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Adultery रीमा की दबी वासना
रीमा सोच रही थी जब मरना  ही है तो नदी में डूब कर मर जाऊँ वैसे भी अस्थियाँ तो नदी को ही आनी है, इन दरिंदों के हाँथो इस मांस हड्डी की दुर्गति क्यों करवाना और फिर ये ज़िंदा तो छोड़गे नहीं । इस समय उसके अंदर क्या चल रहा है ये समझ पाना ख़ुद उसके लिए बहुत मुश्किल था । वो सामने ख़ूँख़ार आदमों को देखकर भयभीत थी, उन्होंने उसके ऊपर तीर तान रखे थे, मतलब एक हरकत हुई नहीं और सारे तीर उसके गुलाबी बदन में धँसे होंगे । क्याँ करूँ क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था । इसी बीच रीमा पानी की एक लहर में थोड़ा सा हिली, उसका बदन भी और अभी तक उसका जो शरीर गले के नीचे पानी में था उसकी एक झलक उन आदमों को मिली, आदम की नज़र रीमा के बायें हाथ पर लगे भाले की खरोंच के निशान पर पड़ी, उसको ऐसा लगा जैसे रीमा की हाथ पर रज रक्त  मुक्ति का निशान बना है । इन आदमों की परंपरा में अगर किसी आदम को स्त्री के रक्त से जीवन मुक्ति मिलती है तो उसे ये रज रक्त मुक्ति बोलते है । रज रक्त मुक्ति का निशान ऐसा होता है जिसमे एक स्त्री के शरीर लाल रक्त के साथ मुक्त होता दिखायी देता है ।रीमा के घाव के चारो और रक्त निकलने और सूखने से काला निशान बन गया था और बीच में लालिमा थी तो उस बूढ़े को ये आभास हुआ की ये रज रक्त मुक्ति का निशान है । 


[Image: AVvXsEh8dxCll1jqxE8_XhG1bOTERAjhgRT4vSVV...9e6=s16000]

वो ये आवाज़ में कुछ गरजा जो रीमा को समझ नहीं आया । लेकिन सबके तीर नीचे हो गये । बूढ़ा आगे बढ़ा तो रीमा भी नदी के पानी के एक कदम पीछे हटी और बूढ़े की तरफ़ पानी उछाल दिया । 
बूढ़ा आदम - मूर्ख क्यों मृत्यु को आवाहन दे रही है । 
रीमा को उसकी भराई आवाज़ से सिर्फ़ मृत्यु समझ आया । इसी बीच रीमा नदी में अपने पैर टिकाने  को सीधी हुई तो लहरों ने खेल कर दिया और रीमा के नाभि के ऊपर वाले भाग से आँख मिचौली खेल कर चली गई । रीमा के पानी में भीगे गुलाबी बदन के उन्नत नुकीली उठी गुलाबी मख़मली छातियों का हाहाकारी यौवन देख कुछ आदमों की भाव भंगिमाएँ बदल गई । 
एक बोला - मुक्ति ।
बूढ़ा आदम - धाप दु हिड उर्यूअउउउ भप  मूर्ख ना' छिले ।
सभी आदम गंभीर हो गये । बूढ़ा आदम आगे बढ़ा और नदी के किनारे पानी की धारा से पहले खड़े होकर उनसे एक हाथ रीमा की तरफ़ बढ़ाया, जैसे वो उसे नदी से निकलना चाहता हो । रीमा दहशत और आश्चर्य से उसे देख रही थी । उसने ऊपर से नीचे तक कोई कपड़ा नहीं पहना था । उसके लंबे बाल एक दूसरे में चिपक कर जटाए बना रहे थे । चमड़ी बिलकुल सूखी हुई स्याह रंग की, ऐसा लगता था जैसे शरीर में खून हो हो नहीं । गले में कुछ हड़ियो की माला और हाथ में एक दंड और भाला । इस पूरे कांड में अभी तक रीमा ने जो नहीं देखा था वो की इन बिना खून वाले आदमखोर आदमों के लिंग सामान्य से बड़े थे । उसके हाहाकारी उठे हुए नंग्न वक्ष स्थल को  देखकर भी एक दो को छोड़कर किसी की भी भाव भंगिमा नहीं बदली । ऐसा लगता था की वो स्त्री के यौवन के भावों और अनुभवों से अपरिचित थे या वो उस वासनाओं के पड़ाव से काफ़ी आगे निकल गये थे । 

