29-10-2024, 07:58 AM
साल 1993
वक्त एक ऐसा पहलू है जो बदलते ही इंसान के हालादो को बदल देता है। सुप्रिया 30 साल की हुई तो गंगू 68 साल का। सरजू के जाने के बाद सुप्रिया टूट जरूर गई थी लेकिन गंगू और उसके बच्चे ने उसे संभाला और दुख से बाहर निकाला। गंगू और सुप्रिया का बेटा वक्त के साथ साथ घर में रौनक ला रहा था। गंगू और सुप्रिया खुश तो थे लेकिन पूरी तरह से नहीं। दोनों में सेक्स होता लेकिन पहले से ज्यादा नहीं। गंगू भी अब वापिस अपने दुकान जाता और काम करता। हफ्ते में तीन दिन उसी गांव में रहता। लेकिन वहां पर उसे सुप्रिया और बच्चे की चिंता रहती। संचार गांव में कोई रहता नहीं था। पूरे गांव में उसी का परिवार था। अपने इस चिंता को दूर करने के लिए गंगू ने अपने चाचा को संचार गांव में बुलाया।
गंगू के चाचा का नाम जग्गू है। जग्गू वैसे बहुत बूढ़ा है और अब उसका कोई नहीं। वैसे वो बीमार रहता है। गंगू ने सोचा कि सुप्रिया की चिंता भी उसे परेशान नहीं करेगी। इसी वजह से जग्गू को अपने घर हमेशा के लिए रहने को बुलाया।
वैसे आपको बता दूं जग्गू के बारे में। जग्गू 85 साल का बूढ़ा आदमी है। जग्गू गंगू के बहुत दूर का चाचा है और दिखने में काला और गंजा है। हल्का सा पेट बाहर निकाला हुआ है।
"सुप्रिया मैने तुमसे कहा था न मेरे चचा के बारे में। बस थोड़ी देर में वो आ रहे है। बस उनके आने से में वापिस अपने गांव जाकर बेफिक्र होकर काम करूंगा।"
"आप भी न मेरी चिंता इतनी क्यों करते है ? मैं कॉलेज से वापिस घर आकर घर को अंदर से बंद करके रखती हूं। ताकि कोई कुछ न कर सके और वैसे भी यह हैं खाली ही तो है।"
"मैं जानता हूं मेरी जान लेकिन फिर भी तुम्हारी फिक्र होती है। अब चाचा आ जाएंगे तो घर थोड़ा भरा रहेगा। तुम्हे रोज बच्चे को लेकर कॉलेज में उसको देखभाल भी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"
"अच्छा ठीक है। मैं कॉलेज से जब वापिस आऊंगी तो बच्चे और चाचाजी का ख्याला रखूंगी।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूमते हुए बोला "ये हुई न बात। देखो सुप्रिया अब चाचा का ख्याल तुमने रखना है। उन्हें वक्त भी देना होगा और मेरे गैरहाजरी में तुम्हे उनके पास रहना होगा।"
"आप जैसा कहें मै वैसा करूंगी।"
तभी दरवाजे पर एक ने दस्तक दी। गंगू दौड़ते हुए दरवाजा खोला तो सामने जग्गू खड़ा था। हाथ में समान लिए और चेहरे पर थकान लिए जग्गू खड़ा था।
"नमस्ते चाचा कैसे है आप ?"
"मैं ठीक हूं। और बता तेरी दुल्हन कहां है ?" जग्गू ने अपनी बात जैसे ही पूरी की कि सुप्रिया सामने आ गई।
लाल रंग की साड़ी, सफेद रंग sleveless ब्लाउज में बेहद सुंदर अप्सरा जैसी सुप्रिया जग्गू के पास आई और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सुप्रिया को खूबसूरती को देख जग्गू जैसे हक्का बक्का सा हो गया। वो तो बस सुप्रिया की खूबसूरती को देखता रह गया। कैसे करके खुद को वापिस लाए हुए जग्गू ने कहा "जीती रहो। कैसी हो तुम ? और लल्ला कहा है ?"
