर है ।
बहत से विचारों में घूमते घामते रीमा ख़ुद पर आ गई, मेरा क्या होगा । क्या ये मुझे मार डालेगे, अभी तो बहुत खिला पिला रहे है । लेकिन मारने से पहले मुझे ये पता करना होगा इनको मुक्ति क्यों चाहिए और ये सब ऐसे क्यों है, इनकी चमड़ी में कोई रौनक़ नहीं, शरीर हड्डियों का ढाँचा है लेकिन बल इतना की कुंतल भर का पत्थर अकेले उठा ले, ये है तो कोई मानव प्रजाति की ही शाखा लेकिन क्या है ये पता लगाना होगा, शायद मरने की नौबत न आये और मैं बच जाऊँ । वो आदम जब वहाँ से चला गया तो रीमा ने चुपके तो वो पत्ता जिस पर वो अपना वीर्य निकाल कर गया था उसको उठाकर छुपा दिया और बूढ़े आदम को दिखाने के लिए सही समय का इंतज़ार करने लगी ।
एक दो दिन और बीतते है लेकिन उस आदम की हरकत रीमा के लिए बदलती जा रही थी । अब वो रीमा को किसी न किसी बहाने स्पर्श करता था । रीमा चाहकर भी ज़्यादा कुछ कर नहीं सकती थी । उसकी भयानक शक्लों से ही अब उसे डर नहीं लगता क्या ये कम बड़ी बात थी । उसी दिन जब वो रीमा के भोजन की डालियाँ वापस ले जा रहा था तो उसने इशारा किया । उसने अपने लिंग को हाथ में पकड़कर रीमा को पकड़ने को कहाँ । रीमा पीछे हट गई । उसको भी जाना था इसलिए वो भी वहाँ से चला गया लेकिन उसका मन में जो कामनाये उमड़ रही थी वो तो ऐसे शांत नहीं होने वाली थी । वो रात में वापस आता है, रीमा तब तक सो चुकी थी, इसलिए वो रीमा को जगाता है और बड़े भी अनुनयी आँखों से अपना लिंग पकड़कर रीमा के हाथ में रखने लगता है । रीमा नीद के बोझ से लदी थी जब तक उसे समझ आता तब तक वो अपना फुट भर का लिंग रीमा के हाथ में रख चुका था, जिसे रीमा एक झटके में झटक देती है और ज़ोर से चिल्लाने को होती है इससे पहले वो रीमा का मुँह बंद कर देता है और रीमा की चीख मुँह में ही घुट जाती है । वो एक हाथ में बरछी लेकर रीमा को मारने की धमकी देता है, अगर रीमा चिल्लायी तो वो मार देगा । उसी तेज़ी से वो बरछी रीमा के गले पर लगाकर रीमा के मुँह में पास पड़े पत्ते भरकर उसका मुँह बांध देता है । फिर हाथ और पैर भी बांध देता है । रीमा के शरीर के पत्ते तार तार हो गये, उसे ये भी नहीं पता था की स्त्री के मैथुन कैसे करते है । रति क्रिया के ज्ञान से शायद वो अनभिज्ञ था । उसने रीमा को पलट दिया और उसके सबसे ज़्यादा मांसल हिस्से यानी उसके चुतड़ो पर अपना मूर्छित लिंग रगड़ने लगा जिसकी मूर्छा शायद ही दूर हो ।उसके लिंग रगड़ते रगड़ते रीमा के चुताड़ो की दरार में आ गया और फिर वो मांस का निर्जीव लोथड़ा उसकी चुतड़ो की दरार में अपनी घिसाई करने लगा । रीमा भयभीत हो गई, उनके लिंग आम आदमी से बिलकुल अलग थे, एक तो वो साइज में बड़े थे ऊपर से उनकी त्वचा भी वैसे ही सुखी सुखी, जैसे सुखी नरम लकड़ी, रीमा को ऐसा लग रहा था जैसे कोई रबड़ का सूखा डंडा उसके ऊपर रगड़ रहा हो । लेकिन रीमा निर्जीव सी नहीं पड़ी थी इसलिए रीमा के प्रतिरोध को भी उसे बार बार क़ाबू करना पड़ता था । रीमा के जिस्म की गर्मी का असर कहे या रीमा के शरीर