28-10-2024, 09:13 AM
"नहीं नहीं, यह कककक्या कर रहे हो। वहां नहीं वहां नहीं।" मैं टेबल पर से उठना चाहती थी लेकिन उसने मुझे मजबूती से झुका कर दबा दिया था।
"अरे घबड़ा काहे रही है? हम तेरी गांड़ नहीं मारेंगे। यह लौड़ा तेरी बुर में ही घुसेगा।" उसकी बात सुनकर मैं आश्वस्त हुई और संघर्ष करना छोड़ दी। पीछे से ही अब उसका हाथ मेरी चूचियों पर पहुंच चुका था। वह दोनों हाथों से मेरी चूचियों को पकड़ कर धीरे धीरे दबाने लगा।
"ऊऊऊऊऊऊ मांआंआंआंआ......" मेरे उत्तेजक अंगों से वह कमीना खिलवाड़ कर रहा था जिससे मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी। वह मुझ पर झुक गया था और उसकी गर्म सांसें अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी। तभी उसने मेरी पीठ पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
"आआआआआआह इस्स्स्स्स्....." मैं उत्तेजना के मारे सिसकने लगी थी। इसी दौरान उसका लंड मेरी गान्ड के दरार से नीचे खिसक कर मेरी चूत पर दस्तक देने लगा। मैं गनगना उठी। इधर वह मेरी चूचियों को दबा रहा था, मेरी पीठ को चूम रहा था और रही सही कसर मेरी चूत के दरार पर अपना लंड घिसते हुए निकाल रहा था। मैं तो मानो पागल सी हो गई थी। मेरी चूत से लसलसा पानी निकलने लगा और उस गीली चूत के ऊपर उसका लंड फिसल रहा था। रघु को समझते देर नहीं लगी कि अब मैं चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। सही मौका बन चुका था और निशाने पर लंड रख कर अपनी कमर से एक झटका मार दिया और गच्च से उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर समा गया।
"आह ओह......" मेरी चूत को मानो लॉलीपॉप मिल गया था। मीठा मीठा लॉलीपॉप। इसके बाद तो वह सचमुच कुत्ता बन गया। मेरी कमर पकड़ कर अपने लंड पर दबाव बढ़ाता चला गया और लो, सरसराता हुआ उसका पूरा लंड मेरी चूत के अंदर दाखिल हो कर मेरे अंतर्मन को उस सुखद स्वाद से परिचित कराने लगा जिसके लिए मैं इस वक्त मरी जा रही थी।
"लो घुस्स गया।" वह बोला और थोड़ा रुका।
"यह मुझे बताने की जरूरत है? जिसके अंदर डंडा घुसा है उसे बता रहे हो गधे कहीं के? बड़ा आया मुझे बताने कि घुस गया है, हरामजादा।" इधर मेरे अंदर आग लगी हुई थी और चुदाई के इंतजार में पगलाई जा रही थी, ऐसे समय में इस फालतू बात का मेरे लिए कोई मायने नहीं था। लंड घुसेड़ने के बाद उसका इस तरह रुकना मुझे खल रहा था। साला बेवजह अपनी फतह का इजहार करने में समय जाया कर रहा था, कुत्ता कहीं का।। मेरे अंदर उसका पूरा आठ इंची औजार ठुका हुआ था जिसके कारण मेरे अंदर की आग और भड़क उठी थी और अब मुझे इस तरह का विराम बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था। मैं चाह रही कि उस औजार से अविलंब मेरी अच्छी तरह से कुटाई शुरू हो जाय।
"हम सोचे कि चोदना शुरू करने के पहिले बता दें।" सूअर का बच्चा चोदना शुरू करने से पहले औपचारिकता निभा रहा था। मैं झुंझला उठी।
"चुप गधे कहीं के। पहले लंड घुसेड़ दिया और अब बताने की औपचारिकता निभा रहा है, मां का....." मैं तड़प कर बोली।
"ठीक है। अब हम कुच्छ ना बोलेंगे, अब जो भी बोलेगा हमारा लौड़ा बोलेगा।" यह कहकर उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया। मैं समझ गई कि अब यह कुत्ता मुझे कूटना शुरू करेगा। इसी पल के लिए तो तड़प रही थी। उसने अपने को पीछे खींचा और उसी के साथ उसका लंड बाहर सरसराता हुआ निकला और अगले ही पल गच्च से फिर घुसेड़ दिया। मैं हिलक उठी। यह शुरुआत थी मेरी चुदाई के तीसरे दौर की। इसके बाद वह कुत्ते की तरह मुझे पीछे से अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए ठोंकना आरंभ कर दिया। मैं उस टेबल पर अपने ऊपरी धड़ को आराम से रख कर झुकी हुई पीछे से कुतिया की तरह रघु के लिए अपनी चूत परोसती हुई चुदाई का मजा लेने लगी। अपनी ओर से मुझे कोई अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत नहीं थी। जो