"अभी लेकर आई।"
सुप्रिया अपने बेटे को लेकर आई। बच्चे को देखते ही मन ही मन में जग्गू बोला "मां की तरह बेटा भी सुंदर। वाह भगवान इस बच्चे को देख जैसे आपके दर्शन हो रहे हो ऐसा लग रहा है। इसका खयाल मै रखूंगा। एक सेवक की तरह। मेरा प्यार दुलारा।"
"चाचा तो आप आराम कीजिए। सुप्रिया जाओ जाकर कुछ खाने को लेकर आओ।"
जग्गू को आते ही सुप्रिया को घर में चहल पहल दिखी। वो खुश हुई। ऐसे ही कुछ दिन बीते और जग्गू घर में आराम से रहने लगा। गंगू हर हफ्ते सोमवार से गुरुवार अपने पुराने दुकान जाता और वहीं रहता। अब उसे बीवी बच्चों की चिंता कम होने लगी। आखिर जग्गू जो आ गया।
सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और बारह बजे वापिस घर आती। रही बात बच्चे की को जग्गू खयाल रखता। जग्गू बच्चे को को जैसे खुद के साथ रखता। लेकिन सुप्रिया के आती ही बच्चे को मां के पास सौंप देता। सब कुछ ठीक था लेकिन जग्गू के दिमाग में जैसे सुप्रिया चने लगीं। सुप्रिया वैसे अभी पूरी तरह से जग्गू के साथ घुली मिली नहीं। जग्गू जब से सुप्रिया को देखा तब से बेचैन होने लगा। सुप्रिया को देखना अब उसका मन और शौख बन गया।
एक दिन की बात है जब शनिवार का दिन था और कॉलेज में छुट्टी थी। सुप्रिया घर में थी। सुप्रिया बच्चे को खिला पिलाकर सुला दी। उसने सोचा कि जग्गू के लिए चाय बना दे। चाय बनकर जग्गू के कमरे गई।
जग्गू अपने कमरे में था। सुप्रिया की आहट सुनकर मन में उत्सुकता आ गईं।
"अंदर आऊं चाचाजी ?"
"अरे आओ सुप्रिया आओ। चाय लाई हो ?"
"हां सोचा आज आपके साथ चाय ली जाए।"
दोनों साथ में बैठे। सुप्रिया खटिया के पास पड़े कुर्सी पर बैठी। दोनों चाय पी रहे थे।
"और बताइए चाचा आपको यहां कैसा लगा ?"
"गांव खाली है और सुंदर है।"
"मतलब आपको यहां अच्छा लग रहा है।"
"मैने ये कब कहा कि मुझे यहां पर अच्छा लग रहा है ?"
"मतलब आपको यहां पर अच्छा नहीं लग रहा ?"
"हां बिल्कुल सही। मुझे अच्छा नहीं लग रहा।" जग्गू ने थोड़ा उदास होकर कहा।
"लेकिन क्यों ?"
"पहले ये बताओ कि मुझे यहां क्यों बुलाया गया ?"
सुप्रिया ने हल्के से कहा "हमारा और घर का ख्याल रखने के लिए ?"
"बिल्कुल। और मेरा क्या ? मेरा कौन ख्याल रखेगा ?"
सुप्रिया कुछ न बोली। बस चुप होकर हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी गलती मानते हुए बोली "मैं"
"तो क्या आप मेरा ख्याल रख रही है ? क्या आप मुझसे मिलती है रोज ? भाई मै भी तो आपका हूं। लेकिन शायद आपत्ति नहीं मुझे अपना।"
"तो आप जो बताइए मुझे क्या करना होगा ?" सुप्रिया ने हल्के सी मुस्कान देते हुए पूछा।
"देखो यहां मेरे और तुम्हारे अलावा कोई नहीं। क्यों न साथ रहकर एक दूसरे का वक्त अच्छा बनाए।"
"पक्का अब मैं आपके साथ रहूंगी।"
जग्गू ने मजाक में कहा "फिर तो अब मेरा तुम पर हक भी होगा।"
"आपका मुझपर पूरा हक है। आप बोलो मुझे क्या करना होगा ?"
"सबसे पहले चलो मेरे साथ कहीं घूमने। कोई जगह है जहां हम दोनों घूम सके ?"