का स्पर्श या रीमा के शरीर के घर्षण से हुए परमाणुओं के आदान प्रदान, उस आदम के लिंग में हल्की फुलकी कठोरता आने लगी थी । जैसे ही उसे अहसास हुआ की उसका लिंग कठोर हो रहा है , उसका जोश दोगुना हो गया, अब रीमा टस से मस नहीं हो सकती है । दुगनी घर्षण से वो रीमा के मांसल चुतड़ो पर अपना मुर्दा लिंग रगड़ने लगा । रीमा के जिस्म पर इतना दबाव था की उसका दम घुटने को आया, उसका मुँह पहले से ही बंद था और अब तो नाक से सांस लेना भी दूभर था ऊपर से उस आदम की बदबू, रीमा के लिए सब सा सब जानलेवा था, रीमा से अपनी पूरी ताक़त से ख़ुद को उसकी गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश की और पैर फटके और इसी नूरा कुश्ती में उसका लिंग रीमा की पिछली गुलाबी सुरंग के मुहाने से टकराया । रीमा चीखी लेकिन वो चीख उसकी मुँह से न निकल सकी और आँखों से लालिमा और आंसू बनकर बह निकली । पहली टकराहट रीमा का उसके चंगुल से निकलने के प्रतिरोध में हुई थी और शायद इस क्षण ने उसे एक नया मंत्र दे दिया, उसका अर्ध तनाव वाला लिंग ने रीमा ने पिछले द्वार पर ज़ोरदार दस्तक दी । रीमा भीषण चीख से चीखी ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके चूतड़ फाड़ दिये हो, उसका मूसल खुरदुरा लिंग रीमा की गुलाबी गहराइयो में धँस गया और फिर जो हुआ तो चमत्कार से कम नहीं था, रीमा की चीख के आंसू अभी बस निकले ही थे की वो आदम भी चीख़ा और ज़ोर से चीख़ा । फिर पतझड़ शुरू हो गया । रीमा का दर्द एक सामान्य दर्द में बदल गया, उसने लिंग बाहर निकाल लिया और रीमा के चुतड़ो को सरोबार कर दिया।
रीमा के ऊपर से आदम लुढ़क गया और ज़ोर से खड़ा हो गया । वो अलग अलग मुद्रा में नृत्य करने लगा, रीमा अभी हुई नूरा कुश्ती से ज़मीन पर पस्त पड़ी थी । उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी की वो आदम से आँख मिला सके, आख़िर उसने अपने पौरुष बल से उसका बलात्कार जो कर डाला था । रीमा की हिम्मत टूट चुकी थी, और शरीर भी, आख़िर एक स्त्री का शरीर इस दानव से कैसे लड़ता, वो अपने स्त्री होने दीनता पर रोने को थी, तभी उस आदम ने नाचते नाचते रीमा के पीछे बंधे हाथ खोल दिये । रीमा के आंसू, बेबसी, लाचारी सब एक साथ उठे झट से उसने अपने मुँह में को खोला और ज़ोर से चिल्लायी और फिर अपने पैर खोले । आदम को रीमा के चिल्लाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा । पड़ता भी क्यों, उसके लिंग में अजीब सा परिवर्तन आ गया था, उसका बाक़ी शरीर अभी भी उसकी काली रूखी त्वचा का था लेकिन लिंग का न केवल आकर सामान्य हो गया बल्कि अभी हुए स्खलन के बाद भी उसका तनाव ऐसा था, रक्त से भरा, रक्तिम रंगत लिए कठोर लिंग ।
