04-11-2024, 12:45 PM
"मजा आ गया भाई। तुम्हारा बहुत बहुत धनियाबाद। धनियाबाद तो बहुत छोटा शबद है लेकिन बोलना तो बनता है। जबरदस्त लौंडिया पटाए हो भाई।" दूसरा वाला रघु मुस्कुराते हुए पहले वाले से बोला। मैं उसकी बात सुनकर क्या प्रतिक्रिया दूं यह समझ में नहीं आ रहा था। गुस्सा तो आ रहा था लेकिन उसकी चुदाई की कायल भी थी। क्या चोदा था हरामी कहीं का। मेरे तन का अंग अंग निचोड़ कर रख दिया था। चूत और गांड़ की तो क्या कहूं। मेरे कुछ कहने से पहले ही पहले वाला रघु बोल पड़ा,
"ये सब बात बाद में, पहिले जल्दी से खिसक यहां से मादरचोद।"
"हां हां, जात्ते हैं जात्ते हैं। धनियाबाद बोलना मेरा फरज था सो बोल दिया।" वह मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला।
"हां हां तू जा।" पहले वाला बोला तो दूसरा वाला मुझे ऊपर से नीचे भरपूर दृष्टि से देख कर तुरंत वहां से खुशी के मारे उछलता हुआ रफूचक्कर हो गया। मैं भौंचक्की उसे जाते हुए देखती रह गई। कमीना कहीं का। मेरे मुंह में मानो ताला सा लग गया था। हे भगवान, अनजाने में दो लोगों से चुद गई थी। कुछ विद्यार्थी मुझे इस तरह रघु से बातें करते हुए देखते हुए जा रहे थे। इस तरह गेट पर रघु से बातें करना मुझे भी बड़ा अटपटा लग रहा था।
"फिलहाल तो मैं चलती हूं, लेकिन जाते जाते यह बताओ कि यह कौन था?" मैं हकलाते हुए बोली। मेरा अंदाजा था कि निश्चित ही वह उसका हमशक्ल जुड़वां भाई होगा।
"यह मेरा जुड़वां भाई जधु था। वह जधु, मतलब जाधव और हम रघु, मतलब राघव।" वह जैसे मेरे सामने बम फोड़ दिया था। मैं मुंह फाड़कर उसे देखती रह गई। अपने जुड़वां भाई के साथ मुझे बांट कर बारी बारी से चोदा और मुझे भनक तक लगने नहीं दिया। कहां मैं रघु से अपने तन की भूख मिटाने चली थी, इस चक्कर में उसका जुड़वां भाई भी मुफ्त में मुझमें मुंह मार कर चल दिया। अपने भाई की आड़ में जाधव भी मेरे तन का स्वाद चख लिया था। मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। एक आदमी से चुदने गई थी और दो आदमियों से चुद आई। सचमुच वासना की आग में मैं कितनी अंधी हो चुकी थी। उन दोनों में आवाज और लंड का जो फर्क था उससे मुझे पता चल जाना चाहिए था लेकिन चुदास के मारे मेरी मति मारी गई थी जो उस फर्क को तवज्जो देना जरूरी नहीं समझी और नतीजा हुआ रंडियों की तरह मेरी चुदाई। खैर अब जो होना था वह तो हो ही चुका था। अब पछतावे का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। पछतावा? घंटा पछतावा। अनभिज्ञता में ही सही, हवस की पुजारन बनती जा रही मुझ लंडखोर को तो मज़ा ही आया। अब मुझे सब कुछ समझ में आ रहा था। मेरे कपड़ों का गायब होना। रघु पहली बार में ही मेरी बेध्यानी में मेरे कपड़े लेकर रफूचक्कर हो गया होगा। उसके बाद दोनों भाई बारी बारी से आपस में अदल बदल कर मुझे नोच रहे थे। उन्हें यह अच्छी तरह से पता था कि थक कर मैं अंत में मना करूंगी इसलिए मुझे मजबूर करके चोदने के लिए मेरे कपड़े गायब कर दिए गये थे। अच्छी योजना बना कर दोनों भाईयों ने मुझे चोदा था। साले कुत्ते, मुझे भनक तक लगने नहीं दिए।
"हरामी, अब बता रहे हो? पहले बता देते तो क्या हो जाता?" मैं बोली।
"पहले बता देत्ता तो तुम राजी होत्ती का?"
"हां यह भी सच है। शायद राजी नहीं होती।"
"इसी डर से नहीं बताया।"
"मुझसे डरते हो?"
"डरना नहीं चाहिए का?"