करना था उसी को करना था, मुझे तो बस पूर्ण समर्पण के साथ मजा लेना था और मैं वही कर रही थी। मैंने अपनी देह को पूरी तरह उसके हवाले कर दिया था। अब वह मेरी देह के साथ वह सारी हरकतें करने लगा जो ऐसे समय में एक काम क्षुधा के मारे पागल द्वारा की जाती हैं। वह मेरी गर्दन और पीठ को चूम रहा था। वह पीछे से हाथ घुसा कर मेरी चूचियों को मसल रहा था। इस वक्त वह पूरे जोश में था और जिस जोशो-खरोश से वह मुझे चोद रहा था उससे ऐसा लग रहा था कि वह आज ही इतने दिनों की पूरी कसर निकाल लेना चाह रहा हो। कल की बात कौन जानता है, क्या पता कल हो ना हो। मैं बेहद आनंदित थी साथ ही साथ चकित भी थी कि वह मुझे दो दो मिनट का विराम लेकर तीसरी बार भी पूरे दमखम के साथ चोदने में सक्षम था। यह रघु आदमी था कि चोदने की मशीन। घुसा, घनश्याम और गंजू के बाद आज ऐसे आदमी से पाला पड़ा था जिसका वश चले तो चोद चोद कर मार ही डाले। मेरे शरीर का पोर पोर थकता जा रहा था लेकिन फिर भी उसकी अथक चुदाई का पूरा लुत्फ ले रही थी। मैं सोच रही थी कि ऐसे मर्द की बीवी अगर ऐसी अथक चुदाई को झेल सकने में सक्षम होगी तो कितनी भाग्यशाली होगी। सक्षम नहीं भी थी होगी तो अबतक तो पूरी तरह सक्षम हो चुकी होगी। उसकी चूत का तो भोंसड़ा बन चुका होगा। सोच कर ही मैं कुतिया की तरह चुदती हुई हठात मुस्कुरा उठी। तभी उसके धक्कों की रफ्तार तीव्र हो गई और उस तीव्र रफ्तार के कारण मैं उत्तेजना के चरम पर जा पहुंची और
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह...." वह सहसा रुक कर मुझसे चिपक गया और उसका लंड मेरी चूत में जड़ तक समा कर सख्त और मोटा होने लगा और गरमागरम लावा उगलने लगा। मैं तो जैसे दूसरी ही दुनिया में पहुंच गयी।
"ओओओओओहहहहह मांआंआंआंआं.... आआआआआआह गयीईईईईईई मैं गयीईईईईई...." कहते कहते मैं भी झड़ने लगी। ओह वह हम-दोनों का सम्मिलित स्खलन अत्यंत सुखद था। झड़ कर जहां में उसी टेबल पर सर रखकर लंबी लंबी सांसे लेने लगी थी वहीं रघु मुझ पर लद कर कुत्ते की तरह हांफ रहा था।
"अरे घबड़ा काहे रही है? हम तेरी गांड़ नहीं मारेंगे। यह लौड़ा तेरी बुर में ही घुसेगा।" उसकी बात सुनकर मैं आश्वस्त हुई और संघर्ष करना छोड़ दी। पीछे से ही अब उसका हाथ मेरी चूचियों पर पहुंच चुका था। वह दोनों हाथों से मेरी चूचियों को पकड़ कर धीरे धीरे दबाने लगा।
"ऊऊऊऊऊऊ मांआंआंआंआ......" मेरे उत्तेजक अंगों से वह कमीना खिलवाड़ कर रहा था जिससे मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी। वह मुझ पर झुक गया था और उसकी गर्म सांसें अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी। तभी उसने मेरी पीठ पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
"आआआआआआह इस्स्स्स्स्....." मैं उत्तेजना के मारे सिसकने लगी थी। इसी दौरान उसका लंड मेरी गान्ड के दरार से नीचे खिसक कर मेरी चूत पर दस्तक देने लगा। मैं गनगना उठी। इधर वह मेरी चूचियों को दबा रहा था, मेरी पीठ को चूम रहा था और रही सही कसर मेरी चूत के दरार पर अपना लंड घिसते हुए निकाल रहा था। मैं तो मानो पागल सी हो गई थी। मेरी चूत से लसलसा पानी निकलने लगा और उस गीली चूत के ऊपर उसका लंड फिसल रहा था। रघु को समझते देर नहीं लगी कि अब मैं चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। सही मौका बन चुका था और निशाने पर लंड रख कर अपनी कमर से एक झटका मार दिया और गच्च से उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर समा गया।
"आह ओह......" मेरी चूत को मानो लॉलीपॉप मिल गया था। मीठा मीठा लॉलीपॉप। इसके बाद तो वह सचमुच कुत्ता बन गया। मेरी कमर पकड़ कर अपने लंड पर दबाव बढ़ाता चला गया और लो, सरसराता हुआ उसका पूरा लंड मेरी चूत के अंदर दाखिल हो कर मेरे अंतर्मन को उस सुखद स्वाद से परिचित कराने लगा जिसके लिए मैं इस वक्त मरी जा रही थी।
"लो घुस्स गया।" वह बोला और थोड़ा रुका।
