08-11-2024, 09:46 PM
सुदूर प्रदेश की उत्तरी पहाड़ियों के बीच में घाटी थी। जिसको निलय घाटी कहते थे वहाँ से एक नदी निकलती थी, जिसको निलय नदी कहते थे, ये पहाड़ियों से निकल कर निलय घाटी से होते हुए मैदान में आकर डेल्टा बनाती थी । यहाँ नीचे मैदान में आकर नदी दो भागों में बँट जाती थी और फिर २५ किमी चौड़ा और १०० किमी लंबा एक डेल्टा बनाती हुई फिर से जाकर एक हो जाती थी । इसे निलय टापू कहते थे । रीमा जिस शहर में रहती थी उसके उत्तर में स्थित जिला का ५० फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा निलय डेल्टा का हिस्सा था । घना जंगल रिजर्व एरिया, इसीलिए तस्करी और कई आपराधिक गतीवधियो का केंद्र भी रहता था । विराज और सूर्यदेव जैसे माफिया यही के कस्बों के ग़रीब लोगों को पैसे के लालच में फँसा कर उनका भरपूर फ़ायदा उठाते थे । रीमा जिस कस्बे से भाग कर यहाँ फँस गई वो इसी नदी के दक्षिण छोर पर २० किमी दूर पर बंसा था । रीमा जिस अवैध बस्ती में जितेश के साथ फँसी थी वो इसी कस्बे के बाहरी इलाके में थी । लेकिन रीमा के ये सब एक अनजान इलाका था लेकिन ऐसा लगता था जैसे उसे अब किसी चीज का न डर था न चिंता । वो बस जो सामने है उसे जी रही थी ।
यहाँ चारों तरफ़ १०० किमी का घनघोर जंगल है जिसने नदी को भी अपने आग़ोश में ले रखा है । ये पूरा इलाक़ा रिज़र्व है, यहाँ सरकार की तरफ़ से किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है, सरकार भी नदी को पार करके जंगल में दूसरी तरफ़ नहीं जाती और कहते है यहाँ हज़ारो साल पुरानी आदमखोर जनजाति रहती है । इसको रिज़र्व रखने के लिए सरकार ने बड़ा ही कठोर नियम बना रखा है । लोकल लोग सिर्फ़ लकड़ियाँ लेने के लिए जंगल में एक किमी तक आते है लेकिन आज तक किसी ने नदी पार कर टापू पर जाने की हिम्मत नहीं की और अगर कोई गया भी तो वापस न आया । वहाँ रीमा बेख़ौफ़ नंगी बे लिबास घूम रही है , न जंगली जानवरों का डर , न कीड़ो मकौड़ो का, नहीं के किनारे बेख़ौफ़ घूमती, ऐसा लगता जैसे हमेशा से यही रहती हो । नंगा बदन, भीगे बाल कंधे और छाती तक बिखरे हुए, उठी उन्नत गोलाकार मांसल दूध की सफ़ेद और गुलाब की गुलाबी रंगत लिए उसके मांसल उरोज और उन उठी चोटियों का वो भूरा नुकीला शिखर, वही से धनुष सा कटाव लिए उसके पेट और कमर, किसी सपाट मैदान की तरह नज़र आते है । उन्हीं के बीच उसकी सुघड़ नाभि का छेद । उफ़ मुर्दों के लंड खड़े हो जाये ऐसी बनावट । कमर का कटाव नीचे की और चौड़े होते होते रीमा का वो विशेष अंग त्रिकोण घाटी बनाता है जिसके आज की बाहरी दुनिया कई क़द्रदान है और एक झलक पाने को एक दूरसे का क़त्ल करने से भी ना चूँकेगे । गुलाबी त्रिकोण घाटी दो मांस से भारी जाँघो से कदम ताल से जो थिरक पैदा करती थी ऐसा लग रहा हो कोई काम वासना की तरंग छोड़ रहा हो और उससे ये पूरा जंगल वासनामयी हो रहा हो । चाँद की रोशनी पर्याप्त थी और नदी की रेत सफ़ेद तो सब कुछ साफ़ साफ़ दिख रहा था ।
