04-11-2024, 02:12 PM
दो दिन में कौशिक की तबियत ठीक हो गई। इन दो दिन के बीच सुप्रिया की तरफ जग्गू ने देखा भी नहीं था। जग्गू ने कौशिक की बहुत सेवा की। कौशिक पूरी तरह से ठीक हो गया। अब तो गंगू भी वापिस आ गया था। तीन दिन के लिए गंगू घर आया था।
गंगू और जग्गू दोनों साथ में रहते।
"और बताओ चाचा। सुप्रिया ने परेशान तो नहीं किया ?" गंगू ने पूछा।
"नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं। लेकिन तुम इतनी कम बार क्यों आते हो ?"
"क्या करूं चाचा। काम बहुत रहता है। और अब एक बूरी खबर भी है।"
"क्या ?" जग्गू ने हैरान होकर पूछा।
"अरे अंतू गांव का अगले महीने साल गिरा है। अगले महीने गांव के पास दो गांव में मेला भी है। ये सब के कारण मैं एक महीने वहां ही रहूंगा। क्या करूं काम भी तो इतना है।"
जग्गू मन ही मन बोला "यह तो अच्छी बात नहीं। इस वक्त तो कौशिक को तुम्हारी जरूरत है। आखिर ऐसे कैसे चलेगा ?"
गंगू को जागी ने बहुत समझाया लेकिन गंगू माना नहीं। ऐसे ही रात हो गईं। सभी सोने की तैयारी कर रहे थे। कौशिक जग्गू से अलग हो नहीब्राह था इसीलिए वो जग्गू के साथ ही सोएगा। सुप्रिया ने भी काम पूरा किया और अपने कमरे चली गई।
लालटेन लेकर कमरे में गई तो देखा गंगू नंगा लेटा हुआ था। सुप्रिया समझ गई कि आज गंगू उसके साथ संभोग करने चाहता हैं। गंगू ने सुप्रिया को पास आने का इशारा किया।
"आओ मेरी रानी। उतारो ये कपड़े और अपने पति की बाहों में आ जाओ। बहुत कमर मटकाती हो न। आज तो तुम्हे छोडूंगा नहीं।"
सुप्रिया बिस्तर के पास पहुंची कि गंगू ने हाथ पकड़ लिया और बिस्तर पर अपने पास खींचा। तुरंत सुप्रिया के पल्लू को नीचे गिरते हुए नाभि को चूमते हुए बोला "वहां जब भी तुम्हे याद करता था न मुझे तो सच में आग सी लग जाती थी।"
"मुझे भी तो अंदर से आग लगती थी। तुम तो आते नहीं। अब एक महीना कैसे रहूंगी ?"
"कल का छोड़ अभी का देख मेरी रानी। बहुत आग भरी है मुझमें आज रात उतर दूंगा।"
"वह मेरे बूढ़े पति तो उतारो न मुखपर अपनी गर्मी।"
गंगू सुप्रिया के बदन से सारे कपड़े उतार दिया। सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। सुप्रिया ने गंगू को बाहों में भर लिया। कुछ देर होठ से होठ चुंबन के बाद गंगू ने सुप्रिया के हाथ ऊपर कर दिया और बगल को सूंघते हुए कहा "इसकी खुशबू अलग हैं। सच में मैने तुम जैसी जवान और खूबसूरत औरत को प्यार में फसाकर शादी कर ही लिया।"
सुप्रिया के योनि में लिंग डालते हुए गंगू धक्का देने लगा। सुप्रिया संभोग के आनंद में डूब गई और बोली "तुमसे शादी करके मैने सबसे अच्छा काम किया। आखिर मेरी जवानी तुम्हारे काम आ गई।"
"आह्ह्ह तुम्हारी जवानी को तो मैं ही भोग सकता हूं। सुप्रिया ऊऊ आह आह बहुत कमर मटकाकर चलती हो न। नजाने कितने मर्दों को मार दिया तुमने।"
शिल्पा के मुंह में थूक डालते हुए गंगू शिल्पा के कंधे को हल्के से काटा और बोला "क्या नाजुक जिस्म से तुम्हारा। इसके तो हर हिस्से को प्यार करूंगा। बोलो सुप्रिया मुझसे प्यार करती हो न।"
सुप्रिया धक्का खाते हुए बोली "तुम तो मेरे जिस्म में बस चुके हो। आदत हो गई तुम्हारी। और जोर से। पागल हूं तुम्हारे प्यार में। गंगू मुझे हर रोज ऐसे ही बिस्तर पर प्यार करो। रोज तुम्हारी याद में तड़पती हूं। पागल कर दिया तुमने मुझे। प्लीज मेरे होठ पर होठ डालो न।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूसता रहा। धक्का देते देते वो अंदर तक झड़ गया। अब सुप्रिया को उल्टा करके लिंग गांड़ में घुस दिया।
"साड़ी में गेंद मटकाती हों न। आज इसको पूरी तरह से फाड़ दूंगा।" गुनगुने सुप्रिया की गेंद में जोर का थप्पड़ मारा।
"आह मेरे ज़ालिम मर्द। तुम्हारे लिए जिन्हें ये जिस्म। रोज इसे अपने शरीर से डबल और मेरी जवानी को लूटते रहो।"
"तुम्हे बिस्तर पर इतना प्यार करता हूं लेकिन मन नहीं भरता।"
गंगू दोनों हाथों से स्तन को दबाकर गांड़ पर धक्का दिए जा रहा था। सुप्रिया की आवाज निकलने लगी। सुप्रिया और गंगू के संभोग को बाहर दरवाजे पर कान लगाए जग्गू सुन रहा था। उसके अंदर अब आग बढ़ने लगी। वो बस गंगू के जाने का इंतजार कर रहा था।
संभोग के आनंद में डूबी सुप्रिया का जोश ठंडा पड़ गया जब लंबे समय के संभोग के बाद गंगू थका हारा लेट गया। सुप्रिया बहुत संतुष्ट महसूस कर रही थी। दिन घंटे तक दोनों मियां बीवी नंगे एक दूसरे को बाहों में सो रहे थे। तभी रात के करीब 2 बजे गंगू की आंख खुली और वो फिर से शुरू हो गया। सुप्रिया के स्तन को चूमने चाटने लगा। इस बार पहले से ज्यादा तेजी से सुप्रिया के साथ संभोग कर रहा था।
ऐसे ही दो दिन कब नीत गए पता न चला। फिर आया रविवार की रात और गंगू अंतू गांव वापिस चल गया। जग्गू अब पूरे एक महीना सुप्रिया के साथ अकेला रहेगा और दूर दूर तक कोई नहीं आएगा उनके बीच।
अगली सुबह सुप्रिया कॉलेज जाने के लिए उठ गईं। नहा धोकर वो साड़ी पहनकर कॉलेज के तैयार हुई। वो रसोईघर पहुंची और अपने लिए चाय बनाया। जग्गू के लिए भी चाय बनाया। जग्गू के कमरे में सुप्रिया आ पहुंची। उस वक्त जग्गू अपने बिस्तर पर था। सुप्रिया को देख बोला "तुम मुझे सोने कब दोगी ?"
