29-10-2024, 04:49 PM
"अर्रे इसी लिए तो इत्तन्ना तेल लगा कर तईय्यार हैं। तुम घबराओ नहीं। तुम्हारा गांड़ को कुच्छ ना होने देंगे।" वह मुझे टेबल की तरफ ढकेलते हुए बोला।
"नहीं प्लीज़।" मैं धक्के खाकर टेबल से जा टकराई। दरअसल मुझमें विरोध करने की न तो कोई खास ताकत बची थी और न ही इच्छा।
"चुप साली रंडी। पिलीज बोलती है। चल पलट कर टेबल पर झुक जा।" वह बोला और मेरे पलट कर झुकने से पहले ही खुद ही मुझे पलट दिया और टेबल पर औंधे मुंह झुका दिया और पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ लिया। वह न सिर्फ मेरी चूचियों को पकड़ा बल्कि अपनी हथेलियों से मसलने लगा।
"ओओओओओहहहहह.... धीरे आआआआआआह...." मैं मस्ती में आ कर बुदबुदा उठी।
"हमको धीरे और जोर का फरक पता नहीं। तुमको मज्जा आ रहा है ना।" वह अपना लंड मेरी गान्ड की दरार पर रगड़ना आरंभ कर दिया।
"आह इस्स्स्स्स्.... पूछ काहे रहे हो, आआआआआआह करो ना...." मैं आंखें बंद किए हुए टेबल पर झुकी झुकी बोल उठी।
"ओ हो, ई बात है..... " कह कर वह एक हाथ से अपने लंड को मेरी गान्ड की छेद पर टिका दिया। मैं समझ गई कि अब मेरी गान्ड का फालूदा बनने वाला है। मैं ने दांत भींच लिया। उधर रघु अपने लंड पर दबाव देने लगा। तेल से चुपड़ा होने के कारण उसका लंड मेरी गान्ड के छेद को खोलता हुआ फिसलते हुए अंदर दाखिल होने लगा। ओह ओह, मेरे गांड़ के छेद को उसका लंड फैलाता जा रहा था और जबर्दस्ती घुसता जा रहा था। उफ उफ, जैसे ही उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गान्ड के अंदर दाखिल हुआ, फिर तो सरसराता हुआ घुसता ही चला गया।
"आआआआआआह.... " मैं कराह उठी। जी हां, हल्की हल्की पीड़ा हो रही थी, उतना मोटा जो था। लेकिन एक अजीब तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी। दरअसल रघु जिस तरह से मेरी चूचियों के साथ खेल रहा था, उसका भी सुखद अहसास मुझे महसूस हो रहा था जिसके कारण मेरी गान्ड में जो पीड़ा हो रही थी, वह मुझे ज्यादा परेशान नहीं कर रहा था। मेरी गान्ड के रास्ते घुसता हुआ उसका लंड मेरी गुदा के अंदर की भीतरी दीवारों में जो घर्षण पैदा कर रहा था वह संवेदनशील तंत्र के माध्यम से मेरे मन मस्तिष्क तक सनसनाहट भेज रहा था। रघु अपना लन्ड मेरी गान्ड में घुसेड़ कर रुका लेकिन उसका रुकना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
"अब रुका काहे कुत्ता कहीं का।" मेरे मुंह से निकला।
"इत्तन्ना टाईट गांड़ में बड़ा मुश्किल से तो घुसा है। अब घुस्स गया, थोड़ा रुक कर खुश होने तो दे कुतिया।" वह बोला।
"इतनी तकलीफ़ दे कर मेरी पिछाड़ी में जब रास्ता खोल ही दिया तो, अब रुक कर मुझे काहे तड़पा रहे हो? खुद ही अकेले खुशी मना रहा है कमीना, मुझे भी खुश कर हरामी।" मैं तड़प कर बोली।
"अर्रेएएएए मेरी कुतिया, अबतक हाय नहीं हाय नहीं कर रही थी, अब गांड़ मरवाने के लिए मरी जा रही है मां की लौड़ी साली बुरचोदी। ले, अब्ब तू भी देक्ख कईसा मरद से पाला पड़ा है।" कहकर उसने लंड थोड़ा बाहर निकाला और मेरी चूचियों को छोड़कर मेरे कंधों को कस कर पकड़ लिया और घप्प, पूरी ताकत से फिर घुसेड़ दिया।
"आह.... साला जल्लाद ओओओओओहहहहह....." मेरे मुंह से आह निकल पड़ा। यह धक्का जबरदस्त था। पहली बार घुसाने में जो थोड़ी बहुत कसर थी वह भी पूरी हो गई। उसका उतना बड़ा लंड पूरी तरह जड़ तक मेरी गान्ड में समा चुका था। मुझे पीड़ा से छटपटाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस वक्त मुझे अजीब तरह का सुकून मिलने लगा। ओह, अब समझ में आ रहा था कि घुसा, घनश्याम और गंजू ने मिलकर मुझे गांड़ मरवाने का मजा लेना भी सिखा दिया था।