रीमा को अंदाज़ा भी नहीं था की वो कितनी गहरी मुसीबत में फँसने वाली थी । रीमा जब फल चुराकर वापस आयी तो फिर से किसी तरह से नदी पार करके क़स्बे वाले किनारे पर आ गई थी । यहाँ फल खाने के बाद उसने एक सुरक्षित ठिकाना देखा जहां न जंगली जनवरो का डर था न आदमों का। ये जगह ज़मीन से कुछ ऊपर थी चारों तरफ़ से किसी भी जंगली हमले से सुरक्षित, रीमा ने देखा यहाँ वो किसी को भी बाहर से नज़र भी नहीं आएगी । उसने ख़ुद के लिए कुछ पत्ते और टहनियाँ तोड़ी, पत्ते बिछाये और और फिर वो कंबल ओढ़ कर गहरी नीद में चली गई । ऐसा सोई की अगले दिन दोपहर तक नीड ही नहीं खुली, शायद फलो में कोई नशीला फल था या जंगल की इस नई दुनिया के संघर्ष की थकान । अगले दिन जब उठी तो चारों तरफ़ नजर दौड़ायी फिर धीरे से निकल कर नदी की तरफ़ बढ़ गई । पहाड़ियो से उतरते ही न केवल पानी की गति कम हो बल्कि नदी की गहराई भी ज़्यादा नहीं थी इसलिए कुछ जगहो पर इसे आसानी से इधर से उधर पार किया जा सकता था । ऊपर से नीचे तक पानी से भीगी, घनघोर जंगल में एक गुलाबी बदन नंगी हसीना , कोई इंसान देख ले गस खाकर गिर जाये ।
उधर बूढ़ा आदम जब संभावी मुद्रा से अपनी साधना पूर्ण कर वापस लौटा तो उसके सामने के देवी को अर्पित फल ग़ायब थे । उसको क्रोध की सीमा ना रही ।
वो चिल्लाया - हआऊ उउउव्यू उर्युउउउउउउ ।
पलक झपकते ही वहाँ ४ और आदम प्रकट हो गये । वहाँ का दृश्य और बूढ़े आदम का क्रोध देखकर वो सभी भी हाऊ हाऊ हाऊ हाऊ करने लगे ।
बूढ़ा आदम - मुढ़मती पता करो देवी का प्रसाद कहाँ गया ।
सभी अपने भाले और धनुष तीर लेकर इधर उधर निकल गये , वो बूढ़ा क्रोध से फ़नफ़नाता रहा । सबके चेहरे पर तनाव झलक रहा था । सभी जंगल में इधर उधर भटकने लगे लेकिन अंधेरा था इसलिए ज़्यादा कुछ पता नहीं लगा पाये । बूढ़े आदम के क्रोध का कोपभाजन बनने से बचने के लिए वही जंगल में ही ठहर गये और सुबह की प्रतीक्षा करने लगे । उनको डर था अगर ख़ाली हाथ लौटे तो देवी माँ की साधना भंग होने के कारण बूढ़ा आदम उन्हें एक और श्राप ना दे दे ।
यहाँ चारों तरफ़ १०० किमी का घनघोर जंगल है जिसने नदी को भी अपने आग़ोश में ले रखा है । ये पूरा इलाक़ा रिज़र्व है, यहाँ सरकार की तरफ़ से किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है, सरकार भी नदी को पार करके जंगल में दूसरी तरफ़ नहीं जाती और कहते है यहाँ हज़ारो साल पुरानी आदमखोर जनजाति रहती है । इसको रिज़र्व रखने के लिए सरकार ने बड़ा ही कठोर नियम बना रखा है । लोकल लोग सिर्फ़ लकड़ियाँ लेने के लिए जंगल में एक किमी तक आते है लेकिन आज तक किसी ने नदी पार कर टापू पर जाने की हिम्मत नहीं की और अगर कोई गया भी तो वापस न आया । वहाँ रीमा बेख़ौफ़ नंगी बे लिबास घूम रही है , न जंगली जानवरों का डर , न कीड़ो मकौड़ो का, नहीं के किनारे बेख़ौफ़ घूमती, ऐसा लगता जैसे हमेशा से यही रहती हो । नंगा बदन, भीगे बाल कंधे