सुप्रिया हरिना होकर पूछी "मैने क्या किया ? अभी अभी तो आई मैं।"
जग्गू बोला "ऐसी जवानी सामने रहेगी तो नींद कैसे आएगी ?"
"देखो फालतू की बात मत करो। मुझे जाना है काम पर।"
जग्गू पूछा "कॉलेज जा रही हो ? मत जाओ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि बारिश आनेवाली है। और कॉलेज करीब नहीं है।"
"वो मेरी समस्या है। मैं देख लूंगी।"
सुप्रिया कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंचते ही दरवाजा बंद दिखा कॉलेज का। सुप्रिया ने देखा कि गेट पर नोटिस चिपका हुआ था जिसमें लिखा था कि कॉलेज एक हफ्ते तक नहीं खुलेगा क्योंकि भारी बारिश की आगाही है। सुप्रिया को फिर बदल गरजने की आवाज आई।
सोचा जल्द से जल्द घर पहुंच जाए। सुप्रिया को रोज लेने छोड़ने का काम साइकिल रिक्शा चलानेवाला लल्लन नाम का आदमी करता है। लल्लन की उम्र 66 साल की है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से ये काम करना पड़ता है। (खैर लल्लन का किरदार अभी जरूरी नहीं है)
लल्लन सुप्रिया को घर छोड़ने के लिए रिक्शा को आगे बढ़ाया। घर कॉलेज से 8 किलोमीटर दूर है। 45 मिनिट लगता है रास्ता पूरा करने में। सुप्रिया बस घर से नजदीक पहुंच ही रखी थी जोरदार बारिश आ गई। सुप्रिया भागते हुए घर की तरफ बड़ी। घर तक पहुंची थी कि पूरा बदन और कपड़ा भीग गया। काले साड़ी और sleveless ब्लाउज में सुप्रिया का पूरा बदन पानी की गिरफ्त में आ गया।
घर के अंदर घुसते ही सुप्रिया ने देखा कि उसका कमरे की खिड़की खुली थी जिस वजह से फर्श पर पानी भर गया। खिड़की के पास पड़े सारे कपड़े भीग गए। सुप्रिया के लिए जैसे मुसीबत सी आ गई। खिड़की बंद करके देखा कि कमरा रहने लायक नहीं था। अब करे तो क्या करे। 3 कमरे और थे लेकिन साफ सफाई बाकी थी। यही बात सोचते सोचते सुप्रिया को 20मिनिट लग गए। शरीर गीले होने की वजह से ठंडी लगने लगी। तभी जग्गू आया और बोला "कहा था न मैने भीग जाओगी लेकिन मेरी बात कौन मानता है।"
"हां बात तो सही कही थी आपने।"
"कॉलेज से वापिस क्यों आई ?"
सुप्रिया ने जग्गू को सारी बात बताई। बात सुनकर जग्गू खुश हुआ। पूरे एक हफ्ते सुप्रिया और वो अकेले रहेंगे वो भी पूरे दिन।
"अरे देखो कैसे तुम्हारा बदन भीगा हुआ है। आओ मेरे कमरे में आओ और कपड़े बदल लो। तुम्हारी एक साड़ी मैने संभलकर रखी है।"
सुप्रिया के पास कोई चारा न था। और वो जग्गू के कमरे चली गई। जग्गू पीछे पीछे आकर कमरे में पहुंच गया।
सुप्रिया बोली "जाओ यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"अरे मैने कब मना किया। मेरे सामने भी बदल सकती हो।" जग्गू ने छेड़ते हुए कहा।
"चुप करो। परेशान मत करो और जो यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"वैसे सुप्रिया जल्दी करना।"
सुप्रिया के पास गुस्सा करने का वक्त नहीं था। अपने कपड़े बदलकर सुप्रिया बाहर आई। पीले रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में वो बाहर निकली। सुप्रिया जानती थी कि जग्गू उसके पीछे पड़ा रहेगा। सुप्रिया मुख्य दरवाजे पर बैठकर बारिश को देख रही थी। पूरा खाली हैं और कोई चहल पहल नहीं। सुप्रिया को यह गांव जैसे अच्छा लगा। कोई नहीं मिलो दूर। नदी कई सारे खंडर घर। जिधर चाहे उधर रह सकती है, कोई कुछ नहीं बोलेगा। बारिश बहुत तेजी से चल रही थी। सुप्रिया मगन होकर खो गई। रही बात कौशिक की तो जग्गू ने उसे सुला दिया। उसके बाद जग्गू मुख्य दरवाजे के पास बैठी सुप्रिया के पास पहुंचा। पीछा से जग्गू ने सुप्रिया के पास आकर बोला "क्या देख रहीं हो मेरी बुलबुल ?"
"यही देख रही हूं कि इस खूबसूरत जगह पर आप जैसे बेकार आदमी कहां से आ गया ?"
"अरे वाह। क्या जवाब दिया।"
सुप्रिया तिरछी मुस्कान के साथ बोली "आप एक शादीशुदा औरत के पीछे क्यों पड़े हों?"
