08-11-2024, 09:48 PM
जैसे तैसे सुबह हुई और वो सारे पूरे जंगल में फैल गये, उनमे से कुछ नदी के किनारे पर भी पहुँच गये । ये लोग किसी कारण से नदी नहीं पार करते थे शायद इनकी कोई प्राचीन श्राप या मजबूरी थी की नदी में घुसते ही इनका शरीर में भीषण जलन होने लगती थी । यही कारण था जब अंग्रज़ो के शासन में ब्रिटिश को ये पता चला तो उन्होंने इसे रिज़र्व एरिया बनाकर वहाँ किसी के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था । आज़ादी के बाद भी सरकार इसी नियम का पालन करती रही । न इधर से किसी को जाने की अनुमति थी और न ही उधर से वो नदी पार कर क़स्बे की तरफ़ वाले जंगल में आते थे। वो रात भर जंगल में छान बीन करते रहे और सुबह होते होते वो नदी के किनारे बैठकर इंतज़ार करने लगे शायद कोई जंगली जानवर पानी पीने के बहाने आये, तो उसको पकड़कर वो उसे बूढ़े आदम को सौंप दे । इधर रीमा सूरज चढ़ने के बाद तक सोती रही , चिड़ियों का शोर और नदी की कल कल आवाज़ जब उसके कानों को चीरने लगी तब जाकर उसकी आँख खुली, जब आँख खुली तो ख़ुद को उसने पत्तो के बिस्तर पर पाया और चारों तरफ़ से झाड़ियों का घना आवरण जीवजंतुओ से उसको प्राकृतिक सुरक्षा दे रहा था ।
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रीमा जब सोई थी तो कंबल लपेट कर सोई थी लेकिन जब जागी तो कंबल का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था । अपने मांसल गुलाबी बदन को निहारने लगी, इस जंगल की घनघोर कठोरता ने भी उसके जिस्म की कोमलता का कुछ नहीं बिगाड़ पाया । उसका बदन वैसा ही कमसीन गुलाबी, बड़े बड़े उरोज जो ख़ुद अपने वजन से नीचे तक तने हुए थे । उसके त्रिकोण घाटी में जमी हल्की घास साफ़ दिख रही थी । घर पर होती तो अब तक सारी घास फूस झाड़ी साफ़ करके घाटी को बिलकुल संगमरमर पत्थर की तरह चिकना कर दिया होता और फिर उस घाटी के दर्शन ख़ुद ही शीशे में करके खुश हो रही होती ।
काफ़ी देर इसी सोच में पड़ी अपने चारो तरफ़ के हालतों से निश्चिंत अपनी पुरानी ज़िंदगी को याद करती रही। फिर सोचते सोचते उसको अपनी हक़ीक़त का अहसास हुआ और तेज़ी उसने कंबल लपेटा और धीरे धीरे अपने सोने वाले स्थान से बाहर आई, न कोई जानवर था और इंसान का होना तो वहाँ संभव ही नहीं था। हवा तेज चल रही थी जिससे एक बार को उसके शरीर पर पड़ा कंबल उड़कर अलग जा गिरने को हुआ लेकिन जैसे तैसे रीमा ने उसे पकड़ लिया लेकिन इस चक्कर में उसके गुलाबी बदन की पूरी नुमाइश हो गई ।
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नदी में दुबकी लगाकर रीमा नदी के दूसरे किनारे की तरफ़ जा ही रही थी की एकदम से कुछ देखकर सहम गई , उसके कदम पीछे की तरफ़ लौटने लगे। सहमी सी रीमा नदी ने इधर उधर तैरती विचरण करती रीमा अपने छोर पर वापस आ गई। थोड़ी ही देर में उन आदमों की नज़र पड़ भी उन पर पड़ गयी । उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करे । रीमा अपने ही डर से डरी सहमी, आगे क्या करना है कैसे करना है, इन्ही में उलझी हुई थी। उनमे से कुछ आदम नदी पार कर उसे पकड़ना चाहते थे लेकिन बाक़ी ने उन्हें परंपरा का हवाला देकर रोका ।
