24-10-2024, 02:55 PM
मैं ने अपने हाथों से उसकी नग्न देह को कस कर पकड़ लिया और बोल उठी, "निकालो मत निकालो मत, पूरा मत निकालो। आह आह, घुसेड़, फिर घुसेड़। ठोको ठोको आह आह...."। बोलते वक्त मेरी सारी शर्मोहया छूमंतर हो गई थी। कुछ ही मिनटों में मेरा भी कायाकल्प हो चुका था, ठीक उसी तरह, जिस तरह उसका कायाकल्प हुआ था। अब मोटा पतला लंड और लंबा छोटा लंड का मेरे लिए कोई अर्थ नहीं था, अब तो बस धमाधम चुदाई चाहिए थी मुझे। रगड़घस चुदाई चाहिए थी मुझे। अब चकित होने की बारी उसकी थी।
"ठीक सोचे थे तुम्हारे बारे में साली रंडी। अब आवेगा मज्जा।" कहकर पिल पड़ा मुझ पर और लगा पागलों की तरह मुझे दबोच कर चोदने। अपने लंड की पूरी लंबाई का इस्तेमाल नहीं कर रहा था वह। आधा लंड मेरी चूत में ही घुसा रहने दे रहा था और उसका बाकी का आधा लंड ही अंदर बाहर हो रहा था जिसके कारण उसके धक्कों की रफ्तार बढ़ाने में उसे आसानी हो रही थी जिसका भरपूर मजा मैं ले रही थी। मैं पूरी तरह सहयोग करने लगी थी। अपने पैरों को फैलाकर चूतड़ उछाल उछाल कर चुदी जा रही थी। मेरे इस अंदाज से वह निहाल हुआ जा रहा था। भचर भचर, फचर फचर की आवाज के साथ टेबल पर धमाधम की आवाज और हमारी सिसकारियां और आहें गूंजने लगी थीं। उसके व्यक्तित्व में जो परिवर्तन हुआ था उसके कारण पहली वाली चुदाई मैं भूल ही गयी थी। यह दूसरी वाली चुदाई तो और भी गजब का आनंद प्रदान कर रहा था। हम एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हुए जा रहे थे और एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में लीन हो गये थे। यह घमासान धक्कमपेल बिना विराम के करीब पंद्रह मिनट तक निरंतर चलता ही रहा। गजब का दमखम था उसमें और गजब की स्तंभन क्षमता थी उसमें। अंततः पंद्रह मिनट की अथक चुदाई का समापन जब हुआ तो हम दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके मानो हमारे शरीर एकाकार हो गये थे। जहां मेरा स्खलन मात्र आधे मिनट का था वहीं उसका स्खलन करीब डेढ़ दो मिनट तक चलता रहा। अपने स्खलन में जैसे मेरे पर निकल आए थे लेकिन उसके स्खलन से तो मैं जैसे हवा में उड़ने लगी थी। अद्भुत, अविस्मरणीय, आकंठ सुख से ओतप्रोत वह स्खलन अवर्णनीय है। समय मानो ठहर सा गया था। उस वक्त उसकी पकड़ से मानों मेरी सांसें थम सी गयी थीं। मेरी चूत भी कम नहीं थी, साली कमीनी कुत्ती चूत उसके लंड से निकलने वाले कतरे कतरे को जज्ब करती हुई लंड निचोड़ कर ही छोड़ी। हम दोनों थक कर एक दूसरे की बांहों में समाए ऐसे हांफ रहे थे मानो मीलों दौड़ कर आए हों।
"गजब की लौंडिया है रे तू।" वह हांफते हुए बोला।
"और तू क्या कम गजब है, साला गधे लंड वाला चोदू कहीं का।" मैं उसके सीने पर सर रख कर बोली।
"मजा आया?"
"हां, बहुत।"
"इस भोली सूरत के पीछे इत्ती बड़ी लंडखोर छिपी है, ई बड़ा ताज्जुब का बात है। मुंह से तो लौड़ा चूसने वाली बहुत देखे हैं लेकिन चूत से लौड़ा चूसने वाली आज पहिली बार देक्खे हैं। साली पूरी घाघ है तू। भोली भाली घाघ। सच में तुमको चोद कर मन नहीं भरा। जी चाहता है चोदते रहें।" वह मेरी प्रशंसा के पुल बांध रहा था।
"तो चोदो ना।" मैं हल्के फुल्के मूड में बोली।
"फिर चुदेगी?"
"अभी?" मैं आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगी। मैं तो यूं ही बोल बैठी थी, इसने तो गंभीरता से ले लिया। यह आदमी है कि चोदने की मशीन?