"प्यार में हिस्सा बांटने।"
"कहना क्या चाहते हो ?"
"मुझे पता है अगर मैने कुछ बोल दिया तो तुम्हे बुरा लग जायेगा।"
"अगर हिम्मत है तो साफ साफ बोलो।"
"सरजू और गंगू दोनों को तो तुम प्यार करती थी।"
सुप्रिया बोली "जिस एहसास के बारे में न पता हो तो मत ही बोलो।"
"वो एहसास मुझे भी चाहिए। मुझे सिर्फ तुम चाहिए।" इतना कहकर जग्गू सुप्रिया को पीछे से बाहों में भर लिया।
"छोड़ो मुझे। ये गलत कर रहे हो।"
"प्यार करता हूं तुमसे। तुम्हारी जवानी ने मुझे पागल कर दिया।" जग्गू सुप्रिया को मजबूती से बाहों में भर लेता है।
"जग्गू छोड़ो ये सब। तुम ऐसा मत करो।"
जग्गू सुप्रिया है हाथ पकड़ लिया और जबरजस्ती अपने कमरे में ले गया। सुप्रिया नजाने क्यों अपना जोर नहीं लगा पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को लेकर अपने कमरे में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुप्रिया तो जैसे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को दोनों कंधे पर हाथ रखा और उसकी आंखों में देख रहा था।
"सुप्रिया आज हमारे बीच कोई नहीं आएगा।" सुप्रिया को जग्गू ने बिस्तर पर लिटा दिया। सुप्रिया जैसे प्रतिकार देते देते थक गई। अगर प्रतिकार करेगी तो भिन्कू फायदा नहीं। पूरे गांव में कोई नहीं। मिलो दूर कोई नहीं और ऊपर से बिगड़ता मौसम। जग्गू अपने कपड़े उतार चुका था। उसके पूरे काले शरीर पर सफेद बाल थे। चमड़ी पूरी तरह से लटकी हुई थी। और उसी काले बूढ़े शरीर को लेकर सुप्रिया के करीब आया और बोला "आज मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए।"
"ये ठीक नहीं जग्गू। छोड़ दो मुझे।"
"सुप्रिया आज तुम्हारे साथ जो होगा उसे रोकने के लिए कोई नहीं है मिलो दूर तक। तुम चीखों चिल्लाओ लेकिन कोई नहीं आ पाएगा। बस सुप्रिया एक बार मेरी हो जाओ।"
जग्गू के दिमाग में संभोग इस तरह घुस गया कि आज सुप्रिया के साथ वो जोर जबरजस्ती भी कर सकता है। सुप्रिया के पल्लू को हटाकर जग्गू बोला "जब भी तुम इन साड़ी में चलती थी नजाने इतनी आग लगती थी दिल पर की पूछो मत।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को हल्के से चूमते हुए बोला "गांगुनके साथ संभोग करते वक्त तो बहुत आवाजें निकल रही थी। अब मेरी बारी। गंगू का एहसास तुम्हे बुला दूंगा। आज के बाद तुम्हारे जिस्म पर मेरा हक होगा।"
जाग सुप्रिया के गोरे पैर को चूमने लगा।
"देखो कितना सुंदर है ये जिस्म। सुप्रिया तुमने सच्ची में मुझे अपनी ओर आकर्षित किया है। अब तो रोज ऐसे ही तुम्हारे साथ बिस्तर पर दिन गुजरूंगा।"
"जग्गू छोड़ो ये सब। क्यों आखिर मुझे पाने के लिए हदें पार कर रहे हो ?"
"क्योंकि अब यही रास्ता बचा है।"
"मैं कैसे तुम्हे अपना जिस्म दे सकती हूं। मेरे और गंगू के रिश्ते में कड़वाहट भर जाएगी।"
"कोई कड़वाहट नहीं भरेगी। क्योंकि अब गंगू भी यहां ज्यादा नहीं रहता। उसे क्या हमारे बारे में पता चलेगा।"
जग्गू ने पल्लू पर हाथ रखा। पल्लू पर हाथ पड़ते ही सुप्रिया ने हाथ को पकड़ते हुए रोका और कहा "देखो ये सही नहीं कर रहे। तुम इस जल्दबाजी सोच में मुश्किलें खड़ी कर रहे हो। मेरी और अपनी भी।"
"मुश्किलें खड़ी हो सकती है मेरे लिए अगर तुम मुझे न मिली। सुप्रिया आज जितना भी कोशिश कर लो। मैं रुकनेवाला नहीं।"
सुप्रिया का पल्लू खींचकर जमीन पर गिरा दिया। सुप्रिया के स्तन की दरार को देख जग्गू से रहा नहीं गया और तुरंत उल्टा होकर सुप्रिया को अपने ऊपर लिटाकर पीछे से ब्लाउज को खोलकर फेक दिया। फिर ब्रा को जबरजस्ती के साथ खोलकर फेक दिया। कुछ ही पल में सुप्रिया के बदन में एक भी कपड़ा न बचा।
"सुप्रिया आज तुम्हे बताऊंगा कि मैं तुम्हे पाने के लिया क्या क्या कर सकता हूं।"
सुप्रिया को बिस्तर पर सीधा लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया और स्तन को चूसने लगा। सुप्रिया ने अब विरोध करना बंद कर दिया। जग्गू गले को चूमकर जुबान बाहर निकालकर चाटने लगा।
"सुप्रिया इस तड़प ने मुझे क्या से क्या बना दिया। अब से तुम्हे मेरे साथ भी संभोग करना होगा। अब बहुत जल्द गंगू से ज्यादा मैं इसी कमरे में तुमसे प्यार करूंगा। भूल जाओ अब गंगू के कमरे को और मेरे कमरे में अब से तुम रहोगी।"
सुप्रिया के नाभि को चूमते हुए बोला "शहर से आई यह पारी हम गांव के बुढ़े लोगों की अमानत है।"
"तुमने जबरजस्ती क्यों की। छोड़ दो मुझे वरना आज मर्यादा टूट जायेगा।"
सुप्रिया की बात सुनकर जग्गू खुश हुआ और बोला "अब से कोई मर्यादा नहीं सुप्रिया। गंगू वहां और तुम उसके चाचा के बिस्तर में। और फिर क्या पता यहीं चाचा तेरा हमसफर बन जाए।"
