30-10-2024, 06:08 PM
"साली लंडखोर, मान गया तुमको। झूठ मूठ का डरामा कर रही थी हरामजादी।" वह मेरी गान्ड पर थप्पड़ मारकर बोला।
"कुत्ता कहीं का। जान निकाल दिया और बोलता है ड्रामा कर रही थी। पता नहीं और लड़कियों का क्या हाल करते हो?" मैं पलट कर बोली।
"और लड़कियों का तो बात ही मत्त करो। एक्के चुदाई में साली लोग का गांड़ फट्ट जाता है। अईसे बकरी जईसा में में करते हैं कि दुबारा चोदने का मन ही नहीं करता है। तुम अलग हो। खास हो। साली जईसा तुम्हारा बुर है वईसा ही जबरदस्त तुम्हारा गांड़ है। मां कस्सम, तुम्हारा गांड़ तो चूत से भी जादा मस्त है। मज्जा ही आ गया।" वह मेरी गान्ड को मसलता हुआ बोला।
"हट साला हरामी। चोद चोद कर फाड़ दिया और अब प्रशंसा के पुल बांध रहा है चुदक्कड़ कहीं का। अब मेरे कपड़े दे।" कहकर मैं उठने लगी लेकिन मेरे पैर जवाब देने लगे थे। पैर थरथराने लगे थे। किसी प्रकार उठ कर खड़ी हुई।
"ऊ का है, उधर।" पीछे के दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला वह। मैं लड़खड़ाते कदमों से उधर गयी तो सचमुच मेरे कपड़े पीछे के दरवाजे के पास पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मैं चकित दृष्टि से कभी अपने कपड़ों को देखती और कभी रघु को देखती। रघु बड़ी रहस्यमई मुस्कान के साथ मुझे देख रहा था।
"जब मैं खोज रही थी उस समय तो ये यहां नहीं थे।" मैं सशंकित हो कर बोली।
"हां, नहीं थे, अब आ गये। हम कहे थे ना, रघुकुल रीत..." वह अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही
"चुप हरामी साले रघुकुल का कलंक। मुझे बेवकूफ बना कर...."
"बेवकूफ नहीं बनाता तो इत्तन्ना मज्जा कहां आता। और हां, का बोली? रघुकुल का कलंक? साली बुरचोदी, रघुकुल का नाज बोलो। बचन का पक्का हैं, नहीं तो अब्भी अऊर कित्ता बार चोदते, तुम गिनती भूल जाती।" वह हंसने लगा और अपने कपड़े पहनने लगा।
"सच बोला।" कहकर मैंने अपने कपड़े उठाए और पहनकर बाहर निकलने को तैयार हो गई। मन ही मन सोच रही थी कि चलो जान बची। अब वासना की खुमारी उतरी तो अहसास हो रहा था कि मैं सचमुच रंडी ही तो बन गई। ऐसा लग रहा था जैसे रघु अकेले नहीं बल्कि चार लोग बारी बारी से मेरे जिस्म से खेले थे। इस तरह अगर गिनती करूं तो, घुसा, घनश्याम, गंजू और अब रघु, कुल मिलाकर चार लोग मेरे जिस्म का मजा ले चुके थे। मुझे तो अब भी पता नहीं क्यों, ऐसा लग रहा था जैसे रघु के रूप में दो प्रकार के मर्दों ने बारी बारी से मेरे जिस्म का मजा लिया था। अगर रघु को दो मर्द समझूं तो इतनी कम उम्र में ही कुल मिलाकर पांच व्यक्तियों संग मैंने सेक्स का मजा ले लिया था। पांचों अलग अलग तरह के व्यक्तित्व के मालिक थे और उन्होंने अपने अपने अलग अलग अंदाज से मेरे जिस्म का मजा लिया था। सबसे अजीब बात यह थी कि यह सब मुझे अच्छा लगने लगा था। इसका मतलब, इसका मतलब मैं सच में सेक्स की गुलाम बनती जा रही थी। हे भगवान, यह क्या हो रहा था मेरे साथ, इसका मतलब यह हुआ कि, यह हुआ कि.... मेरी इस कमजोरी के कारण कोई भी मर्द, (खास कर बुजुर्ग प्रकार के मर्द, जिनके प्रति मेरे मन में एक खास प्रकार का आकर्षण पैदा हो चुका था) बड़ी आसानी से मुझे अपना शिकार बना सकता था। यही सब सोचते हुए, मैं प्रयोगशाला से निकलने को तैयार थी।
