20-10-2024, 02:10 PM
"ठीक है। मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूंगी।" मैं बोली लेकिन अंदर ही अंदर मना रही थी कि ऐसा न हो।
"अच्छा, रुको, हमको पेशाब करके आने दो। बस अब्भिए दो मिनट में आया।" कहकर वह प्रयोगशाला के बगल में पुराने टॉयलेट की ओर मुड़ा तो मैं ने आंखें बंद कर ली। वह गया और दो मिनट में ही फिर वापस आ भी गया।
"लो हम आ गए।" उसकी आवाज सुनकर मैंने आंखें खोली तो उसे देख कर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। मैं आश्चर्यचकित थी कि मात्र दो मिनट में ऐसा क्या हो गया कि जैसे उसका कायाकल्प हो चुका था। बिल्कुल तरोताजा। उसे देख कर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दो मिनट पहले मुझे चोदकर हटा था। उसके शरीर में जैसे नवस्फूर्ति का संचार हो रहा था। वह मेरी ओर बढ़ रहा था तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था यह देखकर कि उसका लंड पहले की अपेक्षा कुछ अधिक ही बड़ा हो चुका था और भयानक अंदाज में फुंफकार मार रहा था। उसकी आंखों में एक अजीब सी भूख दिखाई दे रही थी मुझे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि एक बार मेरे शरीर का भोग लगा चुकने के बाद भी वह ऐसे देख रहा था जैसे पहली बार मुझ जैसी लड़की को देख रहा था। उसकी आंखों में वही पहले वाली चमक दिखाई दे रही थी। हे भगवान यह मैं किस मुसीबत में फंस गयी थी। अब अपनी बात से पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। अपनी शर्त में ही मैं फंस कर इस मुसीबत को बुलावा दे बैठी थी।
"सच्ची, तू बिल्कुल हूर की परी है।" उसकी लार टपकाती नजरें सर से पांव तक मुझे देखे जा रही थीं। उसकी आवाज भी कुछ बदली बदली सी थी। मुझे बड़ा अजीब महसूस हो रहा था। ऐसा क्या हुआ था कि पेशाब करने के दौरान दो मिनट में ही चमत्कारिक ढंग से पुनः इतना तरोताजा हो गया था। उसका लंड भी भयावह रूप से पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा दिखाई दे रहा था।
"पहली बार देख रहे हो क्या? अभी ही किया था ना।" मैं उसके रंग ढंग से कुछ आतंकित महसूस कर रही थी। एक अनजानी सी घबराहट हो रही थी कि यह आदमी है कि जिन्न।
"बस्स ई समझ लो पहलीए बार देख रहे हैं। तू इत्ती मस्त माल है कि जित्ता चोदो साला मन ही नहीं भरता है। लग रहा है पहली बार चोदने जा रहे हैं। चल दे दे फिर से एक बार।" वह मेरे पास आकर मेरी चूचियों को हाथ से महसूस करने लगा। अनिच्छा के बावजूद अपनी शर्त से वचन से बंध कर उसे दुबारा झेलना था। मेरी चुदाई तो बड़ी अच्छी तरह से हुई थी, इतनी अच्छी तरह से कि मैं तृप्त हो गई थी। लेकिन मेरी हालत इस वक्त ऐसी थी जैसे बहुत स्वादिष्ट खाना खाकर पेट पूरी तरह भरा हुआ हो और मेहमान नवाजी करने वाले के हाथों लजीज व्यंजन देखकर भी ठुकराने को मजबूर हूं।
"न न न नहीं, अब मुझसे और नहीं होगा प्लीज़।" मैं उठते हुए बोली।
"होगा होगा। तुम ही से होगा। तुमसे न होगा तो किसी मां की लौड़ी से नहीं होगा।" वह मुझे फिर से ढकेल कर टेबल पर सुलाने की कोशिश करने लगा।
"नहीं नहीं।" मैं जिद करने लगी और उसे पीछे ढकेल कर टेबल से उतर कर अपने कपड़े ढूंढ़ने लगी लेकिन मेरे कपड़े वहां से गायब थे।