और छाती तक बिखरे हुए, उठी उन्नत गोलाकार मांसल दूध की सफ़ेद और गुलाब की गुलाबी रंगत लिए उसके मांसल उरोज और उन उठी चोटियों का वो भूरा नुकीला शिखर, वही से धनुष सा कटाव लिए उसके पेट और कमर, किसी सपाट मैदान की तरह नज़र आते है । उन्हीं के बीच उसकी सुघड़ नाभि का छेद । उफ़ मुर्दों के लंड खड़े हो जाये ऐसी बनावट । कमर का कटाव नीचे की और चौड़े होते होते रीमा का वो विशेष अंग त्रिकोण घाटी बनाता है जिसके आज की बाहरी दुनिया कई क़द्रदान है और एक झलक पाने को एक दूरसे का क़त्ल करने से भी ना चूँकेगे । गुलाबी त्रिकोण घाटी दो मांस से भारी जाँघो से कदम ताल से जो थिरक पैदा करती थी ऐसा लग रहा हो कोई काम वासना की तरंग छोड़ रहा हो और उससे ये पूरा जंगल वासनामयी हो रहा हो । चाँद की रोशनी पर्याप्त थी और नदी की रेत सफ़ेद तो सब कुछ साफ़ साफ़ दिख रहा था ।
रीमा को अंदाज़ा भी नहीं था की वो कितनी गहरी मुसीबत में फँसने वाली थी । रीमा जब फल चुराकर वापस आयी तो फिर से किसी तरह से नदी पार करके क़स्बे वाले किनारे पर आ गई थी । यहाँ फल खाने के बाद उसने एक सुरक्षित ठिकाना देखा जहां न जंगली जनवरो का डर था न आदमों का। ये जगह ज़मीन से कुछ ऊपर थी चारों तरफ़ से किसी भी जंगली हमले से सुरक्षित, रीमा ने देखा यहाँ वो किसी को भी बाहर से नज़र भी नहीं आएगी । उसने ख़ुद के लिए कुछ पत्ते और टहनियाँ तोड़ी, पत्ते बिछाये और और फिर वो कंबल ओढ़ कर गहरी नीद में चली गई । ऐसा सोई की अगले दिन दोपहर तक नीड ही नहीं खुली, शायद फलो में कोई नशीला फल था या जंगल की इस नई दुनिया के संघर्ष की थकान । अगले दिन जब उठी तो चारों तरफ़ नजर दौड़ायी फिर धीरे से निकल कर नदी की तरफ़ बढ़ गई । पहाड़ियो से उतरते ही न केवल पानी की गति कम हो बल्कि नदी की गहराई भी ज़्यादा नहीं थी इसलिए कुछ जगहो पर इसे आसानी से इधर से उधर पार किया जा सकता था । ऊपर से नीचे तक पानी से भीगी, घनघोर जंगल में एक गुलाबी बदन नंगी हसीना , कोई इंसान देख ले गस खाकर गिर जाये ।
उधर बूढ़ा आदम जब संभावी मुद्रा से अपनी साधना पूर्ण कर वापस लौटा तो उसके सामने के देवी को अर्पित फल ग़ायब थे । उसको क्रोध की सीमा ना रही ।
वो चिल्लाया - हआऊ उउउव्यू उर्युउउउउउउ ।
पलक झपकते ही वहाँ ४ और आदम प्रकट हो गये । वहाँ का दृश्य और बूढ़े आदम का क्रोध देखकर वो सभी भी हाऊ हाऊ हाऊ हाऊ करने लगे ।
बूढ़ा आदम - मुढ़मती पता करो देवी का प्रसाद कहाँ गया ।
सभी अपने भाले और धनुष तीर लेकर इधर उधर निकल गये , वो बूढ़ा क्रोध से फ़नफ़नाता रहा । सबके चेहरे पर तनाव झलक रहा था । सभी जंगल में इधर उधर भटकने लगे लेकिन अंधेरा था इसलिए ज़्यादा कुछ पता नहीं लगा पाये । बूढ़े आदम के क्रोध का कोपभाजन बनने से बचने के लिए वही जंगल में ही ठहर गये और सुबह की प्रतीक्षा करने लगे । उनको डर था अगर ख़ाली हाथ लौटे तो देवी माँ की साधना भंग होने के कारण बूढ़ा आदम उन्हें एक और श्राप ना दे दे ।