"हां है न। पास में नदी है वहां बहुत अच्छी हवा और मौसम है। उधर चलते है।"
"और बच्चे का क्या करे ?"
"वो जल्दी नहीं उठेगा। और वैसे भी नदी थोड़े दूर ही तो है।"
"तो चलें सुप्रिया ?"
"चलो।"
जग्गू ने अपना हाथ सुप्रिया की ओर बढ़ाया। सुप्रिया ने उसके हाथ को थामते हुए उठ गई। दोनों के हाथ मिले और दोनों घर से बाहर चल दिए। जग्गू तिरछी नजरों से सुप्रिया को देख रहा था। काले रंग की साड़ी और काले रंग की sleveless ब्लाउज में सुप्रिया जग्गू को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। दोनों नदी के पास आ पहुंचे।
नदी के पास पड़े फूल की डाली को तोड़ जग्गू ने सुप्रिया के बालों पर लगाया।
"अब इस फूल की खूबसूरती बढ़ी।"
पानी की परछाई से खुद को देख सुप्रिया मुस्कुरा दो और बोली "ये तो सच में बहुत खूबसूरत है।"
"तुम जिसे चाहो उसे अनमोल बना सकती हो। बस एक बार देखकर तो देखो।"
"अच्छा ? क्या सबूत है ?"
"यह पानी इसका सबूत है।"
जग्गू ने पानी को हथेली में रखकर सुप्रिया के नंगे कंधे पर रखा। पानी की कुछ बूंदे सुप्रिया के गोरे कंधे पर रह गया। उन बूंदों को देख ऐसा लगा कि पानी नहीं हीरे का टुकड़ा हो। इतना सुंदर देह था सुप्रिया का।
"तुम्हारे इस शरीर ने पानी को हीरा बना दिया।"
जग्गू के इस हरकत और बात ने सुप्रिया को अंदर तक रोमांचित कर दिया। वो समझ नहीं पा रही थी कि जग्गू चाचा के इस व्यवहार को रोके या चलने दें। सुप्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि चाचा के साथ मर्यादा में कैसे रहे।
"मैने कुछ गलत कहा क्या ?"
सुप्रिया कुछ बोल न सकी वो बस शर्म और मर्यादा में चुप रही। जग्गू थोड़ा आगे बढ़ा और बोला "तुम तो इस हवा को महका दो।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू आगे बोला "जब यह हवाएं तुम्हारे जिस्म पर पड़ती है तो वो भी सुगंधित बन जाता होगा। सुप्रिया सच बताओ। क्या तुम सच में अप्सरा हो या सपना ?"
सुप्रिया शर्म से पिघल रही थी। जग्गू अब आगे बढ़ने लगा और सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला "सुप्रिया तुम मुझे उकसा रही हो। एक बूढ़े इंसान को उकसा रही हो।"
जग्गू दूसरा हाथ सुप्रिया के गले पर रखते हुए बोला "सच कहूं तो अब मेरे पास वक्त ही वक्त है इस खूबसूरत औरत के साथ अकेले में रहने का। और अब मैं खुद को तुम्हारी ओर आने से रोक नहीं पा रहा ।" इतना कहकर जग्गू ने सुप्रिया के गाल को चूमने गया कि सुप्रिया झटके से उठी और बिना कहे भाग गई वहां से।
जग्गू मुस्कुराते हुए खुद से बोला "सुप्रिया आज तुम जा रहीं हो लेकिन कब तक मुझसे दूर रहोगी। मुझे तुम चाहिए।"
लाज शर्म में डूबी सुप्रिया ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और वो लंबी लंबी सांसे लेने लगी। जग्गू के साथ जो हुआ उसे सोचकर हैरान हो रही थी। करीब दो घंटे तक सुप्रिया खुद को सम्भल रही थीं।
दोपहर हुआ और खाने का वक्त हो गया था। सुप्रिया ने सोचा कि जग्गू चाचा भूखे होंगे। उन्हें खाना देने के लिए सुप्रिया रसोईघर में घुसी। रसोईघर में सुप्रिया के साथ जग्गू भी घुसा। जग्गू को खाना खिलाकर सुप्रिया बिना कुछ बोल चली गई।