बूढ़े आदम ने एक बार और रीमा को अपनी तरफ़ आने का इशारा किया । रीमा टस से मस न हुई, उसने बूढ़े आदम को देखा और फिर उसके पीछे खड़ी उसकी फ़ौज को, जो उसके एक इशारे पर उसके शरीर को तीरो से छलनी कर देगी । 
बूढ़े आदम ने रीमा ने दुविधा को समझने की कोशिश की और अपने आदमियों को और पीछे जाने का इशारा किया । 
बूढ़ा आदम - कौन हो तुम और यहाँ इस घनघोर जंगल में, बिना कपड़ों के नग्न क्या कर रही हो ।
रीमा - तुम लोग कौन हो ।
बूढ़ा आदम - ये इलाक़ा में अंग्रेज सरकार ने किसी को भी आने को मना किया है । अंतिम बार एक स्त्री इधर आयी थी, मुझे लगा वो हमारे लिए आयी है (अपने लिंग को हिलाते हुए) लेकिन वो तो व्यर्थ ही अपनी मृत्यु के मुँह में चली आयी। हमारी तपस्या में उसका कोई मूल्य ही नहीं था और हमारा समय भी ख़राब किया और फिर उसका मांस यहाँ के जंगली जानवरों ने बड़े प्रेम से खाया था ।   
रीमा - अंग्रेज सरकार, कैसी तपस्या ।
बूढ़ा आदम - तुम अंग्रेज सरकार को नहीं जानती, कहाँ से आयी हो ।
रीमा - शहर से ।
बूढ़ा आदम - वहाँ का शासन कौन चलाता है । 
रीमा - तुम लोग मुझे मार के खा जावोगे  है न ।
बूढ़ा आदम - तुम स्वयं मृत्यु के मुँह में आयी हो, यहाँ जो भी आया उसकी मृत्यु निश्चित है, जब अंग्रेज सरकार ने मना किया है तो क्यों आयी इधर, और तुमारे वस्त्र किधर है, एक तो तुम निषिद्ध जगल में घूम रही हो ऊपर से निर्वस्त्र । क्या बाहर ऐसा ही जीवन है । 
रीमा - बाहर जीवन , नहीं अग्रेज सरकार को बहुत पहले चली गई ।
बूढ़ा आदम - किस राजा का शासन है वहाँ ।
रीमा - तुम हो कौन और मैं बस भटक गई हूँ, मुझे मत मारो प्लीज़ , मैं जानभूझ कर यहाँ नहीं आयी हो । क़िस्मत की मारी बस कैसे एक मुसीबत से बचते पड़ते दूसरी मुसीबत में फँस जाती हूँ ।
रीमा - मैं यहाँ से चली जाऊँगी और फिर कभी वापस नहीं आऊँगी । 
इतना कहकर रीमा ख़ुद को आगे की तरफ़ लायी और जैसे ही वो आगे को बढ़ने लगी , पानी का आवरण उसके बदन पर से उतरने लगा और उसके उजले गुलाबी मांसल कंधे उजागर होने लगे । उसको भारी उरोजों से झुकी छातियाँ नुमाया हो गई , एक पल को वो पाई में संतुलन बनाने को ठिठक गई । फिर नीचे की तरफ़ देखा और रीमा के हाहाकारी  गुलाबी गोलाकार बड़े बड़े उरोजों और उस पर विराजमान उन्नत नुकीली चोटियों  नुमाया हो रही थी । रीमा थोड़ा झुक गई और उसके आधे उरोज पानी में डूब गये । आदमों में कुछ इतने से ही वासना ग्रस्त हो गये लेकिन बाक़ी की भाव भंगिमा नहीं बदली । 

[Image: AVvXsEiZptpYLcVi8GUh5xOQMHPSZlSKc0atdi7n...5wN=s16000]