"मेरे कपड़े कहां गए?" मैं घबराकर बोली।
"अर्रे कपड़े की चिंता काहे कर रही हो? कपड़ा कहां भागा जा रहा है? वईसे भी ई बखत कऊन सा कपड़ा का जरूरत है? एक बार घपर घपर हो जाए, फिर कपड़ा भी मिल जाएगा।" वह बोला और फिर से मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और बेहताशा चूमने लगा।
"ओह ओह ऐसे पागल क्यों हुए जा रहे हो? जब करना ही है तो आराम से करो ना।" मैं विरोध करना बेकार समझ कर अपने आप को उसके हवाले करते हुए बोली। मुझे उसकी इतनी बेकरारी देख कर ताज्जुब हो रहा था। एक बार कर चुका था लेकिन अब दुबारा करने के समय भी वही बेकरारी देखना मुझे विस्मित कर रहा था। इतनी अदम्य काम पिपासा मैं पहली बार देख रही थी।
"इतनी मस्त माल बांहों में हो तो कऊन माधरचोद से सबर होगा।" वह खड़े खड़े ही मेरे चूतड़ों को मसलते हुए मुझे दबोच कर पागलों की तरह ताबड़तोड़ कभी मेरे गालों को चूमता , कभी मेरे होंठों को चूमता, कभी मेरे गले को चूमता जा रहा था। इधर बीच बीच में उसका लंड मेरी चूत के आसपास स्पर्श कर रहा था। न चाहते हुए भी मेरे अंदर फिर से कामाग्नि सुलगने लगी थी। उफ उफ, मैं उसकी इस नयी आक्रामक अंदाज से तनिक घबरा गई थी। धीरे धीरे वह और भी आक्रामकता दिखाने लगा था। सहसा उसने मुझे उठा कर टेबल पर बैठा दिया और मेरी टांगों को फैला कर बीच में घुस गया। अब वह मेरी चूचियों पर टूट पड़ा।
"गज्जब, ओह क्या चूचियां हैं। साली इसी उमर में इत्ती बड़ी बड़ी चूचियां? हम तुम्हारे साथ का करें समझ ही नहीं आ रहा है। तेरी इन तरबूजों को खाएं कि तेरे नीचे वाले मालपूए को खाएं।" वह मेरी चूचियों को बेरहमी से दबाते हुए बोला।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआं, अभी अभी इतना सबकुछ करके भी तुम्हारे अंदर इतनी भूख?" मैं पीड़ा का अनुभव करती हुई बोली। अबतक मेरे अंदर फिर से कामुकता की आग भड़कने लग गई थी इसलिए उसका यह सब करना मुझे अच्छा लगने लगा था।
"आह आह तुझ जैसी रसीली लौंडिया हाथ लग जाए तो भूख भला कईसे मिटे। खाते खाते मर जाएं तब भी कोई दुख नहीं होगा।" वह अब मेरे चूचियों को बारी बारी से मुंह में भर भर कर चूसने लगा।
"इस्स्स्स्स्ह उईईईईईईई आआआआआआह, ....." मैं जोश में भर कर खुद ही अपने हाथों से उसका सर अपनी चूंचियों पर दबाने लगी थी। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था। एक निम्नस्तर का यह घटिया चौकीदार मेरा यह हाल कर देगा, यह मेरी सोच से परे था। मैं जल बिन मछली की भांति छटपटाने लगी थी। मेरी चूचियों को चूसने से ही उसका मन नहीं भरा तो वह नीचे की ओर मुंह ले जाने लगा। हे भगवान वह क्या करना चाह रहा था? मेरे पेट से होता हुआ वह मेरी नाभि तक मुंह ले गया। वह मेरी चूचियों को दबाता रहा और चाटते चाटते वह नाभी से नीचे जाने लगा। ऊऊऊऊऊ मेरे राआआआआआम, मैं चौंक ही तो पड़ी जब उसका मुंह मेरी चूत तक जा पहुंचा। जैसे ही उसकी जीभ का स्पर्श मेरी चूत पर हुआ,
