01-11-2024, 12:29 PM
जैसे ही प्रयोग शाला का दरवाजा खुला, मैं थरथराते कदमों से बाहर निकली। मेरे कदम ठीक से जमीन पर पड़ भी नहीं रहे थे लेकिन किसी प्रकार मैं खुद को संतुलित करते हुए चल रही थी। चलते वक्त मेरी चूत की पुत्तियों और गांड़ की दोनों गोलाईयों के बीच जो घर्षण हो रहा था वह बड़ा अजीब लग रहा था। मैं ने अपनी चूत और गांड़ को पोंछने की भी जहमत नहीं उठाई थी। उस वक्त तो मुझे वहां से निकलना था नहीं तो कहीं रघु का मन बदल जाता तो और क्या होता मेरे साथ। मेरी अगाड़ी और पिछाड़ी को सुजा दिया था कमीने ने।में मेरा पूरा बदन टूट रहा था। मेरी चूचियों को मसल मसल कर अजीब हालत कर दी थी। ब्रा के बिना ऐसा लग रहा था जैसे दोनों चूचियां कुछ अधिक ही भारी हो गयी थीं जिन्हें बड़ी मुश्किल से संभाल कर मुझे चलना पड़ रहा था। चुदी चुदाई चूत और गांड़ पर जो लसलसापन था उसके कारण चलने से अजीब तरह का अनुभव हो रहा था और ऊपर से पैंटी न होने के कारण ठंढी ठंढी हवा चूत और गांड़ में कुछ अधिक ही ठंढक का अहसास करा रही थी। मुझे यह भी अहसास हो रहा था कि रघु के वीर्य के कतरे रिस रिस कर मेरी जांघों पर उतर आए थे, जिन्हें मैं इस वक्त पोंछ भी नहीं सकती थी। बस मन ही मन मना रही थी कि वीर्य के कतरे बह कर मेरी स्कर्ट के बाहर दिखाई न दें। भगवान की दया से वीर्य और नीचे बहने से पहले सूखते जा रहे थे। रघु के हाथों लुटी पिटी, नुची चुदी, उसी बेहाल हालत में मैं चलती चली आ रही थी लेकिन मुझे अपने अंदर, मेरे साथ हुई दुर्दशा का कोई मलाल नहीं था। मुझे खुद पर खीझ हो रही थी कि इतना होने के बाद भी पछतावा का भाव क्यों पैदा नहीं हो रहा था। इसका तो साफ साफ मतलब यही था कि सचमुच मुझे सेक्स का चस्का लग गया था और मेरे अंदर वासना की भूख बढ़ती जा रही थी। तो क्या, तो क्या मैं रंडी बनती जा रही थी या रंडियों से भी गयी बीती। रंडियां तो फिर भी मजबूरी में अपनी पेट भरने के लिए पैसों की खातिर अपने तन का सौदा करती हैं लेकिन मैं? मैं तो बस अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए मर्दों के आगे बिछी चली जा रही थी। छि: छि:, यह मैं क्या बनती जा रही थी। इन्हीं सोच के साथ गेट की ओर बढ़ने लगी।
संयोग ऐसा था कि उसी समय के आस पास कॉलेज की छुट्टी हुई। मेरी कोशिश थी कि जल्दी से जल्दी छात्रों की भीड़ में शामिल हो जाऊं। रघु जबतक दरवाजा बंद करके मेरे पीछे पीछे आता, मैं काफी आगे बढ़ चुकी थी और बाहर निकलते हुए छात्र छात्राओं की भीड़ में शामिल हो गयी। तभी मेरी दृष्टि कॉलेज के गेट की ओर चली गई तो यह देख कर दंग रह गयी कि रघु पहले से ही गेट पर खड़ा था। हे भगवान, यह क्या चमत्कार था। रघु तो प्रयोगशाला से मेरे निकलने के बाद दरवाजा बंद कर रहा था, फिर मुझसे पहले इतनी जल्दी गेट पर कैसे पहुंच सकता था। मैं उसे देखकर जल्दी से उसके पास पहुंची और बोली,
"तुम मुझसे पहले कैसे यहां?"
