30-10-2024, 01:35 PM
जून का महीना था। सुबह सुबह पक्षियों की किलकारी ने सुप्रिया को नींद से जगाया। सुप्रिया नींद से जागकर सुबह सुबह कॉलेज जाने को तैयार होने लगी। सुबह के 5 बजे थे। सुप्रिया घर के आंगन में आई और अपनी साड़ी बाहर लटकाई। खुद नहाने अन्दर चली गई।
नहाने के बाद ब्लाउज और पेटीकोट में सुप्रिया बाहर आंगन आई अपनी साड़ी लेने लेकिन सुप्रिया जैसे ही बाहर आई की सने जग्गू को देखा। जग्गू sleveless ब्लाउज और पेटीकोट में देख सुप्रिया को बस देखता रह गया। शर्म से भागते हुए सुप्रिया अंदरवापिस चली गई।
"ये आप क्या कर रहे है जग्गू जी आप ऐसे कैसे यहां आ गए ? चले जाइए।"
जग्गू बोला "अरे मैं तो बस ऐसे ही आया था लेकिन मैने देखा कि तू।हरि सदी गिरी हुई है सो मैने उठा लिया। रस्सी टूटी हुई है और शादी जमीन पर गिर गई। मैने उसे ठीक किया।"
"अच्छा ठीक है जाइए यहां से।"
"पहले मैं तुम्हे साड़ी तो दे दूं।"
" आप रखकर चले जाएं मैं ले लूंगी।"
जग्गू हंसते हुए बोला "रस्सी टूट गई है सुप्रिया अब वापिस जमीन पर रखूंगा तो खराब हो जायेगा। मैं आ रहा हूं तुम्हे देने।"
सुप्रिया ने अंदर से हाथ बाहर निकाला लेकिन जग्गू ने साड़ी नहीं दी।
"अब दे भी दो साड़ी।"
"नहीं दे सकता। अंदर फर्श गीला होगा। कैसे पहनोगी ? एक काम करते है। पास के कमरे में शादी पहन लो। आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया चिढ़ते हुए बोली "आप क्यों ऐसा कर रहे है। मैं बिना साड़ी के हूं।"
"अरे सुप्रिया मै तो बस मदद कर रहा हूं। और तुम गुस्सा कर रही हो।"
"आप से दो साड़ी मैं कमरे में चली जाऊंगी।"
"अच्छा ठीक है।"
सुप्रिया ने हाथ बाहर फैलाया। जग्गू ने दूसरे हाथ से सुप्रिया का हाथ पकड़ लिया और साड़ी देते हुए कहा "जल्दी आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया की जान में जान आई। लेकिन गुस्सा भैंसे आ रहा था। शादी पहनने के बाद सुप्रिया बाहर आई। सुप्रिया अपने कमरे जैसे ही घुसी कि देखा उसके कमरे में जग्गू था।
"ये क्या है ? आप इस तरह से मेरे कमरे में कैसे घुस गए ?" सुप्रिया ने गुस्से में कहा।
"अरे हमारा बच्चा रो रहा था उसे चुप करवा रहा था। अब देखो वापिस सो गया।"
"हमारा बच्चा ? ये क्या बकवास है ?"
"अरे सुप्रिया। गंगू मेरा बेटा है तो उसका बेटा मेरा बेटा। और वैसे भी तुम भी मेरी ही न। कल तुमने ही तो कहा था कि मेरा तुम पर हक है।"
जग्गू वहां से चल गया। सुप्रिया फिर अपने कॉलेज गई और बच्चे को जग्गू के पास छोड़ गई।
कॉलेज में जाकर भी सुप्रिया को चैन नहीं मिल रहा था। जग्गू तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गया। आखिर करे तो करे क्या ?"