"यह मुझे बताने की जरूरत है? जिसके अंदर डंडा घुसा है उसे बता रहे हो गधे कहीं के? बड़ा आया मुझे बताने कि घुस गया है, हरामजादा।" इधर मेरे अंदर आग लगी हुई थी और चुदाई के इंतजार में पगलाई जा रही थी, ऐसे समय में इस फालतू बात का मेरे लिए कोई मायने नहीं था। लंड घुसेड़ने के बाद उसका इस तरह रुकना मुझे खल रहा था। साला बेवजह अपनी फतह का इजहार करने में समय जाया कर रहा था, कुत्ता कहीं का।। मेरे अंदर उसका पूरा आठ इंची औजार ठुका हुआ था जिसके कारण मेरे अंदर की आग और भड़क उठी थी और अब मुझे इस तरह का विराम बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था। मैं चाह रही कि उस औजार से अविलंब मेरी अच्छी तरह से कुटाई शुरू हो जाय।
"हम सोचे कि चोदना शुरू करने के पहिले बता दें।" सूअर का बच्चा चोदना शुरू करने से पहले औपचारिकता निभा रहा था। मैं झुंझला उठी।
"चुप गधे कहीं के। पहले लंड घुसेड़ दिया और अब बताने की औपचारिकता निभा रहा है, मां का....." मैं तड़प कर बोली।
"ठीक है। अब हम कुच्छ ना बोलेंगे, अब जो भी बोलेगा हमारा लौड़ा बोलेगा।" यह कहकर उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया। मैं समझ गई कि अब यह कुत्ता मुझे कूटना शुरू करेगा। इसी पल के लिए तो तड़प रही थी। उसने अपने को पीछे खींचा और उसी के साथ उसका लंड बाहर सरसराता हुआ निकला और अगले ही पल गच्च से फिर घुसेड़ दिया। मैं हिलक उठी। यह शुरुआत थी मेरी चुदाई के तीसरे दौर की। इसके बाद वह कुत्ते की तरह मुझे पीछे से अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए ठोंकना आरंभ कर दिया। मैं उस टेबल पर अपने ऊपरी धड़ को आराम से रख कर झुकी हुई पीछे से कुतिया की तरह रघु के लिए अपनी चूत परोसती हुई चुदाई का मजा लेने लगी। अपनी ओर से मुझे कोई अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत नहीं थी। जो करना था उसी को करना था, मुझे तो बस पूर्ण समर्पण के साथ मजा लेना था और मैं वही कर रही थी। मैंने अपनी देह को पूरी तरह उसके हवाले कर दिया था। अब वह मेरी देह के साथ वह सारी हरकतें करने लगा जो ऐसे समय में एक काम क्षुधा के मारे पागल द्वारा की जाती हैं। वह मेरी गर्दन और पीठ को चूम रहा था। वह पीछे से हाथ घुसा कर मेरी चूचियों को मसल रहा था। इस वक्त वह पूरे जोश में था और जिस जोशो-खरोश से वह मुझे चोद रहा था उससे ऐसा लग रहा था कि वह आज ही इतने दिनों की पूरी कसर निकाल लेना चाह रहा हो। कल की बात कौन जानता है, क्या पता कल हो ना हो। मैं बेहद आनंदित थी साथ ही साथ चकित भी थी कि वह मुझे दो दो मिनट का विराम लेकर तीसरी बार भी पूरे दमखम के साथ चोदने में सक्षम था। यह रघु आदमी था कि चोदने की मशीन। घुसा, घनश्याम और गंजू के बाद आज ऐसे आदमी से पाला पड़ा था जिसका वश चले तो चोद चोद कर मार ही डाले। मेरे शरीर का पोर पोर थकता जा रहा था लेकिन फिर भी उसकी अथक चुदाई का पूरा लुत्फ ले रही थी। मैं सोच रही थी कि ऐसे मर्द की बीवी अगर ऐसी अथक चुदाई को झेल सकने में सक्षम होगी तो कितनी भाग्यशाली होगी। सक्षम नहीं भी थी होगी तो अबतक तो पूरी तरह सक्षम हो चुकी होगी। उसकी चूत का तो भोंसड़ा बन चुका होगा। सोच कर ही मैं कुतिया की तरह चुदती हुई हठात मुस्कुरा उठी। तभी उसके धक्कों की रफ्तार तीव्र हो गई और उस तीव्र रफ्तार के कारण मैं उत्तेजना के चरम पर जा पहुंची और
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह...." वह सहसा रुक कर मुझसे चिपक गया और उसका लंड मेरी चूत में जड़ तक समा कर सख्त और मोटा होने लगा और गरमागरम लावा उगलने लगा। मैं तो जैसे दूसरी ही दुनिया में पहुंच गयी।
"ओओओओओहहहहह मांआंआंआंआं.... आआआआआआह गयीईईईईईई मैं गयीईईईईई...." कहते कहते मैं भी झड़ने लगी। ओह वह हम-दोनों का सम्मिलित स्खलन अत्यंत सुखद था। झड़ कर जहां में उसी टेबल पर सर रखकर लंबी लंबी सांसे लेने लगी थी वहीं रघु मुझ पर लद कर कुत्ते की तरह हांफ रहा था।