इधर सबका ध्यान पहले वाले आदमों पर चला गया जो कल रात को रीमा को दूढ़ने  निकले थे वे  आदम वापस आ गये, वो कंबल नहीं ला पाये और फल चुराने के लिए रीमा को ज़िम्मेदार बताया । ये जानकार बूढ़ा आदम क्रोधित हो गया । 
बूढ़ा आदम - तुमने देवी साधना में विघ्न डाला है तुम्हें मृत्यु ही मिलेगी । पकड़ लो इस मादा को । 
रीमा गिड़गिड़ायी - मैंने जानबूझकर नहीं किया, मुझे बहुत भूख लगी थी, नहीं खाती तो भूख से मर जाती ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु ही तो मुक्ति है उससे क्यों भयभीत हो । 
रीमा - मैं कुछ भी करने को तैयार हो लेकिन मुझे मारो मत ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु से इतना भय, हमारी जिस देवी साधना को भंग किया है पता है हम वो साधना क्यों करते है, क्या चाहिए हमे, 
मृत्यु चाहिए, ले चलो इसे, हमारी मुक्ति के राह में आने वाले हर किसी को मृत्यु ही मिलेगी । 
रीमा - मैंने कुछ भी जानभूझ कर नहीं किया है मुझे मत मारो, तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ ।
बूढ़ा आदम पलटा - जो भी मैं कहूँगा करोगी । 
रीमा - हाँ हाँ करूँगी , बस मुझे मारना मत ।
बूढ़ा आदम - तो ठीक है ख़ुद को देवी को समर्पित कर दो । 
रीमा - हाँ जो कहोगे कर दूँगी बस मेरी जान बख्श दो । 
बूढ़ा आदम - अपनी बात से पीछे मत हटाना । 
रीमा - नहीं हटूँगी ।
बूढ़ा आदम - पानी से बाहर आ जावो, हमारा प्रवेश वर्जित है इसमें । 
रीमा - नहीं तुम लोग मुझे मार दोगे । 
बूढ़ा आदम - मर्ज़ी तुमारी, ये सब तुमारी भाषा नहीं समझते, पानी से बाहर आवों नहीं तो ये वैसे भी तुम्हें मार देगें । 
रीमा धीरे से आगे की तरफ़ बढ़ी, लेकिन इतनी देर में पहली बार उसे स्त्री लज्जा का अहसास हुआ, वो तो पूरी तरह नंगी है, अभी तक तो नदी ने उसके गुलाबी जिस्म पर आवरण डाल रखा था लेकिन पानी से निकलते ही वो तो सबके सामने नंगी हो जाएगी । 
रीमा - मुझे कपड़े चाहिए, मैं इतने लोगो के सामने नंग्न, मुझे लाज आती है ।
बूढ़े आदम ने इशारा किया और एक आदम दो बड़े बड़े पत्ते तोड़ लाया । जंगल में यही वस्त्र है लपेट लो । 
आदम पानी में जा नहीं सकते थे इसलिए रीमा को ही बाहर आना पड़ा, लेकिन वो दुविधा में थी, कैसे पानी के बाहर निकले, इतनी निगाहे और सब की सब उसी के गुलाबी बदन पर चिपकी हुई। नदी के लहरों में ख़ुद को बड़ी मुश्किल से संतुलित करते हुए उसने अपने दोनों हाथो से उन्नत गुलाबी उरोजों की नुकीली पहाड़ियाँ बमुश्किल  ढकी और और आगे बढ़ने लगी । पहली बार वो मन ही मन अपने बड़े बड़े उन्नत स्तनों के छोटे होने की तमन्ना कर रही थी । जिन बड़े बड़े मम्मो पर हो फूली नहीं समाती थी, जिनके कारण उसके आस पास ही औरते  उससे जलन खाती थी आज वो सोच रही थी काश ये छोटे होते तो शायद इनको ढकने को एक हाथ ही काफ़ी था ।  रीमा का मादक मांसल जिस्म शमशान में भी लोगों के तम्मनाये जगा दे थे ऐसे हुस्न की मल्लिका थी /

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पानी में चलते हुए धीरे धीरे उसके कदम आगे बढ़ रहे थे और उसका गुलाबी बदन पानी के नीले आवरण को छोड़ नुमाया होने लगा था, जैसे कभी लहर के कारण उसके कदम लड़खड़ाते और वो ख़ुद को संतुलित करती उसके हाथ हिल जाते और उसका ख़ज़ाने की एक झलक आदमों को मिल जाती और वो बस उसे देखे जा रहे थे और देखे जा रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे आँखो से ही चोद डालेंगें । नदी से बाहर निकलने तक के चार कदम भी  सीधा पहाड़ चढ़ना जैसे लग रहे थे । रीमा ने धीरे से एक हाथ से दोनों उरोजो की नुकीली चोटियों को ढका और हाथ को कसकर छाती पर चिपका लिया । 