सुप्रिया सोच रही थी कि आखिर कब तक वो जग्गू से भागती रहेगी। क्या गंगू को इसके बारे में बता दे ? लेकिन ये भी सही न लगा। क्योंकि इससे जग्गू और गंगू के रिश्ते खराब हो जायेगा।
आखिर दोपहर हो गई और सुप्रिया घर वापिस आई। घर आके देखा कि उसका बेटा गहरी नींद में सो रहा है और पास में पड़े दूध की बोतल ? खाली थी। मतलब जग्गू ने उसे दूध पिलाकर सुला दिया। सुप्रिया अपने कपड़े आंगन में वापिस लेने गई जो सूखने को रखा था। वहां पहुंची तो देखा कि कपड़े है ही नहीं।
सुप्रिया ने सोचा कि आखिर सारे कपड़े गए कहां। जग्गू के भी कपड़े नहीं थे। सुप्रिया जग्गू के कमरे की तरफ गई। वहां देखा कि उसकी ब्रा और पेटीकोट कपड़े सहित उसके कमरे में है। सुप्रिया को यह बिल्कुल भी अच्छा न लगा और वो दौड़ते हुए जग्गू के कमरे में घुसी।
सुप्रिया को अंदर देख जग्गू खुशी से उठ गया और बोला "आ गई तुम ? बहुत देरी की आने में। आओ न मेरे पास।"
"क्या मैं पूछ सकती हूं कि मेरे कपड़े तुम्हारे कमरे में क्या कर रहे है ?"
"अरे हां। वो क्या है न कि कपड़े मेरे और तुम्हारे सुख गए तो सोचा बाहर हवा की वजह से न उसे तो इसीलिए मैने अपने कमरे में रख लिया।"
"मेरे कपड़े वापिस करो।" सुप्रिया ने सख्त आवाज में कहा।
"तो ले लो न। मैने कहां माना किया।"
सुप्रिया कपड़े लेकर बाहर चली गई। सुप्रिया दोपहर को अपने बिस्तर पर लेती हुई थी। वो किसी गहरी सोच में थी कि बाहर खिड़की से जग्गू उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। सुप्रिया ने जग्गू को देख लिया।
"तुम यहां क्या कर रहे हो ?" सुप्रिया ने गुस्से से पूछा।
"देखो न मैं अकेला हूं। और तुम लेटी हुई हो। वैसे भी गंगू ने तुमसे कहा था न मेरे पास रहने को।"
सुप्रिया कुछ न बोली। अगले ही पल खिड़की से कूदकर जग्गू उसके कमरे में आ गया।
"देखो अब तुम हद पार कर रहे हो। ऐसे कैसे आ गए अंदर ?"
"अरे सुप्रिया। तुम क्यों इतना गुस्सा करती हो। वैसे भी मेरा हक है तुम पर ऐसा कहा था न तुमने ?"
"तो मैं क्या करें ?"
"मुझे हक जताने दो।" इतना कहकर जग्गू पास आ गया सुप्रिया के।
सुप्रिया कुछ न कह सकी। जग्गू हल्के से सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "पूरे गांव में हम अकेले है। क्यों न मुझे इसका फायदा उठाना चाहिए।"
"बकवास बंद करो।"
जग्गू सुप्रिया के कमर पर हाथ रखकर कहा "देखो सुप्रिया अब तो सिर्फ मै ही यहां पर हूं और मुझसे क्यों दूर भाग रही हो ?"
"ये मत करो। तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो ?"