वो उसी किनारे से झाड़ियो में बैठकर उस पर नज़र रखने लगे - मानव स्त्री । अति सुंदर, इसका मांस बहुत नरम होगा एक बोला ।
दूसरे ने दुत्कार - ह्यूउउउ ।
एक बोला - गरम रक्त सीधे देवी माँ को चढ़ाऊँगा ।
पहला बोला - माँ स्त्री का रक्त स्वीकार न करेगी ।
एक और बोला - मैं इसका मांस अपने दांतों से नोचूँगा ।
एक बोला - मैं तो इसकी हड्डियां का चूरन अपने शरीर पर लगाऊँगा ।
रीमा अपने सोने की जगह आयो, ख़ुद को डर के मारे कंबल में छिपा लिया। सूरज सीधे आसमान में था, दोपहर होने को थी अभी रीमा को भूख लग रही थी, उसने सूरज की बढ़ती गर्मी से से बचने के लिए कंबल को हटा दिया और कमर में लपेट लिया । ख़ुद को ज़्यादा सुरक्षित करने के रीमा हलके से उठी और ऊपर से नग्न अपने सुडौल उन्नत गोरे स्तनों को उछालती हुई अंदर की तरफ़ झाड़ियों में गुम हो गई । सारे आदम उस पर कड़ी निगाह बनाये हुए थे । रीमा जब निश्चिंत हो गई की वो नदी पार करके इधर नहीं आ रहे तो हिम्मत जुटाकर कुछ देर बाद झाड़ी हटाकर रीमा बाहर निकली । उसके हाथ में एक डलियाँ थी, एक आदम चिल्लाया - ह्युआउउउउउउउ ।
दूसरे ने उसके मुँह पर हाथ रखा - चुप बेवक़ूफ़ ।
रीमा उद्दासी और चिंता दोनों से घिरी हुई थी लेकिन पेट की भूख का क्या करे । वो डरी हुई तो थी लेकिन अगर कुछ नहीं खाएगी तो भी तो मर जाएगी और खाने का जुगाड़ करने के चक्कर में भी मारी जा सकती है । मौत का ख़तरा दोनों तरफ़ से था । फिर भी नदी के दूसरे छोर पर मौजूद ख़तरे से अनभिज्ञ वो नदी के छिछले हिस्से से नदी दो पार करने लगी । लेकिन कंबल तो उसने किनारे पर छोड़ दिया ताकि भीगे ना । वो पानी में बस कमर तक घुसी ही थी, उसका पानी की शीतलता से कुछ देर के लिए मन भटक गया । नदी के साथ वो भी नदी बन कर बहने लगी ।
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कभी डुबकी लगाती , कभी तैरती और कभी ख़ुद के जिस्म को निहारती, सारी चिंता कुछ देर के लिए हिरण हो गई । वो भूल गई की वो कहाँ है किस हाल में । प्रकृति के बीच बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में उसका वो जल क्रीड़ा का स्वाँग, ऐसे दृश्यों के लिए देवता भी तरसते है । कहते है प्रकृति और स्त्री बहुत क़रीब है, जब भी स्त्री प्रकृति के क़रीब होती है तो वो और भी स्वछंद हो जाती है । लेकिन ये क्रीड़ा कार्यक्रम ज़्यादा नहीं चला । उसकी भूख ने उसको यथार्थ में लौटाया । फिर से वही मायूसी भय चिंता और शोक मन में भर गया । भारी मन से बाहर निकली और दुबारा नदी में घुसने से पहले उसने कंबल टोकरी में रखकर सिर पर बांध लिया था ताकि भीगने न पाये ।