"इस्स्स्स्स् आआआआआआह ...... नननननहींहींहीईंईंईंईं हाआआआआय.....वहां नहीं वहां नहींईंईंईंईंई......" मैं सिसक पड़ी और आनंदातिरेक से मेरी आंखें बंद हो गयीं। मैंने अपनी जांघों को और फैला कर अपने हाथों से उसके सर को कस कर पकड़ लिया। उसने अबतक मेरी चूचियों को दबाना बंद नहीं किया था और इधर मेरी चूत का रसास्वादन कर रहा था। ओओओओओहहहहह यह कितना सुखद था बता नहीं सकती हूं। मैं उसके सिर को अपनी चूत पर दबा रही थी और सिसकारियां निकाल रही थी। "बस्स्स्स्स् बस्स्स्स्स् ....." मैं उसके सिर को जबरदस्ती हटाने लगी क्योंकि यह मेरी उत्तेजना का चरमोत्कर्ष था। इसके आगे मेरी लुटिया डूब जाती।बंटाधार हो जाता। उत्तेजना के अतिरेक में मेरा शरीर अकड़ने लगा था और मैं स्खलित हो जाती, फिर चुदाई का मजा लेने के लिए तैयार होने में न जाने और कितना समय लगता।
"ओह समझ गया। लोहा गरम हो गया है। अब हथौड़ा चलाने का बखत आ गया।" कहकर वह मेरी चूत चाटना बंद करके एक झटके में मुझे टेबल पर पटक दिया और मुझपर चढ़ गया। उसके जिस मूसलाकार लंड को देखकर मेरी घिग्घी बंध गई थी, अब मैं उस लंड को अपनी चूत में लेने को बेकरार थी।
"तईय्यार हो?" वह अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रखकर बोला।
"आग लगी है आग। साला पूछता है तैयार हो मां का लौड़ा, चोओओओओद हरामी" मैं पागलों की तरह चीख पड़ी। उत्तेजना के अतिरेक में मेरे मुंह से ऐसी बात सुनकर एक बार तो वह भी अचंभित रह गया। मुझ जैसी इतनी कम उम्र की लड़की के मुंह से ऐसा सुनने की उम्मीद शायद उसे नहीं थी।
"बहूत बढ़िया। ईईईई ल्ल्लेएएएए हमारा लौड़ा हुम्म्म्म आआआआआआह..." उसने अपने लंड पर दबाव देना आरंभ कर दिया। मेरी चूत का मुंह खुलता चला गया और उसके मोटे लंड की तुलना में मेरी चूत की तंग गुफा फैलती चली गई और उसका लंड कचकचा कर घुसता चला गया।
"अईईईईईईईईई...... आआआआआहहह मां आंआंआंआं...." मैं चीखी। चूत को चीरता हुआ उसका मोटा लंड आधा घुस चुका था। मेरी चीख सुनकर वह थोड़ा रुका। करीब करीब साढ़े आठ इंच लंबा लंड और वह भी उतना मोटा, आधा घुस जाना भी इसलिए संभव हुआ था कि कुछ मिनट पहले ही चुदाई का एक दौर चल चुका था। यह सचमुच दर्दनाक था। मैं उत्तेजना के आवेग में भूल ही गयी थी कि उसका लंड पहले की अपेक्षा कुछ अधिक ही मोटा हो गया था। न सिर्फ मोटा, बल्कि लंबा भी कुछ अधिक ही हो गया था।
"चुप साली रंडी। अब्भिए ना थोड़ा देरी पहिले लौड़ा खाई थी। फिर काहे ऐसे चिल्ला रही है जईसे फट रही है हरामजादी।" वह मेरी चूतड़ पर थप्पड़ मारकर बोला।
"बहुत मोटा है।" मैं पीड़ा से कराहती हुई बोली।
"साली बुरचोदी अब्भी मोटा है बोलती है? दो सेकंड पहिले बोल रही थी चोद अऊर अब चोद रहे हैं तो फट रही है साली कुतिया?" गुस्से से बोला।
"दर्द हो रहा है तो नहीं बोलूंगी क्या?" दर्द से हलकान होती हुई बोली मैं। उसकी बात सुनकर तो उस समय और दुखी हो गयी। एक घटिया सा आदमी मुझसे इस तरह बात कर रहा था जैसे मैं सचमुच की उसके पैसे के लिए बिकने वाली कोई सस्ती किस्म की रंडी हूं। मुझे अपनी दशा पर बड़ी कोफ्त हो रही थी।
"अब दर्द दर्द बोलने का का फायदा। अब तो घुस ही गया। थोड़ा अऊर बर्दाश्त कर लो, फिर देखो मेरा लंड का मजा। खुद ही बोलोगी चोदो चोदो।" वह बोला और फिर अपने लंड पर दबाव बढ़ाने लगा। उफ उफ, कम से कम ढाई इंच मोटा लंड मेरी चूत के अंदर घुसा जा रहा था और मैं दर्द से छटपटा रही थी। मेरी हालत उससे छिपी नहीं थी इसलिए वह अपनी गिरफ्त को और सख्त कर चुका था ताकि उसका पूरा लंड मेरी चूत में दाखिल हो जाए। जबतक उसका पूरा लंड मेरी चूत में समा नहीं गया था तबतक वह अपनी गिरफ्त को ढीला नहीं पड़ने दिया था।