"हां अब्भिए।"
"तेरा खड़ा होगा फिर से?'"
"पहिले खड़ा हुआ था ना दुबारा, दो मिनट में? भूल गयी क्या?" वह पूरे आत्मविश्वास से बोला। वह मुस्कुरा रहा था। यह मुस्कुराहट एक रहस्यमई मुस्कुराहट थी। कुछ तो था उस मुस्कान में जो मेरी समझ से परे था। खैर मुझे क्या। हां बोल चुकी थी। दुबारा चुदाई का मजा दुगुना था। क्या पता, तिबारा चुदाई का मजा तिगुना हो।
"तो फिर ठीक है।" अब मैं भी ठान चुकी थी कि अगर वह फिर से चोदने की क्षमता रखता हैं तो मैं भी दिखाती हूं कि मैं भी कम नहीं हूं। हालांकि दो बार की चुदाई से मेरे अंग अंग में थकान तारी हो गया था लेकिन मैं यह भी देख चुकी थी कि दुबारा चुदने से घबराना बेमानी था क्योंकि जब उत्तेजना मुझपर चढ़ी तो सारी थकान पता नहीं कहां छूमंतर हो गई थी। फिर जो मजा मिला उसका कोई सानी नहीं था।
"ठीक है, हम फिर से मूत के आते हैं।" कहकर सीधे टॉयलेट की ओर भाग कर अदृश्य हो गया। मैं उसी टेबल पर लस्त पस्त पसर गई। मुझे इस बात में कोई रुचि नहीं थी कि उठकर देखूं कि दो मिनट में वह क्या खाकर आता है या क्या करके आता है कि उसका कायाकल्प हो जाता है। मैंने कलाई घड़ी में देखा कि अभी कॉलेज का क्लास खत्म होने में एक घंटे का समय और है। इसका मतलब समय गुजारने के लिए चुदाई का एक और सेशन काफी था। इस तरह समय भी कट जाता, रघु की तीसरी बार चोदने की ख्वाहिश भी पूरी होती और मैं भी चुदाई के शायद तिगुने मजे से रूबरू होती।
"हम आ गये" आवाज सुनकर मैंने देखा कि बिल्कुल मेरे पास फिर से नंगा भुजंगा रघु आ खड़ा हुआ था। पहले की तरह तरोताजा, उर्जा से भरा हुआ दिखाई दे रहा था वह। उसकी आंखों में वही पहले वाली चमक थी। हां आवाज में थोड़ा परिवर्तन मैंने महसूस किया था लेकिन मैंने उस पर गौर करने की जरूरत महसूस नहीं की, मेरी नज़र तो सिर्फ उसके तने हुए लंड पर थी। काला, फुंफकार मारता हुआ लंड आकार में थोड़ा सा कम हुआ था लेकिन चोदने को बिल्कुल तैयार खड़ा था। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि पहली बार उसके लंड का आकार बिल्कुल ऐसा ही था लेकिन दूसरी बार पहले से बड़ा था, अब फिर से पहली बार वाले आकार में आ चुका था। यह कैसा विस्मयकारी परिवर्तन था। वही आदमी लेकिन लंड के आकार में परिवर्तन।
"तुम्हारा पप्पू कुछ देर पहले तो बड़ा था, अब छोटा कैसे?" मैं पूछ बैठी। मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था।
"यह ऐसा ही है। साला जब मन होता है तो बड़ा हो जाता है अऊर जब मन होता है तो छोटा। ई मादरचोद का कुच्छो भरोसा नहीं।" वह अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए बोला। मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन अपनी खुली आंखों से देखी बात पर अविश्वास भी नहीं कर सकती थी।
"यह तुम्हारे कंट्रोल में नहीं है क्या?" मुझे यह अस्वाभाविक लग रहा था। यह शरीर के किसी अंग का सामान्य व्यवहार नहीं था। आखिर लिंग तो शरीर के अन्य अंगों की तरह उसके शरीर का ही एक अंग था, जिसका नियंत्रण मस्तिष्क से होता है, फिर वह ऐसा क्यों बोल रहा था जैसे उसका लिंग उसके शरीर से चिपका स्वतंत्र प्राणी हो।
"कंट्रोल का तो बात ही मत करो। ई मादरचोद अपने मन का मालिक है। हां एक बात है कि साला ठंढा होने में बहुत टाईम लगाता है।" वह गर्व से बोला।
"हां वह तो देख ही चुकी हूं। जो जल्दी ठंढा हो जाए वह डंडा किस काम का।" मैं बोली। बस उसके लिंग के आकार से थोड़ी मायूस हुई थी, क्योंकि अभी अभी बड़े आकार के लंड से जो चुदी थी।
"तो शुरू करें?" वह चोदने को उतावला हुआ जा रहा था।
"अब भी पूछने की जरूरत है?" मैं झल्ला कर बोली।