"लगता है जग्गू अब तुमसे लड़ने का कोई फायदा नहीं क्योंकि तुम मुझे छोड़नेवाले नहीं।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। होठ के अंदर अपनी जीभ को डालते हुए जग्गू सुप्रिया को गरम करने में कामयाब हो रहा था।
"सुप्रिया। तुम्हे जब पहली बार देख तभी से सोच लिया था कि तुम्हे मैं संभोग का साथ बनकरो रहूंगा।"
जग्गू सुप्रिया के योनि पर अपनी जीभ डाल चुका था। सुप्रिया की आँखें बंद हो गई और वो सिसकारियां लेने लगी। वो अब इतनी गरम हों गई कि जोश में एक हाथ जग्गू के और पर रखकर योनि पर चेहरा उसका दबाने लगी। जग्गू के लिए अब समझो इशारा ही काफी था। तुरंत अपने लिंग को योनि में डालकर सुप्रिया के ऊपर लेटकर धक्का मारने लगा। फिर दोनों हाथों से स्तनों को दबाकर चूमने लगा सुप्रिया के होठ को।
दोनों फिर एक दूसरे की आंखों में आंखे डालकर देखने लगे। दोनों ने जैसे अब एक दूसरे को स्वीकार कर लिया।
"तुम सुप्रिया अब से मेरी हो। अब जो मेरा मन करेगा वो मैं तुम्हारे साथ करूंगा।"
सुप्रिया की आँखें बंद हो गईबौर वो मीठे दर्द को झेलते हुए पूरी तरह से खुद को जग्गू के हवाले कर देती है। जग्गू सुप्रिया के गले को चाटते हुए हल्के से दांत से काटता है। सुप्रिया दर्द से चिल्लाई।
"आराम से जग्गू मैं भागे थोड़ी न जा रही हूं।"
"भागकर कहां जाओगी ? और अगर भागने में सफल हुई तो कैसे करके ढूंढ लूंगा और यहां कैदी बनाकर संभोग करूंगा।"
जग्गू ने धक्का जारी रखा और आखिर में वो सुप्रिया की योनि में झड़ गया। दोनों जैसे हफ्ते हुए बिस्तर पर नंगे सो गए। बारिश अभी भी जारी है। दोनों की नींद जब उड़ी तो जग्गू ने फिर संभोग जारी रखा। देखते देखते रात से सुबह कब हुई दोनों को पता न चला।
सुबह होते ही सुप्रिया उठी तो देखा कि जग्गू बिस्तर पर नहीं है। बाहर जाकर देख तो जग्गू कौशिक के साथ है और वो उसे खिला रहा है। सुप्रिया यह देखकर मुस्कुरा दी। सुप्रिया अपने आप से बोली "कितना खयाल रखते है जग्गू मेरे कौशिक का। सच में गंगू को कौशिक की चिंता करने की जरूरत नहीं। आखिर जग्गू जो है।"
सुप्रिया ने घर को थोड़ी सफाई को और फिर नहाने के लिए गई। जग्गू ने कौशिक को सुला दिया। सुप्रिया को ढूंढते ढूंढते बाथरूम के बाहर आया। ये वो जमाना है जहां गांव में बाथरूम का दरवाजा नहीं पर्दा होता था। जग्गू पर्दे को हटाकर अंदर घुस आया। सुप्रिया नग्न अवस्था में थी। सुप्रिया चौक गई और बोली "जग्गू ये क्या है। अंदर क्यों आए ?"
बाथरूम काफी बड़ा होने को वजह से सुप्रिया उठकर किनारे आ गई। जग्गू सुप्रिया का हाथ खींचकर बाहों में भरते हुए बोला "तुम्हारे साथ नहाने आया हूं। और वैसे भी ये घर और तुम मेरी हो मेरा जो मर्जी करेगा वो करूंगा।"
सुप्रिया शरमाते हुए बोली "बदमाश हो तुम।"
"तो आओ न मेरी रानी इस बदमाश के साथ नहाने।"
"कहां ?"
घर के छत पर। बारिश में नहाने।"
"रुको मुझे कपड़े पहनने दो।"
"पहन लो वैसे भी उतर हो दूंगा कुछ ही देर में।"
ब्लाउज पेटीकोट में खड़ी सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू घर की छत पर ले गया। सुप्रिया का बदन इतना गोरा था कि कोई भी आदमी उसके बदन को देख बौखला जाए। जग्गू और सुप्रिया हाथ पकड़कर एक दूसरे का बारिश का आनंद ले रहे थे। जग्गू घुटने के बल बैठा और सुप्रिया के कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसके गोरे गोरे पेट को चूम रहा था। सुप्रिया ने दोनों हाथ से जग्गू के चेहरे को अपने पेट पर दना दिया। बारिश की बूंदे गोरे पेट पर पड़ते ही जग्गू उस पानी को मुंह में भरकर पी रहा था। सुप्रिया ने अपने ब्लाउज और ब्रा को उतारकर दूर फेक दिया। जग्गू उठ गया और सुप्रियाको गले लगा लिया। उसके स्तन को जोर जोर से मसलकर चूस रहा था। सुप्रिया ने जग्गू के कपड़े को उतारकर फेक दिया। दोनों एक दूसरे को बाहों मेंखो गए। सुप्रिया को छत की जमीन पर लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया। दोनों बारिश में भीगकर एक दूसरे का संभोग में साथ दे रहे थे। सुप्रिया के पेटीकोट को ऊपर करके जग्गू अपने लोग को योनि में डालकर धक्का देने लगा। बारी के ठंडे पानी में दोनों का बदन संभोग की आग में तप रहा था। जग्गू और सुप्रिया लंबे समय तक एक दूसरे के बदन को घिस रहे थे। उसके बाद जग्गू सुप्रिया को योनि में झड़ गया।
सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू उसे अपने कमरे में ले गया और फिर सुप्रिया की आवाज़ पूरे घर में गूंजने लगी।
गंगू और जग्गू दोनों साथ में रहते।
"और बताओ चाचा। सुप्रिया ने परेशान तो नहीं किया ?" गंगू ने पूछा।
"नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं। लेकिन तुम इतनी कम बार क्यों आते हो ?"