"डरना चाहिए। डरोगे तो ही फायदे में रहोगे।"
"अब्ब तो जो होना था हो गया, ई बताओ कि कईसा लगा ई सब?" वह बोला। अब मैं क्या बोलती उससे कि इस जबरदस्त कुटाई में थक कर चूर होने के बावजूद मुझे कितना मज़ा आया।
"अ अच्छा लगा। धोखा ही सही, मगर अच्छा लगा।" मैं इमानदारी से अपने मनोभाव को व्यक्त करने मे जरा भी नहीं हिचकिचाई।
"धन्यवाद मैडमजी। फिर कब मौका मिलेगा?" वह उत्साह में भर कर बोला। उसकी आंखों में हवस साफ साफ दिखाई दे रही थी और उसके होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कान नाच रही थी।
"देखूंगी। फिर कब मौका मिलता है।" मैं जल्दी से बोली। भले ही अनभिज्ञता में ही सही, लेकिन अब तो दोनों भाईयों से चुदकर और सच्चाई जानकर भी मुझे कोई खास दुःख नहीं हो रहा था। मेरे लिए यह एक अलग तरह का मजेदार अनुभव था। आज तो धोखे से मैं रघु के साथ साथ जधु से भी चुद गई लेकिन इतना तो तय था कि आगे अब उनके साथ जब भी यह सब होगा, उस खेल में पूरा नियंत्रण मेरा ही होगा। आज मैं पूरी तरह उनके चंगुल में फंस कर उनकी मनमानी झेलने को मजबूर होने के बावजूद अंदर ही अंदर बहुत रोमांचित भी हो रही थी। भले ही रघु और जधु मुझे रंडी टाईप लौंडिया समझ रहे हों लेकिन उन्हें क्या पता कि एक नया यादगार अध्याय मेरी जिंदगी में जुड़ चुका था। सचमुच यह जितना रोमांचक था उतना ही मजेदार भी था। मैं सोचने लगी कि कभी कभी इस तरह का मजा लेने में क्या हर्ज है। जी भर के मजा लो और चल दो। मेरा क्या घट जाएगा। इसी बहाने रघु जैसे लोगों पर उपकार भी हो जाएगा। अच्छी तरह कुटाई होने के कारण मेरी चाल अभी भी सामान्य नहीं हुई थी। पैर अभी भी कांप रहे थे। हां चूत और गांड़ पर जो लसलसापन था वह काफी हद तक सूख चुका था, लेकिन मेरी चुद चुद कर लाल बेहाल चूत और गांड़ चीख चीखकर कहना चाह रहे थे, "साली हरामजादी, अपनी वासना की भूख मिटाने के चक्कर में हमारी दुर्गति करा बैठी कमीनी कुतिया।" उनकी अभिव्यक्ति को सुन तो नहीं सकती थी लेकिन महसूस करती हुई मैं मुस्कुरा उठी।
"ये सब बात बाद में, पहिले जल्दी से खिसक यहां से मादरचोद।"
"हां हां, जात्ते हैं जात्ते हैं। धनियाबाद बोलना मेरा फरज था सो बोल दिया।" वह मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला।
"हां हां तू जा।" पहले वाला बोला तो दूसरा वाला मुझे ऊपर से नीचे भरपूर दृष्टि से देख कर तुरंत वहां से खुशी के मारे उछलता हुआ रफूचक्कर हो गया। मैं भौंचक्की उसे जाते हुए देखती रह गई। कमीना कहीं का। मेरे मुंह में मानो ताला सा लग गया था। हे भगवान, अनजाने में दो लोगों से चुद गई थी। कुछ विद्यार्थी मुझे इस तरह रघु से बातें करते हुए देखते हुए जा रहे थे। इस तरह गेट पर रघु से बातें करना मुझे भी बड़ा अटपटा लग रहा था।
"फिलहाल तो मैं चलती हूं, लेकिन जाते जाते यह बताओ कि यह कौन था?" मैं हकलाते हुए बोली। मेरा अंदाजा था कि निश्चित ही वह उसका हमशक्ल जुड़वां भाई होगा।
"यह मेरा जुड़वां भाई जधु था। वह जधु, मतलब जाधव और हम रघु, मतलब राघव।" वह जैसे मेरे सामने बम फोड़ दिया था। मैं मुंह फाड़कर उसे देखती रह गई। अपने जुड़वां भाई के साथ मुझे बांट कर बारी बारी से चोदा और मुझे भनक तक लगने नहीं दिया। कहां मैं रघु से अपने तन की भूख मिटाने चली थी, इस चक्कर में उसका जुड़वां भाई भी मुफ्त में मुझमें मुंह मार कर चल दिया। अपने भाई की आड़ में जाधव भी मेरे तन का स्वाद चख लिया था। मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। एक