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दूसरे हाथ को झट से अपने गुलाबी त्रिकोण पर लगा लिया । अब रीमा नंगी भी लेकिन उसके नंगे चुतड़ो के अलावा कुछ भी देख पाना मुश्किल था । हालाँकि जब औरत आपके सामने इस हद तक नंगी हो तो कल्पना करने को बहुत कम रह जाता है । रीमा झेपती  शर्माती और सहमी सी आगे बढ़ी । उसका दिल जोरो से धड़क रहा था न जाने क्या होगा लेकिन कम से कम इतने सारे में लोगो में एक बूढ़ा था जिसकी नियत सही थी । पानी से बाहर आते आते रीमा के जिस्म का हर गुलाबी अंग नुमाया हो चुका था । एक भावहीन आदम ने रीमा को दो पत्ते आगे बढ़ा दिया ।

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रीमा ने पत्ते लेने के लिए एक हाथ आगे बढ़ाया और जिस गुलाबी त्रिकोण की सिर्फ़ झलक मिल रही थी अब वो असल रूप में प्रकट था । आधे से ज़्यादा आदम की नजरे उसके जाँघो के गुलाबी चूत त्रिकोण पर ही टिकी थी 
वो त्रिकोण जिसे हर सामान्य युवा मानव देखने और भोगने को आतुर है, जबकि उसका जन्म ही यही ये होता है । आदमी का चूत त्रिकोण का आकर्षण असल में उसके अस्तित्व से जुड़ा है इसलिए ये कभी ख़त्म नहीं हो सकता । 


 रीमा अपने स्त्री लज्जा बोध को दिखाती पत्ते लपेट रही थी जो उसके भारी नितंबों पर नाकाफ़ी थी लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं था । उन आदमों में वासना का भाव जाग्रत हो रहा था ये  बात उस बूढ़े के लिए संतोषजनक और चिंतित करने दोनों तरफ़ से थी । इसकी दुविधा उसके चेहरे पर देखी जा सकती है ।   तभी एक आदम ने बढ़कर रीमा के बाये स्तन को मसल दिया, रीमा ने पत्ते छोड़ उसे मुक्का रसीद कर दिया और उसका भाला छीन लिया, इतना देखते ही बाक़ी आदम भी आक्रामक हो गये । रीमा ने झट से बूढ़े आदम की गर्दन पर भाला रख दिया । 