जिसे तैसे उनसे नदी पार करी, गुलाबी बदन, पानी में भीगा हुआ और उस पर पड़ती सूरज की तेज रोशनी, रीमा के बदन पर उभरी पानी की बुंदों को सितारों की तरह चमका रही थी । लेकिन जब जीवन मरण का प्रश्न हो तो सौंदर्य और काम वासना के विचार मन में आते ही कहाँ है । उसने नदी से निकलते ही टोकरी से कंबल निकालकर अपने नग्न कटि भाग पर लपेट लिया, वरना अगर इस अवस्था में उसे मनुष्य तो छोड़ो अगर कोई जीव भी जंगल में देख लेता तो तुरंत काम ग्रसित हो जाता ।स्त्री का सौंदर्य है ही ऐसी चीज ऊपर से कोई सफ़ेद गुलाबी बदन लिए, उन्नत छाती, भारी नितंब और कटाव लिए शरीर की मल्लिका हो तो कहना ही क्या । रीमा सतर्क कदमों से आगे की तरफ़ बढ़ी तभी उसे कुछ दूर पर कुछ आहट हुई, उसके कान सतर्क हो गये, उसके कदम ठिठक गये । उसे लगा कोई जानवर है, उसने जैसे ही उधर नज़र घुमायी एक आदम तेज़ी से उछल कर झाड़ी से बाहर आ गया । असल में वो कुछ जल्दी ही जोश में बाहर आ गया । दूसरे आदम ने माथा पीट लिया ।
उसकी शक्ल सूरत देख रीमा का खून सुख गया, उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया, वो ज़ोर से चीखी जिससे नदी के किनारे का जंगल गूंज उठा । वो आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ लपका, रीमा का डर हिम्मत में बदल गया, उसने तेज़ी से हाथ में पकड़ी डलिया आदम की तरफ़ फेंकी और उल्टा नदी की तरफ़ भागी । आदम ने भागती रीमा पर भाले का निशाना साधा और फेंका । रीमा की क़िस्मत अच्छी थी की उसका दाहिना पैर रेत पर फिसला और वो दाहिनी तरफ़ को गिरते गिरते बची । भाला रीमा के बायें हाथ के ऊपरी हिस्से में कंधे के नीचे एक हल्की खरोंच बनाता हुआ रेत में जा धँसा । रीमा ज़ोर से चीखी और तेज़ी से नदी में छलांग लगा दी । बाक़ी आदम भी तेज़ी से बाहर निकल आये और अपने धनुष से रीमा का निशाना साधने लगे । सारे तीर पानी में गप गप करके घुस गये । कुछ देर बाद रीमा नदी के बहाव के साथ कुछ आगे बहती हुई दिखायी दी । लेकिन वो रीमा नहीं थी उसका सिर्फ़ कंबल था, मतलब रीमा ने उन आदमों को बेवकूफ बनाने के लिए वो कंबल अपने बदन से खोल दिया था । रीमा की हिम्मत और उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी । इतनी भयंकर स्थिति में तो बड़े बड़े लड़ाके विवेक शून्य हो जाते है । रीमा कंबल खोल कर बिलकुल नंग्न हो गई थी उसके लिए पानी का प्रतिरोध करना आसान हो गया था, वो पानी के बहाव के विपरीत दिशा में पानी के अंदर के तैरने लगी । ये तो अच्छा हो की कॉलेज के दिनों में उसने तैराकी का एक कोर्स कर लिया था जो उसकी जान बचाने के काम आ रहा था ।
![[Image: AVvXsEgO2VhA5XGeEuo7Dtu-GhMHoJ0qMo8A3-rR...Auw=s16000]](https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgO2VhA5XGeEuo7Dtu-GhMHoJ0qMo8A3-rR4HsECohwq9CnGz7hvmz6Wno-7yqaxaYawapA011a3gl4hBpH4MGYP1idl7clkGJTvoclR2aoxbl4BPtpmR8itZ6N3u14bP0KDOBCKtUlVSJywixef1a5j8txYEjqqFufNxJ0LKWEEY2_T2nfAXrq6iWlMAuw=s16000)
आदमों ने जैसे है कंबल देखा उन्होंने तेज़ी से उस पर तीर चला दिया और तेज़ी से उसी तरफ़ भागने लगे । पानी के बहाव के साथ कंबल भी तेज़ी से आगे जा रहा था । आदम भी तेज़ी से भागने लगे । एक आदम का पैर नदी के पानी को छू गया उसके पैर में तेज जलन होने लगी वो वही रुक गया ये देख बाक़ी आदम पानी से दूरी बनाकर भागने लगे । कंबल के सहारे भागते भागते काफ़ी आगे निकल गये, एक आदम वही अपने पैर को पकड़ कर तड़पता रहा, फिर उठकर तेज़ी से जंगल की