उसके इस विजय का जुलूस तो अब रीमा निकालने वाली थी, अपने स्त्रीत्व को इस तरह लूटते पिटते देख, अपमानित होते देख उसने झट से पास पड़े एक त्रिशूल को उठा लिया, उस आदम के पीछे भागी और आदम आगे आगे और वो पीछे पीछे । आगे चलकर रीमा ने एक तलवार नुमा हथियार भी उठा लिया । इस समय रीमा का रौद्र रूप देख कोई नहीं कह सकता था की ये रीमा बेचारी वासना की मारी एक अबला नारी है । उसका एक ही लक्ष्य था इस आदम का सर और लिंग दोनों उसके शरीर से अलग करना । बलात् संभोग के कारण उसका चेहरा और आँखें हो पहले से ही लाल थी और बाक़ी कमी ग़ुस्से ने पूरी कर दी । गुफ़ावो में शोर सुनकर बाक़ी आदम भी अपनी साधना से जग गये, इसी बीच वही आदम जिसने रीमा का बलात् गुदा भंजन कर दिया था उसने एक हड्डियों की बनी माला रीमा के गले में डाल दी, इधर उसने रीमा के गले में माला डाली और उधर रीमा से तेज़ी से अपना दाहिना हाथ चलाया और आदम का सर धड़ से अलग हो गया । वो आदम माला पहनाने के बाद रीमा पर नीली भस्म डालने लगा । एक तरफ़ आदम का गिरता सर, उसके धड़ से निकलती रक्त की कुछ बूँदे, और रीमा के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में रक्त रंजित तलवार, उसके रक्त की बूँदे रीमा के स्तन और अग्र बाग पर भी गिरी लेकिन वो उस नीली भभूत से पूरी तरह नहा गई । उसने दूसरे वार से उसका लिंग भी अलग कर दिया ।
रीमा - मुझे मारने से क्या मिलेगा ।
बूढ़ा आदम - अगर मृत्यु आवश्यक हुई तो वो भी करेगें ।
रीमा - लेकिन मुझे बिना मारे अगर तुमारा काम हो जाये तो ।
बूढ़ा आदम - मुक्ति इतनी आसान नहीं है ।
रीमा - मुक्ति तुम्हें चाहिए फिर मुझे क्यों मारना है ख़ुद को मारो ।
बूढ़ा आदम - तुम ही मुक्ति द्वार हो सकती हो, अब अगर तुमारे रज रक्त की बलि देवी ने स्वीकार कर ली और हेम मुक्ति दे दी तो हम तुम्हें नहीं मारेजें ।
रीमा को कुछ समझ नहीं आया । अब तक उसका डर भी काफ़ी हद तक निकल गया था । बूढ़ा आदम चलने को हुआ तो रीमा बोली - मुझे अगर यहाँ घूमने को मिल जाये, मैं यहाँ पड़े पड़े बोर हो जाती हूँ ।
बूढ़ा आदम - साधना इतनी आसान नहीं ।
रीमा - तो मुझे साधना कछ में ही बेज दो ।
बूढ़े आदम ने अपने एक युवा से कुछ मूल भाषा में कहा और चला गया ।
अगले दिन से रीमा को दो अलग अलग जगह पर आदम अपनी उपस्थिति में टहलाते थे । जिनमे से एक युवा आदम रीमा पर ज़्यादा ही आसक्त था । रीमा की सेवा में कोई कमी नहीं थी जैसा बकरे की बलि देने से पहले खिलाया पिलाया जाता है वैसे ही रीमा को भी सब कुछ खाने को उपलब्ध था । बस बाहर अकेले जाने की आज़ादी नहीं थी ।
अगले कुछ दिनो में रीमा ने उन आदम लोगो के बारे में काफ़ी कुछ जाना, लेकिन जितना वो जानती उतना ही वो रहस्यमयी प्रतीत होते । पहली बात जो उनसे जानी की ये आदमखोर नहीं है, असल में ये भोजन नहीं करते है, निद्रा भी इनकी न के बराबर है और ज़्यादातर साधना और तपस्या में लीन रहते है और इनकी साधना करने का कारण मुक्ति है । इन्हें मुक्ति चाहिए, सबको मुक्ति चाहिए । सब बस मरना चाहते है । लेकिन क्यों ये एक बड़ा सवाल था और इसका जवाब अभी रीमा के पास नहीं था । उसको ये तो पता चल गया था की अगर इनको मुक्ति न मिली तो ये ज़रूर रीमा को मार डालेगे, तो रीमा को ये तो समझ आ चुका था की बचने का एक ही रास्ता है वो है मुक्ति लेकिन कैसे । रीमा