"कुत्ता कहीं का। जान निकाल दिया और बोलता है ड्रामा कर रही थी। पता नहीं और लड़कियों का क्या हाल करते हो?" मैं पलट कर बोली।
"और लड़कियों का तो बात ही मत्त करो। एक्के चुदाई में साली लोग का गांड़ फट्ट जाता है। अईसे बकरी जईसा में में करते हैं कि दुबारा चोदने का मन ही नहीं करता है। तुम अलग हो। खास हो। साली जईसा तुम्हारा बुर है वईसा ही जबरदस्त तुम्हारा गांड़ है। मां कस्सम, तुम्हारा गांड़ तो चूत से भी जादा मस्त है। मज्जा ही आ गया।" वह मेरी गान्ड को मसलता हुआ बोला।
"हट साला हरामी। चोद चोद कर फाड़ दिया और अब प्रशंसा के पुल बांध रहा है चुदक्कड़ कहीं का। अब मेरे कपड़े दे।" कहकर मैं उठने लगी लेकिन मेरे पैर जवाब देने लगे थे। पैर थरथराने लगे थे। किसी प्रकार उठ कर खड़ी हुई।
"ऊ का है, उधर।" पीछे के दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला वह। मैं लड़खड़ाते कदमों से उधर गयी तो सचमुच मेरे कपड़े पीछे के दरवाजे के पास पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मैं चकित दृष्टि से कभी अपने कपड़ों को देखती और कभी रघु को देखती। रघु बड़ी रहस्यमई मुस्कान के साथ मुझे देख रहा था।
"जब मैं खोज रही थी उस समय तो ये यहां नहीं थे।" मैं सशंकित हो कर बोली।
"हां, नहीं थे, अब आ गये। हम कहे थे ना, रघुकुल रीत..." वह अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही
"चुप हरामी साले रघुकुल का कलंक। मुझे बेवकूफ बना कर...."
"बेवकूफ नहीं बनाता तो इत्तन्ना मज्जा कहां आता। और हां, का बोली? रघुकुल का कलंक? साली बुरचोदी, रघुकुल का नाज बोलो। बचन का पक्का हैं, नहीं तो अब्भी अऊर कित्ता बार चोदते, तुम गिनती भूल जाती।" वह हंसने लगा और अपने कपड़े पहनने लगा।
"सच बोला।" कहकर मैंने अपने कपड़े उठाए और पहनकर बाहर निकलने को तैयार हो गई। मन ही मन सोच रही थी कि चलो जान बची। अब वासना की खुमारी उतरी तो अहसास हो रहा था कि मैं सचमुच रंडी ही तो बन गई। ऐसा लग रहा था जैसे रघु अकेले नहीं बल्कि चार लोग बारी बारी से मेरे जिस्म से खेले थे। इस तरह अगर गिनती करूं तो, घुसा, घनश्याम, गंजू और अब रघु, कुल मिलाकर चार लोग मेरे जिस्म का मजा ले चुके थे। मुझे तो अब भी पता नहीं क्यों, ऐसा लग रहा था जैसे रघु के रूप में दो प्रकार के मर्दों ने बारी बारी से मेरे जिस्म का मजा लिया था। अगर रघु को दो मर्द समझूं तो इतनी कम उम्र में ही कुल मिलाकर पांच व्यक्तियों संग मैंने सेक्स का मजा ले लिया था। पांचों अलग अलग तरह के व्यक्तित्व के मालिक थे और उन्होंने अपने अपने अलग अलग अंदाज से मेरे जिस्म का मजा लिया था। सबसे अजीब बात यह थी कि यह सब मुझे अच्छा लगने लगा था। इसका मतलब, इसका मतलब मैं सच में सेक्स की गुलाम बनती जा रही थी। हे भगवान, यह क्या हो रहा था मेरे साथ, इसका मतलब यह हुआ कि, यह हुआ कि.... मेरी इस कमजोरी के कारण कोई भी मर्द, (खास कर बुजुर्ग प्रकार के मर्द, जिनके प्रति मेरे मन में एक खास प्रकार का आकर्षण पैदा हो चुका था) बड़ी आसानी से मुझे अपना शिकार बना सकता था। यही सब सोचते हुए, मैं प्रयोगशाला से निकलने को तैयार थी।