बूढ़ा आदम घूमा - ये क्या मूर्खता है, मृत्यु का भय नहीं ।
रीमा - अगर जरा भी हिले तो भाला गर्दन के पार होगा । 
बूढ़ा आदम ज़ोर से हँसा - हा हा हा मृत्यु , मृत्यु का भय दिखा रही हो वो भी हमको । 
रीमा को कुछ समझ न आया ये हंस क्यों रहा, पत्ते पता नहीं कहाँ गये , पूरा बदन नंगा, उसने एक बूढ़े आदमी पर भाला तान रखा है और उसके चारो ओर २० लोगो ने तीर से उस पर निशाना साध रखा । एक आदम आगे बढ़ा तो रीमा ने भाले पर ज़ोर बढ़ा दिया । 
बूढ़े आदम को अपने गले में दर्द का अहसास हुआ और एक बूँद रक्त की निकल आयी । ये कैसे संभव है, मैं तो रक्तहीन हूँ, त्वचा की संवेदना न्यून है फिर मुझे भाले की नोक से दर्द का अहसास हुआ और रक्त भी निकला । कुछ ठीक नहीं है, कुछ तो है जो मैं सुलझा नहीं पा रहा हूँ ।
बूढ़ा आदम अपनी मूल भाषा में - ठहरो ।
सभी अपनी अपनी जगह ठिठक गये । फिर उसने सबको पीछे हटने को कहा, एक बार में न सुनने पर वो दूसरी बार चिल्लाया । उसने रीमा को घूर कर देखा - कौन हो तुम ।
रीमा को लगा ये दांव काम कर गया - वो पानी की तरफ़ बढ़ने लगी, उसे पता ही नहीं था की वो २० आदमों के सामने सिर से लेकर पैर तक नंगी है । उसी के साथ साथ उसने बूढ़े को धमकाया - मेरे साथ साथ चलो वरना बुरा होगा । 
बूढ़ा आदम - तुम जैसा कहोगी वैसा ही करूँगा लेकिन मेरे प्रश्न का उत्तर दो , कौन हो तुम ।
रीमा - नदी के पानी में पहुँच गई, बूढ़ा भी बिना अपने शरीर की जलन की परवाह किए बिना उसके साथ नदी में चलता चला गया । पानी के संपर्क में आते ही उसको भयंकर पीड़ा होने लगी। उसको पीड़ा देख एक बार को रीमा का कलेजा काँप गया लेकिन करती भी क्या । 
रीमा - इनसे कहो हथियार फेंक दे । 
बूढ़ा आदम ने अपने लोगो से हथियार फेंकने को कह दिया - वे कर्तव्य विमूढ़ से उसके आदेश का पालन करने को विवश थे । 
बूढ़ा आदम - कौन हो तुम देवी ।
रीमा को अजीब लगा - ये मेरे को देवी क्यों कह रहा है, रीमा को लगा यही सही मौक़ा है बूढ़ा पानी के कारण जलन से मरा जा रहा है, उसने बूढ़े को लात मारी और भाला फेंक पानी में डुबकी लगा दी । बूढ़ा सर से पैर तक जलन का ताबूत बन गया लेकिन वो उसी पानी में खड़ा हुआ और उसने अपने कमर में बंधी एक बांस की छोटी नली निकाली और रीमा जिस पानी की धारा में लुप्त हुई थी उसी को गौर से देखता रहा और फिर उसने निशाना साध कर फूंक मारी । पानी के अंदर बहाव के साथ आगे को जाती रीमा की गर्दन में एक सुई जैसा चुभने का अहसास हुआ और इधर बूढ़ा धड़ाम से पानी में ही गिर पड़ा । उसके साथ के आदम बूढ़े को निकालने के लिए पानी में कूद पड़े, शरीर उनका भी जलता था लेकिन और करते भी क्या । बूढ़े को जैसे ही वो पानी से बाहर निकालने लगे वो कुछ बुदबुदाया और बाक़ी आदम आगे नदी की धारा की तरफ़ बढ़े । कुछ ही देर में उन्हें रीमा का पता चल गया और वो उसी का निशाना लगाकर उसको पानी से खींच कर बाहर ले आये । 
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रीमा अर्ध मूर्छित अवस्था में थी और पानी से बाहर आते ही पूरी तरह बेहोश हो गई । उसके हाथ पाँव बांधकर उसको एक लकड़ी में लटकाकर आदम अपनी गुफा की और चल पड़े । शायद रीमा का अंत अब निकट आ गया था । पानी से विचलित बाक़ी आदम भी जैसे तैसे पीछे पीछे चलने लगे । 
बूढ़े आदम ने सबको सख़्त हिदायत दी की पूजा से पहले उस स्त्री के पास कोई नहीं जाएगा ।
तीन दिन की बेहोशी के बाद रीमा ने अपने आप को एक गुफा में पाया, उसके पैर और हाथ दोनों लताओ से बंधे थे । 

इधर रोहित सिक्युरिटी और वन विभाग शिकारी कुत्तो के साथ नदी के दूसरी तरफ़ की ख़ाक छानने लगे । तीन दिन खोजने के बाद रीमा का कंबल नदी के एक किनारे पर मिला । उस आदमी ने अपने कंबल को तुरंत पहचान लिया । अब रोहित की आँखों तले  अंधेरा छाने लगा । इधर जंगल घूमते घूमते रोहित को नदी के दूसरी तरफ़ के सारे किसे भी सुनने को मिल गया थे इसलिए उधर जाने की तो कोई उम्मीद भी न थी । रोहित पूरी तरह टूट चुका था उसने अब माँ लिया था की रीमा शायद अब जीवित नहीं रही । वो शायद अब कभी नहीं लौटेगी। बस उसका रोना ही बाक़ी था । किसी तरह ख़ुद को सँभाले टूटे दिल के साथ वापस घर की ओर चल दिया । 
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RE: रीमा की दबी वासना - by vijayveg - 08-11-2024, 09:49 PM



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