"पुच्छने का जरूरत नहीं है तो नहीं पुच्छेंगे लेकिन अबकी बार थोड़ा पोजीशन बद्दल कर चोदने का मन कर रहा है।"
"कौन सी पोजीशन में?" मैं बेमन से बोली। दरअसल अब मुझमें और किसी पोजीशन से कोई दिलचस्पी नहीं थी। मुझे बस चुदती हुई समय काटना था।
"तुमको पलट कर पीछे से। बनेगी ना हमारी कुतिया?" वह बोला। हे भगवान अब वह मुझे चौपाया बना कर चोदने की सोच रहा था।
"यह कौन सा तरीका है? मैं लड़की हूं, लड़की ही रहने दो। तुम्हें जो बनना है बनो।" मैं बोली। चौपाया बन कर चुदी थी, जानती थी कैसे एक मर्द औरत को कुतिया की तरह चोदता है। फिर भी इस वक्त पोजीशन बदल बदल कर चुदने की शक्ति मुझमें नहीं थी।
"वही तो कह रहे हैं। हम कऊन सा तुमको कुतिया बनने बोल रहे हैं, चोदेंगे तो हम ना? तुम बस हां बोलो, हम ही कुत्ता जैसा पिच्छे से करेंगे।" वह बोला।
"जो करना है कर ना, मैं कहां मना कर रही हूं मगर मुझसे चौपाया बनने को मत बोलना।" मैं बोली। इतना सुनते ही उसने मुझे पलट दिया और घसीट कर टेबल के किनारे तक ले आया।
"यह क्या कर रहे हो तुम?" मैं उसके इस कृत्य का मतलब नहीं समझी थी।
"समझ जाएगी, एकबार पोजीशन तो बना लें।" कहकर उसने मेरा ऊपरी धड़ टेबल पर ही रहने दिया और पैर फर्श पर टिका दिया। बस यूं समझ लीजिए कि मैं फर्श पर खड़ी थी लेकिन मेरा कमर से ऊपर का हिस्सा टेबल पर औंधे मुंह टिका पड़ा था। इसके बाद वह पीछे से मेरी देह से सटकर खड़ा हो गया। उसका लंड मेरी गान्ड के दरार पर आ सटा था। हाय राम, क्या यह मेरी गान्ड मारना चाहता था?
"ठीक सोचे थे तुम्हारे बारे में साली रंडी। अब आवेगा मज्जा।" कहकर पिल पड़ा मुझ पर और लगा पागलों की तरह मुझे दबोच कर चोदने। अपने लंड की पूरी लंबाई का इस्तेमाल नहीं कर रहा था वह। आधा लंड मेरी चूत में ही घुसा रहने दे रहा था और उसका बाकी का आधा लंड ही अंदर बाहर हो रहा था जिसके कारण उसके धक्कों की रफ्तार बढ़ाने में उसे आसानी हो रही थी जिसका भरपूर मजा मैं ले रही थी। मैं पूरी तरह सहयोग करने लगी थी। अपने पैरों को फैलाकर चूतड़ उछाल उछाल कर चुदी जा रही थी। मेरे इस अंदाज से वह निहाल हुआ जा रहा था। भचर भचर, फचर फचर की आवाज के साथ टेबल पर धमाधम की आवाज और हमारी सिसकारियां और आहें गूंजने लगी थीं। उसके व्यक्तित्व में जो परिवर्तन हुआ था उसके कारण पहली वाली चुदाई मैं भूल ही गयी थी। यह दूसरी वाली चुदाई तो और भी गजब का आनंद प्रदान कर रहा था। हम एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हुए जा रहे थे और एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में लीन हो गये थे। यह घमासान धक्कमपेल बिना विराम के करीब पंद्रह मिनट तक निरंतर चलता ही रहा। गजब का दमखम था उसमें और गजब की स्तंभन क्षमता थी उसमें। अंततः पंद्रह मिनट की अथक चुदाई का समापन जब हुआ तो हम दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके मानो हमारे शरीर एकाकार हो गये थे। जहां मेरा स्खलन मात्र आधे मिनट का था वहीं उसका स्खलन करीब डेढ़ दो मिनट तक चलता रहा। अपने स्खलन में जैसे मेरे पर निकल आए थे लेकिन उसके स्खलन से तो मैं जैसे हवा में उड़ने लगी थी। अद्भुत, अविस्मरणीय, आकंठ सुख से ओतप्रोत वह स्खलन अवर्णनीय है। समय मानो ठहर सा गया था। उस वक्त उसकी पकड़ से मानों मेरी सांसें थम सी गयी थीं। मेरी चूत भी कम नहीं थी, साली कमीनी कुत्ती चूत उसके लंड से निकलने वाले कतरे कतरे को जज्ब करती हुई लंड निचोड़ कर ही छोड़ी। हम दोनों थक कर एक दूसरे की बांहों में समाए ऐसे हांफ रहे थे मानो मीलों दौड़ कर आए हों।
"गजब की लौंडिया है रे तू।" वह हांफते हुए बोला।
"और तू क्या कम गजब है, साला गधे लंड वाला चोदू कहीं का।" मैं उसके सीने पर सर रख कर बोली।
"मजा आया?"