तरफ़ भागा । पता नहीं कौन सी बनावट थी इन आदमों की जो ये नदी के पानी के संपर्क में आते ही इनका शरीर जलन से बुरी तरह तड़प उठता था फिर उन्हें कई दिनों तक एक लेप लगाकर मिटी में दबे रहना पड़ता था । इधर रीमा अपनी जान बचाने को हाथ पाँव चला रही थी वो पानी के बहाव की ख़िलाफ़ किधर जा रही है इसका कोई पता पता नहीं था, कभी इधर पलट रही कभी उधर पलट रही, कभी इधर को हाथ पाँव मारती कभी उधर को, लेकिन किसी तरह से हाथ पाँव चलाती हुई एक किनारे पर पहुँची ।
![[Image: AVvXsEgH4J-uj2bEiLO2QzSeRn8_rx0nkP4r1xDD...f5F=s16000]](https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgH4J-uj2bEiLO2QzSeRn8_rx0nkP4r1xDDw9Gv-Hl1PA33Lt7AIKaLRQTe90OACN8Qn9Ca6TVofXcNuMNP-6UQp8vVPsSIvTDIqiy33rQdLaWBZy2mxJtH1iBU1gbjTPbJwqXGV5woYCpKmrCSwdVCk2yTXJNuamU3ga0FEAfLlX7jfZ9JPbeKb-AIPf5F=s16000)
उसकी साँसे तेज चल रही थी कुछ पानी मुँह में भी चला गया था और एक दो जगह वो पत्थर से टकरा भी गई लेकिन वो जानलेवा नहीं थी । उसके साथ में लगी खंरोच से खून के लालिमा झलकने लगी थी । पानी से भीगी पूरी तरह से नंगी रीमा ने हाँफती साँसो से सर घुमाकर दोनों तरफ़ देखा और रेत में सर रखकर अपनी साँसे क़ाबू करने लगी । उसको रोना आ रहा था लेकिन रो नहीं सकती थी । कुछ देर बाद धीरे से उठकर एक पेड़ के नीचे पड़े पत्थर से ओट लगाकर बैठ गई । समझ नहीं आ रहा था क्या करे, किस मुसीबत से निकलती है किस मुसीबत में फँस जाती है ।
इधर वो आदम कंबल का पीछा करते करते काफ़ी दूर तक नदी के किनारे आगे निकल गये लेकिन कोई भी नदी में घुसकर उस कंबल को निकाल कर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । इधर जब दूसरा आदम पानी की जलन से तड़पता हुआ उस बूढ़े आदम के पास पहुँचा तो वो और ज़्यादा क्रोधित हो हो गया । उसे उसकी मूर्खता पर बहुत क्रोध आ रहा था लेकिन धीरे धीरे उसने सारी कहानी सुना दी । बूढ़ा आदम ने अपना भाला और दंड उठाया और नदी के किनारे को चल दिया । उसके साथ कबीले के २० और आदम हो लिए ।
जब वो किनारे पर पहुँचा तो रीमा हालतों से थक कर उसकी पत्थर के टेक लेकर हल्की नीद में सोयी हुई थी । सारे आदम भौचक थे, एक घनघोर जंगल, जहां आदमखोरों के आतंक की कहानियाँ मशहूर थी वहाँ एक मादा मनुष्य, वो भी पूरी तरह निवस्त्र, किसी को इन हालतों में नीद कैसे आ सकती है । इससे पहले वो बूढ़ा आदम रीमा की तरफ़ बढ़ता, उनके साथ आये आदम हुहूहूहुहुहूह करने लगे ।
रीमा की नीद टूट गई । उसने अपने से कुछ दूरी पर आदमों की भीड़ देखी ।
रीमा चिल्लायी - आदमखोर और इतना कहकर तेज़ी से पानी में कूद गई । उसके पीछे एक आदम तेज़ी से लपका लेकिन पानी में पहला पैर पड़ते ही वो जलन की गहरी पीड़ा से दोहरा होकर पीछे हट गया । रीमा ने देखा उसके पीछे जो आदम भागा था वो अपना पैर पकड़कर दर्द से कराह रहा है । उसने पीछे हटने को पानी में तेज़ी से छपाक मारी तो नदी के किनारे खड़े सारे आदम पीछे हट गये । और तेज़ी से रीमा पर तीर तान दिये ।