"क्या करूं चाचा। काम बहुत रहता है। और अब एक बूरी खबर भी है।"
"क्या ?" जग्गू ने हैरान होकर पूछा।
"अरे अंतू गांव का अगले महीने साल गिरा है। अगले महीने गांव के पास दो गांव में मेला भी है। ये सब के कारण मैं एक महीने वहां ही रहूंगा। क्या करूं काम भी तो इतना है।"
जग्गू मन ही मन बोला "यह तो अच्छी बात नहीं। इस वक्त तो कौशिक को तुम्हारी जरूरत है। आखिर ऐसे कैसे चलेगा ?"
गंगू को जागी ने बहुत समझाया लेकिन गंगू माना नहीं। ऐसे ही रात हो गईं। सभी सोने की तैयारी कर रहे थे। कौशिक जग्गू से अलग हो नहीब्राह था इसीलिए वो जग्गू के साथ ही सोएगा। सुप्रिया ने भी काम पूरा किया और अपने कमरे चली गई।
लालटेन लेकर कमरे में गई तो देखा गंगू नंगा लेटा हुआ था। सुप्रिया समझ गई कि आज गंगू उसके साथ संभोग करने चाहता हैं। गंगू ने सुप्रिया को पास आने का इशारा किया।
"आओ मेरी रानी। उतारो ये कपड़े और अपने पति की बाहों में आ जाओ। बहुत कमर मटकाती हो न। आज तो तुम्हे छोडूंगा नहीं।"
सुप्रिया बिस्तर के पास पहुंची कि गंगू ने हाथ पकड़ लिया और बिस्तर पर अपने पास खींचा। तुरंत सुप्रिया के पल्लू को नीचे गिरते हुए नाभि को चूमते हुए बोला "वहां जब भी तुम्हे याद करता था न मुझे तो सच में आग सी लग जाती थी।"
"मुझे भी तो अंदर से आग लगती थी। तुम तो आते नहीं। अब एक महीना कैसे रहूंगी ?"
"कल का छोड़ अभी का देख मेरी रानी। बहुत आग भरी है मुझमें आज रात उतर दूंगा।"
"वह मेरे बूढ़े पति तो उतारो न मुखपर अपनी गर्मी।"
गंगू सुप्रिया के बदन से सारे कपड़े उतार दिया। सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। सुप्रिया ने गंगू को बाहों में भर लिया। कुछ देर होठ से होठ चुंबन के बाद गंगू ने सुप्रिया के हाथ ऊपर कर दिया और बगल को सूंघते हुए कहा "इसकी खुशबू अलग हैं। सच में मैने तुम जैसी जवान और खूबसूरत औरत को प्यार में फसाकर शादी कर ही लिया।"
सुप्रिया के योनि में लिंग डालते हुए गंगू धक्का देने लगा। सुप्रिया संभोग के आनंद में डूब गई और बोली "तुमसे शादी करके मैने सबसे अच्छा काम किया। आखिर मेरी जवानी तुम्हारे काम आ गई।"
"आह्ह्ह तुम्हारी जवानी को तो मैं ही भोग सकता हूं। सुप्रिया ऊऊ आह आह बहुत कमर मटकाकर चलती हो न। नजाने कितने मर्दों को मार दिया तुमने।"
शिल्पा के मुंह में थूक डालते हुए गंगू शिल्पा के कंधे को हल्के से काटा और बोला "क्या नाजुक जिस्म से तुम्हारा। इसके तो हर हिस्से को प्यार करूंगा। बोलो सुप्रिया मुझसे प्यार करती हो न।"
सुप्रिया धक्का खाते हुए बोली "तुम तो मेरे जिस्म में बस चुके हो। आदत हो गई तुम्हारी। और जोर से। पागल हूं तुम्हारे प्यार में। गंगू मुझे हर रोज ऐसे ही बिस्तर पर प्यार करो। रोज तुम्हारी याद में तड़पती हूं। पागल कर दिया तुमने मुझे। प्लीज मेरे होठ पर होठ डालो न।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूसता रहा। धक्का देते देते वो अंदर तक झड़ गया। अब सुप्रिया को उल्टा करके लिंग गांड़ में घुस दिया।
"साड़ी में गेंद मटकाती हों न। आज इसको पूरी तरह से फाड़ दूंगा।" गुनगुने सुप्रिया की गेंद में जोर का थप्पड़ मारा।
"आह मेरे ज़ालिम मर्द। तुम्हारे लिए जिन्हें ये जिस्म। रोज इसे अपने शरीर से डबल और मेरी जवानी को लूटते रहो।"
"तुम्हे बिस्तर पर इतना प्यार करता हूं लेकिन मन नहीं भरता।"
गंगू दोनों हाथों से स्तन को दबाकर गांड़ पर धक्का दिए जा रहा था। सुप्रिया की आवाज निकलने लगी। सुप्रिया और गंगू के संभोग को बाहर दरवाजे पर कान लगाए जग्गू सुन रहा था। उसके अंदर अब आग बढ़ने लगी। वो बस गंगू के जाने का इंतजार कर रहा था।
संभोग के आनंद में डूबी सुप्रिया का जोश ठंडा पड़ गया जब लंबे समय के संभोग के बाद गंगू थका हारा लेट गया। सुप्रिया बहुत संतुष्ट महसूस कर रही थी। दिन घंटे तक दोनों मियां बीवी नंगे एक दूसरे को बाहों में सो रहे थे। तभी रात के करीब 2 बजे गंगू की आंख खुली और वो फिर से शुरू हो गया। सुप्रिया के स्तन को चूमने चाटने लगा। इस बार पहले से ज्यादा तेजी से सुप्रिया के साथ संभोग कर रहा था।
ऐसे ही दो दिन कब नीत गए पता न चला। फिर आया रविवार की रात और गंगू अंतू गांव वापिस चल गया। जग्गू अब पूरे एक महीना सुप्रिया के साथ अकेला रहेगा और दूर दूर तक कोई नहीं आएगा उनके बीच।
अगली सुबह सुप्रिया कॉलेज जाने के लिए उठ गईं। नहा धोकर वो साड़ी पहनकर कॉलेज के तैयार हुई। वो रसोईघर पहुंची और अपने लिए चाय बनाया। जग्गू के लिए भी चाय बनाया। जग्गू के कमरे में सुप्रिया आ पहुंची। उस वक्त जग्गू अपने बिस्तर पर था। सुप्रिया को देख बोला "तुम मुझे सोने कब दोगी ?"