"आआआआआआह मर गई मर गयी ....." मैं बेबसी में यही बोलती जा रही थी। उसका करीब साढ़े आठ इंच लंबा लंड मेरी चूत में जड़ तक समा चुका था। उस उम्र में मुझे पता ही नहीं था कि उतना लंबा लंड मेरे अंदर कहां तक घुस चुका था। मेरे अंदर कुछ अजीब तरह अनुभव हो रहा था। अब पता है मुझे कि उस समय निश्चित तौर पर मेरी कोख में दस्तक दे रहा था। वह तो अपनी जीत का झंडा गाड़ चुका था लेकिन मेरी क्या हालत हो रही थी, वह सिर्फ मैं जानती थी। उसे तो जो चाहिए था मिल चुका था और वह विजयी मुस्कान के साथ मेरी आंखों में झांक रहा था। अब उसके लिए विजय का जश्न मनाने का समय था। तभी मैंने ठान लिया कि जो होना था वह तो हो ही चुका था तो अब अपनी पीड़ा दिखा कर उसके सामने खुद को पीड़िता क्यों साबित करूं। इतना तो मुझे पता ही था कि इस तात्कालिक आरंभिक पीड़ा का दौर कुछ ही मिनटों का था, इसके बाद चुदाई के सुखद आनंद से रूबरू होना ही था। वही हुआ भी।
"मरें तेरे दुश्मन। मां की लौड़ी पूरा लौड़ा तो गटक गई।" कहकर अब वह धीरे धीरे लंड बाहर निकालने लगा। करीब आधा से अधिक बाहर निकाल चुका था। उस समय उत्पन्न घर्षण से मेरी संकीर्ण यौन गुहा की संवेदनशील दीवारों में अद्भुत तरंगें पैदा हो रही थीं जिसके कारण मेरी धमनियों में रक्त का संचार द्रुत गति से होने लगा, बस फिर क्या था, मेरे अंदर की भूखी बिल्ली जाग कर सक्रिय होने को तत्पर हो उठी।
"अच्छा, रुको, हमको पेशाब करके आने दो। बस अब्भिए दो मिनट में आया।" कहकर वह प्रयोगशाला के बगल में पुराने टॉयलेट की ओर मुड़ा तो मैं ने आंखें बंद कर ली। वह गया और दो मिनट में ही फिर वापस आ भी गया।
"लो हम आ गए।" उसकी आवाज सुनकर मैंने आंखें खोली तो उसे देख कर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। मैं आश्चर्यचकित थी कि मात्र दो मिनट में ऐसा क्या हो गया कि जैसे उसका कायाकल्प हो चुका था। बिल्कुल तरोताजा। उसे देख कर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दो मिनट पहले मुझे चोदकर हटा था। उसके शरीर में जैसे नवस्फूर्ति का संचार हो रहा था। वह मेरी ओर बढ़ रहा था तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था यह देखकर कि उसका लंड पहले की अपेक्षा कुछ अधिक ही बड़ा हो चुका था और भयानक अंदाज में फुंफकार मार रहा था। उसकी आंखों में एक अजीब सी भूख दिखाई दे रही थी मुझे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि एक बार मेरे शरीर का भोग लगा चुकने के बाद भी वह ऐसे देख रहा था जैसे पहली बार मुझ जैसी लड़की को देख रहा था। उसकी आंखों में वही पहले वाली चमक दिखाई दे रही थी। हे भगवान यह मैं किस मुसीबत में फंस गयी थी। अब अपनी बात से पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। अपनी शर्त में ही मैं फंस कर इस मुसीबत को बुलावा दे बैठी थी।