रीमा को सामने मौत नज़र आ गई, डर आया और फिर हिम्मत भी, रीमा समझ गई ये पानी में नहीं घुस सकते है । अब रीमा की जान में जान आयी हालाँकि उनकी भयानक शक्लें देख अभी भी रीमा डर से काँप रही थी, उनसे दूर जाना चाहती थी लेकिन उसकी तरफ़ कुछ ने तीर ने निशाना साध रखा। रीमा समझ गई अब सब ख़त्म । ये मुझे मार देगें और फिर मेरा मांस भून कर खा जाएँगें । हाय मैं ऐसी मौत मरूँगी ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था । रीमा के शरीर पर कपड़े का कोई निशान नहीं था ख़ुद को गले तक पानी में डुबोए वो २० आदमखोर जानवरो से अपनी ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद में थी ।
![[Image: AVvXsEhRBxXQ8vgc2_Bz4oyn312qIZFA0j-tH4Q1...YZZ=s16000]](https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhRBxXQ8vgc2_Bz4oyn312qIZFA0j-tH4Q1t_RW4z7Y5O4tAwCbkqYmcpfNo0YW8yGK9cV3H_cfoCGVffHWpC7XZ7nE3eqoEOuDGWQB3xsXy-IPQDVvyIIa1Hx5GLuTJBtl2gKseNIulLpCkybKLbgsP8-d2yMqjMH-wPSGZu4bvqwOxPsXvuTYWJDj9YZZ=s16000)
कौन सी दुनिया में आ गई थी, क्या वो सच में पृथ्वी पर ही है, न यहाँ बिजली है न मोबाइल आई टीवी । बस जंगल है और ये, ये कौन लोग है, लगते तो इंसान जैसे है लेकिन ये है कौन और मेरे को क्यों मारना चाहते है ।
रीमा जब सोई थी तो कंबल लपेट कर सोई थी लेकिन जब जागी तो कंबल का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था । अपने मांसल गुलाबी बदन को निहारने लगी, इस जंगल की घनघोर कठोरता ने भी उसके जिस्म की कोमलता का कुछ नहीं बिगाड़ पाया । उसका बदन वैसा ही कमसीन गुलाबी, बड़े बड़े उरोज जो ख़ुद अपने वजन से नीचे तक तने हुए थे । उसके त्रिकोण घाटी में जमी हल्की घास साफ़ दिख रही थी । घर पर होती तो अब तक सारी घास फूस झाड़ी साफ़ करके घाटी को बिलकुल संगमरमर पत्थर की तरह चिकना कर दिया होता और फिर उस घाटी के दर्शन ख़ुद ही शीशे में करके खुश हो रही होती ।
काफ़ी देर इसी सोच में पड़ी अपने चारो तरफ़ के हालतों से निश्चिंत अपनी पुरानी ज़िंदगी को याद करती रही। फिर सोचते सोचते उसको अपनी हक़ीक़त का अहसास हुआ और तेज़ी उसने कंबल लपेटा और धीरे धीरे अपने सोने वाले स्थान से बाहर आई, न कोई जानवर था और इंसान का होना तो वहाँ संभव ही नहीं था। हवा तेज चल रही थी जिससे एक बार को उसके शरीर पर पड़ा कंबल उड़कर अलग जा गिरने को हुआ लेकिन जैसे तैसे रीमा ने उसे पकड़ लिया लेकिन इस चक्कर में उसके गुलाबी बदन की पूरी नुमाइश हो गई ।
नदी में दुबकी लगाकर रीमा नदी के दूसरे किनारे की तरफ़ जा ही रही थी की एकदम से कुछ देखकर सहम गई , उसके कदम पीछे की तरफ़ लौटने लगे। सहमी सी रीमा नदी ने इधर उधर तैरती विचरण करती रीमा अपने छोर पर वापस आ गई। थोड़ी ही देर में उन आदमों की नज़र पड़ भी उन पर पड़ गयी । उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करे । रीमा अपने ही डर से डरी सहमी, आगे क्या करना है कैसे करना है, इन्ही में उलझी हुई थी। उनमे से कुछ आदम नदी पार कर उसे पकड़ना चाहते थे लेकिन बाक़ी ने उन्हें परंपरा का हवाला देकर रोका ।