सुप्रिया हरिना होकर पूछी "मैने क्या किया ? अभी अभी तो आई मैं।"
जग्गू बोला "ऐसी जवानी सामने रहेगी तो नींद कैसे आएगी ?"
"देखो फालतू की बात मत करो। मुझे जाना है काम पर।"
जग्गू पूछा "कॉलेज जा रही हो ? मत जाओ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि बारिश आनेवाली है। और कॉलेज करीब नहीं है।"
"वो मेरी समस्या है। मैं देख लूंगी।"
सुप्रिया कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंचते ही दरवाजा बंद दिखा कॉलेज का। सुप्रिया ने देखा कि गेट पर नोटिस चिपका हुआ था जिसमें लिखा था कि कॉलेज एक हफ्ते तक नहीं खुलेगा क्योंकि भारी बारिश की आगाही है। सुप्रिया को फिर बदल गरजने की आवाज आई।
सोचा जल्द से जल्द घर पहुंच जाए। सुप्रिया को रोज लेने छोड़ने का काम साइकिल रिक्शा चलानेवाला लल्लन नाम का आदमी करता है। लल्लन की उम्र 66 साल की है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से ये काम करना पड़ता है। (खैर लल्लन का किरदार अभी जरूरी नहीं है)
लल्लन सुप्रिया को घर छोड़ने के लिए रिक्शा को आगे बढ़ाया। घर कॉलेज से 8 किलोमीटर दूर है। 45 मिनिट लगता है रास्ता पूरा करने में। सुप्रिया बस घर से नजदीक पहुंच ही रखी थी जोरदार बारिश आ गई। सुप्रिया भागते हुए घर की तरफ बड़ी। घर तक पहुंची थी कि पूरा बदन और कपड़ा भीग गया। काले साड़ी और sleveless ब्लाउज में सुप्रिया का पूरा बदन पानी की गिरफ्त में आ गया।
घर के अंदर घुसते ही सुप्रिया ने देखा कि उसका कमरे की खिड़की खुली थी जिस वजह से फर्श पर पानी भर गया। खिड़की के पास पड़े सारे कपड़े भीग गए। सुप्रिया के लिए जैसे मुसीबत सी आ गई। खिड़की बंद करके देखा कि कमरा रहने लायक नहीं था। अब करे तो क्या करे। 3 कमरे और थे लेकिन साफ सफाई बाकी थी। यही बात सोचते सोचते सुप्रिया को 20मिनिट लग गए। शरीर गीले होने की वजह से ठंडी लगने लगी। तभी जग्गू आया और बोला "कहा था न मैने भीग जाओगी लेकिन मेरी बात कौन मानता है।"
"हां बात तो सही कही थी आपने।"
"कॉलेज से वापिस क्यों आई ?"
सुप्रिया ने जग्गू को सारी बात बताई। बात सुनकर जग्गू खुश हुआ। पूरे एक हफ्ते सुप्रिया और वो अकेले रहेंगे वो भी पूरे दिन।
"अरे देखो कैसे तुम्हारा बदन भीगा हुआ है। आओ मेरे कमरे में आओ और कपड़े बदल लो। तुम्हारी एक साड़ी मैने संभलकर रखी है।"
सुप्रिया के पास कोई चारा न था। और वो जग्गू के कमरे चली गई। जग्गू पीछे पीछे आकर कमरे में पहुंच गया।
सुप्रिया बोली "जाओ यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"अरे मैने कब मना किया। मेरे सामने भी बदल सकती हो।" जग्गू ने छेड़ते हुए कहा।
"चुप करो। परेशान मत करो और जो यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"वैसे सुप्रिया जल्दी करना।"
सुप्रिया के पास गुस्सा करने का वक्त नहीं था। अपने कपड़े बदलकर सुप्रिया बाहर आई। पीले रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में वो बाहर निकली। सुप्रिया जानती थी कि जग्गू उसके पीछे पड़ा रहेगा। सुप्रिया मुख्य दरवाजे पर बैठकर बारिश को देख रही थी। पूरा खाली हैं और कोई चहल पहल नहीं। सुप्रिया को यह गांव जैसे अच्छा लगा। कोई नहीं मिलो दूर। नदी कई सारे खंडर घर। जिधर चाहे उधर रह सकती है, कोई कुछ नहीं बोलेगा। बारिश बहुत तेजी से चल रही थी। सुप्रिया मगन होकर खो गई। रही बात कौशिक की तो जग्गू ने उसे सुला दिया। उसके बाद जग्गू मुख्य दरवाजे के पास बैठी सुप्रिया के पास पहुंचा। पीछा से जग्गू ने सुप्रिया के पास आकर बोला "क्या देख रहीं हो मेरी बुलबुल ?"
"यही देख रही हूं कि इस खूबसूरत जगह पर आप जैसे बेकार आदमी कहां से आ गया ?"
"अरे वाह। क्या जवाब दिया।"
सुप्रिया तिरछी मुस्कान के साथ बोली "आप एक शादीशुदा औरत के पीछे क्यों पड़े हों?"
"प्यार में हिस्सा बांटने।"
"कहना क्या चाहते हो ?"