"हां, बहुत।"
"इस भोली सूरत के पीछे इत्ती बड़ी लंडखोर छिपी है, ई बड़ा ताज्जुब का बात है। मुंह से तो लौड़ा चूसने वाली बहुत देखे हैं लेकिन चूत से लौड़ा चूसने वाली आज पहिली बार देक्खे हैं। साली पूरी घाघ है तू। भोली भाली घाघ। सच में तुमको चोद कर मन नहीं भरा। जी चाहता है चोदते रहें।" वह मेरी प्रशंसा के पुल बांध रहा था।
"तो चोदो ना।" मैं हल्के फुल्के मूड में बोली।
"फिर चुदेगी?"
"अभी?" मैं आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगी। मैं तो यूं ही बोल बैठी थी, इसने तो गंभीरता से ले लिया। यह आदमी है कि चोदने की मशीन?
"हां अब्भिए।"
"तेरा खड़ा होगा फिर से?'"
"पहिले खड़ा हुआ था ना दुबारा, दो मिनट में? भूल गयी क्या?" वह पूरे आत्मविश्वास से बोला। वह मुस्कुरा रहा था। यह मुस्कुराहट एक रहस्यमई मुस्कुराहट थी। कुछ तो था उस मुस्कान में जो मेरी समझ से परे था। खैर मुझे क्या। हां बोल चुकी थी। दुबारा चुदाई का मजा दुगुना था। क्या पता, तिबारा चुदाई का मजा तिगुना हो।
"तो फिर ठीक है।" अब मैं भी ठान चुकी थी कि अगर वह फिर से चोदने की क्षमता रखता हैं तो मैं भी दिखाती हूं कि मैं भी कम नहीं हूं। हालांकि दो बार की चुदाई से मेरे अंग अंग में थकान तारी हो गया था लेकिन मैं यह भी देख चुकी थी कि दुबारा चुदने से घबराना बेमानी था क्योंकि जब उत्तेजना मुझपर चढ़ी तो सारी थकान पता नहीं कहां छूमंतर हो गई थी। फिर जो मजा मिला उसका कोई सानी नहीं था।
"ठीक है, हम फिर से मूत के आते हैं।" कहकर सीधे टॉयलेट की ओर भाग कर अदृश्य हो गया। मैं उसी टेबल पर लस्त पस्त पसर गई। मुझे इस बात में कोई रुचि नहीं थी कि उठकर देखूं कि दो मिनट में वह क्या खाकर आता है या क्या करके आता है कि उसका कायाकल्प हो जाता है। मैंने कलाई घड़ी में देखा कि अभी कॉलेज का क्लास खत्म होने में एक घंटे का समय और है। इसका मतलब समय गुजारने के लिए चुदाई का एक और सेशन काफी था। इस तरह समय भी कट जाता, रघु की तीसरी बार चोदने की ख्वाहिश भी पूरी होती और मैं भी चुदाई के शायद तिगुने मजे से रूबरू होती।
"हम आ गये" आवाज सुनकर मैंने देखा कि बिल्कुल मेरे पास फिर से नंगा भुजंगा रघु आ खड़ा हुआ था। पहले की तरह तरोताजा, उर्जा से भरा हुआ दिखाई दे रहा था वह। उसकी आंखों में वही पहले वाली चमक थी। हां आवाज में थोड़ा परिवर्तन मैंने महसूस किया था लेकिन मैंने उस पर गौर करने की जरूरत महसूस नहीं की, मेरी नज़र तो सिर्फ उसके तने हुए लंड पर थी। काला, फुंफकार मारता हुआ लंड आकार में थोड़ा सा कम हुआ था लेकिन चोदने को बिल्कुल तैयार खड़ा था। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि पहली बार उसके लंड का आकार बिल्कुल ऐसा ही था लेकिन दूसरी बार पहले से बड़ा था, अब फिर से पहली बार वाले आकार में आ चुका था। यह कैसा विस्मयकारी परिवर्तन था। वही आदमी लेकिन लंड के आकार में परिवर्तन।