वो उसी किनारे से झाड़ियो में बैठकर उस पर नज़र रखने लगे - मानव स्त्री । अति सुंदर, इसका मांस बहुत नरम होगा एक बोला ।
दूसरे ने दुत्कार - ह्यूउउउ ।
एक बोला - गरम रक्त सीधे देवी माँ को चढ़ाऊँगा ।
पहला बोला - माँ स्त्री का रक्त स्वीकार न करेगी ।
एक और बोला - मैं इसका मांस अपने दांतों से नोचूँगा ।
एक बोला - मैं तो इसकी हड्डियां का चूरन अपने शरीर पर लगाऊँगा ।
रीमा अपने सोने की जगह आयो, ख़ुद को डर के मारे कंबल में छिपा लिया। सूरज सीधे आसमान में था, दोपहर होने को थी अभी रीमा को भूख लग रही थी, उसने सूरज की बढ़ती गर्मी से से बचने के लिए कंबल को हटा दिया और कमर में लपेट लिया । ख़ुद को ज़्यादा सुरक्षित करने के रीमा हलके से उठी और ऊपर से नग्न अपने सुडौल उन्नत गोरे स्तनों को उछालती हुई अंदर की तरफ़ झाड़ियों में गुम हो गई । सारे आदम उस पर कड़ी निगाह बनाये हुए थे । रीमा जब निश्चिंत हो गई की वो नदी पार करके इधर नहीं आ रहे तो हिम्मत जुटाकर कुछ देर बाद झाड़ी हटाकर रीमा बाहर निकली । उसके हाथ में एक डलियाँ थी, एक आदम चिल्लाया - ह्युआउउउउउउउ ।
दूसरे ने उसके मुँह पर हाथ रखा - चुप बेवक़ूफ़ ।
रीमा उद्दासी और चिंता दोनों से घिरी हुई थी लेकिन पेट की भूख का क्या करे । वो डरी हुई तो थी लेकिन अगर कुछ नहीं खाएगी तो भी तो मर जाएगी और खाने का जुगाड़ करने के चक्कर में भी मारी जा सकती है । मौत का ख़तरा दोनों तरफ़ से था । फिर भी नदी के दूसरे छोर पर मौजूद ख़तरे से अनभिज्ञ वो नदी के छिछले हिस्से से नदी दो पार करने लगी । लेकिन कंबल तो उसने किनारे पर छोड़ दिया ताकि भीगे ना । वो पानी में बस कमर तक घुसी ही थी, उसका पानी की शीतलता से कुछ देर के लिए मन भटक गया । नदी के साथ वो भी नदी बन कर बहने लगी ।
कभी डुबकी लगाती , कभी तैरती और कभी ख़ुद के जिस्म को निहारती, सारी चिंता कुछ देर के लिए हिरण हो गई । वो भूल गई की वो कहाँ है किस हाल में । प्रकृति के बीच बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में उसका वो जल क्रीड़ा का स्वाँग, ऐसे दृश्यों के लिए देवता भी तरसते है । कहते है प्रकृति और स्त्री बहुत क़रीब है, जब भी स्त्री प्रकृति के क़रीब होती है तो वो और भी स्वछंद हो जाती है । लेकिन ये क्रीड़ा कार्यक्रम ज़्यादा नहीं चला । उसकी भूख ने उसको यथार्थ में लौटाया । फिर से वही मायूसी भय चिंता और शोक मन में भर गया । भारी मन से बाहर निकली और दुबारा नदी में घुसने से पहले उसने कंबल टोकरी में रखकर सिर पर बांध लिया था ताकि भीगने न पाये ।
जिसे तैसे उनसे नदी पार करी, गुलाबी बदन, पानी में भीगा हुआ और उस पर पड़ती सूरज की तेज रोशनी, रीमा के बदन पर उभरी पानी की बुंदों को सितारों की तरह चमका रही थी । लेकिन जब जीवन मरण का प्रश्न हो तो सौंदर्य और काम वासना के विचार मन में आते ही कहाँ है । उसने नदी से निकलते ही टोकरी से कंबल निकालकर अपने नग्न कटि भाग पर लपेट लिया, वरना अगर इस अवस्था में उसे मनुष्य तो छोड़ो अगर कोई जीव भी जंगल में देख लेता तो तुरंत काम ग्रसित हो जाता ।स्त्री का सौंदर्य है ही ऐसी चीज ऊपर से कोई सफ़ेद गुलाबी बदन लिए, उन्नत छाती, भारी नितंब और कटाव लिए शरीर की मल्लिका हो तो कहना ही क्या । रीमा सतर्क कदमों से आगे की तरफ़ बढ़ी तभी उसे कुछ दूर पर कुछ आहट हुई, उसके कान सतर्क हो गये, उसके कदम ठिठक गये । उसे लगा कोई जानवर है, उसने जैसे ही उधर नज़र घुमायी एक आदम तेज़ी से उछल कर झाड़ी से बाहर आ गया । असल में वो कुछ जल्दी ही जोश में बाहर आ गया । दूसरे आदम ने माथा पीट लिया ।