जग्गू सुप्रिया को पीछे से जकड़ते हुए कहा "क्योंकि तुम मेरी हो।"
"बस बहुत हुआ।"
जग्गू सुप्रिया के कंधे को चूमते हुए कहा "सुप्रिया तुम मेरी हो जाओ। वरना मुझे तो तुम रोक नहीं सकती। चुपचाप मेरी बाहों में आ जाओ। क्योंकि अब तुम मुझसे भाग नहीं सकती।" जग्गू सुप्रिया को बिस्तर पर लिटा दिया और कहा "सुप्रिया अब तुम्हे मेरा होना ही होगा। क्योंकि मैं तुम्हे अब यहां से कभी जाने नहीं दूंगा।"
जग्गू ने सुप्रिया के नाभि को चूम लिया। सुप्रिया की आँखें बंद रह गई और बोली "छोड़ दो मुझे। ये सही नहीं है।"
जग्गू फिर से नाभि को चूमते हुए बोला "एक आदमी को औरत की जरूरत रहती है। और तुम मेरी जरूरत को पूरा करो। मुझसे जिस्मानी सम्बन्ध बना लो। अब सिर्फ यहां मैं ही रहूंगा। और तुम्हे अपना जिस्म मेरे हवाले करना ही होगा।"
जग्गू सुप्रिया के ऊपर लेट गया और इस बार तो सीधा सुप्रिया के सीने पर सिर रखते हुए हाथ उसके स्तन पर रखते हुए कहा "सुप्रिया अगर तुम मेरा साथ दे दो तो मैं तुम्हे खुश रखूंगा। हम दोनों अकेले एक दूसरे को सुख देंगे। सुप्रिया बस एक बार मेरी हो जाओ।"
"जग्गू ये सही नहीं है। तुम ऐसा नहीं कर सकते। मैं गंगू की अमानत हूं।" सुप्रिया इससे पहले कुछ बोल कि जग्गू ने उसके होठ को चूम लिया।
अब जग्गू इससे पहले आगे बढ़े की बच्चे के रोने की आवाज आई। सुप्रिया को खुद से अलग करते हुए जग्गू भाग और बच्चे को चुप करने लगा। सुप्रिया को बहुत अजीब लगा। आखिर जग्गू बच्चे को लेकर इतना गंभीर क्यों रहता हैं। जग्गू बच्चे को रसोई ले गया और वहां से दूध गरम कर कटोरी और चम्मच से दूध पिला रहा था।
सुप्रिया ने एक चीज को ध्यान में रखा जो था जग्गू का बच्चे के प्रत्ये प्रेम और चिंता।
रात हुई और सभी लोग सोने चले गए। सुप्रिया ने जब अपने बच्चे कौशिक को देखा तो उसका शरीर तप रहा था। 1 साल का बच्चा बुखार से तप रहा था। सुप्रिया नाहित घबरा गई। हॉस्पिटल भी दूर था। सुप्रिया ने सोचा कि इतनी रात को कैसे भी करके डॉक्टर के पास जाएगी। सुप्रिया कौशिक को लेकर कमरे से बाहर निकली तो सामने जग्गू को देखा। जग्गू को कौशिक कि तबियत के बारे में बताया।
जग्गू बोला "अरे इतनी रात हॉस्पिटल नहीं खुला रहता। एक काम करो। जल्दी से रसोईघर है और गरम पानी लेकर आओ। मैं कुछ करता हूं।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू थोड़ा सा अधैर्य होकर बोला "अरे जो भी। ऐसा खड़ी मत रहो।"
सुप्रिया तुरंत गरम पानी और कपड़ा लेकर आई। जग्गू बच्चे के सिर पर गर्म पानी से भीगा कपड़ा रख दिया। कुछ देर तक कौशिक को सेका। कौशिक को थोड़ी राहत मिली।
"अब सुनो सुप्रिया। कौशिक को अलग से कमरे में रखो और हां पूरा रजाई से उसे ढांक दो। उसके शरीर को गर्मी की जरूरत है। पसीने से उसके शरीर का ताप उतरेगा।"
सुप्रिया ने वही किया। कौशिक गहरी नींद में था। उसे अलग कमरे में रखकर लालटेन लेकर सुप्रिया बाहर आई। जग्गू बाहर आंगन में था।
"आप सो जाइए। काफी रात हो गई।" सुप्रिया ने कहा।