"मुझे पता है अगर मैने कुछ बोल दिया तो तुम्हे बुरा लग जायेगा।"
"अगर हिम्मत है तो साफ साफ बोलो।"
"सरजू और गंगू दोनों को तो तुम प्यार करती थी।"
सुप्रिया बोली "जिस एहसास के बारे में न पता हो तो मत ही बोलो।"
"वो एहसास मुझे भी चाहिए। मुझे सिर्फ तुम चाहिए।" इतना कहकर जग्गू सुप्रिया को पीछे से बाहों में भर लिया।
"छोड़ो मुझे। ये गलत कर रहे हो।"
"प्यार करता हूं तुमसे। तुम्हारी जवानी ने मुझे पागल कर दिया।" जग्गू सुप्रिया को मजबूती से बाहों में भर लेता है।
"जग्गू छोड़ो ये सब। तुम ऐसा मत करो।"
जग्गू सुप्रिया है हाथ पकड़ लिया और जबरजस्ती अपने कमरे में ले गया। सुप्रिया नजाने क्यों अपना जोर नहीं लगा पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को लेकर अपने कमरे में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुप्रिया तो जैसे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को दोनों कंधे पर हाथ रखा और उसकी आंखों में देख रहा था।
"सुप्रिया आज हमारे बीच कोई नहीं आएगा।" सुप्रिया को जग्गू ने बिस्तर पर लिटा दिया। सुप्रिया जैसे प्रतिकार देते देते थक गई। अगर प्रतिकार करेगी तो भिन्कू फायदा नहीं। पूरे गांव में कोई नहीं। मिलो दूर कोई नहीं और ऊपर से बिगड़ता मौसम। जग्गू अपने कपड़े उतार चुका था। उसके पूरे काले शरीर पर सफेद बाल थे। चमड़ी पूरी तरह से लटकी हुई थी। और उसी काले बूढ़े शरीर को लेकर सुप्रिया के करीब आया और बोला "आज मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए।"
"ये ठीक नहीं जग्गू। छोड़ दो मुझे।"
"सुप्रिया आज तुम्हारे साथ जो होगा उसे रोकने के लिए कोई नहीं है मिलो दूर तक। तुम चीखों चिल्लाओ लेकिन कोई नहीं आ पाएगा। बस सुप्रिया एक बार मेरी हो जाओ।"
जग्गू के दिमाग में संभोग इस तरह घुस गया कि आज सुप्रिया के साथ वो जोर जबरजस्ती भी कर सकता है। सुप्रिया के पल्लू को हटाकर जग्गू बोला "जब भी तुम इन साड़ी में चलती थी नजाने इतनी आग लगती थी दिल पर की पूछो मत।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को हल्के से चूमते हुए बोला "गांगुनके साथ संभोग करते वक्त तो बहुत आवाजें निकल रही थी। अब मेरी बारी। गंगू का एहसास तुम्हे बुला दूंगा। आज के बाद तुम्हारे जिस्म पर मेरा हक होगा।"
जाग सुप्रिया के गोरे पैर को चूमने लगा।
"देखो कितना सुंदर है ये जिस्म। सुप्रिया तुमने सच्ची में मुझे अपनी ओर आकर्षित किया है। अब तो रोज ऐसे ही तुम्हारे साथ बिस्तर पर दिन गुजरूंगा।"
"जग्गू छोड़ो ये सब। क्यों आखिर मुझे पाने के लिए हदें पार कर रहे हो ?"
"क्योंकि अब यही रास्ता बचा है।"
"मैं कैसे तुम्हे अपना जिस्म दे सकती हूं। मेरे और गंगू के रिश्ते में कड़वाहट भर जाएगी।"
"कोई कड़वाहट नहीं भरेगी। क्योंकि अब गंगू भी यहां ज्यादा नहीं रहता। उसे क्या हमारे बारे में पता चलेगा।"
जग्गू ने पल्लू पर हाथ रखा। पल्लू पर हाथ पड़ते ही सुप्रिया ने हाथ को पकड़ते हुए रोका और कहा "देखो ये सही नहीं कर रहे। तुम इस जल्दबाजी सोच में मुश्किलें खड़ी कर रहे हो। मेरी और अपनी भी।"
"मुश्किलें खड़ी हो सकती है मेरे लिए अगर तुम मुझे न मिली। सुप्रिया आज जितना भी कोशिश कर लो। मैं रुकनेवाला नहीं।"
सुप्रिया का पल्लू खींचकर जमीन पर गिरा दिया। सुप्रिया के स्तन की दरार को देख जग्गू से रहा नहीं गया और तुरंत उल्टा होकर सुप्रिया को अपने ऊपर लिटाकर पीछे से ब्लाउज को खोलकर फेक दिया। फिर ब्रा को जबरजस्ती के साथ खोलकर फेक दिया। कुछ ही पल में सुप्रिया के बदन में एक भी कपड़ा न बचा।
"सुप्रिया आज तुम्हे बताऊंगा कि मैं तुम्हे पाने के लिया क्या क्या कर सकता हूं।"
सुप्रिया को बिस्तर पर सीधा लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया और स्तन को चूसने लगा। सुप्रिया ने अब विरोध करना बंद कर दिया। जग्गू गले को चूमकर जुबान बाहर निकालकर चाटने लगा।
"सुप्रिया इस तड़प ने मुझे क्या से क्या बना दिया। अब से तुम्हे मेरे साथ भी संभोग करना होगा। अब बहुत जल्द गंगू से ज्यादा मैं इसी कमरे में तुमसे प्यार करूंगा। भूल जाओ अब गंगू के कमरे को और मेरे कमरे में अब से तुम रहोगी।"
सुप्रिया के नाभि को चूमते हुए बोला "शहर से आई यह पारी हम गांव के बुढ़े लोगों की अमानत है।"
"तुमने जबरजस्ती क्यों की। छोड़ दो मुझे वरना आज मर्यादा टूट जायेगा।"
सुप्रिया की बात सुनकर जग्गू खुश हुआ और बोला "अब से कोई मर्यादा नहीं सुप्रिया। गंगू वहां और तुम उसके चाचा के बिस्तर में। और फिर क्या पता यहीं चाचा तेरा हमसफर बन जाए।"