वक्त एक ऐसा पहलू है जो बदलते ही इंसान के हालादो को बदल देता है। सुप्रिया 30 साल की हुई तो गंगू 68 साल का। सरजू के जाने के बाद सुप्रिया टूट जरूर गई थी लेकिन गंगू और उसके बच्चे ने उसे संभाला और दुख से बाहर निकाला। गंगू और सुप्रिया का बेटा वक्त के साथ साथ घर में रौनक ला रहा था। गंगू और सुप्रिया खुश तो थे लेकिन पूरी तरह से नहीं। दोनों में सेक्स होता लेकिन पहले से ज्यादा नहीं। गंगू भी अब वापिस अपने दुकान जाता और काम करता। हफ्ते में तीन दिन उसी गांव में रहता। लेकिन वहां पर उसे सुप्रिया और बच्चे की चिंता रहती। संचार गांव में कोई रहता नहीं था। पूरे गांव में उसी का परिवार था। अपने इस चिंता को दूर करने के लिए गंगू ने अपने चाचा को संचार गांव में बुलाया।
गंगू के चाचा का नाम जग्गू है। जग्गू वैसे बहुत बूढ़ा है और अब उसका कोई नहीं। वैसे वो बीमार रहता है। गंगू ने सोचा कि सुप्रिया की चिंता भी उसे परेशान नहीं करेगी। इसी वजह से जग्गू को अपने घर हमेशा के लिए रहने को बुलाया।
वैसे आपको बता दूं जग्गू के बारे में। जग्गू 85 साल का बूढ़ा आदमी है। जग्गू गंगू के बहुत दूर का चाचा है और दिखने में काला और गंजा है। हल्का सा पेट बाहर निकाला हुआ है।
"सुप्रिया मैने तुमसे कहा था न मेरे चचा के बारे में। बस थोड़ी देर में वो आ रहे है। बस उनके आने से में वापिस अपने गांव जाकर बेफिक्र होकर काम करूंगा।"
"आप भी न मेरी चिंता इतनी क्यों करते है ? मैं कॉलेज से वापिस घर आकर घर को अंदर से बंद करके रखती हूं। ताकि कोई कुछ न कर सके और वैसे भी यह हैं खाली ही तो है।"
"मैं जानता हूं मेरी जान लेकिन फिर भी तुम्हारी फिक्र होती है। अब चाचा आ जाएंगे तो घर थोड़ा भरा रहेगा। तुम्हे रोज बच्चे को लेकर कॉलेज में उसको देखभाल भी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"
"अच्छा ठीक है। मैं कॉलेज से जब वापिस आऊंगी तो बच्चे और चाचाजी का ख्याला रखूंगी।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूमते हुए बोला "ये हुई न बात। देखो सुप्रिया अब चाचा का ख्याल तुमने रखना है। उन्हें वक्त भी देना होगा और मेरे गैरहाजरी में तुम्हे उनके पास रहना होगा।"
"आप जैसा कहें मै वैसा करूंगी।"
तभी दरवाजे पर एक ने दस्तक दी। गंगू दौड़ते हुए दरवाजा खोला तो सामने जग्गू खड़ा था। हाथ में समान लिए और चेहरे पर थकान लिए जग्गू खड़ा था।
"नमस्ते चाचा कैसे है आप ?"
"मैं ठीक हूं। और बता तेरी दुल्हन कहां है ?" जग्गू ने अपनी बात जैसे ही पूरी की कि सुप्रिया सामने आ गई।
लाल रंग की साड़ी, सफेद रंग sleveless ब्लाउज में बेहद सुंदर अप्सरा जैसी सुप्रिया जग्गू के पास आई और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सुप्रिया को खूबसूरती को देख जग्गू जैसे हक्का बक्का सा हो गया। वो तो बस सुप्रिया की खूबसूरती को देखता रह गया। कैसे करके खुद को वापिस लाए हुए जग्गू ने कहा "जीती रहो। कैसी हो तुम ? और लल्ला कहा है ?"