आदमी से चुदने गई थी और दो आदमियों से चुद आई। सचमुच वासना की आग में मैं कितनी अंधी हो चुकी थी। उन दोनों में आवाज और लंड का जो फर्क था उससे मुझे पता चल जाना चाहिए था लेकिन चुदास के मारे मेरी मति मारी गई थी जो उस फर्क को तवज्जो देना जरूरी नहीं समझी और नतीजा हुआ रंडियों की तरह मेरी चुदाई। खैर अब जो होना था वह तो हो ही चुका था। अब पछतावे का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। पछतावा? घंटा पछतावा। अनभिज्ञता में ही सही, हवस की पुजारन बनती जा रही मुझ लंडखोर को तो मज़ा ही आया। अब मुझे सब कुछ समझ में आ रहा था। मेरे कपड़ों का गायब होना। रघु पहली बार में ही मेरी बेध्यानी में मेरे कपड़े लेकर रफूचक्कर हो गया होगा। उसके बाद दोनों भाई बारी बारी से आपस में अदल बदल कर मुझे नोच रहे थे। उन्हें यह अच्छी तरह से पता था कि थक कर मैं अंत में मना करूंगी इसलिए मुझे मजबूर करके चोदने के लिए मेरे कपड़े गायब कर दिए गये थे। अच्छी योजना बना कर दोनों भाईयों ने मुझे चोदा था। साले कुत्ते, मुझे भनक तक लगने नहीं दिए।
"हरामी, अब बता रहे हो? पहले बता देते तो क्या हो जाता?" मैं बोली।
"पहले बता देत्ता तो तुम राजी होत्ती का?"
"हां यह भी सच है। शायद राजी नहीं होती।"
"इसी डर से नहीं बताया।"
"मुझसे डरते हो?"
"डरना नहीं चाहिए का?"
"डरना चाहिए। डरोगे तो ही फायदे में रहोगे।"
"अब्ब तो जो होना था हो गया, ई बताओ कि कईसा लगा ई सब?" वह बोला। अब मैं क्या बोलती उससे कि इस जबरदस्त कुटाई में थक कर चूर होने के बावजूद मुझे कितना मज़ा आया।
"अ अच्छा लगा। धोखा ही सही, मगर अच्छा लगा।" मैं इमानदारी से अपने मनोभाव को व्यक्त करने मे जरा भी नहीं हिचकिचाई।
"धन्यवाद मैडमजी। फिर कब मौका मिलेगा?" वह उत्साह में भर कर बोला। उसकी आंखों में हवस साफ साफ दिखाई दे रही थी और उसके होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कान नाच रही थी।
"देखूंगी। फिर कब मौका मिलता है।" मैं जल्दी से बोली। भले ही अनभिज्ञता में ही सही, लेकिन अब तो दोनों भाईयों से चुदकर और सच्चाई जानकर भी मुझे कोई खास दुःख नहीं हो रहा था। मेरे लिए यह एक अलग तरह का मजेदार अनुभव था। आज तो धोखे से मैं रघु के साथ साथ जधु से भी चुद गई लेकिन इतना तो तय था कि आगे अब उनके साथ जब भी यह सब होगा, उस खेल में पूरा नियंत्रण मेरा ही होगा। आज मैं पूरी तरह उनके चंगुल में फंस कर उनकी मनमानी झेलने को मजबूर होने के बावजूद अंदर ही अंदर बहुत रोमांचित भी हो रही थी। भले ही रघु और जधु मुझे रंडी टाईप लौंडिया समझ रहे हों लेकिन उन्हें क्या पता कि एक नया यादगार अध्याय मेरी जिंदगी में जुड़ चुका था। सचमुच यह जितना रोमांचक था उतना ही मजेदार भी था। मैं सोचने लगी कि कभी कभी इस तरह का मजा लेने में क्या हर्ज है। जी भर के मजा लो और चल दो। मेरा क्या घट जाएगा। इसी बहाने रघु जैसे लोगों पर उपकार भी हो जाएगा। अच्छी तरह कुटाई होने के कारण मेरी चाल अभी भी सामान्य नहीं हुई थी। पैर अभी भी कांप रहे थे। हां चूत और गांड़ पर जो लसलसापन था वह काफी हद तक सूख चुका था, लेकिन मेरी चुद चुद कर लाल बेहाल चूत और गांड़ चीख चीखकर कहना चाह रहे थे, "साली हरामजादी, अपनी वासना की भूख मिटाने के चक्कर में हमारी दुर्गति करा बैठी कमीनी कुतिया।" उनकी अभिव्यक्ति को सुन तो नहीं सकती थी लेकिन महसूस करती हुई मैं मुस्कुरा उठी।


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