उसकी शक्ल सूरत देख रीमा का खून सुख गया, उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया, वो ज़ोर से चीखी जिससे नदी के किनारे का जंगल गूंज उठा । वो आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ लपका, रीमा का डर हिम्मत में बदल गया, उसने तेज़ी से हाथ में पकड़ी डलिया आदम की तरफ़ फेंकी और उल्टा नदी की तरफ़ भागी । आदम ने भागती रीमा पर भाले का निशाना साधा और फेंका । रीमा की क़िस्मत अच्छी थी की उसका दाहिना पैर रेत पर फिसला और वो दाहिनी तरफ़ को गिरते गिरते बची । भाला रीमा के बायें हाथ के ऊपरी हिस्से में कंधे के नीचे एक हल्की खरोंच बनाता हुआ रेत में जा धँसा । रीमा ज़ोर से चीखी और तेज़ी से नदी में छलांग लगा दी । बाक़ी आदम भी तेज़ी से बाहर निकल आये और अपने धनुष से रीमा का निशाना साधने लगे । सारे तीर पानी में गप गप करके घुस गये । कुछ देर बाद रीमा नदी के बहाव के साथ कुछ आगे बहती हुई दिखायी दी । लेकिन वो रीमा नहीं थी उसका सिर्फ़ कंबल था, मतलब रीमा ने उन आदमों को बेवकूफ बनाने के लिए वो कंबल अपने बदन से खोल दिया था । रीमा की हिम्मत और उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी । इतनी भयंकर स्थिति में तो बड़े बड़े लड़ाके विवेक शून्य हो जाते है । रीमा कंबल खोल कर बिलकुल नंग्न हो गई थी उसके लिए पानी का प्रतिरोध करना आसान हो गया था, वो पानी के बहाव के विपरीत दिशा में पानी के अंदर के तैरने लगी । ये तो अच्छा हो की कॉलेज के दिनों में उसने तैराकी का एक कोर्स कर लिया था जो उसकी जान बचाने के काम आ रहा था ।
आदमों ने जैसे है कंबल देखा उन्होंने तेज़ी से उस पर तीर चला दिया और तेज़ी से उसी तरफ़ भागने लगे । पानी के बहाव के साथ कंबल भी तेज़ी से आगे जा रहा था । आदम भी तेज़ी से भागने लगे । एक आदम का पैर नदी के पानी को छू गया उसके पैर में तेज जलन होने लगी वो वही रुक गया ये देख बाक़ी आदम पानी से दूरी बनाकर भागने लगे । कंबल के सहारे भागते भागते काफ़ी आगे निकल गये, एक आदम वही अपने पैर को पकड़ कर तड़पता रहा, फिर उठकर तेज़ी से जंगल की तरफ़ भागा । पता नहीं कौन सी बनावट थी इन आदमों की जो ये नदी के पानी के संपर्क में आते ही इनका शरीर जलन से बुरी तरह तड़प उठता था फिर उन्हें कई दिनों तक एक लेप लगाकर मिटी में दबे रहना पड़ता था । इधर रीमा अपनी जान बचाने को हाथ पाँव चला रही थी वो पानी के बहाव की ख़िलाफ़ किधर जा रही है इसका कोई पता पता नहीं था, कभी इधर पलट रही कभी उधर पलट रही, कभी इधर को हाथ पाँव मारती कभी उधर को, लेकिन किसी तरह से हाथ पाँव चलाती हुई एक किनारे पर पहुँची ।