"इसकी जरूरत नहीं। तुम सो जाओ। वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही।"
"देखिए कौशिक का मै खयाल रख लूंगी। आप सो जाइए।"
"तुम सो जाओ। मैं ठीक हूं।"
"वैसे आपने जो किया उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।"
जग्गू बोला पड़ा "पागल हो क्या ? कौशिक मेरा बच्चा है। उसके लिए कुछ भी करूंगा। और ये धन्यवाद शब्द अपने पास रखो। अपनो के लिए कोई भी ये काम कर सकता है। अब जाओ चुप चाप सो जाओ। कल काम पर भी तुम्हे जान है।
सुप्रिया को यह बात अच्छी लगी और वो चली गई सोने। जग्गू रात भर कौशिक के लिए जग।
नहाने के बाद ब्लाउज और पेटीकोट में सुप्रिया बाहर आंगन आई अपनी साड़ी लेने लेकिन सुप्रिया जैसे ही बाहर आई की सने जग्गू को देखा। जग्गू sleveless ब्लाउज और पेटीकोट में देख सुप्रिया को बस देखता रह गया। शर्म से भागते हुए सुप्रिया अंदरवापिस चली गई।
"ये आप क्या कर रहे है जग्गू जी आप ऐसे कैसे यहां आ गए ? चले जाइए।"
जग्गू बोला "अरे मैं तो बस ऐसे ही आया था लेकिन मैने देखा कि तू।हरि सदी गिरी हुई है सो मैने उठा लिया। रस्सी टूटी हुई है और शादी जमीन पर गिर गई। मैने उसे ठीक किया।"
"अच्छा ठीक है जाइए यहां से।"
"पहले मैं तुम्हे साड़ी तो दे दूं।"
" आप रखकर चले जाएं मैं ले लूंगी।"
जग्गू हंसते हुए बोला "रस्सी टूट गई है सुप्रिया अब वापिस जमीन पर रखूंगा तो खराब हो जायेगा। मैं आ रहा हूं तुम्हे देने।"
सुप्रिया ने अंदर से हाथ बाहर निकाला लेकिन जग्गू ने साड़ी नहीं दी।
"अब दे भी दो साड़ी।"
"नहीं दे सकता। अंदर फर्श गीला होगा। कैसे पहनोगी ? एक काम करते है। पास के कमरे में शादी पहन लो। आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया चिढ़ते हुए बोली "आप क्यों ऐसा कर रहे है। मैं बिना साड़ी के हूं।"
"अरे सुप्रिया मै तो बस मदद कर रहा हूं। और तुम गुस्सा कर रही हो।"
"आप से दो साड़ी मैं कमरे में चली जाऊंगी।"
"अच्छा ठीक है।"
सुप्रिया ने हाथ बाहर फैलाया। जग्गू ने दूसरे हाथ से सुप्रिया का हाथ पकड़ लिया और साड़ी देते हुए कहा "जल्दी आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया की जान में जान आई। लेकिन गुस्सा भैंसे आ रहा था। शादी पहनने के बाद सुप्रिया बाहर आई। सुप्रिया अपने कमरे जैसे ही घुसी कि देखा उसके कमरे में जग्गू था।
"ये क्या है ? आप इस तरह से मेरे कमरे में कैसे घुस गए ?" सुप्रिया ने गुस्से में कहा।
"अरे हमारा बच्चा रो रहा था उसे चुप करवा रहा था। अब देखो वापिस सो गया।"
"हमारा बच्चा ? ये क्या बकवास है ?"
"अरे सुप्रिया। गंगू मेरा बेटा है तो उसका बेटा मेरा बेटा। और वैसे भी तुम भी मेरी ही न। कल तुमने ही तो कहा था कि मेरा तुम पर हक है।"
जग्गू वहां से चल गया। सुप्रिया फिर अपने कॉलेज गई और बच्चे को जग्गू के पास छोड़ गई।
कॉलेज में जाकर भी सुप्रिया को चैन नहीं मिल रहा था। जग्गू तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गया। आखिर करे तो करे क्या ?"