"लगता है जग्गू अब तुमसे लड़ने का कोई फायदा नहीं क्योंकि तुम मुझे छोड़नेवाले नहीं।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। होठ के अंदर अपनी जीभ को डालते हुए जग्गू सुप्रिया को गरम करने में कामयाब हो रहा था।
"सुप्रिया। तुम्हे जब पहली बार देख तभी से सोच लिया था कि तुम्हे मैं संभोग का साथ बनकरो रहूंगा।"
जग्गू सुप्रिया के योनि पर अपनी जीभ डाल चुका था। सुप्रिया की आँखें बंद हो गई और वो सिसकारियां लेने लगी। वो अब इतनी गरम हों गई कि जोश में एक हाथ जग्गू के और पर रखकर योनि पर चेहरा उसका दबाने लगी। जग्गू के लिए अब समझो इशारा ही काफी था। तुरंत अपने लिंग को योनि में डालकर सुप्रिया के ऊपर लेटकर धक्का मारने लगा। फिर दोनों हाथों से स्तनों को दबाकर चूमने लगा सुप्रिया के होठ को।
दोनों फिर एक दूसरे की आंखों में आंखे डालकर देखने लगे। दोनों ने जैसे अब एक दूसरे को स्वीकार कर लिया।
"तुम सुप्रिया अब से मेरी हो। अब जो मेरा मन करेगा वो मैं तुम्हारे साथ करूंगा।"
सुप्रिया की आँखें बंद हो गईबौर वो मीठे दर्द को झेलते हुए पूरी तरह से खुद को जग्गू के हवाले कर देती है। जग्गू सुप्रिया के गले को चाटते हुए हल्के से दांत से काटता है। सुप्रिया दर्द से चिल्लाई।
"आराम से जग्गू मैं भागे थोड़ी न जा रही हूं।"
"भागकर कहां जाओगी ? और अगर भागने में सफल हुई तो कैसे करके ढूंढ लूंगा और यहां कैदी बनाकर संभोग करूंगा।"
जग्गू ने धक्का जारी रखा और आखिर में वो सुप्रिया की योनि में झड़ गया। दोनों जैसे हफ्ते हुए बिस्तर पर नंगे सो गए। बारिश अभी भी जारी है। दोनों की नींद जब उड़ी तो जग्गू ने फिर संभोग जारी रखा। देखते देखते रात से सुबह कब हुई दोनों को पता न चला।
सुबह होते ही सुप्रिया उठी तो देखा कि जग्गू बिस्तर पर नहीं है। बाहर जाकर देख तो जग्गू कौशिक के साथ है और वो उसे खिला रहा है। सुप्रिया यह देखकर मुस्कुरा दी। सुप्रिया अपने आप से बोली "कितना खयाल रखते है जग्गू मेरे कौशिक का। सच में गंगू को कौशिक की चिंता करने की जरूरत नहीं। आखिर जग्गू जो है।"
सुप्रिया ने घर को थोड़ी सफाई को और फिर नहाने के लिए गई। जग्गू ने कौशिक को सुला दिया। सुप्रिया को ढूंढते ढूंढते बाथरूम के बाहर आया। ये वो जमाना है जहां गांव में बाथरूम का दरवाजा नहीं पर्दा होता था। जग्गू पर्दे को हटाकर अंदर घुस आया। सुप्रिया नग्न अवस्था में थी। सुप्रिया चौक गई और बोली "जग्गू ये क्या है। अंदर क्यों आए ?"
बाथरूम काफी बड़ा होने को वजह से सुप्रिया उठकर किनारे आ गई। जग्गू सुप्रिया का हाथ खींचकर बाहों में भरते हुए बोला "तुम्हारे साथ नहाने आया हूं। और वैसे भी ये घर और तुम मेरी हो मेरा जो मर्जी करेगा वो करूंगा।"
सुप्रिया शरमाते हुए बोली "बदमाश हो तुम।"
"तो आओ न मेरी रानी इस बदमाश के साथ नहाने।"
"कहां ?"
घर के छत पर। बारिश में नहाने।"
"रुको मुझे कपड़े पहनने दो।"
"पहन लो वैसे भी उतर हो दूंगा कुछ ही देर में।"
ब्लाउज पेटीकोट में खड़ी सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू घर की छत पर ले गया। सुप्रिया का बदन इतना गोरा था कि कोई भी आदमी उसके बदन को देख बौखला जाए। जग्गू और सुप्रिया हाथ पकड़कर एक दूसरे का बारिश का आनंद ले रहे थे। जग्गू घुटने के बल बैठा और सुप्रिया के कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसके गोरे गोरे पेट को चूम रहा था। सुप्रिया ने दोनों हाथ से जग्गू के चेहरे को अपने पेट पर दना दिया। बारिश की बूंदे गोरे पेट पर पड़ते ही जग्गू उस पानी को मुंह में भरकर पी रहा था। सुप्रिया ने अपने ब्लाउज और ब्रा को उतारकर दूर फेक दिया। जग्गू उठ गया और सुप्रियाको गले लगा लिया। उसके स्तन को जोर जोर से मसलकर चूस रहा था। सुप्रिया ने जग्गू के कपड़े को उतारकर फेक दिया। दोनों एक दूसरे को बाहों मेंखो गए। सुप्रिया को छत की जमीन पर लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया। दोनों बारिश में भीगकर एक दूसरे का संभोग में साथ दे रहे थे। सुप्रिया के पेटीकोट को ऊपर करके जग्गू अपने लोग को योनि में डालकर धक्का देने लगा। बारी के ठंडे पानी में दोनों का बदन संभोग की आग में तप रहा था। जग्गू और सुप्रिया लंबे समय तक एक दूसरे के बदन को घिस रहे थे। उसके बाद जग्गू सुप्रिया को योनि में झड़ गया।
सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू उसे अपने कमरे में ले गया और फिर सुप्रिया की आवाज़ पूरे घर में गूंजने लगी।