"तुम्हारा पप्पू कुछ देर पहले तो बड़ा था, अब छोटा कैसे?" मैं पूछ बैठी। मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था।
"यह ऐसा ही है। साला जब मन होता है तो बड़ा हो जाता है अऊर जब मन होता है तो छोटा। ई मादरचोद का कुच्छो भरोसा नहीं।" वह अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए बोला। मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन अपनी खुली आंखों से देखी बात पर अविश्वास भी नहीं कर सकती थी।
"यह तुम्हारे कंट्रोल में नहीं है क्या?" मुझे यह अस्वाभाविक लग रहा था। यह शरीर के किसी अंग का सामान्य व्यवहार नहीं था। आखिर लिंग तो शरीर के अन्य अंगों की तरह उसके शरीर का ही एक अंग था, जिसका नियंत्रण मस्तिष्क से होता है, फिर वह ऐसा क्यों बोल रहा था जैसे उसका लिंग उसके शरीर से चिपका स्वतंत्र प्राणी हो।
"कंट्रोल का तो बात ही मत करो। ई मादरचोद अपने मन का मालिक है। हां एक बात है कि साला ठंढा होने में बहुत टाईम लगाता है।" वह गर्व से बोला।
"हां वह तो देख ही चुकी हूं। जो जल्दी ठंढा हो जाए वह डंडा किस काम का।" मैं बोली। बस उसके लिंग के आकार से थोड़ी मायूस हुई थी, क्योंकि अभी अभी बड़े आकार के लंड से जो चुदी थी।
"तो शुरू करें?" वह चोदने को उतावला हुआ जा रहा था।
"अब भी पूछने की जरूरत है?" मैं झल्ला कर बोली।
"पुच्छने का जरूरत नहीं है तो नहीं पुच्छेंगे लेकिन अबकी बार थोड़ा पोजीशन बद्दल कर चोदने का मन कर रहा है।"
"कौन सी पोजीशन में?" मैं बेमन से बोली। दरअसल अब मुझमें और किसी पोजीशन से कोई दिलचस्पी नहीं थी। मुझे बस चुदती हुई समय काटना था।
"तुमको पलट कर पीछे से। बनेगी ना हमारी कुतिया?" वह बोला। हे भगवान अब वह मुझे चौपाया बना कर चोदने की सोच रहा था।
"यह कौन सा तरीका है? मैं लड़की हूं, लड़की ही रहने दो। तुम्हें जो बनना है बनो।" मैं बोली। चौपाया बन कर चुदी थी, जानती थी कैसे एक मर्द औरत को कुतिया की तरह चोदता है। फिर भी इस वक्त पोजीशन बदल बदल कर चुदने की शक्ति मुझमें नहीं थी।
"वही तो कह रहे हैं। हम कऊन सा तुमको कुतिया बनने बोल रहे हैं, चोदेंगे तो हम ना? तुम बस हां बोलो, हम ही कुत्ता जैसा पिच्छे से करेंगे।" वह बोला।
"जो करना है कर ना, मैं कहां मना कर रही हूं मगर मुझसे चौपाया बनने को मत बोलना।" मैं बोली। इतना सुनते ही उसने मुझे पलट दिया और घसीट कर टेबल के किनारे तक ले आया।
"यह क्या कर रहे हो तुम?" मैं उसके इस कृत्य का मतलब नहीं समझी थी।
"समझ जाएगी, एकबार पोजीशन तो बना लें।" कहकर उसने मेरा ऊपरी धड़ टेबल पर ही रहने दिया और पैर फर्श पर टिका दिया। बस यूं समझ लीजिए कि मैं फर्श पर खड़ी थी लेकिन मेरा कमर से ऊपर का हिस्सा टेबल पर औंधे मुंह टिका पड़ा था। इसके बाद वह पीछे से मेरी देह से सटकर खड़ा हो गया। उसका लंड मेरी गान्ड के दरार पर आ सटा था। हाय राम, क्या यह मेरी गान्ड मारना चाहता था?