"हम तो पहिले से इहां हैं।" वह रहस्यमई मुस्कान के साथ बोला।
"फिर वहां कौन था?" मेरे आश्चर्य का पारावार न था। मैं ने पीछे दृष्टि दौड़ाई तो जैसे मेरे पांव तले जमीन खिसक गई। मेरे पीछे करीब पचास फीट की दूरी पर भी रघु दिखाई दिया, जो मुस्कुराता हुआ अपनी धुन मे चला आ रहा था। हे भगवान दो दो रघु! मैं हक्की बक्की रह गई।
"सच बताएंगे तो तुम गुस्सा तो नहीं होगी?" रघु था या जो भी था, वह बोला। मैं सोच में पड़ गयी। गुस्सा करूं भी तो कैसे? कितने जबरदस्त तरीके से चोद कर मेरी भूख मिटाई थी उसने। नहीं नहीं, चाह कर भी उस पर गुस्सा नहीं आ रहा था, आखिर गुस्सा करूं भी तो किस मुंह से। सबकुछ मेरी रजामंदी से ही तो हुआ था, लेकिन एक के बदले दो लोगों ने यह सब मेरे साथ किया था, जो कि मेरे साथ धोखा था।
"गुस्सा तो होऊंगी ही कमीने, क्योंकि यह मेरे साथ धोखा था।" मैं रोष के साथ बोली।
"तुम्हारा गुस्सा जायज है। अगर सच्च बताते तो तुम मानती नहीं इसी लिए यह करना पड़ा।" रघु थोड़ा अपराधी लहजे में बोला।
"हां यह सच है, मैं कदापि नहीं मानती।" मैं बोली। अबतक दूसरा रघु भी पास आ चुका था।
संयोग ऐसा था कि उसी समय के आस पास कॉलेज की छुट्टी हुई। मेरी कोशिश थी कि जल्दी से जल्दी छात्रों की भीड़ में शामिल हो जाऊं। रघु जबतक दरवाजा बंद करके मेरे पीछे पीछे आता, मैं काफी आगे बढ़ चुकी थी और बाहर निकलते हुए छात्र छात्राओं की भीड़ में शामिल हो गयी। तभी मेरी दृष्टि कॉलेज के गेट की ओर चली गई तो यह देख कर दंग रह गयी कि रघु पहले से ही गेट पर खड़ा था। हे भगवान, यह क्या चमत्कार था। रघु तो प्रयोगशाला से मेरे निकलने के बाद दरवाजा बंद कर रहा था, फिर मुझसे पहले इतनी जल्दी गेट पर कैसे पहुंच सकता था। मैं उसे देखकर जल्दी से उसके पास पहुंची और बोली,
"तुम मुझसे पहले कैसे यहां?"
"हम तो पहिले से इहां हैं।" वह रहस्यमई मुस्कान के साथ बोला।
"फिर वहां कौन था?" मेरे आश्चर्य का पारावार न था। मैं ने पीछे दृष्टि दौड़ाई तो जैसे मेरे पांव तले जमीन खिसक गई। मेरे पीछे करीब पचास फीट की दूरी पर भी रघु दिखाई दिया, जो मुस्कुराता हुआ अपनी धुन मे चला आ रहा था। हे भगवान दो दो रघु! मैं हक्की बक्की रह गई।
"सच बताएंगे तो तुम गुस्सा तो नहीं होगी?" रघु था या जो भी था, वह बोला। मैं सोच में पड़ गयी। गुस्सा करूं भी तो कैसे? कितने जबरदस्त तरीके से चोद कर मेरी भूख मिटाई थी उसने। नहीं नहीं, चाह कर भी उस पर गुस्सा नहीं आ रहा था, आखिर गुस्सा करूं भी तो किस मुंह से। सबकुछ मेरी रजामंदी से ही तो हुआ था, लेकिन एक के बदले दो लोगों ने यह सब मेरे साथ किया था, जो कि मेरे साथ धोखा था।
"गुस्सा तो होऊंगी ही कमीने, क्योंकि यह मेरे साथ धोखा था।" मैं रोष के साथ बोली।
"तुम्हारा गुस्सा जायज है। अगर सच्च बताते तो तुम मानती नहीं इसी लिए यह करना पड़ा।" रघु थोड़ा अपराधी लहजे में बोला।
"हां यह सच है, मैं कदापि नहीं मानती।" मैं बोली। अबतक दूसरा रघु भी पास आ चुका था।