को उनकी साधना के तरीक़े अजीब लगते थे, ढेर सारी हड्डियाँ, जानवरो की बलि और रक्त को अग्नि में डालना और पता नहीं क्या क्या लेकिन एक बार जो उसे समझ आयी, यहाँ कामनाओ का कोई मूल्य नहीं है, सभी ऐसा लगता है जैसे वैरागी है । जबसे यहाँ आयी है उसके मन में भी सांसारिक विचार नहीं आये, कामना, भय, चिंता सब जैसे दूर हो गया हो सिर्फ़ उस मृत्यु के विचार को छोड़कर । उसे बस वही बात कभी कभार परेशान करती अन्यथा वो यहाँ गहरी मानसिक शांति में थी ।
यहाँ आकर उसे समझ आया की उसके नंग्न शरीर को देखकर भी ज़्यादातर आदमों की भाव भंगिमाये क्यों नहीं बदली । क्योंकि वे साधना रत होकर अब इससे ऊपर जा चुके थे जहां शरीर का आकर्षण शायद उन्हें प्रभावित नहीं करता था । बस कुछ थे जो शायद अभी इस सिद्धि से दूर थे और उनका मन अभी भी चंचल था । उन्हीं चंचल मन वाले आदम में से एक आदम रीमा की सेवा में लगा था । उसके आँखों में रीमा के लिए आकर्षण साफ़ नज़र आता था वो रीमा को निवस्त्र देखने की यथा संभव कोशिश भी करता और रीमा का शक सही था, एक दिन उसने उसी आदम को अपना लिंग मसलते देख लिया, पहले तो वो वहाँ से जाना चाहती थी लेकिन आँड़ लेकर उसने देखा की उसके पहने हुए पत्तों को सूंघकर वो अपना लिंग मसल रहा है, मतलब ये वासना मुक्त नहीं है लेकिन बड़ी कोशिश के बाद भी उसका लिंग में तनाव नहीं आया और कुछ देर बाद एक हल्का सफ़ेद द्रव्य निकला और वो शांत हो गया ।
रीमा का दिमाग़ घूम गया, ये क्या माजरा है, इनके लिंगों में कठोरता नहीं आती लेकिन स्खलन होता है । वैसे अच्छा है इनके लिंक कठोर नहीं होते नहीं तो ये तो स्त्रियों की योनि ही फाड़ डालते, रीमा ने जीतने भी आदम देखे थे सबके निर्जीव लिंग भी रोहित से दोगुने थे । वो सोच रही थी कौन से जीव है कौन सी मनुष्य की प्रजाति है न कुछ खाते है न सोते है और बाहर की दुनिया में इनके बारे में कितनी ग़लत अवधारणा फैली है की ये आदमखोर है ।
बहत से विचारों में घूमते घामते रीमा ख़ुद पर आ गई, मेरा क्या होगा । क्या ये मुझे मार डालेगे, अभी तो बहुत खिला पिला रहे है । लेकिन मारने से पहले मुझे ये पता करना होगा इनको मुक्ति क्यों चाहिए और ये सब ऐसे क्यों है, इनकी चमड़ी में कोई रौनक़ नहीं, शरीर हड्डियों का ढाँचा है लेकिन बल इतना की कुंतल भर का पत्थर अकेले उठा ले, ये है तो कोई मानव प्रजाति की ही शाखा लेकिन क्या है ये पता लगाना होगा, शायद मरने की नौबत न आये और मैं बच जाऊँ । वो आदम जब वहाँ से चला गया तो रीमा ने चुपके तो वो पत्ता जिस पर वो अपना वीर्य निकाल कर गया था उसको उठाकर छुपा दिया और बूढ़े आदम को दिखाने के लिए सही समय का इंतज़ार करने लगी ।