"सच्ची, तू बिल्कुल हूर की परी है।" उसकी लार टपकाती नजरें सर से पांव तक मुझे देखे जा रही थीं। उसकी आवाज भी कुछ बदली बदली सी थी। मुझे बड़ा अजीब महसूस हो रहा था। ऐसा क्या हुआ था कि पेशाब करने के दौरान दो मिनट में ही चमत्कारिक ढंग से पुनः इतना तरोताजा हो गया था। उसका लंड भी भयावह रूप से पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा दिखाई दे रहा था।
"पहली बार देख रहे हो क्या? अभी ही किया था ना।" मैं उसके रंग ढंग से कुछ आतंकित महसूस कर रही थी। एक अनजानी सी घबराहट हो रही थी कि यह आदमी है कि जिन्न।
"बस्स ई समझ लो पहलीए बार देख रहे हैं। तू इत्ती मस्त माल है कि जित्ता चोदो साला मन ही नहीं भरता है। लग रहा है पहली बार चोदने जा रहे हैं। चल दे दे फिर से एक बार।" वह मेरे पास आकर मेरी चूचियों को हाथ से महसूस करने लगा। अनिच्छा के बावजूद अपनी शर्त से वचन से बंध कर उसे दुबारा झेलना था। मेरी चुदाई तो बड़ी अच्छी तरह से हुई थी, इतनी अच्छी तरह से कि मैं तृप्त हो गई थी। लेकिन मेरी हालत इस वक्त ऐसी थी जैसे बहुत स्वादिष्ट खाना खाकर पेट पूरी तरह भरा हुआ हो और मेहमान नवाजी करने वाले के हाथों लजीज व्यंजन देखकर भी ठुकराने को मजबूर हूं।
"न न न नहीं, अब मुझसे और नहीं होगा प्लीज़।" मैं उठते हुए बोली।
"होगा होगा। तुम ही से होगा। तुमसे न होगा तो किसी मां की लौड़ी से नहीं होगा।" वह मुझे फिर से ढकेल कर टेबल पर सुलाने की कोशिश करने लगा।
"नहीं नहीं।" मैं जिद करने लगी और उसे पीछे ढकेल कर टेबल से उतर कर अपने कपड़े ढूंढ़ने लगी लेकिन मेरे कपड़े वहां से गायब थे।
"मेरे कपड़े कहां गए?" मैं घबराकर बोली।
"अर्रे कपड़े की चिंता काहे कर रही हो? कपड़ा कहां भागा जा रहा है? वईसे भी ई बखत कऊन सा कपड़ा का जरूरत है? एक बार घपर घपर हो जाए, फिर कपड़ा भी मिल जाएगा।" वह बोला और फिर से मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और बेहताशा चूमने लगा।
"ओह ओह ऐसे पागल क्यों हुए जा रहे हो? जब करना ही है तो आराम से करो ना।" मैं विरोध करना बेकार समझ कर अपने आप को उसके हवाले करते हुए बोली। मुझे उसकी इतनी बेकरारी देख कर ताज्जुब हो रहा था। एक बार कर चुका था लेकिन अब दुबारा करने के समय भी वही बेकरारी देखना मुझे विस्मित कर रहा था। इतनी अदम्य काम पिपासा मैं पहली बार देख रही थी।
"इतनी मस्त माल बांहों में हो तो कऊन माधरचोद से सबर होगा।" वह खड़े खड़े ही मेरे चूतड़ों को मसलते हुए मुझे दबोच कर पागलों की तरह ताबड़तोड़ कभी मेरे गालों को चूमता , कभी मेरे होंठों को चूमता, कभी मेरे गले को चूमता जा रहा था। इधर बीच बीच में उसका लंड मेरी चूत के आसपास स्पर्श कर रहा था। न चाहते हुए भी मेरे अंदर फिर से कामाग्नि सुलगने लगी थी। उफ उफ, मैं उसकी इस नयी आक्रामक अंदाज से तनिक घबरा गई थी। धीरे धीरे वह और भी आक्रामकता दिखाने लगा था। सहसा उसने मुझे उठा कर टेबल पर बैठा दिया और मेरी टांगों को फैला कर बीच में घुस गया। अब वह मेरी चूचियों पर टूट पड़ा।