सुप्रिया सोच रही थी कि आखिर कब तक वो जग्गू से भागती रहेगी। क्या गंगू को इसके बारे में बता दे ? लेकिन ये भी सही न लगा। क्योंकि इससे जग्गू और गंगू के रिश्ते खराब हो जायेगा।
आखिर दोपहर हो गई और सुप्रिया घर वापिस आई। घर आके देखा कि उसका बेटा गहरी नींद में सो रहा है और पास में पड़े दूध की बोतल ? खाली थी। मतलब जग्गू ने उसे दूध पिलाकर सुला दिया। सुप्रिया अपने कपड़े आंगन में वापिस लेने गई जो सूखने को रखा था। वहां पहुंची तो देखा कि कपड़े है ही नहीं।
सुप्रिया ने सोचा कि आखिर सारे कपड़े गए कहां। जग्गू के भी कपड़े नहीं थे। सुप्रिया जग्गू के कमरे की तरफ गई। वहां देखा कि उसकी ब्रा और पेटीकोट कपड़े सहित उसके कमरे में है। सुप्रिया को यह बिल्कुल भी अच्छा न लगा और वो दौड़ते हुए जग्गू के कमरे में घुसी।
सुप्रिया को अंदर देख जग्गू खुशी से उठ गया और बोला "आ गई तुम ? बहुत देरी की आने में। आओ न मेरे पास।"
"क्या मैं पूछ सकती हूं कि मेरे कपड़े तुम्हारे कमरे में क्या कर रहे है ?"
"अरे हां। वो क्या है न कि कपड़े मेरे और तुम्हारे सुख गए तो सोचा बाहर हवा की वजह से न उसे तो इसीलिए मैने अपने कमरे में रख लिया।"
"मेरे कपड़े वापिस करो।" सुप्रिया ने सख्त आवाज में कहा।
"तो ले लो न। मैने कहां माना किया।"
सुप्रिया कपड़े लेकर बाहर चली गई। सुप्रिया दोपहर को अपने बिस्तर पर लेती हुई थी। वो किसी गहरी सोच में थी कि बाहर खिड़की से जग्गू उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। सुप्रिया ने जग्गू को देख लिया।
"तुम यहां क्या कर रहे हो ?" सुप्रिया ने गुस्से से पूछा।
"देखो न मैं अकेला हूं। और तुम लेटी हुई हो। वैसे भी गंगू ने तुमसे कहा था न मेरे पास रहने को।"
सुप्रिया कुछ न बोली। अगले ही पल खिड़की से कूदकर जग्गू उसके कमरे में आ गया।
"देखो अब तुम हद पार कर रहे हो। ऐसे कैसे आ गए अंदर ?"
"अरे सुप्रिया। तुम क्यों इतना गुस्सा करती हो। वैसे भी मेरा हक है तुम पर ऐसा कहा था न तुमने ?"
"तो मैं क्या करें ?"
"मुझे हक जताने दो।" इतना कहकर जग्गू पास आ गया सुप्रिया के।
सुप्रिया कुछ न कह सकी। जग्गू हल्के से सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "पूरे गांव में हम अकेले है। क्यों न मुझे इसका फायदा उठाना चाहिए।"
"बकवास बंद करो।"
जग्गू सुप्रिया के कमर पर हाथ रखकर कहा "देखो सुप्रिया अब तो सिर्फ मै ही यहां पर हूं और मुझसे क्यों दूर भाग रही हो ?"
"ये मत करो। तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो ?"