एक दो दिन और बीतते है लेकिन उस आदम की हरकत रीमा के लिए बदलती जा रही थी । अब वो रीमा को किसी न किसी बहाने स्पर्श करता था । रीमा चाहकर भी ज़्यादा कुछ कर नहीं सकती थी । उसकी भयानक शक्लों से ही अब उसे डर नहीं लगता क्या ये कम बड़ी बात थी । उसी दिन जब वो रीमा के भोजन की डालियाँ वापस ले जा रहा था तो उसने इशारा किया । उसने अपने लिंग को हाथ में पकड़कर रीमा को पकड़ने को कहाँ । रीमा पीछे हट गई । उसको भी जाना था इसलिए वो भी वहाँ से चला गया लेकिन उसका मन में जो कामनाये उमड़ रही थी वो तो ऐसे शांत नहीं होने वाली थी । वो रात में वापस आता है, रीमा तब तक सो चुकी थी, इसलिए वो रीमा को जगाता है और बड़े भी अनुनयी आँखों से अपना लिंग पकड़कर रीमा के हाथ में रखने लगता है । रीमा नीद के बोझ से लदी थी जब तक उसे समझ आता तब तक वो अपना फुट भर का लिंग रीमा के हाथ में रख चुका था, जिसे रीमा एक झटके में झटक देती है और ज़ोर से चिल्लाने को होती है इससे पहले वो रीमा का मुँह बंद कर देता है और रीमा की चीख मुँह में ही घुट जाती है । वो एक हाथ में बरछी लेकर रीमा को मारने की धमकी देता है, अगर रीमा चिल्लायी तो वो मार देगा । उसी तेज़ी से वो बरछी रीमा के गले पर लगाकर रीमा के मुँह में पास पड़े पत्ते भरकर उसका मुँह बांध देता है । फिर हाथ और पैर भी बांध देता है । रीमा के शरीर के पत्ते तार तार हो गये, उसे ये भी नहीं पता था की स्त्री के मैथुन कैसे करते है । रति क्रिया के ज्ञान से शायद वो अनभिज्ञ था । उसने रीमा को पलट दिया और उसके सबसे ज़्यादा मांसल हिस्से यानी उसके चुतड़ो पर अपना मूर्छित लिंग रगड़ने लगा जिसकी मूर्छा शायद ही दूर हो ।उसके लिंग रगड़ते रगड़ते रीमा के चुताड़ो की दरार में आ गया और फिर वो मांस का निर्जीव लोथड़ा उसकी चुतड़ो की दरार में अपनी घिसाई करने लगा । रीमा भयभीत हो गई, उनके लिंग आम आदमी से बिलकुल अलग थे, एक तो वो साइज में बड़े थे ऊपर से उनकी त्वचा भी वैसे ही सुखी सुखी, जैसे सुखी नरम लकड़ी, रीमा को ऐसा लग रहा था जैसे कोई रबड़ का सूखा डंडा उसके ऊपर रगड़ रहा हो । लेकिन रीमा निर्जीव सी नहीं पड़ी थी इसलिए रीमा के प्रतिरोध को भी उसे बार बार क़ाबू करना पड़ता था । रीमा के जिस्म की गर्मी का असर कहे या रीमा के शरीर का स्पर्श या रीमा के शरीर के घर्षण से हुए परमाणुओं के आदान प्रदान, उस आदम के लिंग में हल्की फुलकी कठोरता आने लगी थी । जैसे ही उसे अहसास हुआ की उसका लिंग कठोर हो रहा है , उसका जोश दोगुना हो गया, अब रीमा टस से मस नहीं हो सकती है । दुगनी घर्षण से वो रीमा के मांसल चुतड़ो पर अपना मुर्दा लिंग रगड़ने लगा । रीमा के जिस्म पर इतना दबाव था की उसका दम घुटने को आया, उसका मुँह पहले से ही बंद था और अब तो नाक से सांस लेना भी दूभर था ऊपर से उस आदम की बदबू, रीमा के लिए सब सा सब जानलेवा था, रीमा से अपनी पूरी ताक़त से ख़ुद को उसकी गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश की और पैर फटके और इसी नूरा कुश्ती में उसका लिंग रीमा की पिछली गुलाबी सुरंग के मुहाने से टकराया । रीमा चीखी लेकिन वो चीख उसकी मुँह से न निकल सकी और आँखों से लालिमा और आंसू बनकर बह निकली । पहली टकराहट रीमा का उसके चंगुल से निकलने के प्रतिरोध में हुई थी और शायद इस क्षण ने उसे एक नया मंत्र दे दिया, उसका अर्ध तनाव वाला