"अभी लेकर आई।"
सुप्रिया अपने बेटे को लेकर आई। बच्चे को देखते ही मन ही मन में जग्गू बोला "मां की तरह बेटा भी सुंदर। वाह भगवान इस बच्चे को देख जैसे आपके दर्शन हो रहे हो ऐसा लग रहा है। इसका खयाल मै रखूंगा। एक सेवक की तरह। मेरा प्यार दुलारा।"
"चाचा तो आप आराम कीजिए। सुप्रिया जाओ जाकर कुछ खाने को लेकर आओ।"
जग्गू को आते ही सुप्रिया को घर में चहल पहल दिखी। वो खुश हुई। ऐसे ही कुछ दिन बीते और जग्गू घर में आराम से रहने लगा। गंगू हर हफ्ते सोमवार से गुरुवार अपने पुराने दुकान जाता और वहीं रहता। अब उसे बीवी बच्चों की चिंता कम होने लगी। आखिर जग्गू जो आ गया।
सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और बारह बजे वापिस घर आती। रही बात बच्चे की को जग्गू खयाल रखता। जग्गू बच्चे को को जैसे खुद के साथ रखता। लेकिन सुप्रिया के आती ही बच्चे को मां के पास सौंप देता। सब कुछ ठीक था लेकिन जग्गू के दिमाग में जैसे सुप्रिया चने लगीं। सुप्रिया वैसे अभी पूरी तरह से जग्गू के साथ घुली मिली नहीं। जग्गू जब से सुप्रिया को देखा तब से बेचैन होने लगा। सुप्रिया को देखना अब उसका मन और शौख बन गया।
एक दिन की बात है जब शनिवार का दिन था और कॉलेज में छुट्टी थी। सुप्रिया घर में थी। सुप्रिया बच्चे को खिला पिलाकर सुला दी। उसने सोचा कि जग्गू के लिए चाय बना दे। चाय बनकर जग्गू के कमरे गई।
जग्गू अपने कमरे में था। सुप्रिया की आहट सुनकर मन में उत्सुकता आ गईं।
"अंदर आऊं चाचाजी ?"
"अरे आओ सुप्रिया आओ। चाय लाई हो ?"
"हां सोचा आज आपके साथ चाय ली जाए।"
दोनों साथ में बैठे। सुप्रिया खटिया के पास पड़े कुर्सी पर बैठी। दोनों चाय पी रहे थे।
"और बताइए चाचा आपको यहां कैसा लगा ?"
"गांव खाली है और सुंदर है।"
"मतलब आपको यहां अच्छा लग रहा है।"
"मैने ये कब कहा कि मुझे यहां पर अच्छा लग रहा है ?"
"मतलब आपको यहां पर अच्छा नहीं लग रहा ?"
"हां बिल्कुल सही। मुझे अच्छा नहीं लग रहा।" जग्गू ने थोड़ा उदास होकर कहा।
"लेकिन क्यों ?"
"पहले ये बताओ कि मुझे यहां क्यों बुलाया गया ?"
सुप्रिया ने हल्के से कहा "हमारा और घर का ख्याल रखने के लिए ?"
"बिल्कुल। और मेरा क्या ? मेरा कौन ख्याल रखेगा ?"
सुप्रिया कुछ न बोली। बस चुप होकर हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी गलती मानते हुए बोली "मैं"
"तो क्या आप मेरा ख्याल रख रही है ? क्या आप मुझसे मिलती है रोज ? भाई मै भी तो आपका हूं। लेकिन शायद आपत्ति नहीं मुझे अपना।"
"तो आप जो बताइए मुझे क्या करना होगा ?" सुप्रिया ने हल्के सी मुस्कान देते हुए पूछा।
"देखो यहां मेरे और तुम्हारे अलावा कोई नहीं। क्यों न साथ रहकर एक दूसरे का वक्त अच्छा बनाए।"
"पक्का अब मैं आपके साथ रहूंगी।"
जग्गू ने मजाक में कहा "फिर तो अब मेरा तुम पर हक भी होगा।"
"आपका मुझपर पूरा हक है। आप बोलो मुझे क्या करना होगा ?"
"सबसे पहले चलो मेरे साथ कहीं घूमने। कोई जगह है जहां हम दोनों घूम सके ?"