"अब्ब आया मजा मेरी रंडी?" वह बोला।
"नहीं प्लीज़।" मैं धक्के खाकर टेबल से जा टकराई। दरअसल मुझमें विरोध करने की न तो कोई खास ताकत बची थी और न ही इच्छा।
"चुप साली रंडी। पिलीज बोलती है। चल पलट कर टेबल पर झुक जा।" वह बोला और मेरे पलट कर झुकने से पहले ही खुद ही मुझे पलट दिया और टेबल पर औंधे मुंह झुका दिया और पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ लिया। वह न सिर्फ मेरी चूचियों को पकड़ा बल्कि अपनी हथेलियों से मसलने लगा।
"ओओओओओहहहहह.... धीरे आआआआआआह...." मैं मस्ती में आ कर बुदबुदा उठी।
"हमको धीरे और जोर का फरक पता नहीं। तुमको मज्जा आ रहा है ना।" वह अपना लंड मेरी गान्ड की दरार पर रगड़ना आरंभ कर दिया।
"आह इस्स्स्स्स्.... पूछ काहे रहे हो, आआआआआआह करो ना...." मैं आंखें बंद किए हुए टेबल पर झुकी झुकी बोल उठी।
"ओ हो, ई बात है..... " कह कर वह एक हाथ से अपने लंड को मेरी गान्ड की छेद पर टिका दिया। मैं समझ गई कि अब मेरी गान्ड का फालूदा बनने वाला है। मैं ने दांत भींच लिया। उधर रघु अपने लंड पर दबाव देने लगा। तेल से चुपड़ा होने के कारण उसका लंड मेरी गान्ड के छेद को खोलता हुआ फिसलते हुए अंदर दाखिल होने लगा। ओह ओह, मेरे गांड़ के छेद को उसका लंड फैलाता जा रहा था और जबर्दस्ती घुसता जा रहा था। उफ उफ, जैसे ही उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गान्ड के अंदर दाखिल हुआ, फिर तो सरसराता हुआ घुसता ही चला गया।
"आआआआआआह.... " मैं कराह उठी। जी हां, हल्की हल्की पीड़ा हो रही थी, उतना मोटा जो था। लेकिन एक अजीब तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी। दरअसल रघु जिस तरह से मेरी चूचियों के साथ खेल रहा था, उसका भी सुखद अहसास मुझे महसूस हो रहा था जिसके कारण मेरी गान्ड में जो पीड़ा हो रही थी, वह मुझे ज्यादा परेशान नहीं कर रहा था। मेरी गान्ड के रास्ते घुसता हुआ उसका लंड मेरी गुदा के अंदर की भीतरी दीवारों में जो घर्षण पैदा कर रहा था वह संवेदनशील तंत्र के माध्यम से मेरे मन मस्तिष्क तक सनसनाहट भेज रहा था। रघु अपना लन्ड मेरी गान्ड में घुसेड़ कर रुका लेकिन उसका रुकना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
"अब रुका काहे कुत्ता कहीं का।" मेरे मुंह से निकला।
"इत्तन्ना टाईट गांड़ में बड़ा मुश्किल से तो घुसा है। अब घुस्स गया, थोड़ा रुक कर खुश होने तो दे कुतिया।" वह बोला।
"इतनी तकलीफ़ दे कर मेरी पिछाड़ी में जब रास्ता खोल ही दिया तो, अब रुक कर मुझे काहे तड़पा रहे हो? खुद ही अकेले खुशी मना रहा है कमीना, मुझे भी खुश कर हरामी।" मैं तड़प कर बोली।
"अर्रेएएएए मेरी कुतिया, अबतक हाय नहीं हाय नहीं कर रही थी, अब गांड़ मरवाने के लिए मरी जा रही है मां की लौड़ी साली बुरचोदी। ले, अब्ब तू भी देक्ख कईसा मरद से पाला पड़ा है।" कहकर उसने लंड थोड़ा बाहर निकाला और मेरी चूचियों को छोड़कर मेरे कंधों को कस कर पकड़ लिया और घप्प, पूरी ताकत से फिर घुसेड़ दिया।
"आह.... साला जल्लाद ओओओओओहहहहह....." मेरे मुंह से आह निकल पड़ा। यह धक्का जबरदस्त था। पहली बार घुसाने में जो थोड़ी बहुत कसर थी वह भी पूरी हो गई। उसका उतना बड़ा लंड पूरी तरह जड़ तक मेरी गान्ड में समा चुका था। मुझे पीड़ा से छटपटाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस वक्त मुझे अजीब तरह का सुकून मिलने लगा। ओह, अब समझ में आ रहा था कि घुसा, घनश्याम और गंजू ने मिलकर मुझे गांड़ मरवाने का मजा लेना भी सिखा दिया था।
"अब्ब आया मजा मेरी रंडी?" वह बोला।