"गज्जब, ओह क्या चूचियां हैं। साली इसी उमर में इत्ती बड़ी बड़ी चूचियां? हम तुम्हारे साथ का करें समझ ही नहीं आ रहा है। तेरी इन तरबूजों को खाएं कि तेरे नीचे वाले मालपूए को खाएं।" वह मेरी चूचियों को बेरहमी से दबाते हुए बोला।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआं, अभी अभी इतना सबकुछ करके भी तुम्हारे अंदर इतनी भूख?" मैं पीड़ा का अनुभव करती हुई बोली। अबतक मेरे अंदर फिर से कामुकता की आग भड़कने लग गई थी इसलिए उसका यह सब करना मुझे अच्छा लगने लगा था।
"आह आह तुझ जैसी रसीली लौंडिया हाथ लग जाए तो भूख भला कईसे मिटे। खाते खाते मर जाएं तब भी कोई दुख नहीं होगा।" वह अब मेरे चूचियों को बारी बारी से मुंह में भर भर कर चूसने लगा।
"इस्स्स्स्स्ह उईईईईईईई आआआआआआह, ....." मैं जोश में भर कर खुद ही अपने हाथों से उसका सर अपनी चूंचियों पर दबाने लगी थी। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था। एक निम्नस्तर का यह घटिया चौकीदार मेरा यह हाल कर देगा, यह मेरी सोच से परे था। मैं जल बिन मछली की भांति छटपटाने लगी थी। मेरी चूचियों को चूसने से ही उसका मन नहीं भरा तो वह नीचे की ओर मुंह ले जाने लगा। हे भगवान वह क्या करना चाह रहा था? मेरे पेट से होता हुआ वह मेरी नाभि तक मुंह ले गया। वह मेरी चूचियों को दबाता रहा और चाटते चाटते वह नाभी से नीचे जाने लगा। ऊऊऊऊऊ मेरे राआआआआआम, मैं चौंक ही तो पड़ी जब उसका मुंह मेरी चूत तक जा पहुंचा। जैसे ही उसकी जीभ का स्पर्श मेरी चूत पर हुआ,
"इस्स्स्स्स् आआआआआआह ...... नननननहींहींहीईंईंईंईं हाआआआआय.....वहां नहीं वहां नहींईंईंईंईंई......" मैं सिसक पड़ी और आनंदातिरेक से मेरी आंखें बंद हो गयीं। मैंने अपनी जांघों को और फैला कर अपने हाथों से उसके सर को कस कर पकड़ लिया। उसने अबतक मेरी चूचियों को दबाना बंद नहीं किया था और इधर मेरी चूत का रसास्वादन कर रहा था। ओओओओओहहहहह यह कितना सुखद था बता नहीं सकती हूं। मैं उसके सिर को अपनी चूत पर दबा रही थी और सिसकारियां निकाल रही थी। "बस्स्स्स्स् बस्स्स्स्स् ....." मैं उसके सिर को जबरदस्ती हटाने लगी क्योंकि यह मेरी उत्तेजना का चरमोत्कर्ष था। इसके आगे मेरी लुटिया डूब जाती।बंटाधार हो जाता। उत्तेजना के अतिरेक में मेरा शरीर अकड़ने लगा था और मैं स्खलित हो जाती, फिर चुदाई का मजा लेने के लिए तैयार होने में न जाने और कितना समय लगता।
"ओह समझ गया। लोहा गरम हो गया है। अब हथौड़ा चलाने का बखत आ गया।" कहकर वह मेरी चूत चाटना बंद करके एक झटके में मुझे टेबल पर पटक दिया और मुझपर चढ़ गया। उसके जिस मूसलाकार लंड को देखकर मेरी घिग्घी बंध गई थी, अब मैं उस लंड को अपनी चूत में लेने को बेकरार थी।
"तईय्यार हो?" वह अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रखकर बोला।
"आग लगी है आग। साला पूछता है तैयार हो मां का लौड़ा, चोओओओओद हरामी" मैं पागलों की तरह चीख पड़ी। उत्तेजना के अतिरेक में मेरे मुंह से ऐसी बात सुनकर एक बार तो वह भी अचंभित रह गया। मुझ जैसी इतनी कम उम्र की लड़की के मुंह से ऐसा सुनने की उम्मीद शायद उसे नहीं थी।
"बहूत बढ़िया। ईईईई ल्ल्लेएएएए हमारा लौड़ा हुम्म्म्म आआआआआआह..." उसने अपने लंड पर दबाव देना आरंभ कर दिया। मेरी चूत का मुंह खुलता चला गया और उसके मोटे लंड की तुलना में मेरी चूत की तंग गुफा फैलती चली गई और उसका लंड कचकचा कर घुसता चला गया।