उसकी साँसे तेज चल रही थी कुछ पानी मुँह में भी चला गया था और एक दो जगह वो पत्थर से टकरा भी गई लेकिन वो जानलेवा नहीं थी । उसके साथ में लगी खंरोच से खून के लालिमा झलकने लगी थी । पानी से भीगी पूरी तरह से नंगी रीमा ने हाँफती साँसो से सर घुमाकर दोनों तरफ़ देखा और रेत में सर रखकर अपनी साँसे क़ाबू करने लगी । उसको रोना आ रहा था लेकिन रो नहीं सकती थी । कुछ देर बाद धीरे से उठकर एक पेड़ के नीचे पड़े पत्थर से ओट लगाकर बैठ गई । समझ नहीं आ रहा था क्या करे, किस मुसीबत से निकलती है किस मुसीबत में फँस जाती है ।
इधर वो आदम कंबल का पीछा करते करते काफ़ी दूर तक नदी के किनारे आगे निकल गये लेकिन कोई भी नदी में घुसकर उस कंबल को निकाल कर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । इधर जब दूसरा आदम पानी की जलन से तड़पता हुआ उस बूढ़े आदम के पास पहुँचा तो वो और ज़्यादा क्रोधित हो हो गया । उसे उसकी मूर्खता पर बहुत क्रोध आ रहा था लेकिन धीरे धीरे उसने सारी कहानी सुना दी । बूढ़ा आदम ने अपना भाला और दंड उठाया और नदी के किनारे को चल दिया । उसके साथ कबीले के २० और आदम हो लिए ।
जब वो किनारे पर पहुँचा तो रीमा हालतों से थक कर उसकी पत्थर के टेक लेकर हल्की नीद में सोयी हुई थी । सारे आदम भौचक थे, एक घनघोर जंगल, जहां आदमखोरों के आतंक की कहानियाँ मशहूर थी वहाँ एक मादा मनुष्य, वो भी पूरी तरह निवस्त्र, किसी को इन हालतों में नीद कैसे आ सकती है । इससे पहले वो बूढ़ा आदम रीमा की तरफ़ बढ़ता, उनके साथ आये आदम हुहूहूहुहुहूह करने लगे ।
रीमा की नीद टूट गई । उसने अपने से कुछ दूरी पर आदमों की भीड़ देखी ।
रीमा चिल्लायी - आदमखोर और इतना कहकर तेज़ी से पानी में कूद गई । उसके पीछे एक आदम तेज़ी से लपका लेकिन पानी में पहला पैर पड़ते ही वो जलन की गहरी पीड़ा से दोहरा होकर पीछे हट गया । रीमा ने देखा उसके पीछे जो आदम भागा था वो अपना पैर पकड़कर दर्द से कराह रहा है । उसने पीछे हटने को पानी में तेज़ी से छपाक मारी तो नदी के किनारे खड़े सारे आदम पीछे हट गये । और तेज़ी से रीमा पर तीर तान दिये ।रीमा को सामने मौत नज़र आ गई, डर आया और फिर हिम्मत भी, रीमा समझ गई ये पानी में नहीं घुस सकते है । अब रीमा की जान में जान आयी हालाँकि उनकी भयानक शक्लें देख अभी भी रीमा डर से काँप रही थी, उनसे दूर जाना चाहती थी लेकिन उसकी तरफ़ कुछ ने तीर ने निशाना साध रखा। रीमा समझ गई अब सब ख़त्म । ये मुझे मार देगें और फिर मेरा मांस भून कर खा जाएँगें । हाय मैं ऐसी मौत मरूँगी ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था । रीमा के शरीर पर कपड़े का कोई निशान नहीं था ख़ुद को गले तक पानी में डुबोए वो २० आदमखोर जानवरो से अपनी ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद में थी ।
कौन सी दुनिया में आ गई थी, क्या वो सच में पृथ्वी पर ही है, न यहाँ बिजली है न मोबाइल आई टीवी । बस जंगल है और ये, ये कौन लोग है, लगते तो इंसान जैसे है लेकिन ये है कौन और मेरे को क्यों मारना चाहते है ।


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