"हां है न। पास में नदी है वहां बहुत अच्छी हवा और मौसम है। उधर चलते है।"
"और बच्चे का क्या करे ?"
"वो जल्दी नहीं उठेगा। और वैसे भी नदी थोड़े दूर ही तो है।"
"तो चलें सुप्रिया ?"
"चलो।"
जग्गू ने अपना हाथ सुप्रिया की ओर बढ़ाया। सुप्रिया ने उसके हाथ को थामते हुए उठ गई। दोनों के हाथ मिले और दोनों घर से बाहर चल दिए। जग्गू तिरछी नजरों से सुप्रिया को देख रहा था। काले रंग की साड़ी और काले रंग की sleveless ब्लाउज में सुप्रिया जग्गू को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। दोनों नदी के पास आ पहुंचे।
नदी के पास पड़े फूल की डाली को तोड़ जग्गू ने सुप्रिया के बालों पर लगाया।
"अब इस फूल की खूबसूरती बढ़ी।"
पानी की परछाई से खुद को देख सुप्रिया मुस्कुरा दो और बोली "ये तो सच में बहुत खूबसूरत है।"
"तुम जिसे चाहो उसे अनमोल बना सकती हो। बस एक बार देखकर तो देखो।"
"अच्छा ? क्या सबूत है ?"
"यह पानी इसका सबूत है।"
जग्गू ने पानी को हथेली में रखकर सुप्रिया के नंगे कंधे पर रखा। पानी की कुछ बूंदे सुप्रिया के गोरे कंधे पर रह गया। उन बूंदों को देख ऐसा लगा कि पानी नहीं हीरे का टुकड़ा हो। इतना सुंदर देह था सुप्रिया का।
"तुम्हारे इस शरीर ने पानी को हीरा बना दिया।"
जग्गू के इस हरकत और बात ने सुप्रिया को अंदर तक रोमांचित कर दिया। वो समझ नहीं पा रही थी कि जग्गू चाचा के इस व्यवहार को रोके या चलने दें। सुप्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि चाचा के साथ मर्यादा में कैसे रहे।
"मैने कुछ गलत कहा क्या ?"
सुप्रिया कुछ बोल न सकी वो बस शर्म और मर्यादा में चुप रही। जग्गू थोड़ा आगे बढ़ा और बोला "तुम तो इस हवा को महका दो।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू आगे बोला "जब यह हवाएं तुम्हारे जिस्म पर पड़ती है तो वो भी सुगंधित बन जाता होगा। सुप्रिया सच बताओ। क्या तुम सच में अप्सरा हो या सपना ?"
सुप्रिया शर्म से पिघल रही थी। जग्गू अब आगे बढ़ने लगा और सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला "सुप्रिया तुम मुझे उकसा रही हो। एक बूढ़े इंसान को उकसा रही हो।"
जग्गू दूसरा हाथ सुप्रिया के गले पर रखते हुए बोला "सच कहूं तो अब मेरे पास वक्त ही वक्त है इस खूबसूरत औरत के साथ अकेले में रहने का। और अब मैं खुद को तुम्हारी ओर आने से रोक नहीं पा रहा ।" इतना कहकर जग्गू ने सुप्रिया के गाल को चूमने गया कि सुप्रिया झटके से उठी और बिना कहे भाग गई वहां से।
जग्गू मुस्कुराते हुए खुद से बोला "सुप्रिया आज तुम जा रहीं हो लेकिन कब तक मुझसे दूर रहोगी। मुझे तुम चाहिए।"
लाज शर्म में डूबी सुप्रिया ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और वो लंबी लंबी सांसे लेने लगी। जग्गू के साथ जो हुआ उसे सोचकर हैरान हो रही थी। करीब दो घंटे तक सुप्रिया खुद को सम्भल रही थीं।
दोपहर हुआ और खाने का वक्त हो गया था। सुप्रिया ने सोचा कि जग्गू चाचा भूखे होंगे। उन्हें खाना देने के लिए सुप्रिया रसोईघर में घुसी। रसोईघर में सुप्रिया के साथ जग्गू भी घुसा। जग्गू को खाना खिलाकर सुप्रिया बिना कुछ बोल चली गई।