"अईईईईईईईईई...... आआआआआहहह मां आंआंआंआं...." मैं चीखी। चूत को चीरता हुआ उसका मोटा लंड आधा घुस चुका था। मेरी चीख सुनकर वह थोड़ा रुका। करीब करीब साढ़े आठ इंच लंबा लंड और वह भी उतना मोटा, आधा घुस जाना भी इसलिए संभव हुआ था कि कुछ मिनट पहले ही चुदाई का एक दौर चल चुका था। यह सचमुच दर्दनाक था। मैं उत्तेजना के आवेग में भूल ही गयी थी कि उसका लंड पहले की अपेक्षा कुछ अधिक ही मोटा हो गया था। न सिर्फ मोटा, बल्कि लंबा भी कुछ अधिक ही हो गया था।
"चुप साली रंडी। अब्भिए ना थोड़ा देरी पहिले लौड़ा खाई थी। फिर काहे ऐसे चिल्ला रही है जईसे फट रही है हरामजादी।" वह मेरी चूतड़ पर थप्पड़ मारकर बोला।
"बहुत मोटा है।" मैं पीड़ा से कराहती हुई बोली।
"साली बुरचोदी अब्भी मोटा है बोलती है? दो सेकंड पहिले बोल रही थी चोद अऊर अब चोद रहे हैं तो फट रही है साली कुतिया?" गुस्से से बोला।
"दर्द हो रहा है तो नहीं बोलूंगी क्या?" दर्द से हलकान होती हुई बोली मैं। उसकी बात सुनकर तो उस समय और दुखी हो गयी। एक घटिया सा आदमी मुझसे इस तरह बात कर रहा था जैसे मैं सचमुच की उसके पैसे के लिए बिकने वाली कोई सस्ती किस्म की रंडी हूं। मुझे अपनी दशा पर बड़ी कोफ्त हो रही थी।
"अब दर्द दर्द बोलने का का फायदा। अब तो घुस ही गया। थोड़ा अऊर बर्दाश्त कर लो, फिर देखो मेरा लंड का मजा। खुद ही बोलोगी चोदो चोदो।" वह बोला और फिर अपने लंड पर दबाव बढ़ाने लगा। उफ उफ, कम से कम ढाई इंच मोटा लंड मेरी चूत के अंदर घुसा जा रहा था और मैं दर्द से छटपटा रही थी। मेरी हालत उससे छिपी नहीं थी इसलिए वह अपनी गिरफ्त को और सख्त कर चुका था ताकि उसका पूरा लंड मेरी चूत में दाखिल हो जाए। जबतक उसका पूरा लंड मेरी चूत में समा नहीं गया था तबतक वह अपनी गिरफ्त को ढीला नहीं पड़ने दिया था।
"आआआआआआह मर गई मर गयी ....." मैं बेबसी में यही बोलती जा रही थी। उसका करीब साढ़े आठ इंच लंबा लंड मेरी चूत में जड़ तक समा चुका था। उस उम्र में मुझे पता ही नहीं था कि उतना लंबा लंड मेरे अंदर कहां तक घुस चुका था। मेरे अंदर कुछ अजीब तरह अनुभव हो रहा था। अब पता है मुझे कि उस समय निश्चित तौर पर मेरी कोख में दस्तक दे रहा था। वह तो अपनी जीत का झंडा गाड़ चुका था लेकिन मेरी क्या हालत हो रही थी, वह सिर्फ मैं जानती थी। उसे तो जो चाहिए था मिल चुका था और वह विजयी मुस्कान के साथ मेरी आंखों में झांक रहा था। अब उसके लिए विजय का जश्न मनाने का समय था। तभी मैंने ठान लिया कि जो होना था वह तो हो ही चुका था तो अब अपनी पीड़ा दिखा कर उसके सामने खुद को पीड़िता क्यों साबित करूं। इतना तो मुझे पता ही था कि इस तात्कालिक आरंभिक पीड़ा का दौर कुछ ही मिनटों का था, इसके बाद चुदाई के सुखद आनंद से रूबरू होना ही था। वही हुआ भी।
"मरें तेरे दुश्मन। मां की लौड़ी पूरा लौड़ा तो गटक गई।" कहकर अब वह धीरे धीरे लंड बाहर निकालने लगा। करीब आधा से अधिक बाहर निकाल चुका था। उस समय उत्पन्न घर्षण से मेरी संकीर्ण यौन गुहा की संवेदनशील दीवारों में अद्भुत तरंगें पैदा हो रही थीं जिसके कारण मेरी धमनियों में रक्त का संचार द्रुत गति से होने लगा, बस फिर क्या था, मेरे अंदर की भूखी बिल्ली जाग कर सक्रिय होने को तत्पर हो उठी।