जग्गू सुप्रिया को पीछे से जकड़ते हुए कहा "क्योंकि तुम मेरी हो।"
"बस बहुत हुआ।"
जग्गू सुप्रिया के कंधे को चूमते हुए कहा "सुप्रिया तुम मेरी हो जाओ। वरना मुझे तो तुम रोक नहीं सकती। चुपचाप मेरी बाहों में आ जाओ। क्योंकि अब तुम मुझसे भाग नहीं सकती।" जग्गू सुप्रिया को बिस्तर पर लिटा दिया और कहा "सुप्रिया अब तुम्हे मेरा होना ही होगा। क्योंकि मैं तुम्हे अब यहां से कभी जाने नहीं दूंगा।"
जग्गू ने सुप्रिया के नाभि को चूम लिया। सुप्रिया की आँखें बंद रह गई और बोली "छोड़ दो मुझे। ये सही नहीं है।"
जग्गू फिर से नाभि को चूमते हुए बोला "एक आदमी को औरत की जरूरत रहती है। और तुम मेरी जरूरत को पूरा करो। मुझसे जिस्मानी सम्बन्ध बना लो। अब सिर्फ यहां मैं ही रहूंगा। और तुम्हे अपना जिस्म मेरे हवाले करना ही होगा।"
जग्गू सुप्रिया के ऊपर लेट गया और इस बार तो सीधा सुप्रिया के सीने पर सिर रखते हुए हाथ उसके स्तन पर रखते हुए कहा "सुप्रिया अगर तुम मेरा साथ दे दो तो मैं तुम्हे खुश रखूंगा। हम दोनों अकेले एक दूसरे को सुख देंगे। सुप्रिया बस एक बार मेरी हो जाओ।"
"जग्गू ये सही नहीं है। तुम ऐसा नहीं कर सकते। मैं गंगू की अमानत हूं।" सुप्रिया इससे पहले कुछ बोल कि जग्गू ने उसके होठ को चूम लिया।
अब जग्गू इससे पहले आगे बढ़े की बच्चे के रोने की आवाज आई। सुप्रिया को खुद से अलग करते हुए जग्गू भाग और बच्चे को चुप करने लगा। सुप्रिया को बहुत अजीब लगा। आखिर जग्गू बच्चे को लेकर इतना गंभीर क्यों रहता हैं। जग्गू बच्चे को रसोई ले गया और वहां से दूध गरम कर कटोरी और चम्मच से दूध पिला रहा था।
सुप्रिया ने एक चीज को ध्यान में रखा जो था जग्गू का बच्चे के प्रत्ये प्रेम और चिंता।
रात हुई और सभी लोग सोने चले गए। सुप्रिया ने जब अपने बच्चे कौशिक को देखा तो उसका शरीर तप रहा था। 1 साल का बच्चा बुखार से तप रहा था। सुप्रिया नाहित घबरा गई। हॉस्पिटल भी दूर था। सुप्रिया ने सोचा कि इतनी रात को कैसे भी करके डॉक्टर के पास जाएगी। सुप्रिया कौशिक को लेकर कमरे से बाहर निकली तो सामने जग्गू को देखा। जग्गू को कौशिक कि तबियत के बारे में बताया।
जग्गू बोला "अरे इतनी रात हॉस्पिटल नहीं खुला रहता। एक काम करो। जल्दी से रसोईघर है और गरम पानी लेकर आओ। मैं कुछ करता हूं।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू थोड़ा सा अधैर्य होकर बोला "अरे जो भी। ऐसा खड़ी मत रहो।"
सुप्रिया तुरंत गरम पानी और कपड़ा लेकर आई। जग्गू बच्चे के सिर पर गर्म पानी से भीगा कपड़ा रख दिया। कुछ देर तक कौशिक को सेका। कौशिक को थोड़ी राहत मिली।
"अब सुनो सुप्रिया। कौशिक को अलग से कमरे में रखो और हां पूरा रजाई से उसे ढांक दो। उसके शरीर को गर्मी की जरूरत है। पसीने से उसके शरीर का ताप उतरेगा।"
सुप्रिया ने वही किया। कौशिक गहरी नींद में था। उसे अलग कमरे में रखकर लालटेन लेकर सुप्रिया बाहर आई। जग्गू बाहर आंगन में था।
"आप सो जाइए। काफी रात हो गई।" सुप्रिया ने कहा।
"इसकी जरूरत नहीं। तुम सो जाओ। वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही।"
"देखिए कौशिक का मै खयाल रख लूंगी। आप सो जाइए।"
"तुम सो जाओ। मैं ठीक हूं।"
"वैसे आपने जो किया उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।"
जग्गू बोला पड़ा "पागल हो क्या ? कौशिक मेरा बच्चा है। उसके लिए कुछ भी करूंगा। और ये धन्यवाद शब्द अपने पास रखो। अपनो के लिए कोई भी ये काम कर सकता है। अब जाओ चुप चाप सो जाओ। कल काम पर भी तुम्हे जान है।
सुप्रिया को यह बात अच्छी लगी और वो चली गई सोने। जग्गू रात भर कौशिक के लिए जग।