लिंग ने रीमा ने पिछले द्वार पर ज़ोरदार दस्तक दी । रीमा भीषण चीख से चीखी ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके चूतड़ फाड़ दिये हो, उसका मूसल खुरदुरा लिंग रीमा की गुलाबी गहराइयो में धँस गया और फिर जो हुआ तो चमत्कार से कम नहीं था, रीमा की चीख के आंसू अभी बस निकले ही थे की वो आदम भी चीख़ा और ज़ोर से चीख़ा । फिर पतझड़ शुरू हो गया । रीमा का दर्द एक सामान्य दर्द में बदल गया, उसने लिंग बाहर निकाल लिया और रीमा के चुतड़ो को सरोबार कर दिया।
रीमा के ऊपर से आदम लुढ़क गया और ज़ोर से खड़ा हो गया । वो अलग अलग मुद्रा में नृत्य करने लगा, रीमा अभी हुई नूरा कुश्ती से ज़मीन पर पस्त पड़ी थी । उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी की वो आदम से आँख मिला सके, आख़िर उसने अपने पौरुष बल से उसका बलात्कार जो कर डाला था । रीमा की हिम्मत टूट चुकी थी, और शरीर भी, आख़िर एक स्त्री का शरीर इस दानव से कैसे लड़ता, वो अपने स्त्री होने दीनता पर रोने को थी, तभी उस आदम ने नाचते नाचते रीमा के पीछे बंधे हाथ खोल दिये । रीमा के आंसू, बेबसी, लाचारी सब एक साथ उठे झट से उसने अपने मुँह में को खोला और ज़ोर से चिल्लायी और फिर अपने पैर खोले । आदम को रीमा के चिल्लाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा । पड़ता भी क्यों, उसके लिंग में अजीब सा परिवर्तन आ गया था, उसका बाक़ी शरीर अभी भी उसकी काली रूखी त्वचा का था लेकिन लिंग का न केवल आकर सामान्य हो गया बल्कि अभी हुए स्खलन के बाद भी उसका तनाव ऐसा था, रक्त से भरा, रक्तिम रंगत लिए कठोर लिंग ।
उसके इस विजय का जुलूस तो अब रीमा निकालने वाली थी, अपने स्त्रीत्व को इस तरह लूटते पिटते देख, अपमानित होते देख उसने झट से पास पड़े एक त्रिशूल को उठा लिया, उस आदम के पीछे भागी और आदम आगे आगे और वो पीछे पीछे । आगे चलकर रीमा ने एक तलवार नुमा हथियार भी उठा लिया । इस समय रीमा का रौद्र रूप देख कोई नहीं कह सकता था की ये रीमा बेचारी वासना की मारी एक अबला नारी है । उसका एक ही लक्ष्य था इस आदम का सर और लिंग दोनों उसके शरीर से अलग करना । बलात् संभोग के कारण उसका चेहरा और आँखें हो पहले से ही लाल थी और बाक़ी कमी ग़ुस्से ने पूरी कर दी । गुफ़ावो में शोर सुनकर बाक़ी आदम भी अपनी साधना से जग गये, इसी बीच वही आदम जिसने रीमा का बलात् गुदा भंजन कर दिया था उसने एक हड्डियों की बनी माला रीमा के गले में डाल दी, इधर उसने रीमा के गले में माला डाली और उधर रीमा से तेज़ी से अपना दाहिना हाथ चलाया और आदम का सर धड़ से अलग हो गया । वो आदम माला पहनाने के बाद रीमा पर नीली भस्म डालने लगा । एक तरफ़ आदम का गिरता सर, उसके धड़ से निकलती रक्त की कुछ बूँदे, और रीमा के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में रक्त रंजित तलवार, उसके रक्त की बूँदे रीमा के स्तन और अग्र बाग पर भी गिरी लेकिन वो उस नीली भभूत से पूरी तरह नहा गई । उसने दूसरे वार से उसका लिंग भी अलग कर दिया ।